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शनिवार, 28 अप्रैल 2012

बेगुनाह की इक आह से तू बर्बाद हो सकता है

जुर्म करने वाले न भूल जाना जुर्म करके 
के आसमाँ तेरे हर जुर्म पे नजर रखता है |

खुद पे गुमां करने से पहले ये सोच लेना 
के तुझे भी आगोश-ए-मौत में सिमटना है |

ए इन्सान ना कर इतना फरेब इंसानों से 
के इंसानियत ने तुझसे भी हिसाब लेना है |

दिल्लगी किसी से इतनी भी ना करो दोस्त 
के तेरी दिल्लगी से कोई तबाह हो सकता है |

ये दिल भी इक बहते समंदर की माफिक है 
के दर्द-औ-खुशियों का इसमें संगम होता है |

बेगुनाह को गुनहगार साबित ना कर "अमोल"
के बेगुनाह की इक आह से तू बर्बाद हो सकता है |

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

अनंत की खोज


अनंत की खोज में भटकता ही रहा,
पंछी अकेला बस तरसता ही रहा,
दर-ब-दर, यहाँ वहाँ,
और न जाने कहाँ-कहाँ,
जो ढूंढा वो मिला ही नहीं,
जो मिला उसकी तो चाह ही नहीं थी |
अनंत तो अनंत है,
मिल जाये तो फिर अनंत कहाँ ?

गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

मन उड़न छू हो गया है

मन उड़न छू हो गया है

देख तुमको आज पहली बार कुछ यूं हो गया है

                          मन उड़न छू  हो गया है
नीड़ में इतने दिनों तक,पड़ा था गुमसुम अकेला
बहुत व्याकुल हो रहा था, उड़न को वो पंख फैला
किन्तु अब तक उसे निज गंतव्य का था ना ठिकाना
देख तुमको बावरा सा, हो गया  था  वो  दीवाना
फडफडा कर पंख भागा,रुका ना ,रोका घनेरा
और फुनगी पर तुम्हारे,ह्रदय की करके  बसेरा
चहचहाने लग गया है,गजब जादू  हो गया है
                               मन उड़न छू  हो गया है
रहा है मिज़ाज इसका,शुरू से ही आशिकाना
देख कर खिलती कली को,मचलता आशिक दीवाना
कभी तितली की तरह से,डोलता था ये चमन में
गुनगुनाता भ्रमर जैसा,आस रस की लिए मन में
चाहता स्वच्छंद  उड़ना,था पतंग सा आसमां में
पर  अभी तक डोर उसकी,पकड़ कर थी,रखी थामे
उम्र के तूफ़ान में अब, मेरा काबू  खो गया है
                               मन उड़न छू हो गया है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



बुधवार, 25 अप्रैल 2012

मजबूरी

मजबूरी
(घोटू के छक्के)
          १
पत्नी से कहने लगे,घोटू कवि कर जोड़
आप हमी को डांटती,हैं क्यों सबको छोड़
हैं क्यों सबको छोड़,पलट कर पत्नी बोली
मै क्या करूं, तेज,तीखी है मेरी बोली
 नौकर चाकर वाले घर में बड़ी हुई हूँ
बड़े नाज और नखरों से मै पली हुई हूँ
            २
पत्नी जी कहने लगी,जा घोटू कवि  पास
बतलाओ फिर निकालूँ,मन की कहाँ भड़ास
मन की कहाँ भड़ास,अगर डाटूं नौकर को
दो घंटे में छोड़,भाग जाएगा घर को
सुनू एक की चार,ननद से जो कुछ बोलूँ
तुम्ही बताओ ,बैठे ठाले,झगडा क्यों लूं
               ३
सास ससुर है सयाने,करते मुझसे प्यार
उनसे मै तीखा नहीं,कर सकती व्यवहार
 करसकती व्यवहार,मम्मी बच्चों की होकर
अपने नन्हे मासूमों को डांटू क्यों कर
एक तुम्ही तो बचते हो जो सहते सबको
तुम्ही बताओ,तुम्हे छोड़ कर ,डाटूं किसको ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हो गयी माँ डोकरी है


हो गयी माँ डोकरी है

प्यार का सागर  लबालब,अनुभव से वो भरी है

हो गयी माँ डोकरी है
नौ दशक निज जिंदगी के,कर लिए है पार उनने
सभी अपनों और परायों ,पर लुटाया  प्यार  उनने
सात थे हम बहन भाई,रखा माँ ने ख्याल सबका
रोजमर्रा जिंदगी के ,काम सब और ध्यान घर का
कभी दादी की बिमारी,पिताजी की व्यस्तायें
सभी कुछ माँ ने संभाला,बिना मुंह पर शिकन लाये
और जब त्योंहार आते,तीज,सावन के सिंझारे
सभी को मेहंदी लगाती,बनाती पकवान सारे
दिवाली  पर काम करती,जोश दुगुना ,तन भरे वो
सफाई,घर की पुताई,मांडती थी,मांडने  वो
और हम सब बहन भाई,पढाई में व्यस्त रहते
मगर सब का ख्याल रखती,भले थक कर पस्त रहते
गयी निज ससुराल बहने,भाइयों की नौकरी है
साथ बाबूजी नहीं है, हो गयी माँ डोकरी     है
भूख  भी कम हो गयी है,बिमारी है,क्षीण तन है
चाहती सब काम करना,मगर आ जाती थकन है
और जब त्योंहार आते,उन्हें आता जोश भर है
सभी रीती रिवाजों पर ,आज भी पूरा दखल है
ये करो, ऐसे करो मत,हमारी है  रीत ऐसी
पारिवारिक रिवाजों को ,निभाने की प्रीत ऐसी
फोन करके,बहू बेटी को आशीषें बांटती   है
कभी गीता भागवत सुन ,वक़्त अपना काटती है
भले ही धुंधलाई आँखें, मगर यादों से भरी  है
हो गयी माँ डोकरी  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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