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शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

रंग-ए-जिंदगानी: नारी का सशक्तीकरण

रंग-ए-जिंदगानी: नारी का सशक्तीकरण: सुप्रीम कोर्ट ने शरई अदालतों की वैधता को भले ही नक़ार दिया हो,लेकिन एक दौर में इन अदालतों के फैसले पूरे देश में माने जाते थे।नाफ़रमानी ...

बीबी का मोटापा

         बीबी का मोटापा 
                     १
पत्नीजी पर ज़रा भी ,अगर मांस चढ़ जाय
तो पतिजी जब तब उसे,मोटी  कहे,चिढ़ाय
मोटी कहे चिढ़ाय ,दोष पत्नी का क्या है
शादी के ही बाद इस तरह बदन भरा है
बदन छरहरा था ,फूला पति के घर आकर
मोटा पति ने किया ,प्यार का डोज़ पिलाकर
                       २
पतिजी से पत्नी कहे ,दिखला थोड़ा क्रोध
खुद को भी देखो पिया,निकल आयी है तोंद
निकल आयी है तोंद ,हो रहे तुम भी भारी
थोड़ी सी मेहनत से  फूले  सांस तुम्हारी
'घोटू'बदन सासजी का भी क्या कुछ कम है
अपनी माँ को मोटा बोलो ,यदि जो दम है

घोटू 

मै केजरीवाल आया हूँ

      मै  केजरीवाल आया हूँ

सुनाने हाल आया हूँ
मैं केजरीवाल आया हूँ
नहीं धरने पे बैठूंगा,
छोड़ हड़ताल  आया हूँ
आदमी आम जो हूँ ,
आप का मैं चाहनेवाला ,
विदेशों में ,डिनर करवा,
बहुत सा माल लाया हूँ 
ढके ना कान मफलर से ,
सभी की अब सुनूंगा मैं ,
बताने आंकड़ों का ढेर सा,
मैं  जाल लाया हूँ
पड गयी थी 'जरी'काली,
जब एसिड टेस्ट से गुजरी ,
मगर अबके ,खरे सोने का ,
असली माल लाया हूँ
पिटारे में मेरे अबके ,
है वादे भी,इरादे भी,
पुराना राग ना अब मैं ,
सुरीली ताल लाया हूँ
समय के साथ मैंने भी ,
बदल डाला है अपने को,
विरोधी कहते मैं करने ,
यहाँ बवाल आया  हूँ
सुनाने हाल आया हूँ
मैं  केजरीवाल  आया हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जब तलक सांस रहती है

              जब तलक सांस रहती है

नहीं जिसको जो मिल पाता ,उसी की आस रहती है
ध्यान उस पर नहीं जाता ,जो हरदम पास रहती है
खेलना होता है  जब, फेंटे  जाते  ताश  के  पत्ते ,
वार्ना बस बंद डब्बे में, सिसकती  ताश रहती है
छोड़ कर घर का खाना ,होटलों में जो भटकते है ,
न जाने किस मसाले की, उन्हें तलाश   रहती है
छिपी घूंघट में जो रहती ,न उस पर ध्यान देतें है ,
ध्यान बस खींचती है वो,जो बन बिंदास रहती है
छुपा कर  रेत  में मुंह  सोचते,कोई न देखेगा ,
सुना है ये शुतुरमुर्गों की आदत ख़ास रहती है
जरूरी ये नहीं की हमेशा ,हर अश्क़ खारा हो,
खुशीके आंसूओं में भी,अजब मिठास रहती है
परेशां बेबसी में भी,लोग घुट घुट के जीते है,
फिरेंगे दिन हमारे भी ,ये मन में आस रहती है
ये काया पांच तत्वों की ,उन्ही में लीन  हो जाती,
आदमी ज़िंदा तब तक है ,जब तलक सांस रहती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

औरतें नाज़ुक बड़ी है

                  औरतें नाज़ुक बड़ी है

 उँगलियों के इशारों से, अगर जाय हो सब कुछ,
             व्यर्थ में ही करें मेंहनत ,भला किसको ,क्या पडी है
भृकुटी ऊंची और नीची ,काम सब देती करा है,
             वरना घर भर को हिलाती,लगा आंसू की  झड़ी  है
जो हमेशा दुम हिलाये,भोंकना जिसको न आये,
            इस तरह का पति पाकर ,हौंसले से ये बढ़ी   है
पकाती इसलिए खाना,स्वाद लगता है सुहाना,
          पति पकाता,स्वाद में कुछ,आ ही जाती गड़बड़ी है 
भले ही गलती कहो तुम ,या कि इसको प्यार कह दो,
          चढ़ाया सर पर है हमने ,इसलिए ये सर चढ़ी है
अदाओं से लुभाती है ,प्यार करके पटाती है,
          खुद न झुकती ,झुकाती है,औरतें नाज़ुक बड़ी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

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