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गुरुवार, 29 अक्टूबर 2015

ऊनी वस्त्रो की पीड़ा

          ऊनी वस्त्रो की पीड़ा

अजब तक़दीर होती है ,हम स्वेटर और शालों की
सिर्फ सर्दी में मिलती है ,सोहबत हुस्नवालों की
गर्मियों वाले मौसम में, विरह की  पीर  सहते है
बड़े घुट घुट के जीते है ,सिसकियाँ भरते रहते है
दबे बक्से में रखते है ,दबाये  दिल के सब अरमां
आये सर्दी और हो जाए,मेहबाँ हम पे मोहतरमा
याद आती,भड़क जाती,दबी सब भावना मन की
गुलाबी गाल की रंगत ,वो संगत रेशमी तन की
भुलाये ना भुला पाते, तड़फती हसरतें दिल की   
थी कल परफ्यूम की खुशबू,है अब गोली फिनाइल की
बड़ी मौकापरस्ती है ,ये फितरत हुस्नवालों की
अजब तक़दीर होती है ,इन स्वेटर और शालों की

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मौसम के मुताबिक़ चलो

           मौसम के मुताबिक़ चलो

गर्मी में गोला  बर्फ का ,सर्दी में रेवड़ी ,
                           जो बेचते है ,साल भर उनकी कमाई है
सर्दी में शाल,कार्डिगन,गमी में स्लीवलेस ,
                             पहनावा पहने औरतें पड़ती दिखाई है
 गर्मी में ऐ सी ,कूलरों में आती नींद है ,
                             सर्दी में हमको ओढ़नी पड़ती  रजाई है
मौसम के मुताबिक़ ही बदलो अपनेआप को ,
                            इसमें ही सुख है ,फायदा,सबकी भलाई है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'            

किस्मत -कुत्ते की

          किस्मत -कुत्ते की

हर कुत्ते की ऐसी किस्मत कब होती है ,
           कोई कोठी या बंगलें में पाला जाए
हो उसको नसीब सोहबत ऊंचे लोगों की,
          बिस्किट और दूध खाने को डाला जाए
जब जी चाहे प्यार दिखाए 'मेडम जी'कॉ ,
       जब जी चाहे उनके चरण कमल को चूमे 
नाजुक नाजुक प्यारे हाथ जिसे सहलाएं ,
       जब जी चाहे ,मेडम  की बाहों  में  झूमे
साहब को घर छोड़ ,सवेरे शाम प्रेम से ,
       घर की मेडम जिसे प्यार से हो टहलाती
उसके संग संग ,खेल खेल कर गेंदों वाला ,
       बड़े प्यार से हो अपने मन को बहलाती
जिसको घर के अंदर बाहर ,हर कोने में,
        हो स्वच्छंद विचरने की पूरी आजादी
जो मालिक के बैडरूम में और बिस्तर पर,
          प्रेमप्रदर्शन  करने का हो हरदम आदी
अगर अजनबी कोई जो घर में घुस जाए,
         भौंक भौंक कर ,वो उसका जी दहलाता हो
लेकिन एक इशारे पर मालिक के चुप हो,
          दुम को दबा  ,एक कोने में छुप जाता  हो
बाकी कुत्ते गलियों में घूमा करते है ,
          फेंकी रोटी खा कर पेट भरा  करते  है
उनका कोई ठौर ठिकाना ना होता है,
           आवारा से आपस में  झगड़ा करते है
 पर ये किस्मतवाला रहता बड़े शान से ,
              खुशबू वाले शेम्पू से नहलाया जाए
 हर कुत्ते की कब ऐसी किस्मत होती है ,
               कोई कोठी या बंगले में पाला जाए 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                       
              

दास्ताने मोहब्बत

           दास्ताने मोहब्बत

चाहे पड़ा हो कितने ही पापड़ को बेलना ,
         कैसे भी खुद को,उनके लिए 'फिट 'दिखा दिया
मजनू कभी फरहाद कभी महिवाल बन ,
        हुस्नो अदा और इश्क़ पर ,मर मिट दिखा दिया
उनकी गली मोहल्ले के ,काटे कई चक्कर,
         चक्कर  में  उनके  डैडी  से भी पिट दिखा दिया 
देखी हमारी आशिक़ी ,वो मेहरबाँ हुए,
           नज़रें झुका  के  प्यार का 'परमिट'दिखा दिया
पहुंचे जो उनसे मिलने हम ,गलती से खाली हाथ,
          मच्छर समझ के हमको काला'हिट' दिखा दिया
दिल के हमारे  अरमाँ सब आंसूं में बह गए,
           'एंट्री' भी  ना  हुई  थी  कि ' एग्जिट' दिखा दिया 

 'मदन मोहन बाहेती'घोटू'             

'

बुधवार, 28 अक्टूबर 2015

शरद पूनम का चाँद और बढ़ती उमर

  शरद पूनम का चाँद और बढ़ती उमर

इसने तो पिया था अमृत ,ये चाँद शरद का क्या जाने
होते है   कितने  दर्द  भरे, बुझते  दीयों के  अफ़साने
कहते है शरद पूर्णिमा पर ,चन्दा अमृत बरसाता है
अपनी सम्पूर्ण कलाओं पर ,इठलाता वह मुस्काता है
ये रूप देख उसका मादक ,मन विचलित सा हो जाता है
यमुना तट के उस महारास की यादों में खो जाता  है
उस मधुर चांदनी में शीतल,तन मन  हो जाता उन्मादा
याद आते  गोकुल,वृन्दावन ,आती है याद बहुत राधा
यूं ही हंस हंस कर रस बरसा,क्या जरूरत है तरसाने की
ये नहीं सोचता कान्हा की ,अब उमर न रास रचाने की
मदमाता मौसम उकसाता ,और चाह मिलन की जगती है
पर दम  न रहा अब साँसों में ,ढंग से न बांसुरी  बजती है
ये  चाँद पहुँच के बाहर है,फिर भी करता है बहुत दुखी
जैसे हमको ललचाती है ,पर घास न डाले  चन्द्रमुखी
वो यादें  मस्त  जवानी की ,लगती है मन को तड़फाने
इसने तो पिया था अमृत , ये चाँद  गगन का क्या जाने
होते   है   कितने  दर्द  भरे ,बुझते  दीयों  के  अफ़साने

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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