भविष्य का बोझ
मै रोज सुबह सुबह देखता हूँ,
बच्चे जब स्कूल जाते हैं,
उन्हें बस तह छोड़ने के लिए ,
उनके माता या पिता,
उनके संग जाते है
और बस तक,
उनके भारी स्कूल बेग का बोझा ,
खुद उठाते है
बाद मे दिन भर ये भारी बोझा,
अच्छों को खुद ही उठाना होता है
जिंदगानी के साथ भी,
एसा ही कुछ होता है
क्योंकि माँ बाप,एक हद तक,
जैसे स्कूल की बस तक,
तो बच्चों का बोझा उठा सकते है
पर जिंदगानी के सफ़र मे,
हर एक को,
अपने अपने बोझे,
खुद ही उठाने पड़ते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
परछाई और मैं
-
अकेले चलते-चलतेअपनी परछाई से बातें करते-करतेअनंत युगों सेकरता आ रहा हूं
पारएक समय चक्र से दूसरे समय चक्र कोलेकिन पा नहीं पा रहाउस अंतिम कोर कोजिस
पर समाप्त...
14 घंटे पहले