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बुधवार, 27 मई 2015

पप्पू जी से

         पप्पू जी से
                 १
यूं तुम क्यों बिलबिलाते हो,हार की अपनी बरसी पे
दिये गम इतने दिन, आये चले अब मातमपुर्सी  पे
आदमी बैठ कर कुर्सी पे अक्सर भूल जाता  है,
उसी जनता जनार्दन को ,बिठाया जिसने कुर्सी  पे
                            २
इंडिया और इटली में ,फरक इतना नज़र आता ,
          यहाँ पर राम के चर्चे ,वहां पर रोम की चर्चें
बहुत मंहगा हमें पड़ता है संगेमरमर इटली का,
          और इटली के पीज़ा के ,चौगुने दाम हम खर्चें
बहू इटली की लाना भी,बड़ा मंहगा पड़ा हमको,
          हुआ है ऐसा पप्पू जो,रोज करता  बखेड़ा है
यहाँ जनता जनार्दन सब,कुतुबमीनार सी सीधी ,
        मगर पप्पू तो इटली के पीसाटावर सा टेढ़ा है
                           
घोटू 

  

त्रिदेव और त्रिदेवी

           त्रिदेव और त्रिदेवी

है ब्रह्मा कर्ता सृष्टी के ,कराते काम सब हमसे ,
      सरस्वती ज्ञान की देवी,सभी अज्ञान  हरती है
देव विष्णुजी भर्ता है,करें सबका भरण पोषण ,
       लक्ष्मी देवी धन की है, हमें संपन्न करती है
और शंकरजी हर्ता है,हरे सब मुश्किलें ,सबकी ,
       और माँ दुर्गा देवी है ,सभी को देती है  शक्ती
ये तीनो देवता ,देवी,चलाते चक्र जीवन का,
       है कर्ता ,भर्ता ,हर्ता ये,इन्ही की हम करें भक्ति

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 20 मई 2015

गुलों से ख़ार हो गये

           गुलों से ख़ार हो गये

बताएं क्या,सुनाएँ क्या ,है ऐसे हाल हो गये
खुली जो आँख उठ गए,लगी जो आँख सो गये
पुरानी याद आई तो,हँसे या रो लिए कभी,
लुटाया जिनपे प्यार था ,उन्ही पे भार हो गये
जला के खुद को आग पर ,पकाया खाना उम्र भर,
पुराने बर्तनो से हम भी अब भंगार हो गये
जमा थी पूँजी खुट गयी,कमाई सारी लूट गयी ,
घुटन ये मन में घुट गयी ,थे गुल,अब ख़ार हो गये
बची न कोई हसरतें ,उठाके कितनी जहमतें ,
बुने थे ख्वाब कितने ही,सब तार तार हो गये
कहें भी तो किसे कहें, है किसको वक़्त कि सुने ,
है  'घोटू' शिकवे और गिले ,कई हज़ार हो गये 

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुड मॉर्निंग '

                 गुड मॉर्निंग '
सवेरे ही सवेरे जब ,कोई मुस्का,मधुर स्वर में ,
        तुम्हे 'गुड मॉर्निंग' बोले ,बजेगी घंटियां  मन की
सुहागा होगा सोने में ,अगर मिल जाए पीने को,
         गरम एक चाय का प्याला ,ताजगी आएगी तन की
लगेगा उगता सूरज भी,तुम्हे हँसता और मुस्काता,
         हवाओं में भी आएगी , सुगन्धी तुमको चन्दन  की
'न्यूज़ पेपर 'जो खोलोगे ,तो फीलिंग आएगा मन में ,
          सुहागरात  में  तुमने ,    उठाई  घूंघट  दुल्हन की  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 19 मई 2015

शादी का बंधन

            शादी का बंधन

दिया भगवान ने मुझको ,अगर धरती पे जीवन है
है इस पर पूर्ण हक़ मेरा ,मिला जो प्यारा  सा तन है
करूं उपयोग मैं इसका, जैसे  भी मन में आता है 
तो  क्यों प्रतिबन्ध ढेरों से,ज़माना ये लगाता है
कभी ना तो कभी ये प्रश्न ,सभी के मन में उठता है
नहीं स्वातंत्र्य है कुछ भी ,भला क्यों ये विवशता है
मिला उत्तर ये भगवन ने,दिया है मन भी तन के संग
बड़ा भावुक वो होता है, जो रंग जाता किसी के रंग
तो उसके साथ जीवन भर का फिर बंध  जाता बंधन है
तो फिर क्या तन और क्या मन,सभी उसको समर्पण है
अगर बंधन ये ना होता  ,न बच्चे ,,घर नहीं रहता 
तो  इन्सां  और पशुओं में ,नहीं अंतर कोई   रहता 
रोकने को जो  उच्श्रंखलता,व्यवस्था है गयी बाँधी
यही बंधन है सामाजिक  ,जिसे हम कहते है शादी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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