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गुरुवार, 13 मार्च 2014

दो छक्के

             दो छक्के
                   १
जब भी है हम देखते,चेहरा कोई हसीन 
लगता है लावण्यमय ,सुन्दर और नमकीन
सुन्दर और नमकीन,पास जा प्यार जताते
मिलता मीठा स्वाद और मीठी सी  बातें
कह घोटू कविराय समझ में ये ना आता
लज्जत भरी मिठास,हुस्न नमकीन कहाता
                           २
पत्नी हथिनी की तरह, पति तिनके से क्षीण
अब ये तुम्ही समझ लो ,किसके ,कौन अधीन
किसके कौन अधीन ,अगर पत्नी हो पतली
और मोटे पतिदेव ,मगर हालत है पतली
खरबूजे पर छुरी गिरे ,छुरी पर खरबूजा
पर कटता हर बार ,बिचारा पति ,खरबूजा

घोटू  
 

गाल के हाल

             गाल के हाल
                      १
गाल गाल अंतर बहुत ,तरह तरह के गाल
पिचके कुछ फूले हुए ,कोई सेव से  लाल
कोई सेव से लाल ,सपाट कोई है   सिंपल
तो कोई के  गालों में  पड़ते  है   डिम्पल
होते उनके गाल  लाल  जब  वो शर्माते
और जब गुस्सा   होते है तो गाल फुलाते
                         २
नारी गाल सुन्दर बहुत ,चिकने,प्यारे,लाल
पर मर्दों के गाल पर, दाढ़ी  का  जंजाल
दाढ़ी का जंजाल ,बुढ़ापा  है जब  आता
होती दूर  लुनाई, चेहरा  झुर्रा  जाता
कह घोटू कविराय ,गाल से निकले गाली
मिले गाल से गाल ,मिलन की प्रथा निराली
घोटू  

होली की मस्ती

             होली की मस्ती
                       १
अंग अंग में छा गयी ,खुशियां और उमंग
घोटू पर है चढ़ गया ,अब होली  का  रंग
अब होली का रंग,छा गयी मन में मस्ती
हुई जागृत ,बूढ़े तन में,  हुस्न  परस्ती
हाथों लिए गुलाल ,फाग की धूम मचाते
जो भी मिले हसीन ,गाल उसके सहलाते
                          २
बढ़ी उमर में हो गया है कुछ ऐसा  हाल
कितने ही दिन हो गये ,छुए गुलाबी गाल
 छुए गुलाबी गाल,उमर बीबी की सत्तर
झुर्राये है गाल ,हाथ क्या फेरें उन पर
घोटू निकले ये भड़ास होली पर केवल
जब मल सकें गुलाल ,हंसीं गालों पर जीभर
 
घोटू 

मंगलवार, 11 मार्च 2014

ये मेरे अब्बा कहते थे

     ये मेरे अब्बा कहते थे

लेडीज कालेज की बस को वो ,
                          तो हुस्न का डब्बाकहते थे
कोई ने थोडा झांक लिया ,
                               तो 'हाय रब्बा'कहते थे
लड़की उससे ही पटती है,
                                  हो जिसमे जज्बा कहते थे
मुश्किल से  अम्मा तेरी पटी ,
                                   ये मेरे अब्बा कहते  थे  
मिल दोस्त प्यार के बारे में ,
                                  सब  अपना तजरबा  कहते थे
कोई कहता खट्टा अचार ,
                                     तो कोई मुरब्बा कहते थे
 उल्फत में उन पर क्या गुजरी ,
                                      वो कई मरतबा  कहते थे
जिनको वो बुलबुल कहते थे,
                                    वो इनको कव्वा कहते थे
औरत में और आदमी में ,
                             है अंतर क्या क्या कहते थे
जिसमे दम वो आदम होता ,
                                हौवा  को हव्वा कहते थे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

सोमवार, 10 मार्च 2014

कुत्ते कि पूँछ

कुत्ते कि पूँछ

जब भी हसीनो से नज़र टकराती है
मुझपे एक दीवानगी सी छाती  है
जवानी के दिनों का ख़याल आता है
बासी कढ़ी में फिर उबाल  आता है
आग सी एक लग जाती है दिल के अंदर
गुलाटी मारने को लगता मचलने बन्दर
भले ही दम नहीं पर चाह मचलती रहती  
पूंछ  है कुत्ते की ,टेढ़ी ही ये  सदा  रहती 

घोटू

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