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शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

बुढापे के हालात

बुढापे के हालात

आप को अब क्या बताएं,क्या कहे ,
                                उम्र के इस दौर के हालात क्या है
जिन्दगी के सिर्फ बीते छह दशक है ,
                                लोग कहते है बुढापा  आ गया   है
अनुभव और निपुणता से भर गए जब ,
                                 'इम्प्लोयर ' ने 'रिटायर' कर दिया है
बच्चे भी तो ज्यादा कुछ सुनते नहीं है ,
                                   सोचते है बुड्ढा अब  सठिया गया है
बुढ़ापे की उम्र ऐसी आई है ये ,
                                      बड़े उलटे  अनुभव  होने लगे  है
नींद यूं तो आजकल कम  आ रही है ,
                                      हाथ,पाँव मगर अब सोने लगे है 
आजकल सिहरन बदन में नहीं होती ,
                                         झुनझुनी पर पाँव में आने लगी है
हुस्न क्या देखें किसी का ,खुद की ही अब ,
                                          आईने में शकल धुंधलाने  लगी है
यूं तो सब कडवे अनुभव हो रहे है,
                                            खून में मिठास पर बढ़ने  लगा है
काम का प्रेशर तो सारा  घट गया है,
                                            मगर 'ब्लड प्रेशर' बहुत बढ़ने लगा है
शान से सर पर सजे थे बाल काले ,
                                            उनकी रंगत में सफेदी  आ गयी  है
हसीनाएं कहती है अंकल या बाबा ,
                                           ऐसी  हालत  अब हमें  तडफा गयी है
मन तो करता है बहुत कुछ करें लेकिन,
                                           आजकल कुछ भी तो कर पाते नहीं है
भूख भी कम हो गयी ,पाबंदियां है,
                                           मिठाई ,पकवान कुछ    खाते  नहीं है
तरक्की की सीढियां तो चढ़ गए पर ,
                                            सीढियां  चढ़ने में दिक्कत आ रही है
मेहनत  अब हमसे हो पाती नहीं है ,
                                               जरा चल लो,सांस फूली जा रही है
देख कर बेदर्दियाँ इस जमाने की ,
                                             दर्द सा अब सीने में उठने  लगा है
अपने ही अब बेरुखी दिखला रहे है,
                                               इसलिए दिल आजकल घुटने लगा है
बांसुरी अब बेसुरी सी हो गयी है ,
                                            जिधर देखो उधर ही अब समस्या   है
आप को अब क्या बताएं,क्या कहें,
                                             उम्र के इस दौर के   हालात क्या है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
                                              

                                  

शनिवार, 20 अप्रैल 2013

सूरज,बादल और आज की राजनीति


      सूरज,बादल और  आज की राजनीति

जब सत्ता का सूरज उगता ,बादल  जैसे कितने ही दल
उसके आस पास मंडराते ,रंग बदलते  रहते  पल,पल
और सत्ता का समीकरण जब ,पूरा होता,सूरज बढ़ता
तो वह सर पर चढ़ जाता है,प्रखर चमकता,दिखला ,दृढ़ता
और जब ढलने को होता है ,बादल पुनः नज़र आते है
आड़े आते है सूरज के , रंग  बदलते   दिखलाते   है
आज देशकी राजनीती का ,परिवेक्ष है कुछ  ऐसा ही
छुटभैये कितने ही दल का ,है  चरित्र   बादल  जैसा ही

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


बुधवार, 17 अप्रैल 2013

विवाह संस्कार

              विवाह संस्कार

बड़े प्यार से  पाला  पोसा ,बड़ी  हुई  तो  दान  कर  दिया
पहुँच पिया घर ,अपना तन मन,मैंने पति के नाम कर दिया 
कल तक मात पिता थे प्यारे ,और अब साजन ,बसे हुये मन
बचपन सारा, जहाँ गुजारा , लगे  पराया  सा वो    आँगन
केवल फेरे ,सात अगन के ,इतना   सब कुछ  कर देते है
देते छुड़ा ,  बाप माँ का घर  ,एक दूसरा   घर     देते   है
कुछ रीतों से , और मन्त्रों से ,जीवन भर का बंधन  बंधता
यह विवाह के ,संस्कार की ,कितनी सुन्दर ,धर्म व्यवस्था

घोटू 

सस्ता सोना -मंहगा सोना

       सस्ता सोना -मंहगा सोना

एक तरफ ये कहती सोना ,आजकल सस्ता हुआ ,
और दूजी तरफ कहती ,      नींद है आती   नहीं
तुमको भी अब लग गये  सब ,अमीरों के शौक है ,
सस्ती चीजें हो अगर तो ,वो पसंद   आती नहीं 
उसपे ,सोने से बदन को ,सजाने के वास्ते,
सोने के जिद पर  अड़ी हो,तुमको सोना चाहिये ,
मै जो सोने की कहूं तो ,नखरे दिखलाने लगो,
सोना जब तक ना दिला दूं ,पास तुम आती नहीं

घोटू 

सोमवार, 15 अप्रैल 2013

वरिष्ठ नागरिक संगठन

                 वरिष्ठ नागरिक संगठन

मिल के सब बूढ़े इकट्ठे हो गये  
इस बहाने हंसी ठट्ठे   हो  गये
ढलते सूरज में  चमक सी आ गयी ,
दांत तन्हाई के    खट्टे  हो गये
याद  कर बीती जवानी की उमर ,
सब के सब फिर जवां  पट्ठे हो गये
दूसरों की सुनी ,अपनी भी कही ,
रोज के सब दूर   रट्टे  हो  गये
एक से दुःख,दिक्कतें ,गम,एक ही ,
थैली के सब  ,चट्टे  बट्टे हो गये
लगे जब से खाने है  ताज़ी  हवा ,
देख लो ,सब हट्टे कट्टे हो गये
दही थे,मख्खन जवानी में गया ,
अब तो सेहतमंद  मठ्ठे  हो गये
खाने थे जो जवानी में खा लिये ,
'घोटू 'अब अंगूर  खट्टे हो   गये

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
 



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