संक्रांति पर
आया सूर्य मकर में ,आये नहीं तुम मगर
पर्व उत्तरायण का आया ,पर दिया न उत्तर
तिल तिल कर दिल जला,खिचड़ी बाल हो गये
और गज़क जैसे हम खस्ता हाल हो गये
अगन लोहड़ी की है तपा रही ,इस तन को
अब आ जाओ ,तड़फ रहा मन,मधुर मिलन को
मकर संक्रांति की शुभ कामनाये
घोटू
पता नहीं.....
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भले ही वक़्त साथ दे या न दे अपनी महत्त्वाकांक्षा अपना अहम् अपने साथ
लेकर हमें जाना ही हैइस पार से उस पार लेकिन कब -किस तरह न मालूम रास्ता न यह
पता कि क्या ह...
6 घंटे पहले