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रविवार, 4 अक्टूबर 2015

मैं और तू

                 मैं और तू

तू है मेरे साथ सफर में ,मुश्किल आये ,फ़िक्र नहीं है 
मेरी जीवन कथा अधूरी ,जिसमे तेरा  जिक्र  नहीं है
तेरी बाहें  थाम, कोई भी दुर्गम रस्ता कट जाएगा
जीवनपथ में ,कहीं कोई भी ,संकट आये,हट जाएगा
हम तुम दोनों,एक सिक्के के,दो पहलू है,चित और पट है 
दोनों एक दूजे से बढ़ कर ,कोई नहीं किसी से घट  है
जब भी मुश्किल आयी ,तूने,दिया सहारा,मुझे संभाला
मेरी अंधियारी रातों में ,तू दीपक बन ,करे उजाला
हम तुम,तुम हम,संग है हरदम ,एक दूजे के बन कर साथी
तू है चंदन ,मै हूँ पानी,मैं  हूँ  दीया  , तू  है  बाती
तू है चाँद,तू ही है सूरज,आलोकित दिन रात कर रही
बन कर प्यार भरी बदली तू,खुशियों की बरसात कर रही
तू है सरिता ,संबंधों की ,सदभावों का ,तू  है निर्झर
तू पर्वत सी अडिग प्रेमिका ,भरा हुआ तू प्रेम सरोवर
तू तो है करुणा का सागर ,प्रेम नीर छलकाती गागर
सच्ची जीवनसाथी बन कर ,जिसने जीवन किया उजागर
ममता भरी हुई तू लोरी,जीवन का संगीत सुहाना
तू है प्यार भरी एक थपकी,सुख देती,बन कर सिरहाना
तू सेवा की परिभाषा है , तू जीवन की अभिलाषा है
बिन बोले सब कुछ कह देती,तू वो मौन ,मुखर भाषा है
तू क्या क्या है,मै  क्या बोलूं ,तू ही तो सबकुछ है मेरी
तूने ही आकर  चमकाई,जगमग जगमग रात अंधेरी
तू है एक महकती बगिया ,फूल खिल रहे जहां प्यार के  
तेरे साथ ,हरेक मौसम में ,झोंके बासंती  बहार  के
दिन दूना और रात चौगुना ,साथ उमर के प्यार बढ़ रहा
तेरा रूप निखरता हर दिन ,अनुभव का है रंग चढ़ रहा
एक दूजे के लिए बने हम,हममे ,तुममे अमर प्रेम है
जब तक हम दोनों संग संग है ,इस जीवन में कुशल क्षेम है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीवन दर्शन

                 जीवन दर्शन

  ना ऊधो का कुछ लेना है ,ना माधो का देना है
अपनी गुजर चलाने घर में ,काफी चना चबेना है
  कोई मिलता 'हाई हेलो' ना ,राम राम कह देते है
उनका अभिवादन भी करते,राम नाम ले लेते है
यूं ही किसी की  तीन पांच में ,काहे बीच में पड़ना है
अच्छा मरना ,याने सु मरना ,हरी का नाम सुमरना है 
इस जीवन के भवसागर में,अपनी नैया खेना है
ना ऊधो का कुछ लेना है,ना माधो  का देना है
ऐसे करें आचरण हम जो ,सभी जनो को सुख दे दे
ऐसी बात न मुख से निकले ,जो कोई को दुःख दे दे
बहुत किया अपनों  हित,अब तो अपने हित भी कुछ कर लें
दीन  दुखी की सेवा करके ,पुण्यों से झोली भर लें
अब तो प्रभु के दरशन करने,आकुल,व्याकुल नैना है
ना ऊधो का कुछ लेना है ,ना माधो का देना है
फंस माया में ,किया नहीं कुछ,हमने इतने सालों में
कब तक उलझे यूं ही रहेंगे,जीवन के जंजालों में
जितने भी है रिश्ते नाते,सब मतलब की है यारी
आये खाली हाथ , जाएंगे, हाथ रहेगें  तब खाली
तन का पिंजरा तोड़ उड़ेगी ,एक दिन मन की मैना है
ना ऊधो का कुछ लेना है ,ना माधो का देना है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 3 अक्टूबर 2015

आरक्षण का भूत

          आरक्षण  का भूत

देश में हर तरफ ,
जिधर देखो उधर ,हो रहे है आंदोलन
हर कोई चाहता है ,सरकारी नौकरी में,
उसे भी मिल जाए आरक्षण
और तो और वो कौमे भी ,
जो करती थी ,दलितों का दलन
आज उनके समकक्ष होने के लिए ,
कर रही है आंदोलन
क्योंकि आजकल कई जगह ,
सत्तर प्रतिशत से भी ज्यादा ,सरकारी नौकरियां ,
विभिन्न जाति के लोगों के लिए आरक्षित है ,
इससे सवर्ण त्रसित है
और अब पिछड़ी नहीं,अगड़ी जाति के लोग,
सबसे ज्यादा शोषित है
इनके प्रतिभाशाली  बच्चे ,
अच्छे कॉलेजों में एडमिशन नहीं पाते है
क्योंकि आरक्षण की वजह से ,
घोड़ों की दौड़ में ,गधे घुस जाते है
इस चक्कर में  ,
प्रतिभाशाली  छात्र छले जाते है
और कुछ तो इसीलिये ,आगे की पढ़ाई के लिए ,
 विदेश चले जाते है
कुछ तो विदेशों की व्यवस्था और वैभव देख कर
वहीँ बस जाते है,नहीं आते लौट कर
और बाकी जो लौट कर आते है
अपनी काबलियत और विदेशी डिग्री के कारण ,
यहाँ भी खूब कमाते है
कोई इंजीनियर बना तो उद्योग लगाता है
देश को प्रगति  के पथ पर पहुंचाता है
कोई डॉक्टर बन ,अस्पताल चलाता है
और ये देखा गया है,
इनके प्रायवेट अस्पतालों में ,
मंहगे होने के बावजूद भी ,बड़ी भीड़ रहती है ,
हर कोई यहाँ इलाज कराता है
यहाँ तक की आरक्षित  कोटे से,
भर्ती हुआ बड़ा सरकारी अफसर भी ,
अपने इलाज के लिए ,सरकारी अस्पताल नहीं,
इन्ही प्रायवेट अस्पतालों में जाता है
शायद इन्हे खुद ही ,
अपने जैसे क्वालिफाइड लोगों की ,
कार्यकुशलता पर नहीं है विश्वास
इसलिए ,वो नहीं जाते उनके पास
नेता लोग वोट के चक्कर में ,लोगों को ,
आरक्षण का लोलीपोप चुसा कर,  
देश के साथ कर रहे है विश्वासघात
और अगर ऐसे ही रहे हालत
तो देश की प्रतिभाओं का विदेश में ,
यूं ही 'ब्रेन ड्रेन 'होता रहेगा
या फिर देश का काबिल युवा ,
आरक्षण की मार का मारा ,
अवसर से वंचित रह कर ,
बस यूं ही रोता रहेगा
जब बोये गए बीज ही कमजोर होंगे ,
तो फसल तो बिगड़ ही जाएगी
मेरे देश के कर्णधारों को ,
सदबुद्धि कब आएगी

मदन  मोहन बाहेती 'घोटू'


हुस्न और जवानी

      हुस्न और जवानी

जब हो  जाता हुस्न जवां है
करता सबकी खुश्क  हवा है
लोग  बावरे  से हो  जाते ,
देख देख उसका  जलवा  है
सबकी नज़रें फिसला करती ,
देखा करती  कहाँ  कहाँ  है
कई तमन्नाएँ जग जाती ,
और भड़क जाते  अरमाँ है
जब सर पड़ती जिम्मेदारी ,
होते सारे ख्वाब हवा  है
 'घोटू'कोई तो  बतला दे ,
दर्दे दिल की कौन दवा  है

घोटू
 

शादी और घरवाली

                  शादी और घरवाली

 हर औरत का ,अपने  अपने ,घर में राज हुआ करता है
हर औरत का अपना अपना ,एक अंदाज हुआ करता है
कभी प्यार की बारिश करती,और कभी रूखी रहती  है
जब भी सजती और संवरती ,तारीफ़ की भूखी रहती है
उसका मूड बिगड़ कब जाए ,मुश्किल है यह बात जानना
यह होता  कर्तव्य पति का, पत्नी   की हर बात मानना
हम सगाई  में पहनाते है ,एक ऊँगली में एक अंगूठी
बाकी तीन उँगलियाँ उनकी,इसीलिये रहती है रूठी
जो शादी के बाद हमेशा ,बदला लेती है गिन गिन कर
अपने एक इशारे पर वो ,हमें नचाती है जीवन भर
जिन आँखों के लड़ जाने से ,हुआ हमारा दिल था पगला
शादी बाद लिया करती है ,उस लड़ाई का हमसे बदला
एक इशारा उन आँखों का ,हम से क्या क्या करवाता है
उनकी भृकुटी ,जब तन जाती,बेचारा पति घबराता है
शादी समय ,आँख के आगे ,जो सेहरा पहनाया जाता
नज़रे इधर उधर ना ताके ,ये प्रतिबन्ध लगाया जाता
उनके आगे किसी सुंदरी ,को जो देखें नज़र उठा कर
तो परिणाम भुगतना पड़ता ,है हमको अपने घर आकर
फिर भी कभी कभी गलती से ,यदि हो जाती ये नादानी
तो फिर समझो ,चार पांच दिन,बंद हो जाता हुक्का पानी
उनके साथ,सात ले फेरे, अग्नि कुण्ड के काटे चक्कर
उनके आगे पीछे हरदम ,घूमा करते बन घनचक्कर
प्रेम,मिलन की,और शादी  की,जितनी भी होती है रस्मे
कस निकालती है कस कस कर ,शादी में जो खाते कसमें
पत्नी से मत  करो बगावत,वरना खैर नहीं तुम्हारी
शादी करके,सांप छुछुंदर ,जैसी होती  गति हमारी
शादी है  बूरे  के लड्डू  ,सभी चाहतें है वो खायें
जिसने खाए वो पछताए ,जो ना खाए ,वो पछताए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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