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एक सन्देश-
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शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012
भविष्य का सपना
क्या मैं अकेली थी
सुनसान सी राह
और छाया अँधेरा
गिरे हुए पत्ते
उड़ती हुयी धूल
उस लम्बी राह में
मैं अकेली थी ।
चली जा रही
सब कुछ भूले
ना कोई निशां
ना कोई मंजिल
उस अँधेरी राह में
मैं अकेली थी ।
तभी एक मकां
दिखा रस्ते में
बिन सोचे मैं
वहाँ दाखिल हुयी
उजाला तो था
चिरागों का पर
उन चिरागों में
मैं अकेली थी ।
रुकी वहाँ और
सोचा मैंने है कोई
नहीं यहाँ तो चलूं
आगे के रस्ते में
फिर निकल पड़ी
पर उस रस्ते पर
मैं अकेली थी ।
छोड़ दिया उस
मकां का रस्ता
देखा बाहर जो मैंने
उजाला था राह में
लोग खड़े थे
मेरे इंतजार में
वहाँ ना अँधेरा था
ना ही विराना
बस था साथ
और विश्वास
उन सबके साथ
उस साये में
आकर फिर
मैंने सोचा
क्या सच में
मैं अकेली थी
या ये सिर्फ
एक पहेली थी ।
©.दीप्ति शर्मा
दिल के अहसास
1. हर इक रस्म निभा जाना आसान नहीं,
बस सोचना ही आसान होता है ।
2. तस्वीरें अहसास कराती हैं
अपनों के पास होने का
उसकी अहमियत कोई समझे
ये जरूरी तो नहीं ।
3. दिल जल जाते हैं
हाथों को जलाने से क्या होगा
गर चाहे वो मुझे
तो याद आयेगी उसे
मेरे याद दिलाने से क्या होगा ।
4. जब नाम दिल पर लिखा हो
कागज से मिटाकर क्या पा लोगे
हस्ती है मेरे प्यार की रौशन
ख़्वाबों में जो तुम मुझे ना पाओ
तो ख़्वाब सुनहरे कैसे सजा लोगे ।
कल्कि अवतार का मत करो इन्तजार
---------------------------------------------
पुराण बतलाते है
जब जब धर्म की हानि होती है,
भगवान अवतार ले कर आते है
त्रेता में राम का रूप धर कर अवतार लिया
द्वापर में कृष्ण रूप में प्रकटे,
और दुष्टों का संहार किया
पर आजकल,इस कलयुग में,धर्म की हानि नहीं,
धर्म का विस्तार हो रहा है
जिधर देखो उधर धर्म ही धर्म,
का प्रचार हो रहा है
भागवत कथाएं,
गाँव गाँव शहर,कस्बो में,
टी.वी. के कई चेनलों में,
साल भर चलती है
कितनी भीड़ उमड़ती है
भागवत कथा सुन कर कितने ही श्रोताओं में,
मोक्ष की आस जगी है
तीर्थो में उमड़ती भीड़ को देखो,
सब में पुण्य कमाने की होड़ लगी है
मंदिरों में आजकल इतने लोग जाते है
कि भक्तों को दर्शन देते देते,
भगवान भी थक जाते है
तब सांवरिया सेठ का रूप धर,
भगवान ने नानीबाई का मायरा भरा था
अपने भक्त नरसी मेहता पर उपकार करा था
आज कल कई सेठ,
कितनी ही गरीब कन्याओं का,
सामूहिक विवाह करवाते है
और भरपूर पुण्य कमाते है
तब एक श्रवण कुमार ने,
अपने बूढ़े माता पिता को,
तीर्थ यात्रा करवाई थी,
कांवड़ में बिठा कर
आज कितने ही श्रवण कुमार,
अपने बूढ़े माता पिता को,
तीर्थ यात्रा करवाते है,
हेलिकोफ्टर में बिठा कर
पहले आदमी जब गया तीर्थ था जाता,
तो गया गया सो गया ही गया था कहा जाता
और आज कल गया जानेवाला,
सुबह गया जाता है,
और शाम तक वापस भी लौट आता है
धर्म का लगाव बढ़ता ही जा रहा है
लोगों में भक्ति भाव ,बढ़ता ही जा रहा है
तो जो लोग कल्कि अवतार का इन्तजार कर रहें है
बेकार कर रहे है
क्योंकि जब इतनी धार्मिक भावनायें,
भारत में जागृत है
तो भगवान को अवतार लेने की क्या जरुरत है?
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012
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रंग रंगीली होली आई. - [image: Friends18.com Orkut Scraps] रंग रंगीली होली आई.. रंग - रंगीली होली आई मस्तानों के दिल में छाई जब माह फागुन का आता हर घर में खुशियाली...10 वर्ष पहले
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भ्रष्ट आचार - स्वतंत्र भारत की नीव में उस समय के नेताओं ने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के रख दिये थे भ्रष्ट आचार फिर देश से कैसे खत्म हो भ्रष्टाचार ?11 वर्ष पहले
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अन्त्याक्षरी - कभी सोचा नहीं था कि इसके बारे में कुछ लिखूँगी: बचपन में सबसे आमतौर पर खेला जाने वाला खेल जब लोग बहुत हों और उत्पात मचाना गैर मुनासिब। शायद यही वजह है कि इ...11 वर्ष पहले
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संघर्ष विराम का उल्लंघन - जम्मू,संघर्ष विराम का उल्लंघनकरते हुए पाकिस्तानी सेना ने रविवार को फिर से भारतीय सीमा चौकियों पर फायरिंग की। इस बार पाकिस्तान के निशाने पर जम्मू जिले के का...11 वर्ष पहले
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प्रतिभा बनाम शोहरत - “ हम होंगें कामयाब,हम होंगें कामयाब,एक दिन ......माँ द्वारा गाये जा रहे इस मधुर गीत से मेरे अन्तःकरण में नए उत्साह का स्पंदन हो रहा था .माँ मेरे माथे को ...11 वर्ष पहले
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रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 7 ........दिनकर - 'हाय, कर्ण, तू क्यों जन्मा था? जन्मा तो क्यों वीर हुआ? कवच और कुण्डल-भूषित भी तेरा अधम शरीर हुआ? धँस जाये वह देश अतल में, गुण की जहाँ नहीं पहचान? जाति-गोत्...11 वर्ष पहले
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आवरण - जानती हूँ तुम्हारा दर्प तुम्हारे भीतर छुपा है. उस पर मैं परत-दर-परत चढाती रही हूँ प्रेम के आवरण जिन्हें ओढकर तुम प्रेम से भरे सभ्य और सौम्य हो जाते हो जब ...11 वर्ष पहले
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OBO -छंद ज्ञान / गजल ज्ञान - उर्दू से हिन्दी का शब्दकोश *http://shabdvyuh.com/* ग़ज़ल शब्दावली (उदाहरण सहित) - 2 गीतिका छंद वीर छंद या आल्हा छंद 'मत्त सवैया' या 'राधेश्यामी छंद' :एक ...12 वर्ष पहले
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इंतज़ार .. - सुरसा की बहन है इंतज़ार ... यह अनंत तक जाने वाली रेखा जैसी है जवानी जैसी ख्त्म होने वाली नहीं .. कहते हैं .. इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी होती हैं ख़त्म भ...12 वर्ष पहले
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यार की आँखों में....... - मैं उन्हें चाँद दिखाता हूँ उन्हे दिखाई नही देता। मैं उन्हें तारें दिखाता हूँ उन्हें तारा नही दिखता। या खुदा! कहीं मेरे यार की आँखों में मोतियाबिंद...12 वर्ष पहले
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आज का चिंतन - अक्सर मैं ऐसे बच्चे जो मुझे अपना साथ दे सकते हैं, के साथ हंसी-मजाक करता हूँ. जब तक एक इंसान अपने अन्दर के बच्चे को बचाए रख सकता है तभी तक जीवन उस अंधकारमय...12 वर्ष पहले
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Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu Chikitsalaya, Petarbar - Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu Chikitsalaya, Petarbar is a Charitable Eye Hospital which today sets an example of a selfless service to the...12 वर्ष पहले
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क्राँति का आवाहन - न लिखो कामिनी कवितायें, न प्रेयसि का श्रृंगार मित्र। कुछ दिन तो प्यार यार भूलो, अब लिखो देश से प्यार मित्र। ……… अब बातें हो तूफानों की, उम्मीद करें परिवर्तन ...12 वर्ष पहले
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कल रात तुम्हारी याद - कल रात तुम्हारी याद को हम चाह के भी सुला न पाये रात के पहले पहर ही सुधि तुम्हारी घिर कर आई अहसास मुझको कुछ यूँ हुआ पास जैसे तुम हो खड़े व्याकुल हुआ कुछ मन...12 वर्ष पहले
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HAPPY NEW YEAR 2012 - *2012* *नव वर्ष की शुभकामना सहित:-* *हर एक की जिंदगी में बहुत उतार चढाव होता रहता है।* *पर हमारा यही उतार चढाव हमें नया मार्ग दिखलाता है।* *हर जोखिम से ...12 वर्ष पहले
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"भइया अपने गाँव में" -- (बुन्देली काव्य-संग्रह) -- पं० बाबूलाल द्विवेदी - We're sorry, your browser doesn't support IFrames. You can still <a href="http://free.yudu.com/item/details/438003/-----------------------------------------...13 वर्ष पहले
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अब बक्श दे मैं मर मुकी - चरागों से जली शाम ऐ , मुझे न जला तू और भी, मेरा घर जला जला सा है,मेरा तन बदन न जला अभी, मैंने संजो रखे हैं बहुत से राख के ढेर दिल मैं कहीं, सुलग सुलग के आय...13 वर्ष पहले
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अपनी भाषाएँ - *जैसे लोग नहाते समय आमतौर पर कपड़े उतार देते हैं वैसे ही गुस्से में लोग अपने विवेक और तर्क बुद्धि को किनारे कर देते हैं। कुछ लोगों का तो गुस्सा ही तर्क...13 वर्ष पहले
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दरिन्दे - बारूद की गन्ध फैली है, माहौल है धुआँ-धुआँ कपड़ों के चीथड़े, माँस के लोथड़े फैले हैं यहाँ-वहाँ। ये छोटा चप्पल किसी मासूम का पड़ा है यहाँ ढूँढो शयद वह ज़िन...14 वर्ष पहले
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