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बुधवार, 13 मई 2015

एक पार्टी वर्कर की व्यथा

         एक  पार्टी वर्कर की व्यथा

न जाने कौन सा चारा ,चरा था उसने छप्पन दिन ,
              जुगाली कर रहा है अब, रोज ही है वो रम्भाता
बड़ी मजबूती पांवों में ,आई है थाईलैंड  जाकर,
               कोई भी करने पदयात्रा ,वो अक्सर ही निकल जाता
करी बैंकॉक  मस्ती,अकेले ही अकेले सब ,
                 नहीं तब याद आयी पार्टी या फिर पार्टी के वर्कर,
न जाने कौन सी बूटी ,है खाई ,आया इतना बल,
                जेठ की गर्मियों में भी, हमें पदयात्रा    करवाता

घोटू

मंगलवार, 12 मई 2015

   खुश रहिये

रहे करते गिला वो,थे हरदम ही खुदा से यों
दिया ना ये दिया ना वो,मेरे संग ही किया ये क्यों
कहा अल्लाह ने कि तुझको मिला जो था मुकद्दर मे
जो तेरे पास है उतना ,नहीं है कितनो के घर मे
लोग यूं ही दुखी होते,सुखी ज्यादा दिखे कोइ
मिला जो भी उसी मे खुश,है सन्तोषी,सुखी वो ही

घोटू

सोमवार, 11 मई 2015

जयललिता भी है रिहा,छूट गये सलमान
अच्छे दिन की आस में,खुश है आसाराम
खुश है आसाराम,प्रभु कब आप सुनोगे
बहुत,भोग के चक्कर मे,मैने दुख भोगे
नाम हुआ बदनाम ,जेल के कष्ट उठाये
दिन बीते,देशी घी की मालिश करवाये

घोटू

वो कौन है ?

          वो कौन है ?

वो जब आती ,नहीं रूकती ,
              सभी को जाना पड़ता है
ये है दस्तूर कुदरत का ,
              निभाना सबको पड़ता है
ये दो बहने गजब की है,
              अजब इनका फ़साना है
एक इक बार जीवन में ,
              दूजी आये रोजाना है
एक आती ,संग ले जाती,
            सभी को गमजदा करती
एक आ चैन देती है,
             तबियत खुशनुमा करती
एक से लोग डरते है ,
              वो ना आये तो अच्छा है
एक आ देती राहत है ,
              वो आये सबकी इच्छा है
एक चुपके से  आती है,
              किसी को ना नज़र आये
एक को चाहते सब है,
               मगर ना देखना चाहे
एक आती,मिले मुक्ति,
               ये उसका लक्ष्य  होता है
एक के वास्ते घर में,
               अलग एक कक्ष  होता है
जो आती एक बार ही है ,
              इस जीवन में,वो है मृत्यूं
जो आती रोज ,वो क्या है,
              समझता मै ,समझता तू

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

हसरत और हक़ीक़त

       हसरत और हक़ीक़त

चाहता था कि बन जाऊं ,खिलाड़ी एक मै  बेहतर
बनू या फिर कोई एक्टर ,कला के दिखलाऊं जौहर
या फिर बन जाऊं मैं नेता,मुझे था बोलना  आता
या बिजनेसमेन बन जाऊं ,कमा जो ढेर सा लाता
मगर किस्मत के चक्कर में ,नहीं कुछ ऐसा बन पाया
हुई शादी,  मिली बीबी  ,रह  गया बन  के   चौपाया
बना ऐसा खिलाड़ी हूँ,  खेलता हाथों किस्मत के
रोज बनता हूँ मै एक्टर , दिखाता रंग नाटक के
बीबी ,बच्चों को,नेता बन ,रोज देता हूँ मैं भाषण
जल्द अच्छे दिन आएंगे ,दिया करता हूँ आश्वासन
 गृहस्थी जो चलाना है  , कमाना  भी जरूरी  है
बन गया हूँ मैं बिजनेस मेन ,हुई सब इच्छा पूरी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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