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सोमवार, 12 दिसंबर 2011

एक थैली के चट्टे बट्टे

एक थैली के चट्टे बट्टे
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बी जे पी हो या कांग्रेस
ये सब के सब है एक जैस
सब दल जनता को भरमाते,
है बदल बदल कर अलग भेष
मन बहलाते इनके वादे,
भाषण लम्बे लम्बे
पर हमने देखा ये सब है,
एक बेल के तुम्बे
सत्ता मिलते ही ये देखा,
सब करते है ऐश
बी जे पी हो या कांग्रेस
ये कर देंगे,वो कर देंगे,
दिखलाते है ख्वाब
रंग बदलने में ये सब है,
गिरगिट के भी बाप
रंग बिरंगी टोपी,झंडे,
रंग बिरंगी ड्रेस
बी जे पी हो या कांग्रेस
सभी बढ़ाते है मंहगाई,
सब चीजों के भाव
एक गली में भों भों करते,
जब होता टकराव
पर खुद का मतलब होने पर,
हो जाते है एक
बी जे पी हो या कांग्रेस
एक थैली के चट्टे बट्टे,
कुछ है नाग,संपोले
इस हमाम में सब नंगे है,
अब किसको क्या बोलें
नेताओं ने लूट लूट कर,
किया खोखला देश
बी जे पी हो या कांग्रेस
ये सब के सब है एक जैस

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 11 दिसंबर 2011

बाकि अभी नापना सारा आसमान है


१९ अन्य कवियों के साथ मेरा पहला काव्य संग्रह:
"टूटते सितारों की उड़ान"

अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है;
दो पग ही पथ में बढ़ा हूँ अभी,
आगे तो अभी पुरा जहाँ है |

हृदय में है ख्वाहिश, मन है सुदृढ़,
हाथों की लकीरों में भी कुछ निशान है :
अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

बड़ों का आशीष, अपनों का साथ,
लेकर चला, मुझे खुद पर गुमान है;
अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

मित्रों की दुआ, ईश्वर की दया,
मिल जाए फिर सब आसान है;
अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

हरेक पग रखना है बहुत संभल के,
उंचाई तक जाना सोपान दर सोपान है;
अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

जमींदोज होंगी हर विषम परिस्थितियाँ,
साहित्य की दुनिया से ये पहला मिलान है;
अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

कुंड़लिया ----- दिलबाग विर्क


  आशा से संसार है, रखना दिल में आस 
 मंजिल होगी पास में, करते रहो प्रयास ।
 करते रहो प्रयास , झोंक दो पूरी ताकत 
 जीवन होगा सफल, न टिक पाएगी आफत ।
 मत डालो हथियार, हराती हमें हताशा 
 कहत विर्क कविराय, अमृतधार है आशा ।

                         --------- साहित्य सुरभि

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शनिवार, 10 दिसंबर 2011

जैसे जैसे दिन ढलता है------

जैसे जैसे दिन ढलता है------
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जैसे जैसे दिन ढलता है ,परछाई लम्बी होती है
जब दीपक बुझने को होता,बढ़ जाती उसकी ज्योति है
सूरज जब उगता या ढलता,
                            उसमे होती है शीतलता
इसीलिए वो खुद से ज्यादा,
                             साये को है लम्बा करता
और जब सूरज सर पर चढ़ता,
                              उसका अहम् बहुत बढ़ता है
दोपहरी के प्रखर तेज के,
                               भय से  साया भी  डरता है
परछाई बेबस होती  है,और डर कर  छोटी होती है
जैसे जैसे दिन ढलता है,परछाई लम्बी होती है
आसमान में ऊँची उड़ कर,
                               कई पतंगें इठलाती है
मगर डोर है हाथ और के,
                            वो ये बात भूल  जाती है
उनके  इतने ऊपर उठने ,
                            में कितना सहयोग हवा का
जब तक मौसम मेहरबान है,
                            लहराती है विजय पताका
कब रुख बदले हवा,जाय गिर,इसकी सुधि नहीं होती है
जैसे जैसे दिन ढलता है,परछाई लम्बी होती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

गजल - दिलबाग विर्क




                        इस दिल ने नादानी में
                   आग लगा दी पानी में ।

                   वा'दे सारे खाक हुए
                   आया मोड़ कहानी में ।

                   तेरी याद चली आए
                   है ये दोष निशानी में ।

                   कब उल्फत को समझ सके
                   लोग फँसे नादानी में ।

                   या रब ऐसा क्यों होता 
                   दुख हर प्यार कहानी में ।

                   टूटा दिल, बहते आँसू
                   पाए विर्क जवानी में ।

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