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सोमवार, 9 अप्रैल 2012

कारण -गरमी का

कारण -गरमी  का

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चार छुट्टियाँ मिलाती,मर्दों को महीने में

औरतें अधिकतर ही ,छुट्टियाँ मनाती है

तारे भी कई बार ,तड़ी मार देतें है,

अमावास को चंदा की भी छुट्टी  आती है

चार माह बरसते है ,बरस भर में बदल कुल,

और हवा अक्सर ही ,छुट्टी कर जाती  है

काम बिना छुट्टी कर,सूरज जब मन ही मन,

जलता है ,तो किरणों में ,फिर गरमी आती है


मदन मोहन बहेती 'घोटू'


छुटका बसा विदेश, पूर कर बड़ी पढ़ाई

दूँ उसको आशीष, होय इक बोदा लड़का-

बोदा लड़का था बड़ा, पर छुटका विद्वान ।
मार-पीट घूमे-फिरे, सारा घर उकतान ।
 
सारा घर उकतान, करूँ नित मार कुटाई ।
छुटका बसा विदेश, पूर कर बड़ी पढ़ाई ।

रविकर बूढ़ी देह, सेवता घर-भर बड़का ।
दूँ उसको आशीष, होय इक बोदा लड़का ।।

शनिवार, 7 अप्रैल 2012

थकान-करे बेकाम

थकान-करे बेकाम

एक भाभीजी थी काफी उदास

उनकी शिकायत थी,कि जब उनके पति,
जब  घर आते है,
दिन भर ऑफिस में काम करने के बाद
तो शाम को किसी भी काम के नहीं रह जाते है
न बाज़ार से सब्जी लाते है
न होटल में खिलाते है
बस थके हारे,खर्राटे भरते हुए सो जाते है
अब उन्हें ये कौन बताये,
वो ओफिस मे क्या क्या गुल खिलाते है
और शाम तक होती क्यों,ऐसी हालत है
क्योंकि उनकी सेक्रेटरी के पति को भो,
अपनी पत्नी से ,ये ही शिकायत है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

जस्य नारी पूज्यन्ते----

जस्य नारी पूज्यन्ते----

कहते है, भारत में,

छप्पन करोड़ देवता पूजे जाते  है
जिधर देखो उधर ,
देवता ही देवता नज़र आते है
इसका कारण है,
नारी की पूजा होती है सदा
और संस्कृत का श्लोक है,
'जस्य नारी पूज्यन्ते,रमन्ति तत्र देवता'
यहाँ नारी को देवी कहा जाता है
और नारी का देवी रूप
,देवताओं को सुहाता  है
हमारे देश में नारी का कितना आदर है,
इसी बात से  जाना जा सकता है
कि सभी अवतारों को,
साल में एक दिन,
जैसे राम को रामनवमी को,
कृष्ण को,जन्माष्ठमी को,
पूजा जाता है
पर देवी को वर्ष में दो बार,
और वो भी नो नो दिनों के लिए,
नवरात्र में पूजा जाता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

क्या क्या खिलाती है?

क्या क्या खिलाती  है?

न पूछो आप हमसे औरतें क्या क्या खिलाती है

ये खुद गुल है,मगर फिर भी,हजारों गुल खिलाती है
 हसीं हैं,चाँद सा चेहरा,ये मेक अप कर खिलाती है
अदा से जब ये चलती है,कमर को बल खिलाती है
ख़ुशी में,प्यार में,जब झूम के ये खिलखिलाती है
चमक आँखों में आ जाती,हमारे दिल खिलाती है
करो शादी अगर तो सात ये फेरे खिलाती है
किसी वीरान घर को भी ,चमन  सा ये  खिलाती है
पका कर दो वख्त ,ये मर्द को ,खाना खिलाती है
जो बच्चे तंग करते,उनको ,रोज़ाना खिलाती है
कभी गुस्सा खिलाती है,कभी धमकी खिलाती है
जरा सी बात ना मानो,तो बेलन की खिलाती है
कभी होली खिलाती है,कभी गोली खिलाती है
ये कडवे डोज़ भी हमको,बनी भोली खिलाती है
जरा से प्यार के खातिर,कई चक्कर खिलाती है
कभी जूते खिलाती है,कभी चप्पल खिलाती है
हवा ये अच्छे अच्छों को,हवालात की खिलाती है
खुदा! ये खेलती है हमसे या हमको खिलाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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