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रविवार, 18 अगस्त 2013

गुलाब जामुन

           गुलाब जामुन

गुलाबी गाल है तेरे ,जामुनी होठों की रंगत ,
बड़ी ही चासनी ,मिठास है ,रुखसार तेरे  पर
मुझे गुलाबजामुन सा ,तुम्हारा रूप लगता है ,
मेरे होठो से आ लगजा,इनायत करदे तू मुझपर
घोटू

सीडियां

            सीडियां

बहुत मुश्किल मंजिलों पर पहुंचना ,
चढ़ना पड़ती है हमेशा  सीढियां
सीढियां चढ़ना नहीं आसान है ,
थका देती है बहुत ये सीढियां
मन में जज्बा और रख कर हौसला ,
लगन से चढ़ता है जो भी सीढियां
मुश्किलें आई है पर मंजिल मिली ,
चढी उसने  तरक्की की सीढियां
है गवाह इतिहास भी इस बात का ,
जाती है तर  ,कई उसकी पीढियां

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मज़ा बचपन का बुढापे में .......

  मज़ा बचपन का बुढापे में .......

बुढापे में भी बचपन को ,बुला हम क्यों नहीं सकते
जरा खुल कर ,हंसी ठट्ठा ,लगा हम क्यों नहीं सकते
बरसती फुहारों में भीग करके ,नाच कर 'घोटू'
मज़ा बारिश के मौसम का ,उठा हम क्यों नहीं सकते
बना कर नाव कागज़ की,सड़क की  बहती नाली में,
तैरा कर ,भाग हम पीछे ,भला जा क्यों नहीं सकते
गरम से तपते मौसम में ,खड़े होकर के ठेले पर ,
बर्फ के गोले ,आइसक्रीम ,हम खा फिर क्यों नहीं सकते
मिला कर हाथ अपने नन्हे ,प्यारे पोते पोती से ,
हम उनके संग ,बच्चे फिर ,बन जाया क्यों नहीं सकते
रखा क्यों ओढ़ कर हमने ,लबादा ये बुजुर्गी का ,
वो बचपन के हसीं लम्हे ,हम लोटा क्यों नहीं सकते
जवानी के मज़े इस उम्र में ,तो लेना है मुश्किल,
मज़े बचपन के दोबारा ,उठा फिर क्यों नहीं सकते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ये दिल मांगे मोर

  ये दिल मांगे मोर

लुभाने मोरनी सी महबूबा ,हम मोर बन नाचे ,
मगर वो मोरनी बोली कि ये दिल मोर मांगे है
दिया जब हार सोने का था जिसमे मोर का लोकेट,
लिपट बोली ये दिल अब तो,बहुत कुछ  मोर मांगे है
घोटू

स्वर्ग का माहोल बिगड़ा

          स्वर्ग का माहोल बिगड़ा

बड़े ही घाघ ,कद्दावर से नेता ,मंत्री बनकर
                            बड़े स्केम  करके ,ढेर सा पैसा कमाते है
कटाने को टिकिट वो स्वर्ग का ,सारे जतन करते,
                             दान और पुण्य करते है,तीर्थ और धाम जाते है
सुना है ,स्वर्ग में भी भीड़ इनकी जा रही बढ़ती ,
                               वहां पर इनके जाने से  बड़ा माहोल बिगड़ा है
परेशां अप्सराएं है ,नहीं कंट्रोल है इन पर ,
                               पड़े पीछे सभी रहते,रोज ही होता  झगड़ा  है
पुराने  अनुभवी नेता  वहां जब पहुँच जाते है ,
                                  तो पोलिटिक्स करते है ,वो सब कुर्सी  के पाने की
इन्द्र भी आजकल है दुखी रहता इनकी हरकत से ,
                                  कोशिशें करते रहते है ये इन्द्रासन    हिलाने की
स्वर्ग में पहुंचे नेताजी ,वहां  यमराज ने उनको ,
                                  सुनाने कर्म का लेखा , उठाया जब बही ही  था
झपट कर नेताजी ने बही ली और फाड़ दी झट से,
                                    और बोले जो किया मैंने ,वो सब का सब सही ही था
बहुत सा धन ,धरम और दान में मैंने लुटा कर के,
                                     आरक्षित वहां से  सीट मैंने  स्वर्ग की की  है
 कहाँ पर सोमरस है,कौनसा प्रासाद है मेरा ,
                                      अप्सरा कौनसी अलाट  मुझको ,आपने की है
स्वर्ग के बाकी वाशिंदे भी अब ,रहते परेशां है,
                                        वहां पर भीड़ बढ़ती जा रही है बाहुबलियों की
परेशां लगी रहने सभी हूरें ,उनकी हरकत से,
                                    बिगड़ने लग गयी है अब फिजा ,जन्नत की गलियों की         
कि अब तो स्वर्ग में भी नर्क सा माहोल दिखता है ,
                                      ऐसे स्वर्ग से तो धरती पर ही अच्छा  लगता था
वहां पर कम से कम बीबी थी,घर था,अपने बच्चे थे ,
                                       थे टी वी ,और सिनेमा ,मस्ती से सब वक़्त कटता था

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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