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रविवार, 4 मार्च 2012

आओ होली मनाएं

आओ होली मनाएं

आओ होली मनाएं
पहले दिन
पुरानी वेमनस्यतायें
दुर्भावनाएं ,कटुता,और
बैरभाव की होली जलाएं
और दूसरे दिन
सदभावनाओं की गुलाल
भाईचारे का अबीर
और प्रेम के रंगों से
मिलजुल कर होली मनाएं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जब मुँह पर खिला बसन्त --

जब मुँह पर खिला बसन्त --

बुरा न मानो होली है --
मूँग दले होरा भुने, उरद उरसिला कूट ।
पापड बेले अनवरत, खाय दूसरा लूट ।।
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjLateYcQt2S3472cdcCSpVLylbEtNo_ku0iqrVjZ8662yhv7Xg6oBYmB7AR8uLM6Ez8ohqWrjmUqts8qF2FLeUr1ItnMRRFFpKyJcHXLZ5lb8Guxnk35tg00Mwt3wO8ysjWkCS3kWxiC0/s1600/100_4500.JPG
मालपुआ गुझिया मिली, मजेदार मधु स्वादु ।
स्वादु-धन्वा मन विकल, गुझरौटी कर जादु ।।
मन के लड्डू मन रहे,  लाल-पेर हो जाय ।
रंग बदलती आशिकी, झूठ सफ़ेद बनाय ।
भाँग खाय बौराय के,  खेलें सन्त-महन्त ।
नशा उतरते ही खिला, मुँह पर मियाँ बसन्त ।।
Rangoli design with diya in centre
होरा = चना का झाड़
उरसिला = चौड़ी छाती 
गुझिया = एक प्रकार की मिठाई 
गुझरौटी= नाभि के पास का भाग 
स्वादु-धन्वा = कामदेव
जब मुँह पर खिला बसन्त = डर जाना 

यह  भी  देखिये  

ताकें गोरी छोरियां--

 दोहे 
शिशिर जाय सिहराय के, आये कन्त बसन्त ।
अंग-अंग घूमे विकल, सेवक स्वामी सन्त ।

मै कवि हूँ

                           मै कवि हूँ
धूप के संग छाँव को भी,जन्म देता वो रवि हूँ
                             मै कवि हूँ
कल्पना के समंदर में सिर्फ ना गोते लगाता
बल्कि जा गहराइयों में,सीप मोती ढूंढ लाता
कलकलाती नदियों का,रूप ना केवल निहारा
बल्कि देखा बाढ़ में उनका विनाशक रूप सारा
फूल फल से  लदे देखे वृक्ष  जब अनुकूल मौसम
वहीँ  देखा हुआ पतझड़,जब हुआ प्रतिकूल मौसम
तान सीना,वृक्ष देखे,वनों में  ऊंचे  खड़े  थे   
वक़्त का आया बुलावा,कट गए वो गिर पड़े थे
और देखी उन वनों में, उठ रही अट्टालिकाएं
प्रकृति का संहार करके,प्रगति की सारी विधाये
प्रात का कोमल अरुण और दोपहर का सूर्य तपता
चाँद,जो ले क़र्ज़ रवि से,रात को जगमग  चमकता
नहीं केवल मिलन का सुख,जुदाई की पीर  देखी
वक़्त के संग जमाने की बदलती तस्वीर  देखी
जिन्होंने जीवन दिया  , वो प्रताड़े माँ बाप देखे
दृश्य कितने ही करुण,आंसू भरे, चुपचाप देखे
इन्ही दृश्यों और जीवन की सभी संवेदनाये
को पिरोया शब्द में जब ,बन गयी वो कवितायेँ
मोम जैसा कभी पिघला,बना भी पाषण हूँ मै
बहुत गहरी चुभन देता,शब्द का वो बाण हूँ मै
प्यार का मादक सपन हूँ,और मिलन का गीत हूँ मै
युद्ध रणभेरी बजाता,हार भी हूँ  जीत    हूँ      मै
समय के  खाकर थपेड़े  ,बन गया अब अनुभवी हूँ
                                      मै कवि हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 3 मार्च 2012

kaun kahta hai ki ham boodhe huye hai?

सर्दी से अब तलक, गया जो नहीं नहाने

तीन समाचार

पटना से सुशील मोदी
प्रसव करे पीड़ा सहे, रक्त दूध से पाल ।
नसबंदी की बात पर, होती रही हलाल ।
होती रही हलाल, पुरुष पौरुष दिखलाओ  ।
पांच मिनट का काल, चलो अब आगे आओ ।
मोदी की यह बात, करे खारिज नर-कीड़ा ।
मौज करे दिन रात,  सहे बस नारी पीड़ा ।।

जहानाबाद से दबंग -
काटे हाथ दबंग ने, पी एम सी एच नेक ।
पड़ा फर्श पर तड़पता, गए गाँव में फेंक ।
गए गाँव में फेंक, होय आशंका  भारी ।
नक्सल बने अनेक, किया लेकिन हुशियारी ।
उठे नहीं गन बम्ब, पोस्टर कैसे साटे ।
सके न नक्सल बन , हाथ दोनों जो काटे ।।  

धनबाद से अघोरी
पानी की किल्लत बढे, फिर दादा इस साल ।
होली में डी सी कहे, खेलो शुष्क गुलाल ।
खेलो शुष्क गुलाल, तिलक माथे पर लागे ।
बदलो अपनी चाल, कठिन दिन आये आगे ।
किन्तु अघोरी-छाप, बात उनकी ना माने ।
 सर्दी से अब तलक, गया जो नहीं नहाने ।।
 

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