एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शनिवार, 3 मार्च 2012

आज तुम ना नहीं करना

आज तुम ना नहीं करना
जायेगा दिल टूट वरना
तुम सजी अभिसारिका सी,दे रही मुझको निमंत्रण
देख कर ये रूप मोहक, नहीं  अब मन पर नियंत्रण
खोल घूंघट पट खड़ी हो,सजी अमृतघट   सवांरे
जाल डोरों का गुलाबी ,नयन में  पसरा तुम्हारे
आज आकुल और व्याकुल, बावरा  है मन मिलन को
हो रहा है तन तरंगित,चैन ना बेचैन मन को
प्यार की उमड़ी नदी में,आ गया सैलाब सा है
आज दावानल धधकता,जल रहा तन आग सा है
आज सागर से मिलन को,सरिता  बेकल हुई है
तोड़ सब तटबंध देगी,  कामना पागल हुई है
और आदत है तुम्हारी,चाह कर भी, ना करोगी
बांह में जब बाँध लूँगा,समर्पण सम्पूर्ण दोगी
चाहता मै भी पिघलना,चाहती तुम भी पिघलना
टूट मर्यादा न जाये, बड़ा मुश्किल है  संभलना
व्यर्थ में जाने न दूंगा,तुम्हारा सजना ,संवारना
केश सज्जा का तुम्हारी ,आज तो तय  है बिखरना
    आज तुम ना नहीं करना
    जायेगा दिल टूट  वरना

मदन मोहन बहेती'घोटू'

मुक्तक

मुक्तक
--------
  १
क्या भरोसा जिन्दगी की,सुबह का या शाम का
आज जो हो,शुक्रिया दो,उस खुदा के नाम का
गर्व से फूलो नहीं और ये कभी भूलो  नहीं,
अंत क्या था गदाफी का,हश्र  क्या सद्दाम  का
     २
नहीं सौ फ़ीसदी खालिस,इस सदी में कोई है
धन कमाने की ललक में,शांति सबकी खोई है
बीज भ्रष्टाचार के,इतने पड़े है है खेत में,
काटने वो ही मिलेगी,फसल जो भी बोई है
    ३
है बहुत सी कामनाएं,काम ही बस काम है
ना जरा भी चैन मन में,और नहीं आराम है
आप जब से मिल गए हो,एसा है लगने लगा,
जिंदगी एक खूबसूरत सी बला  का नाम है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शुक्रवार, 2 मार्च 2012

श्रृंगार

(बाल विवाह की पीढ़ा को दर्शाने का एक अल्प प्रयास कविता के माध्यम से)
बहुत कुछ चाहती थी वो करना,
सपना था उसका कुछ बनना |
पर उस अग्नि की वेदी में ,
इक दिन उसको भी पड़ा जलना |
सोचती रह गयी बस वो,
सोचा था उसने जो,
क्या कर पायेगी उसे अब पूरा ?
उसकी इच्छाएं ,उसके सपने,सब कुछ रह गया अधूरा |
उसको अपना ये श्रृंगार,लगने लगा था अपनी हार |
नए जीवन में हो रहा था प्रवेश 
 मन में बाकी थे बस उम्मीदों के कुछ अवशेष |
वो खनखनाहट नहीं थी उसकी चूड़ियों की,
बल्कि आवाज थी उसकी मजबूरियों की |
ये बेड़ियाँ समाज की ,
पायल बन के बंध चुकी थी पैरों में ,
अपनी की सिर्फ यादों को लेकर जा रही थी वो गैरों में |
बिंदिया ,सिदूर और काजल ,
मंडरा रहे थे उसकी उम्मीदों पर बन के बादल |
सोच के गहरे समुद्र में डूबती जा रही थी वो ,
कुछ और ही चाहा था उसने कुछ और ही पा रही थी वो |
अपने ही श्रृंगार में स्वयं ही दबती जा रही थी वो ,
कुछ और ही माँगा था उसने कुछ और ही पा रही थी वो |

                                                                                                       
                                        अनु डालाकोटी


ससुराल-मिठाई की दूकान

ससुराल-मिठाई की दूकान
------------------------------
सालियाँ,नमकीन सुन्दर,और साला  चरपरा
टेड़ी सलहज जलेबी सी,मगर उसमे  रसभरा
सास रसगुल्ला रसीली,कभी चमचम रसभरी
काजू कतली उनकी बेटी,मेरी बीबी  छरहरी
और लड्डू से लुढ़कते, ससुर  मोतीचूर  हैं
हर एक बूंदी रसभरी है,प्यार से भरपूर  है
गुंझिया सा गुथा यह परिवार रस की खान है
ये मेरा ससुराल  या मिठाई  की दूकान  है
(होली की शुभकामनाये)
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

स्वप्नों की मंडी


मै स्वप्न खरीदने निकला ,
एक दिन , स्वप्नों के बाज़ार में ,
बड़ी भीड़ थी ,
ठसाठस भरे थे खरीदार ,
रंगीले स्वप्न , रसीले स्वप्न ,
स्वप्नों की मंडी में स्वप्न ही स्वप्न ,
सब नींद में थे ,
जागना भी नहीं चाहते ,
स्वप्न साकार करने की हिम्मत नहीं थी ना ,
दरअसल स्वप्न साकार करने के बजाय ,
स्वप्न खरीदना आसान लगता है ,
समय है किसके पास ,
सब व्यस्त है स्वप्न खरीदने में ,
स्वप्न खरीदने में जितना समय लगता है ,
उससे कम समय साकार होने में ,
करके तो देखो ,
स्वप्न की मंडी मे दिग्भ्रमित हो जाओगे ,
स्वप्नों की दुनिया से निकल कर यथार्थ मे ,
जीकर देखो
विनोद भगत

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-