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शुक्रवार, 23 मार्च 2012

परिवर्तन

              परिवर्तन
तब घूंघट पट,लेते थे ढक,उनके सब घट
अब कपडे घट,करे उजागर,उनके घट घट
तब झुक  कर,लेते  थे मन हर,नयना चंचल
अब तकते है,इधर उधर वो हो उच्श्रंखल  
मर्यादित थे,रहते बंध कर,उनके  कुंतल
उड़ते रहते,आवारा से ,अब गालों पर
बाट जोहती थी  तब आँखें,पिया मिलन की
मोबाईल पर,रखे खबर पति के क्षण क्षण की
पति पत्नी  तब,मुख दिखलाते,प्रथम रात में
अब शादी के,पूर्व घूमते,साथ साथ में
पहले रिश्ता,पक्का करते,ब्राह्मण , नाई
अब तो इंटरनेट,चेट,फिर है शहनाई
पति कमाते थे,पत्नी,घरबार  संभाले
अब पति पत्नी,दोनों बने,केरियर  वाले
यह समता अच्छी ,पर इससे आई विषमता
बच्चे तरसे,पाने को ,माता की ममता
माता पिता  ,रहे बच्चों संग,छुट्टी के दिन
प्रगति की गति,लायी है ,कितने परिवर्तन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 22 मार्च 2012

हथियार-बिना धार का

हथियार-बिना धार का

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जिसमे एक तरफ हत्था होता है,
एक तरफ धार होती है ,
वो तलवार होती है
गदा भी एक तरफ से ही पकड़ा जाता है
और दूसरी तरफ से मार लगाता है
सिर्फ एक ही हथियार एसा होता है,
जिसमे दोनों तरफ हत्था होता है
और दोनों तरफ से किया जा सकता है वार
जिधर से चाहो ,पकड़ लो,
कितना सुगम है ये हथियार
बाकी सारे हथियार
लडाई में ही काम आते है,
बाकी समय बेकार
मगर ये हथियार,जिसमे नहीं होती है धार,
युद्ध हो या शांति,
हमेशा काम करने को तैयार
दोनों हत्थों को,दबा कर घुमाओ
तो  आटे  की लोई भी,
गोल चपाती बन जाती है
इसके दबाब से,टूथपेस्ट की ट्यूब की,
आखरी बूँद भी निकल जाती है
वार भी करता है,उपकार भी करता है
हर आदमी इस हथियार से डरता है
और ये हथियार हर घर में पाया जाता है
औरतों के हाथों में सुहाता है
जी हाँ,ये दो हत्थों का हथियार बेलन कहलाता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 21 मार्च 2012

संबोधन के उदबोधन

संबोधनों के उदबोधनो को ,
समझ सका है क्या कोई ,
जीवन में बदले संबोधनों के साथ ,
पल पल बदलते जीवन के रहस्य ,
संबोधनों की भाषा को क्या पढ़ पाया कोई,
बदले संबोधन के साथ बढ़ता है जीवन ,
बेटा बेटी के संबोधन के साथ प्रारम्भ हुआ जीवन ,
चाचा मामा , मौसी फूफा के नए संबोधनों के साथ ,
कब बदल गया औए समय आगे चला गया ,
नित नए संबोधन पुराने संबोधनों के साथ ,
आगे बढ़ता यह जीवन संबोधनों से थकता नहीं ,
स्मरण आते हैं पुराने सबोधन जो अब भी है ,
पर संबोधित करने वाले कहीं खो जाते हैं ,
नए संबोधनों का आकर्षण तो है ,
पर पुराने संबोधनों की तृष्णा मिटती नहीं कभी ,
संबोधन के मायाजाल में उलझा उलझा सा जीवन ,
सुलझाने की चेष्टा में और भी उलझा है ,
संबोधन के साथ प्रारम्भ हुआ जीवन ,
संबोधन की यात्रा अनवरत चलती रहेगी ,
संबोधन के मायाजाल से शायद ही कभी ,
मुक्त हो पाए यह जीवन ,
संबोधन है ,
तभी यह जीवन है ,
यही है संबोधन की भाषा और उसका रहस्य

विनोद भगत

मंगलवार, 20 मार्च 2012

कंधमाल में हैं फंसे, इतालवी --

इटली से मेहमान, अगर फुफ्फू घर आये-

कंधमाल में हैं फंसे, इतालवी दो लोग ।
नक्सल के बन्धक बने, रहे अवज्ञा भोग ।

रहे अवज्ञा भोग, जान सांसत में सबकी ।
बड़ा भयंकर रोग, करे क्या सत्ता अबकी ।

इटली से मेहमान, अगर फुफ्फू घर आये ।
प्रिये भतीजे बोल, दिमगवा क्यों ना लाये ।।

सोमवार, 19 मार्च 2012

अनुभूतियाँ

            अनुभूतियाँ
रोज सुबह सुबह,जब मै घूमने जाता हूँ,
कितने ही दृश्य देख कर,
तरह तरह की अनुभूतियाँ पाता हूँ
जब देखता हूँ कुछ मेहतर,
हाथों में झाड़ू लेकर,
सड़क को बुहारते हुए,सफाई करते है
तो मुझे याद आ जाते है वो नेता,
जिनका हम चुनाव करते है
स्वच्छ और साफ़ ,प्रशासन के लिए
मंहगाई और गरीबी को बुहारने के लिए
लेकिन वो देश की सम्पदा को बुहारकर
भर रहें है ,अपनी स्विस बेंक का लॉकर
मै देखता हूँ छोटे छोटे बच्चे,
अपने नाज़ुक से कन्धों पर,
ढेर  सारा बोझा लटकाए
उनींदीं पलकें,अलसाये
तेजी से भागते है,
जब स्कूल की बस आती है
और साथ में उनकी माँ,
उनके मुंह में सेंडविच ठूंसती हुई,
उनके साथ साथ जाती है
मुझे इस दृश्य में,माँ की ममता,
और देश के भविष्य की ,
एक जिम्मेदार पीढ़ी पलती नज़र आती है
मुझे दिखती है एक महिला,
तीन तीन श्वानो को
एक साथ साधती हुई,घुमाती है
मुझे महाभारत कालीन,
एक साथ पांच पतियों को निभाती हुई,
द्रोपदी की याद आती है
मुझे नज़र आते है,
लाफिंग क्लब में,
ठहाका मार कर हँसते हुए कुछ लोग
मै सोचता हूँ,
इस कमरतोड़ मंहगाई ने,
जब सब के चेहरे से छीन ली है मुस्कान
हर आदमी है दुखी और परेशान
तो ये चंद लोग
क्यों करते है हंसने का ढोंग
फिर सोचता हूँ कि आज कि जिंदगी में,
जब सब कुछ ही फीका है
मन  को बहलाने का ये अच्छा तरीका है
मै भी यही सोच कर मुस्कराता हूँ
जब मै रोज,सुबह सुबह घूमने जाता हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 


 

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