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बुधवार, 18 दिसंबर 2013

मजबूरी

        मजबूरी
             १
पत्नी से कहने लगे ,भोलू पति कर जोड़
आप हमी को डांटती ,है क्यों सबको छोड़
है क्यों सबको छोड़ ,पलट कर बीबी बोली
मैं क्या  करू, तेज  तीखी  है  मेरी  बोली
नौकर चाकर वाले घर में बड़ी हुई हूँ
बड़े नाज़ और नखरों से मैं  पली हुई हूँ
              २
पत्नीजी कहने लगी ,जाकर पति के पास
बतलाओ फिर निकालूँ ,मन की कहाँ भड़ास
मन की कहाँ  भड़ास ,अगर डाँटू नौकर को  
दो घंटे में छोड़ ,भाग जाएगा घर को
सुनूं एक की चार ,ननद  से जो कुछ बोलूं
तुम्ही बताओ ,बैठे ठाले ,झगड़ा क्यों लूं
              ३
सास ससुर है सयाने ,करते मुझको प्यार
उनसे मैं तीखा नहीं ,कर सकती व्यवहार
कर सकती व्यवहार ,मम्मी बच्चों की होकर
अपने नन्हे मासूमो को,डांटूं क्यों कर
एक तुम्ही तो बचते हो जो,सहते सबको
तुम्ही बताओ ,तुम्हे छोड़ कर डाटूं  किसको?

मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

भाग्य भरोसे मत बैठा रह

        भाग्य भरोसे मत बैठा रह

 तू ये मत कर,तू वो मत कर
कुछ करने की जहमत मत कर
 ऊपर वाले से डर  थोड़ा ,
कर यकीन उसकी रहमत पर
तुझे मिल रहा ,फल कर्मो का ,
क्यों रोता ,अपनी किस्मत पर
तेरी मंजिल ,तुझे मिलेगी,
कर प्रयास,थोड़ी हिम्मत कर
भाग्य भरोसे बैठा मत रह,
आवश्यक है,तू मेहनत  कर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

बीबीजी की दुनिया की सैर

    बीबीजी की दुनिया की सैर

किया था मैंने ये वादा ,तुम्हे  दुनिया  दिखाऊंगा
मगर अब तुमसे कहने में ,ज़रा ना हिचकिचाऊंगा
सिमट कर रह गयी दुनिया ,मेरी तुम्हारी बाँहों में,
दिखाती तुम मुझे दुनिया ,मै  तुमको क्या घुमाऊंगा

घोटू

चुनाव में हार के फल

          चुनाव में हार के फल

'आम' ने ऐसा निचोड़ा 'आम' सा,
                    अब तो हम बस गुठली बन कर रह गए
'संतरे'का सूख सारा रस गया ,
                        थे तने 'केले',अकेले रह गए
बेबसी ने हाल ऐसा कर दिया ,
                         बहलाते मन बेटी से 'अंगूर'की ,
'चीकू'चाहा था मगर आलू मिला ,
                          दिल के अरमाँ  आंसूओ में बह गए

घोटू

सोमवार, 16 दिसंबर 2013

फ्लेट संस्कृती

           फ्लेट संस्कृती

कोई को किसी की नहीं परवाह यहाँ पर ,
वो खुश हैं अपने फ्लेट में ,तुम अपने फ्लेट  में
होती है 'हाई 'हल्लो'जब मिल जाते लिफ्ट में ,
पर दोस्ती होती नहीं ,पल भर की भेट में
कल्चर गया ,गली का,मोहल्ले ,पड़ोस का,
रहते है व्यस्त टी वी में और इंटरनेट  में
सब अपनी अपनी खा रहे,मस्ती में जी रहे ,
किसको पडी है झाँके जो,औरों की प्लेट में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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