मै
स्वप्न खरीदने निकला ,
एक
दिन , स्वप्नों के बाज़ार में ,
बड़ी
भीड़ थी ,
ठसाठस
भरे थे खरीदार ,
रंगीले
स्वप्न , रसीले स्वप्न ,
स्वप्नों
की मंडी में स्वप्न ही स्वप्न ,
सब
नींद में थे ,
जागना
भी नहीं चाहते ,
स्वप्न
साकार करने की हिम्मत नहीं थी ना ,
दरअसल
स्वप्न साकार करने के बजाय ,
स्वप्न
खरीदना आसान लगता है ,
समय
है किसके पास ,
सब
व्यस्त है स्वप्न खरीदने में ,
स्वप्न
खरीदने में जितना समय लगता है ,
उससे
कम समय साकार होने में ,
करके
तो देखो ,
स्वप्न
की मंडी मे दिग्भ्रमित हो जाओगे ,
स्वप्नों
की दुनिया से निकल कर यथार्थ मे ,
जीकर
देखो
विनोद
भगत