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मंगलवार, 14 अगस्त 2012

सपने सभी सच हो गए

        सपने सभी सच हो गए
                       १
नज़र तिरछी डाल अपने हुस्न से जादू किया,
                        तीर इतने मारे उनके खाली तरकश हो गए                       
 जाल उनने बिछाया,हमको फंसाने के लिए,
                          मगर कुछ एसा हुआ की जाल में खुद फंस गए
बस हमारी दोस्ती की दास्ताँ इतनी सी है,
                              उनने देखा,हमने देखा,दिल में कुछ कुछ सा हुआ,
उनने दिल में झाँकने की सिर्फ दी थी इजाजत,
                              हमने गरदन और फिर धड,डाला,दिल में बस गए
                         २
 आग उल्फत की जो भड़की,बुझाये ना बुझ सकी,
                                वो भी बेबस हो गए और हम भी बेबस  हो गए
लाख कोशिश की  निकलने की निकल पाए  नहीं,
                                दिल की सकरी गली में यूं  टेढ़े होकर फंस  गए
सोचते है बिना उनके जिंदगी का ये सफ़र,
                                कैसे कटता,हमसफ़र बन,अगर वो मिलते नहीं,
शुक्रिया उनका करूं या शुक्र है अल्लाह का,
                                   वो मिले,संग संग चले,सपने सभी सच  हो गए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 
                                       

एपल की मेहरबानी

          एपल की मेहरबानी
आज हम जो भी है,जैसे भी है,हुए कैसे,
                         बात ये आपने सोची है,कभी जानी है
आज जो इतनी तरक्की करी है दुनिया ने,
                         दोस्तों ,ये तो बस,एपल की मेहरबानी है
बनायी जब थी ये दुनिया खुदा ने तो पहले,
                        बनाए हव्वा और आदम थे और कुछ एपल
हिदायत दी थी कि इस फल को नहीं खाना तुम,
                       मगर हव्वा ने आदम ने चख  लिया ये  फल
और फिर खाते ही एपल,अकल उनमे आई,
                        कैसे क्या करना है और कैसी है   दुनियादारी
दोस्तों ये इसी एपल का ही नतीजा है,
                         आज अरबों की ही संख्या में है दुनिया  सारी
दूसरा एक था एपल गिरा दरख्तों से,
                          एक इंसान था ,न्यूटन कि जिसने  देख लिया
और विज्ञान ने है इतनी तरक्की करली,
                       जब से  सिद्धांत ग्रेविटी का उसने जग को दिया,
  और एक तीसरा एपल दिया है दुनिया को,
                       जब से बिल गेट्स ने घर घर दिया है कंप्यूटर
आज मैंने भी देखो चौथा एपल खाया है,
                         देखते हैं ,ये दिखाता है,कैसा कैसा    असर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'                        

याद वो आता बहुत है जब दूर जाता है

याद वो आता बहुत है जब दूर जाता है

शराब कोई भी,कैसी भी,कहीं भी पीलो,
          हलक से उतरी तो पीकर  सरूर आता है
भले ही पायी हो,मेहनत से या दुआओं से,
              कामयाबी जो मिलती ,गरूर आता   है
भटकलो कितना ही तुम इधर उधर मुंह मारो,
              कभी ठहराव  ,कहीं पर  जरूर   आता है
इतने मगरूर  ना हो देख कर के आइना,
              जवानी में तो गधी पर  भी  नूर    आता है
बड़े बड़े गुनाह करके लोग  बच जाते,
               पकड़ में बेचारा ,एक बेक़सूर     आता है
उसके मिलने में गजब की कशिश सी होती है,
               जब भी वो पीके,नशे में हो चूर,   आता  है
किये अच्छे करम ,ता उम्र ,इसी हसरत में,
                करे जो नेकी ,वो जन्नत में  हूर  पाता  है
हमने देखें है होंश उनके सभी के उड़ते,
               जो भी दीदार  आपका  हजूर    पाता   है
 पास वो होता है तो उसकी कदर कम करते,
                याद वो आता बहुत है जब दूर    जाता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

एक बार चख कर तो देखो

एक बार चख कर तो देखो

मेरे प्रियतम,

शादी के इतने सालों बाद,
कितने बदल गए हो तुम
अक्सर जताते हो कि,
करते हो मुझसे बहुत प्यार
पर आपकी सब बातें है बेकार
जब मेरी तारीफ़ करते हो,
तो कहते हो मै हूँ बड़ी स्वीट
और जब मै पास आती हूँ ,
तो कहते हो तुम्हे है  डाईबिटीज
और डाक्टर ने कहा है,
मीठी चीजों से परहेज रखो
पर डियर,एक बार प्रेम से तो चखो
तब तुम्हे हो जायेगा यकीन
कि  मीठी ही नहीं, मै हूँ बड़ी नमकीन
एक बार जो स्वाद पाओगे
बार बार खाना चाहोगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पानी-तीन कवितायें

 पानी-तीन कवितायें

              १
           पानी का संगीत
पानी का एक अपना संगीत होता है
आसमान से बरसता है,तो रिमझिम करता है
नदिया में बहता है  तो कलकल   करता है
झरनों से झरता है तो झर झर करता  है
सागर की लहरों में,सर सर उछलता  है
वैसे तो शांतिप्रिय है,पर जब उफान पर आता है
तो तांडव नृत्य करता हुआ,
बाढ़,तूफ़ान और सुनामी लाता है
                    २
    पानी का स्वभाव
पानी जब जमीन पर रहता है
कल कल कर बहता है,
मधुर मधुर संगीत देता है
और जब थोडा ऊपर उठता है
श्वेत रजत सा बर्फ बना,
पहाड़ों पर चमकता है
और जब और भी ज्यादा ,
ऊँचा उठ जाता है
उसमे गरूर आ जाता,
काले काले बादल सा बन जाता है
कभी बिजली सा कड़कता है
कभी जोरों से गरजता है
कभी तरसाता है,कभी बरसता है
उसका रंग,रूप और स्वभाव,
ऊंचाई के साथ साथ,बदलता रहता है
पानी का और मानव का स्वभाव,
कितना मिलता जुलता है
क्योंकि मानव के शरीर में,
70 % से भी अधिक,पानी रहता है
             ३
    पानी और संगत का असर
धरा के संपर्क में पानी,
कल कल  करता रहता है
 मानव के संपर्क में आ वो पानी,
मल मूत्र  बन बहता है
समुन्दर के संपर्क में आकर,
खारा हो  जाता है
सूरज के संपर्क में आकर,
बादल बन जाता है
साथ मिला गर्मी का,
वाष्प  है बन जाता
और मिली सर्दी तो,
बर्फ बन  जम  जाता 
पानी वही पर जैसी होती है,
उसकी संगत या साथ
बदल जाता है उसका रंग रूप,
रहन सहन और स्वाद

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

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