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शुक्रवार, 7 मार्च 2014

महिलायें ,

         महिलायें
(महिला दिवस पर विशेष)
 
महिलायें ,
जब आपका मन मोह जाये
आपके जीवन को हिलायें
तन मन को बहलाये,सहलाये ,
और घर की रानी कहलाये
महिला का दर्जा जीवन में पहला है
आप हमेशा नहला है वो हमेशा दहला है
उसे देवी समझ कर पूजो,
घर का माहोल बदल जाएगा
छोटा सा घर भी महल बन  जाएगा
इन्हे  प्रसन्न रखो क्योकि ये  यदि कुपित हो जाये
तो अपने पहले दो शब्द ,'मही 'याने पृथ्वी को ,
अपने अंतिम दो शब्द 'हिला'से मिला दे
याने पृथ्वी को हिला कर  ,भूकम्प ला दें
इसलिए खैरियत इसी मे है,
उनसे हिल मिल के रहो
उनके आगे दुम  हिलाते रहो
उनकी हाँ में हाँ मिलाते रहो
और हर दिन महिला दिवस मनाते रहो   
 आपके जीवन को  खुशी से लहलहाये
 महिलाये  
मदन मोहन  बाहेती'घोटू '

गुरुवार, 6 मार्च 2014

फटा हुआ बनियान न देखा

       फटा हुआ बनियान न देखा

चेहरे पर मुस्कान भले पर,
कितना घायल है अन्तर तर
अपने मन की पीर छुपाये,
                 एक टूटा इंसान न देखा
तुमने उजला कुरता देखा,
         फटा हुआ बनियान न देखा
सिर्फ आवरण देखा लेकिन ,
               अंदर घुटता मन ना देखा
ढोलक की थापों पर नाचे,
                उसका खालीपन ना देखा
 सुन्दर ,मोहक ,बिछे गलीचे
कितनी  गर्द   छुपी है नीचे  ,
शायद तुम्हे पता भी होगा ,
               पर बन कर अनजान न देखा
तुमने उजला कुरता देखा ,
                फटा हुआ बनियान न देखा  
सावन की बूंदों में भीजे ,
               जब रिमझिम कर बरसा पानी
फटा कलेजा जिस बादल का ,
                तुमने उसकी पीर न जानी
जिस तरु से हो पत्ते बिछड़े
जिसका दिल हो टुकड़े टुकड़े ,
तुमको सिर्फ बसंत दिखी पर ,
               पतझड़ का अवसान न देखा
तुमने उजला कुरता देखा ,
                फटा हुआ बनियान न देखा

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

पीर विरह की


               पीर विरह की

जबसे मइके चली गयी तुम,छाये जीवन में सन्नाटे
सूनेपन और  तन्हाई में, लम्बी रातें  ,कैसे काटे

पहले भी करवट भरते थे ,अब भी सोते करवट भर भर
उस करवट और इस करवट में ,लेकिन बहुत बड़ा है अंतर
तब करवट हम भरते थे तो,हो जाती थी तुमसे टक्कर
तुम जाने या अनजाने में ,लेती मुझको बाहों में भर
पर अब  खुल्ला खुल्ला बिस्तर ,जितनी चाहो,भरो गुलाटें
दिन कैसे भी कट जाता है  ,लम्बी रातें  कैसे  काटें

ना तो रोज रोज फरमाइश,ना किचकिच ना झगडे ,अनबन
अब खामोशी पसर रही है ,तुम थी तो घर में था  जीवन
अब जब नींद उचट जाती तो,फिर मुंह ढक कर सो जाते है
विरह वेदना है कुछ दिन की,अपने मन को समझाते है
चुप्पी छाई शयनकक्ष में,न तो सांस स्वर,ना खर्राटे
बिस्तर में चुभते है कांटे ,लम्बी रातें ,कैसे काटे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 5 मार्च 2014

भगवान का धर्म प्रचार प्रोग्राम

  भगवान का  धर्म प्रचार प्रोग्राम

दुनिया में जब पापाचार बढ़ा ,
तो नरक में लोगों का रश बढ़ने लगा
स्वर्ग नरक की पॉपुलेशन का,
 बेलेन्स बिगड़ने लगा 
तो भगवान ने,नरक की पॉपुलेशन
पर  लगाने को लगाम
आरम्भ किया एक धर्म प्रचारक प्रोग्राम
हर मृतात्मा को ,ऊपर जाने पर,
स्वर्ग का कंडक्टेड टूर कराया जाये
ताकि स्वर्ग  की सुविधाओं को देख,
लोगों के मन में  धर्म की प्रेरणा आये
ऐसे कंडक्टेड टूर में  लोगों को बड़ा मजा आया
जब कई  धर्माचार्यों को अप्सराओं  संग ,
किलोलें करता हुआ पाया
स्वर्ग में जिधर देखो उधर मस्ती  थी छाई
और एक बड़े महात्मा के साथ ,
मर्लिन मनरो नाम की सुन्दरी  नज़र आयी
एक दर्शक ने पूछ लिया ,
क्या ये वो ही महात्मा जी है ,
जो जीवन भर थे ब्रह्मचारी ,
अब कर हे यहाँ मज़ा है
 गाइड बोला ,नहीं नहीं,ये तो अभी भी,
 ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे है,
 मार्लिन मनरो को ,उनके पास बिठाना
ये तो मर्लिन मनरो को, कर्मो की मिली सजा है
 
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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