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मंगलवार, 3 सितंबर 2013

बुढापे की झपकियाँ

            बुढापे की झपकियाँ

बचपन में ऊंघा करते थे जब हम क्लास में,
टीचर जगाता था हमें तब चाक  मार  कर
यौवन में  कभी दफ्तरों में  आती झपकियाँ ,
देता था उड़ा नींद ,बॉस ,डाट  मार कर
लेकिन बुढ़ापा आया,जबसे रिटायर हुए ,
रहते है बैठे घर में कभी ऊंघते है हम,
कहती है बीबी ,लगता है डीयर तुम थक गए,
कह कर के सुलाती हमें ,वो हमसे प्यार कर

घोटू

दावतों का खाना

        दावतों का खाना

हालत हमारी होती है कैसी क्या बताये,
                    जब भी बुलाये जाते बड़ी  दावतों में हम 
खाने का शौक है बहुत ,पर हाजमा नहीं,
                   मुश्किल से काबू पाते ,दिल की चाहतों पे हम
टेबल पर बिछे सामने ,पकवान  सैकड़ों ,
                     मीठा है कोई चटपटा  ,लगते  लज़ीज़ है
जी चाहे जितना खाओ तुम,ये छूट है खुली,
                       पर खा न पाते,मन में होती बड़ी खीज है
मनभाती चाट सामने ,ललचाती है हमें,
                      जब देशी घी में सिकती है ,आलू की टिक्कियाँ
 गरमागरम जलेबियाँ,हलवा बादाम का,
                        मुंह में है आता पानी भर ,दिखती जब कुल्फियां
ढेरों लुभाती सब्जियां,पूरी है ,नान है,
                            पुलाव,दाल माखनी ,और बीसियों सलाद
भर लेते चीजें ढेर सारी ,अपनी प्लेट में,
                          मिल जाती सारी इस तरह,आता अजीब स्वाद   
होती है कुफ्त ,ढंग से ,खा पाते कुछ नहीं,
                            चख चख के भरता पेट,होता बुरे  हाल में 
पर मन नहीं भरता है मगर सत्य है यही ,
                                मिलती है सच्ची तृप्ती घर की रोटी दाल में
दावत में मज़ा ले न पाते ,किसी चीज का,
                                ये खाएं या वो खाएं ,इसी पेशोपश में हम
हालत हमारी होती है,ऐसी क्या बताएं,
                                 जब भी बुलाये जाते बड़ी दावतों में हम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

आइटम नंबर

        आइटम नंबर

ये आइटम नंबर वाले गाने भी गजब ढाते है
कभी इश्क को कमबख्त ,कभी कमीना बताते है
किसी जुबान पर जब नमक इश्क का चढ़ता
जिगर की आग से वो बीडी जलाया करता
इसी चक्कर में तो मुन्नी बदनाम होती है
अपने डार्लिंग के लिए,वो झंडू बाम होती है
जवानी हलकट है और क्या क्या कहा जाता है
यूं पी ,बिहार भी सब लूट लिया जाता है
कभी अनारकली ,डिस्को चली जाती है
कभी जलेबी बाई ,जलवे सब दिखाती है
कभी फेविकोल सा होता है मन चिपकने का
कभी चिकनी चमेली ,होता मन फिसलने का
कभी छम्मा छम्मा करके खनकती पायल है
कभी कजरारे नयना ,करते सब को घायल है
कभी लैला को ढूंढा करते ,फाड़   कुरता  है
ढूंढते है कभी के चोली के पीछे क्या है
कभी दिल मुफ्त का ,यूं ही लुटाया जाता है
कैसे भी ,फिल्म को बस ,हिट  बनाया जाता है

घोटू

सोमवार, 2 सितंबर 2013

माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!


अब तक नहीं आयी
कहां तू लुकाई
भूख ने पेट में
हलचल मचाई
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

गयी जिस ओर
निगाह उस ओर
घर में तो जैसे
सन्नाटे का शोर
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!
ये हरे भरे पत्ते
बैरी हैं लगते
कहते हैं मां गई
तेरी कलकत्ते
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

जल्दी से आओ
दाना ले आओ
इन सबके मुंह पे
ताला लगाओ
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

अब हम न मानेंगे
उड़ना भी जानेंगे
तेरे पीछे-पीछे हम
आसमान छानेंगे
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

- विशाल चर्चित

रविवार, 1 सितंबर 2013

खजूर

खजूर

खुरदरा सा तना, पत्ते नुकीले,
छाँव देते नहीं , फल भी दूर है
भूल जड़ को , इतने ऊंचे बढ गए,
नहीं नेता, मंत्री ,हम तो खजूर है
घोटू

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