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मंगलवार, 15 नवंबर 2011

हमारे गोल मोल सर


आँखों में चश्मा , चेहरा है गोल
पढ़ाते रहते वो हमें  गोल मोल 
बोर्ड पर लिखते है इतना और 
हमेशा बोलते है ओर ओर |
कहते हैं वो इतना मधुर कि
बोलते उनके सो जाते सारे लोग 
फिर भी वो नही रुकते और 
पढ़ाते रहते वो हमे गोल मोल |
हाथों में  पेपर चौक थाम के 
कितना पढ़ाते हैं बार बार |
कद है छोटा तन तन है मोटा 
पढ़ने में है थोडा खोटा
नंबर देता छोटा मोटा |
टुकुर टुकुर यूँ देखे सबको 
क्यों देखे ये पता नहीं 
मन ना हो पढने का फिर भी 
लिखते है वो मोर मोर 
पढ़ाते रहते हमे गोल मोल |
-  दीप्ति शर्मा 

सोमवार, 14 नवंबर 2011

आखरी मौका


  आखरी मौका
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मेरी शादी के अवसर पर,
जब मै घोड़ी पर बैठ रहा था,
मेरे शादीशुदा मित्र ने कहा था,
'देखले,कितना शानदार मौका है
एसा मौका बार बार नहीं मिलता'
उस समय तो मै समझ नहीं पाया,
पर अब समझ में आया है  उसका मतलब
दोस्त ने कहा था'घोड़ी भी है,मौका  भी है,
जीवन भर की गुलामी से बचना है ,तो,
एडी दबा,घोड़ी दोड़ा,और भागले अब '
भागने का आखरी  मौका  था
पर मुझे रास्ता न दिखे,इसलिए लोगों ने,
मेरा चेहरा,सेहरे से ढक रखा था
 और मै भाग ना जाऊं ,मुझे रोकने के लिए,
बारातियों ने मुझे घेर कर रखा था
और तो और ,आपको मै क्या बतलाऊं
जब मै शादी के मंडप में पहुंचा,
मेरे जूते छिपा दिए गए,
कहीं मै भाग ना जाऊं
और विवाह  की बेदी के सामने बैठा कर,
दुल्हन के हाथ से मेरा हाथ बाँधा गया
जैसे गुनाहगार को हवलदार  पकड़ता है,
दुल्हन ने मेरा हाथ पकड़ा,
और मेरा भागने का ये मौका भी  हाथ से गया
और हाथ को बांधे बांधे ,
दुल्हन को आगे कर उसके पीछे पीछे,
मैंने अग्नि के चार फेरे भी काटे
और मुझे बहला कर ले लिए सात वादे
तब कहीं अगले तीन फेरों के लिए,
मुझे निकलने दिया आगे
और फिर चांदी के सिक्के से
मैंने उसकी मांग भरी
और एक वो दिन था और एक आज का दिन,
उसकी सभी मांगों को पूरी कर
वो आगे और उसके पीछे पीछे,
काट रहा हूँ मै चक्कर
काश घोड़ी पर बैठते वक़्त ही,
अपने दोस्त की बात समझ में आ जाती
तो आज ये नौबत नहीं आती

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

आताताइयों के इस समाज में

मै ठिठक कर रुक गया
मंदिर के आहाते में
आज फिर एक लाश मिली थी
तमाशबीन
लाश के चारों ओर खडे थे
नजदीक ही कुछ
पुलिसवाले भी खडे थे
उत्सुकतावश मै भी शामिल हो गया तमाशवीनों में
देखा कटे हाथों वाली वह लाश
औधे मुॅह पडी थी
नजदीक ही उसके कटे हाथ पडे थे
जिसकी मुट्ठियॉ
अभी तक भिंची थी
न मालूम क्रोध से अथवा विरोध से
भीड का एक आदमी
चिल्ला चिल्लाकर बता रहा था
आज दूसरा दिन हुआ है
मंदिर को खुले और
हिंसा फिर होने लगी है
मुझे उसकी बात पर हॅसी सी आयी
तभी पुलिसवाले ने मेरी तरफ निगाह घुमायी
और बोला मिस्टर! तुम जानते थे इसे?
मैने कहा- जी नहीं,
तभी दूसरे ने लाश को
पलट दिया
लाश का चेहरा देखते ही मै सकपका गया
खून से लिपटी
कटे हाथों वाली वह लाश
किसी और की नहीं
मेरी अपनी ही तो थी?

शनिवार, 12 नवंबर 2011

आएगा कब 'लिटिल बच्चन ?'

आएगा कब 'लिटिल बच्चन ?'
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लगा कर के टकटकी सब
प्रतीक्षा में   लगे है   अब
जल्द आये वह मधुर क्षण
आएगा  जब 'लिटिल बच्चन'
अमित जी उत्सुक बहुत है
जया जी व्याकुल बहुत है
उल्लसित  अभिषेक जी है
प्रतीक्षा में  ये सभी है
मगन मन बेचेन श्वेता
आएगा  नन्हा चहेता
एश्वर्या दर्द पीड़ित
किये मन में प्यार संचित
राह पर है  प्रसूति की
एक नयी अनुभूति  की
ह्रदय में आनंद ज्यादा
बनेंगे अमिताभ दादा
और 'गुड्डी 'जया  दादी
खबर ने खुशियाँ मचा दी
टिकटिकी कर रही टक टक
धड़कने बढ़ रही   धक धक
प्रतीक्षा में है सभी जन
आएगा कब 'लिटिल बच्चन'
 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

अमृता प्रीतम की कविता और उनकी धरोहर को बचाने की अपील

अमृता प्रीतम जी का एक लोकप्रिय उपन्यास है ‘एक थी सारा’ इस उपन्यास के संबंध में अमृता जी ने अपनी जीवनी में लिखा था कि यह एक सच्ची कहानी थी उन्होंने सारा के साथ खतोकिताबत की बात भी स्वीकारी है और लिखा है सारा का पहला खत जो मुझे मिला 1980 में उस पर 16 सितम्बर की तारीख थी लिखा था अमृता बाजी! मेरे तमाम सूरज आपके। मेेरे परिन्दों की शाम भी चुरा ली गयी है आज दुख भी रूठ गया है कहते है फैसले कभी फासलों के सुपुर्द न करना!
मैने तो फैसला आज तक नहीं देखा
यह कैसी आवाजें हैं!
जैसे रात को जले कपडों में घूम रही हैं............
जैसे कब्र पर कोई आँखें रख गया हो!
मैं दीवार के करीब मीलों चली, और इन्सानों से आजाद हो गयी
मेरा नाम कोई नहीं जानता , दुश्मन इतने वसीह क्यूँ हो गये !
मैं औरत- अपने चाँद में आसमान का पैबन्द क्यूँ लगाऊँ?
मील पत्थर ने किसका इन्तजार किया!
औरत रात में रच गई है अमृता बाजी!
आखिर खुदा अपने मन में क्यूँ नहीं रहता!
आग पूरे बदन को छू गई है
संगे मील, मीलों चलता है और साकत है.....
मैं अपनी आग में एक चाँद रखती हूँ
और नंगी आँख से मर्द कमाती हूँ
लेकिन मेरी रात मुझसे पहले जाग गई है
मैं आसमान बेचकर चांद नहीं कमाती...........
खत हाथ में पकडा रह गया ... लगा ...आसमान फरोशों की दुनिया में यह सारा नाम की लडकी कहाँ से आ गई? तो इस दुनिया में कैसे जिएगी? चाहा इसे दिल में छिपा लूँ.......- और यह रही धूल धूसरित मकान की आज की सूरत स्व0 अमृता प्रीतम जी के निवास के25 हौज खास को बचाकर उसे राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संजोने के लिये अनेक साहित्य प्रेमियों द्वारा माननीय राष्ट्रपति भारतीय गणराज्य एवं दिल्ली सरकार से अनुरोध किया है। ऐसा विश्वास है कि इस मुहिम का असर अवश्य ही होगा । फिलहाल इस मुहिम में शामिल लोगों के प्रयासों का हाल लिंक के रूप में आप सबके साथ साझा कर रहा हूँ साथ ही यह भी उम्मीद करूँगा कि आप भी अपना अमूल्य सहयोग देकर इस मुहिम को आगे बढाते हुये महामहिम से इस प्रकरण में हस्तक्षेप का अनुरोध अवश्य करेंगें। कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें यहाँ महामहिम राष्ट्रपति जी का लिंक यहां है ।!!!!

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