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शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

क्या भरोसा ?

            क्या भरोसा ?

क्या भरोसा मेह और मेहमान का ,
                       आयेंगे कब और कब ये जायेंगे
बेटा बेटी ,साथ देंगे कब तलक ,
                       सीख लेंगे उड़ना ,सब उड़ जायेंगे
ये तो तय है ,मौत एक दिन आयेगी ,
                         और सरगम ,सांस की थम जायेगी ,
आज फल,इठला रहे जो डाल पर,
                          क्या पता किस रोज ,कब,गिर जायेंगे
कौन अपना और पराया कौन है ,
                                 बाद मृत्यु के विषय ये गौण है     
अहम का है बहम, हम कुछ भी नहीं,
                                 मौत देखेंगे,सहम हम जायेंगे
मृत्यु ही जीवन का शाश्वत सत्य है
                                 बच सकेगा,किस में ये  सामर्थ्य है
जब तलक है तैल ,तब तक रोशनी,
                                 वर्ना  एक दिन ये दिये  बुझ जायेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

दिल्ली का कोहरा

        दिल्ली का कोहरा

जब सूरज की रोशनी ,
ऊपर ही ऊपर बंट जाती है,
और जमीन के लोगों तक नहीं पहुँच पाती है
 तो गरीबों की सर्द आहें ,एकत्रित होकर ,
फैलती है वायुमंडल में ,कोहरा बन कर
मंहगाई से त्रसित ,
टूटे हुए आदमी के आंसू ,
जब टूट टूट कर जाते है बिखर
नन्हे नन्हे जल कण बन कर 
तो वातावरण में प्रदूषण होता है दोहरा
और घना हो जाता है कोहरा
और जब आदमी को नहीं सूझती है राह
तो होता है टकराव
 हमें रखनी होगी ये बात याद
कि कोहरा ,अच्छी खासी हरी फसलों को भी,
कर देता है बर्बाद
तो आओ ,ऐसा कुछ करें,
कि गरीबों की आह न फैले निकल के
नहीं बिखरे आंसू,किसी दुखी और विकल के
मिल कर बचाएं हम वातावरण को
ताकि सूरज की रोशनी मिले,हर जन को
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

टोटकों का अचार

.              टोटकों  का अचार

लोग,अपनी दूकान के आगे ,
 नीबू और हरी मिर्च लटकाते है   
और अपने प्रतिष्ठान को,
बुरी नज़र से बचाते है
और हम ये भी देखते है अक्सर
दुल्हे,दुल्हन और बच्चों की ,
राइ लूण (नमक )से उतारी जाती है नज़र
ये टोटके होते है बड़े लाजबाब
पर होते है गजब के स्वाद
हरी मिर्चों को काट कर,राइ लूण मिलाओ
और नीबू के रस में गलाओ
तो कुछ ही दिनों में हो जाता है तैयार
मिर्ची का स्वादिष्ट अचार
आपको एक राज़ की बात बतलाता हूँ
बुरी नज़र से बचने के लिए ,
मैं इन टोटकों का अचार खाता  हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 28 जनवरी 2014

झुनझुना

          झुनझुना

बचपने में रोते थे तो ,बहलाने के वास्ते ,
                          पकड़ा देती थी हमारे हाथ में माँ, झुनझुना
ये हमारे लिए कुतुहल ,एक होता था बड़ा ,
                          हम हिलाते हाथ थे  और बजने लगता झुनझुना
हो बड़े ,स्कूल ,कालेज में जो पढ़ने को गए ,
                          तो पिताजी ने थमाया ,किताबों का झुनझुना
बोले अच्छे नंबरों से पास जो हो जायेंगे ,
                            जिंदगी भर बजायेंगे ,केरियर  का झुनझुना
फिर हुई शादी हमारी ,और जब बीबी मिली ,
                            पायलों की छनक ,चूड़ी का खनकता झुनझुना
ऐसा कैसा झुनझुना देती है पकड़ा बीबियाँ,
                            गिले शिकवे भूल शौहर ,बजते  बन के झुनझुना
 जिंदगी भर लीडरों ने ,बहुत बहकाया हमें ,
                             दिया पकड़ा हाथ में ,आश्वासनों का झुनझुना
और होती बुढ़ापे में ,तन की हालत इस तरह ,
                              होती हमको झुनझुनी है,बदन जाता झुनझुना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'     

हश्र-शादी का

            हश्र-शादी का

अपनी हथेलियों पर ,हमने उन्हें बिठाया ,
                         वो अपनी उँगलियों पर ,हमको नचा रही है
हमने तो मांग उनकी ,सिन्दूर से भरी थी,
                         मांगों को उनकी भरने में ,उम्र   जा रही है
जबसे बने है दूल्हे,सब हेकड़ी हम भूले,
                          बनने के बाद वर हम,बरबाद  हो गए है
जब से पड़ा गले में ,है हार उनके हाथों,
                            हारे ही हारे हैं हम,  नाशाद  हो गए है
शौहर बने है जबसे ,भूले है अपने जौहर ,
                             वो मानती नहीं है,हम थक गए मनाते 
 पतियों की दुर्गती है,विपति ही विपत्ति है,
                             रूह उसकी कांपती है, बीबी की डॉट खाते
हम भूल गए मस्ती,गुम हो गयी है हस्ती,
                             चक्कर में गृहस्थी के, बस इस कदर फसें है
घरवाले उनके बन कर,हालत हुई है बदतर ,
                              घर के भी ना रहे हम,और ना ही घाट  के है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

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