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गुरुवार, 23 अक्टूबर 2014

रंग-ए-जिंदगानी: जन-जन की भाषा हैं हिंदी

रंग-ए-जिंदगानी: जन-जन की भाषा हैं हिंदी: 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाते हुए हमें पचास साल से अधिक समय हो गया।   इतने सालों में बस एक   ही काम हुआ हैं। बडे-बडे मंचों पर बडे-बडे...

रंग-ए-जिंदगानी: जन-जन की भाषा हैं हिंदी

रंग-ए-जिंदगानी: जन-जन की भाषा हैं हिंदी: 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाते हुए हमें पचास साल से अधिक समय हो गया।   इतने सालों में बस एक   ही काम हुआ हैं। बडे-बडे मंचों पर बडे-बडे...

बोलो जय हो चर्चित राज की....


कल छोटी दीपावली पर अपने एक मित्र का फेसबुक पर लेख पढ़ा कि 'मिडिया और पर्यावरण के रखवालो को पर्यावरण बचाने की याद सभी हिन्दू त्यौहारो पर ही आती है....जम के पटाखे छुड़ाइये, दिवाली है, बाकि के 364 दिन है पर्यावरण के लिए....' और बस इसी पर शुरू हो गया अपने भी दिमाग का चलना....और बन गया अच्छा - खासा एक व्यंग्य..... :D

भाई देखिये, आज अपनी दीवाली है... सबसे बड़ा त्योहार... दिमाग की ऐसी - तैसी मत कीजिये... हमारा जो मन करेगा करेंगे... आप अपना ये 'पर्यावरण का प्रवचन' अपने पास रखिये.... समझ गये न ?! हम कमाते हैं तो अपने लिये... गरीबों को देने के लिये थोड़े ही?! कोई गरीब है तो उसका नसीब... इसमें हमारी क्या गलती ?! एक तो महंगाई इतनी बढ़ गई है कि जेब का दीवाला निकल जाता है ऊपर से लोगों के भाषण कि 'ये मत करो - वो मत करो'... पिद्दी से पटाखे भी 40-50 रुपये के आते हैं.... मतलब कि कम से कम द हजार के पटाखे तो लेने ही पड़ते हैं... वर्ना पड़ोसियों में नाक कट जाती है... कहते हैं 'भिखमंगा कहीं का'.... कुछ लोग आकर समझाने लगते हैं कि 'बम यहां नहीं, कहीं और छुड़ाओ, फलां को ब्लड प्रेशर की बीमारी है'... अरे भाई जिसको बीमारी है वो कहीं और जाये हम क्यों जायें... हम तो यहीं बम भी दगायेंगे और यहीं रॉकेट भी... हमारा रॉकेट किसी के घर में जाता है तो इसमें हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है, क्योंकि हम थोड़े न बोल के भेजते हैं कि 'जा बेटा फलां के घर में...'?!... अब रही बात प्रदूषण की तो तमाम गाड़ियों और फैक्टरियों से दिन - रात प्रदूषण होता है तब तो नहीं बोलते...पहले उनको बन्द कराओ जाकर.... अगर हम अपने मन का कर न सकें तो काहे की आजादी?! ....इसका मतलब है कि हम अभी भी गुलाम हैं.... इसलिये आओ भाइयों हम सब एकजुट होकर इस गुलामी के खिलाफ मुहिम छेड़ते हैं... अगर हम कामयाब हो गये तो... एक ऐसा राज्य स्थापित करेंगे जहां..... 'कोई भी नियम कानून नहीं होगा'.... 'कोई भी कुछ भी कर सकेगा'... 'कोई भी किसी के भी सिर पर बम फोड़ सकेगा'.... 'कोई भी अपना रॉकेट लिये दिये किसी के भी घर में घुस सकेगा'... 'मिट जायेगा दोपायों और चौपायों के बीच का फर्क'... 'कोई भी गरीब नहीं होगा, सारे अमीर ही होंगे... क्योंकि सबकुछ सबका होगा'... 'न पुलिस होगी न कानून होगा'... 'न रिश्वत होगी न भ्रष्टाचार होगा'...'जिसको जो मिले ले के निकल लो'... है न जबर्दस्त आइडिया ?? तो इसी बात पर प्रेम से बोलो... 'जय हो चर्चित राज की'.... शुभ दीवाली !!!

मंगलवार, 21 अक्टूबर 2014

अपनेवाले

            अपनेवाले

अपने वाले ही बस अपने वाले होते
जो सुखदुख में संगसंग तपनेवाले होते
हर मुश्किल में खुद बढ़ आगे आया करते
हरेक काम मे अपना हाथ बटायां करते
सभी समस्याओं को जो सुलझाया करते
निज जी जान लगा कर खपने वाले होते
अपने वाले तो बस अपने वाले होते
'हाय ,हेल्लो 'के दोस्त प्रीत मुँहदेखी करते
अच्छे दिन में बातें मौज मज़े की करते
पर जब जरुरत पड़ती ,हाथ खींच लेते है,
साथी वो तो बस है सपने वाले   होते
अपने वाले तो बस अपने वाले होते
कुछ रिश्ते ऐसे होते, बस बन जाते है
ये तब होता जब मन से मिल मन जाते है
नहीं जरूरी है हो रिश्ता सिर्फ खून का ,
कई प्यार की माला जपने वाले होते
अपने वाले तो बस अपने वाले  होते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पटाखा तुम भी-पटाखा हम भी

             पटाखा तुम भी-पटाखा हम भी

छोड़ती खुशियों का फव्वारा तुम अनारों सा,,
              हंसती तो फूलझड़ी जैसे फूल ज्यों झरते
हमने बीबी से कहा लगती तुम पटाखा हो ,
             सामने आती हमारे ,जो सज संवर कर के
हमने तारीफ़ की,वो फट पडी पटाखे सी,
            लगी कहने  पटाखा मैं  नहीं ,तुम हो डीयर
मेरे हलके से इशारे पे सारे रात और दिन,
           काटते रहते हो,चकरी  की तरह,तुम चक्कर 
भरे बारूद से रहते हो ,झट से फट पड़ते,
           ज़रा सी छूती  मेरे प्यार की जो चिनगारी
लगा के आग,हमें छोड़, दूर भाग गयी,
            हुई  हालत हमारी ,वो ही  पटाखे वाली

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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