सूनी सूनी है दिवाली
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जब से मइके गयी,पड़ी है मेरे दिल की बस्ती खाली
दीपावली आ गयी पर ना अब तक घर आई घरवाली
सूनी सूनी है दिवाली
थी आवाज़ पटाखे सी पर फिर भी लगती भली बड़ी थी
हंसती थी तो फूल खिलाती,मेरे दिल की फूलझड़ी थी
छोड़ा करती थी अनार सा,हंस कर खुशियों का फंव्वारा
जिसकी पायल की रुनझुन से ,गूंजा करता था घर सारा
जिसके हर एक इशारे पर,मै,चकरी सा खाता था चक्कर
वह चूल्हे चौके की रौनक,चली गयी है अब पीहर
महीने पहले चली गयी,मेरे घर की खुशियों की ताली
दीपावल आ गयी पर ना ,अब तक घर आई घरवाली
सूनी सूनी है दीवाली
कौन मुझे पकवान खिलाये,घेवर,फीनी,बर्फी,गुंझा
गृहलक्ष्मी ही पास नहीं फिर आज करूं मै किसकी पूजा
श्रीमती जी ,आ जाओ ना,दीप जला दो,मेरे दिल का
कुछ तो ख्याल करो रानीजी,अपने राजा की मुश्किल का
तुम मइके में मना रही होगी दीवाली खुश हो हो कर
मेरी आँखे,नीर भरी है,बाट तुम्हारी ,बस जो जो कर
देखो तुम्हारे विछोह में,मैंने कैसी दशा बना ली
दीपावली आ गयी पर ना अब तक घर आई घरवाली
सूनी सूनी है दीवाली
मदन मोहन बाहेती'घोटू'