मौसम की ऱौद्रता हुआ अब बेहाल करने का सामान,
जो जितना गरीब है वो उतना परेशान।
महलों वाले जेनरेटर और ए.सी. में सोते है,
आमलोग ही बस पशीने में खुद को भींगोते हैं।
भूतल का जल कहने लगा- भई माफ करो मैं नीचे चला,
आसमान को मत देखो, ये मेघ भी मुँह फेर निकला।
नेतागण तो इस गर्मी भी हाथ सेंकते जाते है,
जनता की कमाई खाते है और उसी को रुलाते जाते है।
विद्युत का हालत वैसा है, यह भी कभी सुलहा है?
बिजली विभाग परेशान बेचारा घोटालो में उलझा है।
मौसम और सरकार की मार बस आमजन को तड़पाती है,
ऊफ्फ ये गरमी, आह ये वर्षा, हाय ये सर्दी सताती है।