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शनिवार, 28 जनवरी 2012

हे ज्ञान की देवा शारदे

(मेरे ब्लॉग "मेरी कविता" पर ये सौवीं पोस्ट माता शारदे को समर्पित है । मुझे इस बात से अत्यंत हर्ष हो रहा है कि आज के ही शुभ दिन यह सुअवसर आया है जिस दिन सारा देश माँ की पूजा-अर्चना में लीन होगा ।)
हे ज्ञान की देवी शारदे,
इस अज्ञ जीवन को तार दे,
तम अज्ञान का दूर कर दे माँ,
तू प्रत्यय का उपहार दे ।

तू सर्वज्ञाता माँ वीणापाणि,
मैं जड़ मूरख ओ हंसवाहिनी,
चेतन कर दे,जड़ता हर ले,
मैं भृत्य तेरा हे विद्यादायिनी ।

जग को भी सीखलाना माँ,
सत्य का पाठ पढ़ाना माँ,
जो अकिञ्चन ज्ञान से भटके,
मति का दीप जलाना माँ ।

मैं दर पे तेरे आया माँ,
श्रद्धा सुमन भी लाया माँ,
सुध मेरी बस लेती रहना,
तेरे स्मरण से मन हर्षाया माँ ।

माँ कलम मेरी न थमने देना,
भावों को न जमने देना,
न लेखन में अकुलाऊँ माँ,
काव्य का धार बस बहने देना ।

माँ विनती मेरी स्वीकार कर,
मुझ मूरख का उद्धार कर,
कृपा-दृष्टि रखना सदैव,
निज शरण में अंगीकार कर ।

जय माँ शारदे ।

ए बसंत तेरे आने से

ए बसंत तेरे आने से
नाच रहा है उपवन
गा रहा है तन मन
ए बसंत तेरे आने से ।

खेतों में लहराती सरसों
झूम रही है अब तो
मानो प्रभात में जग रही है
ए बसंत तेरे आने से ।

चिड़िया भी चहकती है
भोर में गीत गाती है
घर में खुशियाँ आती हैं
ए बसंत तेरे आने से ।

खिल गयी सरसों
बिखर गयी खूशबू
मनमोहक हो गया नज़ारा
ए बसंत तेरे आने से ।
,,,"दीप्ति शर्मा "

शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

जैसी निगाहें वैसा शमाँ

जैसी निगाहें वैसा शमाँ,
निगाहों के अनुरुप बदलता जहाँ,
गमगीन होके देखो तो दुनिया उदासीन,
प्यार से देखो तो सबकुछ खुशनुमा ।

कोई कहता आधा है खाली,
कोई कहता है आधा भरा,
नजरिये का फेर है ये सब,
नजरिये पे निर्भर है अपनी धरा ।

सोच अच्छी हो तो होगे सफल,
गलत सोच डुबो देगा नाव,
सकारात्मता जीवन को देती है राह,
हो तपते हुए मौसम में जैसे छाँव ।

एहसास तेरा

ढुँढती है नजरें तुझे हर दिन और हर रात,
आईने में नजरें अब तो तुझे तलाशती है ।

आहट तेरी करार है लेती अब तो हर हर एक पल,
भँवरों की गुँजन भी धुन तेरा सुनाती है ।

सपने तेरे मदहोश हैं करते अब निद्रा में हर रात,
जागती हुई आँखे भी ख्वाब तेरा दिखाती है ।

छुवन तेरा महसूस है करता ये मन हर लम्हा,
हवाओं की सरसराहट एहसास तेरा कराती है ।

खुशबू तेरी महकाती है अब बगिया में हरदम,
मादकता फूलों की भी याद तेरा दिलाती है ।

मात-पिता के चरणों में


मात-पिता के चरणों में ही बसते तीरथ-धाम,
मात-पिता के चरण की माटी सौ चन्दन समान ।

मात-पिता की निःस्वार्थ सेवा, शत यज्ञ का फल दे,
मात-पिता पावन कर देते, गंगा का जल से ।

मात-पिता के स्नेह की छाया ताप में दे आराम,
मात-पिता के चरणों में ही बसते तीरथ-धाम ।

मात-पिता गुरु से भी बढ़कर, मात-पिता भगवान,
मात-पिता के संस्कारों से बनता कोई महान ।

मात-पिता की दया से मिलते हैं इस जग में नाम,
मात-पिता के चरणों में ही बसते तीरथ-धाम ।

मात-पिता के दरश से मिलते सुख, शक्ति प्रबल,
मात-पिता के हस्त जो सर पे सब कर्म लगे सरल ।

मात-पिता गुण-धाम हैं इनका क्या मैं करुँ गुणगान,
मात पिता के चरणों में ही बसते तीरथ-धाम ।

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