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बुधवार, 26 मार्च 2014

सितम-गर्मियों का

         सितम-गर्मियों का

गाजरों में रस बहुत कम हो गया है,
                        संतरे भी सूखने अब लग गए है
कल तलक थे सख्त कच्ची केरियों से ,
                        डालियों पर आम पकने लग गए है  
अब गरम चाय की चुस्की ना सुहाती ,
                        ठंडी लस्सी दही की मन भा रही है
कभी चिकनी हुआ करती थी कमल सी, 
                        वो त्वचा  भी आजकल कुम्हला रही है
इस तरह हालत बदले गर्मियों में,                  
                        गर्म मौसम मगर, हम ठन्डे पड़े है 
पेड़ से पत्ते ज्यों गिरते पतझड़ों में ,
                         उस तरह अरमान इस दिल के झड़े है
घटे कपडे ,बदन खुल्ला देख कर के ,
                         भावनाएं दिल की तो भड़का करे है 
सर्दियोंमे दुबकते थे पास आकर ,
                          गर्मियों में दूर ,वो रहते परे   है
नींद यों भी ठीक से आती नहीं है ,
                           उस पे मच्छर भिनभिनाते,काटते है
क्या बताएं गर्मियों की रात कैसे,
                            बदल कर के करवटें ,हम काटते है
तपन गर्मी की जलाती है बदन को ,
                             पसीने से चिपचिपा तन हो गया है
इस तरह ढाये सितम है गर्मियों ने ,
                             अब मज़ा सारा मिलन का  खो गया है

मदनमोहन बाहेती'घोटू'   

रविवार, 23 मार्च 2014

हम सभी टपकने वाले है

 हम सभी टपकने वाले है

विकसे थे कभी मंजरी बन, हम आम्र तरु की डाली पर ,
         धीरे धीरे फिर कच्ची अमिया ,बन हमने  आकार  लिया
थोड़े  असमय ही टूट गए,आंधी में और तूफ़ानो में,
          कुछ को लोगों ने काट, स्वाद हित, अपने बना अचार लिया
कुछ लाल सुनहरी आभा ले ,अपनी किस्मत पर इतराये ,
            कुछ पक कर चूसे जायेंगे ,कुछ पक कर कटने वाले है 
कुछ बचे  डाल पर सोच रहे ,कल अपनी बारी आयेगी ,
           सब ही बिछुड़ेगें डाली से  ,हम सभी  टपकने वाले  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

न होली ना दिवाली है

                 न होली ना दिवाली है

अजब दस्तूर दुनिया का ,प्रथा कितनी निराली है
खता खुद करते, लेकिन दूसरों को देते गाली है
न तो जलती कहीं होली,न ही दीपक दिवाली  के,
भूख से पेट जब जलता ,न होली ना  दिवाली  है
अगर खींचो ,चढ़े ऊपर ,ढील दो तो जमीं पर है,
हवा में उड़ रही कोई ,पतंग तुमने सम्भाली है
पराया माल फ़ोकट में ,बड़ा ही स्वाद लगता है,
मज़ा बीबी से भी ज्यादा ,हमेशा देती साली है
अगर वो कोठरी काली है जिससे हम गुजरते है,
सम्भालो लाख ,लेकिन लग ही जाती लीक काली है 
भले एक बार खाते पर, मज़ा दो बार लेते  है ,
मनुज से तो  पशु अच्छे ,वो जो करते जुगाली है
जमा करने की आदत में,ऊँट हम सबसे अव्वल है ,
 खुदा ने  पानी की टंकी ,जिस्म में उनके  डाली है
छोड़ बाबुल का घर जाती ,किसी की बन वो घरवाली ,
किसी औरत के जीवन की ,प्रथा कितनी निराली है
सुनो बस बात तुम मीठी ,मिठाई ना मयस्सर है ,
खुदा  ने चाशनी 'घोटू 'के खूं  में, इतनी  डाली  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

इस देश को तो बस आम औरत चलायेगी.....


सुनो जी, 
सुना है तुमने 
चुनाव चिन्ह 
हमारा झाड़ू चुना है?
हम भी 
चुनाव चिन्ह
अपना बेलन चुने क्या?
सड़क पर सरेआम
तुम्हारे सिर पर 
धुनें क्या?
गंदगी करो तुम 
और सफाई करे हम?
झाड़ू ले के भर रहे
आम आदमी का दम?
घर तो संभलता नहीं
देश क्या सँभालोगे,
दो बच्चे तो पलते नहीं 
करोड़ों तुम क्या पालोगे?
इस देश को तो बस
आम औरत चलायेगी,
संसद में ढंग से
अब चूल्हा जलायेगी...
नेता निकम्मों पे 
अब चिमटा चलेगा,
मक्कारों के सिर पे
अब बेलन बजेगा...
सरकारी कचरे पे
झाड़ू लगा देंगे,
जहां दाग-धब्बे हों
पोछा लगा देंगे...
रिश्वत जमाखोरी 
कालाबाजारी,
निपटेगी इनसे
अब सैन्डल हमारी...
हरामखोरी बंद अब
काम सब करेंगे,
अमीरों का कुछ हिस्सा
गरीबों के नाम करेंगे...
बातें भी खूब होंगी
काम भी खूब होगा,
देश के मेकअप का
तामझाम भी खूब होगा...
मंदिर और मस्जिद 
के लफड़े जो होंगे,
जानलेवा नहीं 
मुंह के झगड़े ही होंगे...
तू-तू-मैं-मैं करके
मुंह हम फुला लेंगे,
कभी खुश हुए तो
हम ही बुला लेंगे...
मोलभाव का जौहर हम
पूरी दुनिया में दिखायेंगे,
अपना सामान महँगा और 
दूसरे का सस्ता हम करायेंगे...
भैया, बेटा, मुन्ना 
और बाबू कर करके,
दिखा देंगे दुनिया पर
राज भी हम करके...
चर्चित तुम्हे इस मुहिम में
हमारे साथ रहना है,
कविताबाजी छोड़ो तुम्हें
कान्हा जैसा बनना है...

- विशाल चर्चित 

शनिवार, 22 मार्च 2014

वोट किसे दें ?


          वोट किसे दें ?

चुनाव में ढेर सारे प्रत्याशी
आपकी अनुकम्पा के अभिलाषी
अपनी अपनी पार्टी,अपने अपने वादे
अपने अपने सपने,अपने अपने इरादे
इसके पहले कि हम किसी को चुने
अपने दिल और दिमाग की सुने
एक बार ठीक से सोचे,विचारे
उनके किये गए कार्यों पर नज़र  डाले
पिछली बार आपने था  जिन्हे वोट दिया
उनने कितना और कैसा काम किया
पिछली बार कितने बड़े बड़े सपने थे दिखाए
कितने वादे किये थे,कितने निभाये
धर्म के नाम पर लोगों को भड़काया या नहीं 
 जातिवाद का लाभ उठाया या नहीं
सेवा के नाम पर कितनी की कमाई
कितने दल बदले, कितनी रिश्वतें खाई
कितनो का दिल दुखाया और सताया
कितने भाई  भतीजों को फायदा पहुँचाया 
क्योंकि हमने खाया है बहुत धोखा
और आज ही है वो मौका
 हम करें इनके कारनामो का लेखाजोखा 
क्योंकि आज अगर उनकी मीठी बातों में आ जायेंगे
तो कल पछतायेंगे
क्योंकि ये तो दिल्ली चले जायेंगे
और पांच  साल बाद नज़र   आयेंगे
आप अपनी तकलीफें और दर्द किसे बताएँगे
 इसलिये हम पहले अच्छी तरह  परखें ,जाने
उनके गुण दोष और काबलियत पहचाने  
और फिर तय करें कि वो सत्ता,
 में आने के लायक है या नहीं ?
हमारे वोट पाने के लायक है या नहीं ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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