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रविवार, 26 अप्रैल 2015

भूकम्प

            भूकम्प

जब घर हिलता,तो घरवाले ,छोड़ छोड़ घर ,जाते बाहर
घरवालों के घर  को छोड़े  जाने  से भी ,हिलता है  घर
जो घर हमें आसरा देता , उसे छोड़ देते   मुश्किल  में
पहले फ़िक्र सभी को अपनी ,घर की कोई फ़िक्र न दिल में
पिता सरीखा ,घर संरक्षक ,और माता जैसी धरती है
यह व्यवहार देख बच्चों का ,ही धरती कांपा करती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रहम करो - रहम करो त्राहि माम - त्राहि माम...


सभी भूकम्प पीड़ितों के प्रति हार्दिक संवेदना
एवं प्रभावित क्षेत्र के सभी लोगों के लिये
ईश्वर से प्रार्थना के साथ...एक भाव, 
जो अनायास ही आ गया मन में...

कभी भूकंप - कभी बाढ़
कभी सूखा - कभी सुनामी
कभी दंगे - कभी दुर्घटना,
जैसे इस बहाने ईश्वर 
चाहता हो ये कहना कि
'भय बिनु होय न प्रीति...'
क्योंकि अगर न हों ये आपदायें
मनुष्य का शक्तिशाली मस्तिष्क
कहां मानेगा उसकी सत्ता को
कहां स्वीकारेगा उसकी प्रभुता को...
होती तो है पूरी कोशिश
होता तो है पूरा प्रयास कि
खोज ली जाये पूरी तकनीक
निचोड़ लिया जाये पूरा विज्ञान
सुलझा ली जायें सारी समस्यायें
जीत ली जायें सारी दिशायें
जीत लिया जाये पूरा ब्रह्माण्ड
गढ़ लिया जाये 
अपने जैसा दूसरा मानव,
गढ़ दिया जाये 
साक्षात ईश्वर को भी
गॉड पार्टिकल के रूप में...
लेकिन तभी लगता है एक झटका
और धरी की धरी रह जाती है
सारी तकनीक - सारा विज्ञान
सारी की सारी विद्यायें,
तब निकलता है मुँह से
'हे ईश्वर - या ख़ुदा - ओ गॉड
या फिर हे राम
रहम करो - रहम करो
त्राहि माम - त्राहि माम...'

- विशाल चर्चित

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

बुजुर्गों की पीड़ा

         बुजुर्गों की पीड़ा

हमारे एक बुजुर्ग मित्र,जो कभी हँसमुखी थे
अपने बच्चों के व्यवहार से,काफी दुखी थे
हमने समझाया,आपको रखना पडेगा थोड़ा सबर
क्योंकि ये जनरेशन गेप है याने पीढ़ियों का अंतर
इसलिए 'एडजस्ट 'करने में ही है समझदारी
खोल दो अपने दिल की बंद खिड़कियां सारी
इससे आपके नज़रिये में बदलाव आएगा
आपका दुखी जीवन संवर जाएगा
हमारी बात सुन कर ,वो गए बिफर
और बोले ये सब खिड़कियां खोलने का ही है असर
जब तक खिड़कियां बंद थी ,सुख था ,शांति थी,
घर में हमारी ही चलती थी
और खिड़कियां खोलना ही हमारी,
सब से बड़ी गलती थी
जब से बाहर की हवा के झोंके ,
खिड़कियों से अंदर आये है
ये अपने साथ धूल और गंदगी लाये है
मच्छर भिनभिनाते है ,
मख्खियां मंडराने लगी है
हमारी व्यवस्थित गृहस्थी ,
तितर बितर होकर,डगमगाने  लगी है
ये हमारे खिड़कीखोलने का ही है नतीजा
अब मक्की की रोटी नहीं बनती ,
हमारे घर आता है'पीज़ा'
इन बाहरी ताक़तों ने ,मेरे बच्चों पर ,
अपना कब्जा जमा लिया है
और धीरे धीरे मुझे बेबस बना दिया है
मेरा वजूद घटता जा रहा है ,
और मैं एक पुराने किले सा ढह गया हूँ
सिर्फ वार त्योंहार के अवसर   पर,
पाँव छूने की चीज बन कर रह गया हूँ
मेरे मन में यही बात खट रही है
जैसे जैसे मेरी उमर बढ़ रही है
मेरी  कदर घट   रही  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'    

हंसी हंसी में

                   हंसी हंसी में

चलो गम के जमाने में,हंसी की बात करते है
हंसी ही बस हंसी में हम,हंसी की बात करते है
हसीनो की हंसी हरदम ,बड़ी ही है हसीं  होती
वो हँसते है तो लगता है ,बिखरते जैसे हो मोती
डाल कर जब नज़र तिरछी,अदा से मुस्कराते है
लोग घायल,कई होते,बिजलियाँ वो गिराते है
हंसी नन्हे से बच्चे की,बड़ी प्यारी,बड़ी निश्छल
बड़ा दुलार आता है, बरसता लाड है प्रतिपल
हंसी बूढ़े बुजुर्गों की ,अधिकतर रहती है गायब
कभी वो हंस लिया करते ,पुरानी याद आती जब
मुंह पर दूल्हा दुल्हन के ,छिपी मुस्कान होती है
मिलन के मीठे सपनो की,यही पहचान होती है 
होंठ जब फूल से खिलते ,हंसी वो खिलखिलाहट है
फ़ैल मुस्कान गालों पर,हंसी की देती  आहट  है
निपोरे दांत कोई तो ,कोई बत्तीसी  दिखलाता
पोपले मुंह से दादी माँ ,जब हंसती है ,मज़ा आता
हंसी होती दबी भी है,हंसी खुल कर भी है आती
ठहाके मारती है जो,हंसी  अट्टहास  कहलाती
जबरजस्ती कोई हँसता ,हंसी होती है खिसयानी
बहुत ज्यादा हंसी आती,आँख में भरता है पानी  
कोई बदमाश,खलनायक,कुटिल सी है हंसी हँसता
कोई अपनी ही हरकत से ,हंसी का पात्र है बनता
हंसी कोई की खनखन सी,रुपय्यों जैसी खनकाती
कोई मुंह फाड़ कर हँसता ,छवि रावण की आ जाती
मनोवांछित कोई जब काम होता,चीज मिलती  है 
तोमन ही मन ख़ुशी होती,हमारी बांछें खिलती   है
अगर बचकानी हरकत पर ,तुम्हारी जो हंसी लड़की
गलत ये सोच होता है,हंसी तो फिर  फँसी लड़की 
 हंसाती हास्य कवितायें,चुटकुले गुदगुदाते है
कभी हंस हंस के पागल तो,कभी हम मुस्कराते है
विदूषक हो या हो जोकर ,सभी को जो हंसाता है
है उसके मन में क्या पीड़ा ,कोई क्या जान पाता है
आज के व्यस्त जीवन में ,हंसी सब की हुई है गुम
तभी 'लाफिंग क्लबों 'में जा,हंसी को ढूंढते है हम
हंसी के गोलगप्पे है ,तो हंसगुल्ले  रसीले है
हंसा करते है जिंदादिल ,हंसा करते रंगीले है
कभी खुशियां कभी गम है,नहीं बैठे रहो गुमसुम
भूल जाओगे सारे गम,कभी हंस कर तो देखो तुम
हमेशा खुश रहो हँसते ,हंसी से अच्छी सेहत है
हंसी खुशियों की दौलत है,हंसी जीवन का अमृत है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

गर्मी का असर

       गर्मी का असर

अब हम तुमको क्या बतलाएं ,सितम गर्मियों ने क्या ढाया
खिला खिला  सुन्दर गुलाब सा ,चेहरा   गर्मी में  मुरझाया
गरमी आगे ,अच्छे अच्छों  की ,हालत  हो जाती   ढीली
हो जो गरम  सामने वाला ,सबकी सूरत  पड़ती   पीली
 गर्मी की ऋतू मे.अक्सर ही    जो मौसम के फल आते है
आम,पपीता  या खरबूजा  ,     पीले  ही पाये  जाते  है
पीले पड़ते  सब गर्मी में  ,जो कि सहमे और डरे   है
किन्तु  हिम्मती  तरबूजों से , हरदम रहते हरे भरे है

घोटू

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