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रविवार, 13 दिसंबर 2015

व्यवहार

             व्यवहार
कितनी ही मंहगी चमकीली,
फ्रेम  भले ही हो ,चश्मे की ,
लेकिन लेंस जब सही होते ,
तब ही साफ़ नज़र  आता है
सजधज कर कोई कितनी भी,
दिखने लग जाती हो सुन्दर ,
पर दिल कैसा ,यह तो  उसका ,
बस व्यवहार  बता पाता  है

          व्यवस्थाएं

अलग अलग लोगों की ,
अलग अलग जिद और व्यवहार
देता है समाज की ,
व्यवस्थाओं को आकार

घोटू

शनिवार, 5 दिसंबर 2015

दीवाना दीवान

        दीवाना  दीवान

जो भी आता ,मुझमे बैठ पसर जाता है
मारता गप्पे है ,मस्ती से पीता , खाता है
कोई जल्दी में रहता है ,कोई फुरसत  से
मगर मैं ,इन्तजार ,करता जिसका शिद्द्त से
वो हंसीं ,मखमली ,कोमल गुलाबी जिस्म लिए
लबों में शरबती मिठास और तिलस्म  लिए
जिसके अहसास से मुझमे गरूर आ जाए
समा के अपने  में ,मुझमे  सरूर  आ जाए
जी ये करता है उसकी खुशबू बसा लूँ  खुद में
   जिसके स्पर्श से ही  हुआ करता , बेसुध मैं       
 जिसकी तहजीब ,जिसकी खिलखिलाती प्यारी हँसी     
,जिसकी चूड़ी की खनक ,देर तलक ,दिलमे बसी
जिसको गोदी में लिए ,बावरा मैं ,पागल सा
 मज़ा जीवन का उठाता हूँ पूरा, पल पल का
इतना खो जाता ,भीनी खुशबू वाले बालों में
डूब जाता हूँ ,इस कदर में उसके ख्यालों में
वो कब आई,कब गयी ,पता नहीं चलता
फिर वो ही सूनापन ,विरहा की अगन में जलता
हमेशा ,बाहें ,मैं अपनी पसार बैठा हूँ
कर रहा ,उनका ही बस इन्तजार,बैठा हूँ
अपना ये जिस्मोजिगरबस उन्ही को सौंपा हूँ
उनका दीवाना हूँ, दीवान हूँ, मैं  सोफ़ा   हूँ
आपके घर की ,सबसे शानदार ,रौनक हूँ
हुकुम मे आपके ,हाज़िर ,गुलाम , सेवक हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

टेस्ट ही टेस्ट

       टेस्ट ही टेस्ट

इधर टेस्ट है,उधर टेस्ट है
जिधर देखिये,उधर  टेस्ट है
कहीं 'मिसाइल'टेस्ट हो रहा
और कहीं ' प्रोटेस्ट 'हो रहा
'एड्मिशन' मे  टेस्ट चल रहा
क्रिकेट में टेस्ट मैच  चल रहा
पग पग पर 'कॉन्टेस्ट' हो रहे
कितने  पैसे ' वेस्ट ' हो रहे
हो बीमार ,डॉक्टर  को जाते
वो भी कितने टेस्ट कराते
मुझे डॉक्टरों से शिकवा है
जब भी देते  कोई दवा  है
'यूरिन 'खून ,टेस्ट  करवाते
तब ही कोई दवा लिख पाते
ये ना कहता कोई डॉक्टर
टेस्ट कराओ रबड़ी  मिस्टर
टेस्ट करो  गाजर का हलवा
रसगुल्लों के साथ लो दवा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


हम तुम -एक सिक्के के पहलू

         हम तुम -एक सिक्के के  पहलू

जब तुम तुम थी,और मैं ,मैं था ,एक दूजे से बहुत प्यार था
तुम मुझको देखा करती थी,छुप  छुप मैं तुमको निहारता
देख ,एक दूजे को खुश थे , मुलाक़ात हुआ करती थी
हाथ पकड़ कर तन्हाई में ,दिल की बात हुआ करती थी
 जब से हुई  हमारी शादी, हम एक सिक्के के दो पहलू 
आपस में चिपके रहते है , पर मैं ,मैं हूँ,और तू  है तू 
 साथ रह रहे ,एक दूजे के ,चेहरा भी पर नज़र न आता
खड़ी आईने आगे जब तुम ,रूप तुम्हारा  तब दिख पाता
क्या दिन थे शादी के पहले ,मैं  स्वच्छंद  जिया करता था
हंसी ख़ुशी से दिन कटते थे ,निज मन मर्जी का करता था
अब सिक्के की  'हेड',बनी तुम ,टेल' बना,पीछे मैं  डोलूँ  ,
तुम्हारी 'हाँ' ही  मेरी' हाँ' ,तुम 'ना' बोलो ,मैं ' ना' बोलूं        
 संग संग  रहते एक दूजे का ,पर हम ना कर पाते दर्शन    
 रह रह मुझे याद आता है ,शादी के पहले का जीवन       

मदन मोहन बाहेती'घोटू'      

             
           

मैं -पैसा हूँ

          मैं -पैसा हूँ

मैं निर्जीव ,मगर चलता हूँ
गिरता कभी ,कभी चढ़ता हूँ
पंख नहीं, पर लोग  उड़ाते
तरल नहीं ,पर लोग बहाते
दुनिया कहती मैं हूँ  चंचल
साथ बदलता रहता पल पल
छप्पर फाड़ कभी आ जाता
हर कोई  मेरे गुण  जाता
मैं सफ़ेद हूँ, मैं हूँ काला
जिसे मिलूं ,होता मतवाला
जब भी मैं हाथों में आता
दुनिया के सब रंग दिखाता
मैं  मादक, मदिरा से बढ़कर
लोग  बहकते ,मुझको,पाकर
अच्छे लोग बिगड़ जाते है  
बिगड़े लोग संवर जाते  है
मुझको पाने सब आतुर है
मेरी खनखन बड़ी मधुर है
सभी तरसते मेरे स्वर को 
नचा रहा  मैं दुनिया भर को
पहले होता  स्वर्ण ,रजत का
पर अब हूँ कागज का,हल्का
मैं तो हूँ भूखों  की  रोटी
वस्रहीन के लिए  लंगोटी
मैं देता घर, चार दीवारी
रहन सहन की सुविधा सारी
पति पत्नी का प्यार मुझी से
 आभूषण ,श्रृंगार मुझी से
मुझसे मिलते नए नाम है
परसु,परस्या ,परसराम है 
दान ,धर्म करवाता मैं  ही
पाप कर्म ,करवाता मैं   ही
मैं तीरथ  और धाम कराता
जेलों में चक्की पिसवाता
मेरे कितने, भिन्न  रूप है 
अफसर कहते ,पत्र पुष्प है
चंदा  कहते है  नेताजी
चपरासी ,चाय पी राजी
मंदिर में, मैं बनू  चढ़ावा 
रेल बसों में बनू किराया
मुख विहीन ,मैं ,मगर बोलता
पा सबका  ,ईमान डोलता
कोई किस्मत का खेल समझता
कोई हाथ का मैल  समझता
मुझसे सारे ऐश्वर्य है 
मान प्रतिष्ठा और गर्व है
ये मत पूछो ,मैं कैसा हूँ
मै जैसा हूँ ,बस वैसा हूँ
हर युग में बस एक जैसा हूँ
हाँ,जनाब ,मैं ही पैसा हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

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