एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

धोके बाजी 

क्या धोका देना ,किसी को परेशान करना ,झूठ बोलना .किसी की सरलता का फायदा उठाकर अपने को चतुर और दूसरे को बेवकूफ समझना ये हम इंसानों की फितरत है /और इससे  हम किसका भला कर रहे हैं /कुछ लोग इस तरह की हरकतें करते हैं और इस कारण सही जरुरत मंद इंसान की मदद करने में भी लोग विस्वास नहीं करते/
कुछ लोग बीमारी का बहाना बनाते हैं और लोगों की सहानुभूति क फायदा उठाते है परन्तु जब उनकी असलियत  का पता चलता है तो लोगों का विस्वास खो देते हैं /और फिर जो ब्यक्ति सच में बीमार होता है परन्तु धोका खाने के बाद लोग उसकी भी मदद करने में हिचकिचाते हैं /किसी की मदद करके उसको घर में काम करने के लिए रखो की चलो गरीब आदमी का भला हो जाएगा /परन्तु जब वो ही गरीब आदमी घर से चोरी करके या घर के लोगों को शारीरिक नुक्सान पहुंचाकर फरार हो जाता है /तो और गरीब की मदद करने के लिए इंसान फिर विस्वास नहीं कर पाता है /इसी  प्रकार  साधु सन्यासी के भेष में आकर लोगों को बेबकूफ बनाकर लूटने की घटना आये दिन होती रहती है तो इस कारण अब साधु सन्यासीओं पर कोई विस्वास नहीं करता /   
सड़क पर कई बार लोग दुर्घटना का नाटक कर कर लेट जाते हैं और गाडी वाला कोई भला आदमी गाडी रोककर उसकी मदद करने के लिए रूकता है तो उसके गैंग  के आदमी आकर उसको लूट लेते हैं और वो भला आदमी अच्छे काम के चक्कर में अपने धन के साथ साथ कई बार शारीरिक नुकशान सहने के लिए भी मजबूर हो जाता है /इस कारण अब सच में हुई दुर्घटना के कारण पड़े हुए आदमी को देखकर भी लोग अपनी गाडी नहीं रोकते की पता नहीं सच है की झूठ /जिस कारण कई बार समय पर इलाज नहीं होने के कारण घायल इंसान की जान भी चली जाती है / हमारी कानून ब्यवस्था भी ऐसी है की मदद करने वाला चाह कर भी इन सब झमेलों के कारण मदद नहीं कर पाता /फिर लोग इंसानियत की दुहाई देते हैं की लोगों में इंसानियत नहीं बची //
बीमारी का बहाना करके लोग मदद मांगते हैं /परन्तु जब मदद करनेवाले को ये पता लगता है की वो झूठ बोल रहा है उसे कोई बीमारी नहीं हैं वो तो धोका दे गया है /तो जो सही में बीमार है उसकी मदद करने में भी लोग हिचकचाते हैं की पता नहीं ये सच कह भी रहा है या नहीं /
ऐसे कई उदहारण मिल जायेंगे की अपने स्वार्थ और लालची प्रवृति के कारण इंसान इंसान को धोका दे रहा है .बेईमानी कर रहा है/परन्तु कुछ लोगों के ऐसा करने के कारण इंसान का इंसान से विस्वास उठ रहा है /लोग किसी की मदद करने में .भलाई करने में डरने लगे हैं /अच्छे लोग भी बुरे बनने लगे हैं /इसीलिए दुनिया में अच्छाई कम होने लगी है और बुराई बढ़ने लगी है /    
हमे अपनी सोच बदलने की जरूरत है /बदमाशी ,बेईमानी की जगह मेहनत करके पैसे कमाने की इच्छा रखना चाहिए /   कुछ लोगों की ऐसी हरकतों के कारण आज इंसान अपनों पर भी विस्वास करने में हिचकचाने लगा है /अगर इंसान ये समझ जाए तो इस दुनिया से काफी बुराई कम हो जायेगी /
इंसान इंसान से डरने लगा है 
एक दूसरे पर विस्वास कम करने लगा है 
अपनी बुरी प्रवृतियो को हमने नहीं बदला 
तो इस दुनिया में रहना मुश्किल होने लगा है  
  

बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

"पेड़ लगाओ, देश बचाओ !!"




"पेड़ लगाओ, देश बचाओ !!"

बहुत पुराना है नारा ;

हकीकतन इससे सबने

पर कर लिया किनारा |



वो औद्योगीकरण के नाम पे,

जंगल के जंगल उड़ाते हैं;

पेड़ काट के नई इमारतों का,

अधिकार दिए जाते हैं |



नीति कुछ ऐसी है-

"जंगल हटाओ, विकास रचाओ !" 

पर कहते हैं जनता से,

"पेड़ लगाओ, देश बचाओ !!"

मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011

आबो हवा


नहीं रहा अब
दुनिया पे यकीन,
भरोसे जैसी कोई
अब चीज कम है ;
बदल गये लोग
बदल गई मानसिकता,
बदल गई सोच
खतम हुई नैतिकता ;
हमने ही सब बदला
और कहते हैं आज
कि अच्छी नहीं रही
अब आबो हवा |

सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

दीपक बाबा की प्रेरणा से -- बक बक

दीपक बाबा की प्रेरणा से -- बक बक

निर्बुद्धि की जिन्दगी, सुख-दुःख से अन्जान |
निर्बाधित जीवन जिए,  डाले  न व्यवधान  ||

बुद्धिमान करता रहे , खाकर-पीकर मौज |
एकाकी जीवन जिए, नहीं  बढ़ाये  फौज ||
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUvz9teZpa2M2ixiaFOKLsfi-_I-frqZaTW9ifk8szYEoUlev-F7c5DEaI2M9fmhdTmdfuNJwLlxZ5AQ_jcQG_3btMO4eD1OuClyy8uQY4pLMjx-2hllO4koWwav4BuGG3ivyA10Snd75G/s1600/a_mayawati_0414.jpg
बुद्धिवादी परिश्रमी,  पाले  घर  परिवार |
मूंछे  ऐठें  रुवाब से,  बैठे  पैर  पसार  ||
बुद्धिजीवी  का  बड़ा, रोचक  है  अन्दाज |
जिभ्या ही करती रहे, राज काज आवाज ||
Former Chief Minister of Madhya Pradesh and Congress leader Digvijay Singh gestures during an interview, in New Delhi on March 26, 2009.
बुद्धियोगी  हृदय  से,  लेकर  चले समाज |
करे भलाई जगत का, दुर्लभ हैं पर आज ||
Anna Hazare and Mahatma Gandhi

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011

दस सिर सहमत नहीं रहे थे |

दस सिर सहमत नहीं रहे थे |

 लंका-नगरी बैठ दशानन त्रेता में मुस्काया था |
बीस भुजाओं से सिर सारे मन्द मन्द सहलाया था ||
सीता ने तृण-मर्यादा का जब वो जाल बिछाया था-
बाँये से पहले वाला सिर बहुत-बहुत झुँझलाया था |
ब्रह्मा ने बाँधा था ऐसा, कुछ  भी  ना  कर पाया था |
 असंतुष्ट  हो  वचन  सहे  थे |
दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
[2.jpg]
दहन देख दारुण दुःख लंका दूजा मुख गुर्राया था |
क्षत-विक्षत अक्षय को देखा गला बहुत भर्राया था |
अंगद के कदमों के नीचे तीजा खुब  अकुलाया था |
पैरों ने जब भक्त-विभीषण पर आघात लगाया था |
बाएं से चौथे सिर ने नम-आँखों, दर्द  छुपाया था-
भाई   ने   तो   पैर   गहे   थे |
दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
सहस्त्रबाहु से था लज्जित दायाँ वाला पहला सिर |
दूजे  ने  रौशनी  गंवाई  एक आँख  बाली  से घिर |
तीजा तो बचपन से निकला महादुष्ट पक्का शातिर |
मन्दोदरी से चौथा चाहे  बातचीत हरदम आखिर |
पर  सबके  अरमान  दहे  थे |
दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
File:Sita Mughal ca1600.jpg[bhrun-hatya_417408824.jpg]
शीश नवम था चापलूस बस दसवें की महिमा गाये |
दो पैरों  के, बीस  हाथ  के,  कर्म - कुकर्म  सदा भाये |
मारा रावण राम-चन्द्र ने, पर फिर से वापस आये |
नया  दशानन  पैरों  की  दस  जोड़ी  पर सरपट धाये |
दसों दिशा में बंटे शीश सब, जगह-जगह रावण छाये -
सब सिर के अरमान लहे थे |
दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/en/c/ce/Mohammed_Ajmal_Kasab.jpg Train inferno: Burning oil tankers after a tanker train caught fire following derailment near Chanmana village between
Aluabari and Mangurjaan railway stations in Kishanganj district of Bihar on Wednesday.

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-