तू ही लक्ष्मी शारदा, माँ दुर्गा का रूप |
जीव-मातृका मातु तू, प्यारा रूप अनूप ||
जीव-मातृका=माता के सामान समस्त जीवों का
पालन करने वाली सात-माताएं-
धनदा नन्दा मंगला, मातु कुमारी रूप |
बिमला पद्मा वला सी, महिमा अमिट-अनूप ||
शत्रु-सदा सहमे रहे, सुनकर सिंह दहाड़ |
काले-दिल हैवान की, उदर देत था फाड़ ||
देश द्रोहियों ने रचा, षड्यंत्रों का जाल |
सोने की चिड़िया उड़ी, गली विदेशी दाल ||
टुकड़े-टुकड़े था हुआ, सारा बड़ा कुटुम्ब,
पाक-बांगला-ब्रह्म बन, लंका से जल-खुम्ब ||
महा-कुकर्मी पुत्र-गण, बैठ उजाड़े गोद |
माता के धिक्कार को, माने महा-विनोद ||
कमल पैर से नोचकर, कमली रहे सजाय |
कमला बसी विदेश तट, ढपली रहे बजाय ||
तट = Bank
हाथ गरीबों पर उठा, मिटी गरीबी रेख |
पंजे ने पंजर किया, ठोकी दो-दो मेख |
मेख = लकड़ी का पच्चर / खूंटा
सिंह खिलौना फिर बना, खेले हाथी खेल |
करे महावत मस्तियाँ, मारे तान गुलेल ||
हँसुआ-बाली काटके, नटई नक्सल काट |
गैंता-फरुहा खोदता, माइंस रखता पाट |
माइंस रखता पाट, डाल देता दो पत्ती|
खड़ी पुलिस की खाट, बुझा दे जीवन-बत्ती |
लालटेन को ढूँढ़, साइकिल लेकर बबुआ |
मुर्गे जैसा काट, ख़ुशी से झूमें हँसुआ ||
बिद्या गई विदेश को, लक्ष्मी गहे दलाल |
माँ दुर्गा तिरशूल बिन, यही देश का हाल ||
जगह जगह विस्फोट-बम, महँगाई की मार |
कानों में ठूँसे रुई, बैठी है सरकार ||