औरतों के मज़े
औरतें ,महिला होने का , मज़ा लेती हमेशा है ,
वो 'लेडीज फस्ट 'कह कर के,सदा 'प्रिफरेंस 'पाती है
आदमी पिसता है दिन भर,कमाई कर के लाता है ,
मज़े से घर में बैठी ये ,मौज मस्ती मनाती है
रिज़र्व सीटें इलेक्शन में,बसों में भी अलग सीटें,
रेलवे में अलग डिब्बा ,मर्द जिसमे न घुस पाता
मर्द के साथ हर डब्बे में वो कर सकती है ट्रेवल ,
काम कोई हो ,लेडीज़ को,दिया प्रिफरेंस है जाता
शान से वस्त्र मर्दों के ,पहन कर वो है इतराती ,
आदमी वस्त्र औरत के,पहन लेकिन नहीं पाता
हमेशा औरतें ही तो ,कहांती घर की है रानी ,
उम्र भर आदमी पिसता ,मगर नौकर ही कहलाता
आदमी वर्षों मेहनत कर,पढाई कर ,बने डाक्टर ,
औरतें ब्याह डाक्टर को,कहाया करती डाक्टरनी
अगर है वो जो फूहड़ तो ,बड़ा ही अव्यवस्थित घर,
मगर घर स्वर्ग बन जाता ,सुशीला गर जो हो घरनी
औरतें कितनी भी काली,है 'फेयर सेक्स'कहलाती ,
सुदर्शन गोरे पुरुषों संग ,नहीं इन्साफ होता है
वो हमको घूर कर देखें,ज़माना कुछ नहीं कहता ,
नज़र भर देख भी लें हम,तो कहते पाप होता है
खुदा ने मर्दों को दाढ़ी दी,शेविंग की मुसीबत दी ,
और औरत के गालों को,बड़ा चिकना बनाया है
किधर से भी पकड़ लो तुम ,हमेशा वार करता है ,
उनके हथियार बेलन ने ,सितम मर्दों पे ढाया है
पुरुष को कोई बिरला ही ,देवता कहने वाला है,
औरते तो हमेशा ही ,कहाया करती है देवी
विष्णुजी और ब्रह्मा के ,बहुत कम लोग पूजक है,
लक्ष्मी,सरस्वतीजी की ,मगर दुनिया सभी सेवी
न जाने कौन सा हुनर ,दिया है भर विधाता ने ,
औरतों के इशारों पर, आदमी नाच करता है
भले ही शेर बन के डांटता है सबको दफ्तर में ,
मगर घर पर ,बना बिल्ली,सदा बीबी से डरता है
पड़ गयी जो भी पल्ले है ,निभानी पड़ती है सबको ,
भले सीधी या टेढ़ी हो,भले गोरी हो या काली
हज़ारों रूप है उसके ,कभी माँ है ,कभी बहना ,
कभी घरवाली है या फिर ,लुभाती बन के वो साली
मदन मोहन बाहेती'घोटू'