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बुधवार, 10 अक्टूबर 2012

जमाई जी,आप तो देश के दामाद है

जमाई जी,आप तो देश के दामाद है

राजाजी के दामाद जी पर किसीने आरोप लगाया

कि  उनने अपने संबंधों का अनुचित लाभ उठाया
और जनता को जब इस बारे में समाचार मिलगया
तो सारा राजदरबार हिल गया
दरबार के नवरतन
करने लगे जी तोड़ जतन
इसके पहले कि विरोधी चिल्लाये
दामादजी को इस कलंक से बचाये
और इस प्रयत्न में,
राजाजी की नज़र में भी चढ़ जायें
बयान पर बयान आने लगे
दामाद जी को बचने लगे
राज दरबार के कई मंत्रियों ने अरबों खाया है
दामादजी ने तो थोडा सा कमाया है
दामादों से कहीं लोग पैसे लेते है
लाखों का माल,कोडियों में दे देते है
इतना तो दामादजी का हक बनता है,
इसमें क्या अपराध है
क्योंकि राजाजी का दामाद,
पूरेदेश का दामाद है

घोटू

मंगलवार, 9 अक्टूबर 2012

आओ, देश को लूटें

       आओ, देश को लूटें
   
आओ ,देश को लूटें
लेकिन कुछ ऐसे कि,
सांप  भी  मर जाए,लाठी भी ना टूटे
सत्ता में रह कर के ,रिश्वत ना खाना है
पैसा भी कमाना है,भरना खजाना है
तो एसा तरीका अपनाये
किसी कि नज़र भी ना लगे,
काम भी बन जाये
हम अपना जन्म दिन मनायें
पहने हज़ार रुपयों के ,
नोटों से बनाया गया हार
और लाखों लोगो से लें,
बेंक के ड्राफ्ट से ,अपने नाम उपहार
सारी काली कमाई,एक नंबर में आएगी
आलोचकों कि बाट लग जायेगी
सारा पैसा व्हाइट है
आप एक दम राइट है
पैसा भी कमा लिया ,
और आयकर वालों के ,कहर से भी छूटे
आओ,देश को लूटें
हमें अच्छी तरह याद है
दहेज़ लेना या देना,कानूनी अपराध है
वैसे हमारे पास,धन कि क्या कोई कमी है?
पर हम सत्ता में है और बेटी ब्याहनी है
बेटी की शादी में ज्यादा दिखावा न करें
शोर शराबा न करें
सबको दहेजमुक्त शादी दिखलायें
पर दामाद जी और उनके घरवालों को ,
दूसरी तरह से फायदा पहुंचायें
अपने पावर और पहुँच से,
किसी बिजनेस मेन को ओब्लायिज़ करें
और वो बिजनेस मेन,
करोड़ों का माल,कोडियों के दाम में बेच,
बेटी के ससुराल वालों को ओब्लायिज  करे
एसा कुछ सिलसिला जमा लें
की कैसे भी दामाद जी ,
फटाफट करोड़ों कमालें
ऐसे या वैसे,दहेज़ तो पहुँच ही गया,
और दहेज़ देने के आरोप से भी छूटे
सांप भी मर जाये,लाठी भी ना टूटे
आओ, देश को लूटें

मदन मोहन बाहेती'घोटू;

सोमवार, 8 अक्टूबर 2012

पके हुए फल है हम

      पके हुए फल है हम

रोज रोज शुगर  की,

हाई ब्लड प्रेशर  की
मुसली पावर  की,  केप्सूल खाते है
पीड़ा है घुटने की,
मन ही मन घुटने की
फिर भी खुश रहने की,कोशिश कर गाते है
सुबह सुबह है  वाकिंग
फिर दिन भर है टाकिंग,
लाफिंग क्लब में लाफिंग ,करने को जाते है
ख़बरें दुनिया भर की
अन्दर की,बाहर की
सुबह  न्यूज़ पेपर की ,सारी पढ़ जाते है
टी वी के सिरिअल,
देखें हम रेग्युलर,
कभी हंसें या रोकर ,आंसू छलकाते  है
कभी चाट चटकाते,
कभी पकोड़े  खाते,
कभी फोन खटकाते,पीज़ा मंगवाते  है
बचा खुचा ये जीवन,
बोनस में जीते हम,
जब तक है दम में दम,हरदम मुस्काते है
पके हुए है हम फल,
गिर जाए कब किस पल,
यही सोच  हर पल का,मज़ा  हम  उठाते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

शनिवार, 6 अक्टूबर 2012

वो औरत


देखा उस दिन उस घर में

शादी का जश्न था;
आँगन था भरा पूरा
हो रहा हल्दी का रस्म था,
ठहाकों कि गूंज थी
हँसी मज़ाक कमाल था,
शमा देखकर खुशियों का
"दीप" भी खुशहाल था |

तभी अचानक नजर उठी
छत पर जाकर अटक गई,
एक काया खड़ी-खड़ी
सब दूर से ही निहार रही,
होठों पे मुस्कान तो थी
नैनों में पर बस दर्द था,
आँखों के कोर नम थे
हृदय में एक आह थी;
बुझी-बुझी सी खड़ी थी वो
बातें उसकी रसहीन थी,
खुशियों के मौसम में भी
वो औरत बस गमगीन थी |

श्वेत वस्त्र में लिपटी हुई
सुने-सुने हाथ थे,
न आभूषण, न मंगल-सूत,
सुनी-सुनी मांग थी,
चेहरे में कोई चमक नहीं
मायूसी मुख-मण्डल में थी;
नजरें तो हर रसम में थी
पर हृदय से एकल में थी |
उस घर की एक सदस्य थी वो,
वो लड़के की भोजाई थी,
था पति जिसका बड़ा दूर गया
बस मौत की खबर आई थी;
दूर वो इतना हो गया था
तारों में वो खो गया था |

घरवालों का हुक्म था उसको
दूर ही रहना, पास न आना,
समाज का उसपे रोक था
सबके बीच नहीं था जाना;
शुभ कार्य में छाया उसकी
पड़ना अस्वीकार था,
शादी जैसे मंगल काम में
ना जाने का अधिकार था |
खुशियाँ मनाना वर्जित था,
रस्मों में उसका निषेध था;
झूठे नियमों में वो बंधी
न जाने क्या वो भेद था;
जुर्म था उसका इतना बस
कि वो औरत एक विधवा थी,
जब था पति वो भाभी थी,
बहू भी थी या चाची थी,
पति नहीं तो कुछ न थी
वो विधवा थी बस विधवा थी |

एक औरत का अस्तित्व क्या बस,
पुरुषों पर ही यूं निर्भर है ?
कभी किसी कि बेटी है,
कभी किसी कि पत्नी है,
कभी किसी बहू है वो,
तो कभी किसी कि माता है;
उसकी अपनी पहचान कहाँ,
वो क्यों अब भी अधीन है ?
इस सभ्य समाज के सभी नियम
औरत को करे पराधीन है;
वो औरत क्यों यूँ लगा-सी थी ?
वो औरत क्यों मजबूर थी ?
उसपर क्यों वो बंदिश थी ?
वो खुद से ही क्यों दूर थी ?

शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2012


















महात्मा गांधी
:::::::::::::::::::::::::::::
जो भी था तुम्हारे पास देश पर लुटा गए
हँसते-हँसते देश के लिए ही गोली खा गए,
यूं तो सभी जीते हैं अपने - अपने वास्ते
दूसरों के वास्ते तुम जीना सिखा गए....

लाल बहादुर शास्त्री 
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
तख़्त-ओ-ताज पाके भी आम आदमी रहे
कोशिश की हर जगह सिर्फ सादगी रहे,
करके दिखा दिया कि मुल्क साथ आएगा
शर्त मगर एक कि ईमान लाजमी रहे.....

- VISHAAL CHARCHCHIT

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