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गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

अंतर की वेदना

अंतर की वेदना का कोई अंत नहीं
दुःख की संयोजना का कोई पंथ नहीं
जो मेरा है वोह मेरा सर नहीं
जिसमें जीवित हूँ वोह मेरा संसार नहीं
रक्त रंजित अधर हैं फिर भी मैं गा रहा हूँ
रुधिर बहते नयन हैं फिर भी मुस्करा रहा हूँ
व्यक्त हूँ अव्यक्त हूँ आक्रोश हूँ पर मौन हूँ
सत्य सह मैं सत्य पर मिथ्या रहा हूँ
अंतर की वेदना का कोई अंत नहीं अब 'निर्जन'
जो होता है अभिव्यक्त समक्ष वोह सहता ही जा रहा हूँ
सहता ही जा रहा हूँ...

बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

जीवन बोध

           जीवन बोध

आगम बोध,प्रसूति गृह में,निगमबोध श्मसान में
जीवनबोध  बड़ी मुश्किल से ,आता है इंसान में
आता जब मानव दुनिया में ,होता उसको बोध कहाँ
भोलाभाला निश्छल बचपन,काम नहीं और क्रोध कहाँ
और जब जाता है तो उसको,बोध कहाँ रह पाता  है
खाली हाथ  लिए आता  है,खाली हाथों  जाता है
जिन के खातिर ,सारा जीवन,रहता है खटपट करता
नाते जाते छूट सभी से, सांस आखरी जब  भरता
जीवन भर चिंता में जलता,चिता जलाती मरने पर
एक राख की ढेरी बन कर ,रह जाता  अस्थिपंजर
कंचन काया ,जिस पर रहता ,था अभिमान जवानी में
अस्थि राख बन ,तर जाते है ,गंगाजी के  पानी में
उसे बोध है,मृत्यु अटल है,फिर भी है अनजाना सा
मोह माया के चक्कर में फस,रहता है दीवाना  सा
पास फ़ैल होता रहता है,जीवन के  इम्तिहान में
जीवनबोध  बड़ी मुश्किल से ,आता है इंसान में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

माँ और बीबी

          माँ और बीबी
                    1
माँ बीबी दोनों खड़े,किसको दूं तनख्वाह
बलिहारी माँ आपकी,बीबी दीनी  लाय
बीबी दीनी लाय ,आपके मै गुण  गाऊं
निशदिन  सेवा करूं ,आपके चरण दबाऊं
अब हिसाब के चक्कर में क्यों पड़ती हो माँ
बहुत कर लिया काम,आप आराम करो माँ
                       2
तनख्वाह  में माया बसे,पुत्र कहे समझाय
माया है ठगिनी बहुत,वेद ,पुराण बताय
वेद पुराण बताय,त्याग चिंताएं सारी
प्रभु को सिमरो ,डाल  बहू पर जिम्मेदारी
'घोटू 'तनख्वाह क्या ,लाखों का तेरा बेटा
तेरी सेवा करने को  हाजिर है    बैठा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

उलाहना

          उलाहना  

तुम ने मुझसे प्यार जता कर ,मीठी मीठी बातों में 
मुझको दीवाना कर डाला ,नींद चुरा कर ,रातों  में 
             मेरी तब नादान उमर थी,मै तो थी  भोलीभाली 
              तुम्हे बसाया था आँखों में,करने दिल की रखवाली 
              ऐसे  चौकीदार बने तुम,खुद ही  लुटेरे बन बैठे 
               मेरे दिल को चुरा ले गए ,साजन मेरे  बन बैठे 
ऐसा जादू डाला मुझ पर,प्यार भरी सौगातों ने 
मुझको  दीवाना कर डाला ,नींद चुरा  कर रातों में 
                दिल के संग संग चैन चुराया,नींद चुरायी आँखों की 
                किस से अब फ़रियाद करू,ये दौलत तो थी लाखों की 
                मै पागल सी ,हुई बावरी,दीवानी सी,लुट कर भी 
                तुम्हारे ख्यालों में खोई,ख़ुशी ख़ुशी,सब खोकर भी 
अपना सब कुछ सौंप दिया है,अब तुम्हारे हाथों में 
मुझको दीवाना कर डाला ,नींद चुरा कर ,रातों में 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 3 फ़रवरी 2013

दूध और मानव

      दूध और मानव

दूध के स्वभाव और मानव के स्वभाव को ,
एक जैसा बतलाते है
क्योंकि गरम होने पर दोनों उफन जाते है 
दूध का उफनना ,चम्मच के हिलाने से ,थम जाता है
और धीरज के चम्मच से हिलाने से,
उफनता आदमी भी ,शांत बन जाता है
दूध ,जब पकाया  जाता है ,
तो वह बंध  जाता है पर खोया कहलाता है
आदमी भी ,शादी के बाद ,
गृहस्थी के बंधन में बंध  जाता है ,
और बस खोया खोया ही नज़र आता है
जैसे दूध में जावन डालने से ,
वो जम  जाता है,उसका स्वरुप बदल जाता है
और वो दही कहलाता है
वैसे ही  ,पत्नी प्रेम का ,जरासा जावन ,
आदमी के मूलभूत स्वभाव में ,परिवर्तन लाता है
दूध पर ध्यान नहीं दो,
यूं ही पड़ा रहने दो ,तो वो फट जाता है
आदमी पर भी ,जब ध्यान नहीं दिया जाता,
तो उसका ह्रदय ,विदीर्ण हो कर,फट जाता है
दूध से कभी रबड़ी ,कभी कलाकंद,
कभी छेने की स्वादिष्ट मिठाई बनती है
बस इसके  लिए,थोड़ी मिठास की जरूरत पड़ती है
उसी तरह,यदि आदमी का ,असली स्वाद जो पाना  है  
तो आपको बस ,मीठी मीठी बातें बनाना है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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