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गुरुवार, 22 सितंबर 2011

श्राद्ध

श्राद्ध
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एक दिन बाद
बहू को आया याद
अरे कल था ससुरजी का श्राद्ध
आधुनिका बहू ने क्या किया
डोमिनोस को फोन किया
और एक पिज़ा पंडितजी के यहाँ भिजवादिया
ब्राहमण भोजन का ये मोडर्न स्टाइल था
दक्षिणा के नाम पर कोक मोबाइल था
रातससुरजी सपने में आये
थोड़े से मुस्कराए
बोले शुक्रिया
मरने के बाद ही सही,याद तो किया
पिज़ा अच्छा था,भले ही लेट आया
मैंने मेनका और रम्भा के साथ खाया
उन्हें भी पसंद आया
बहू बोली,अच्छा तो आप अप्सराओं के साथ खेल रहे है
और हम यहाँ कितनी मुसीबतें झेल रहे है
महगाई का दोर बड़ता ही जाता है
पिज़ा भी चार सो रुपयों में आता है
ससुरजी बोले हमें सब खबर है भले ही दूर बैठें है
लेट हो जाने पर डोमिनो वाले भी पिज़ा फ्री में देते है

गरीब घटाते हैं--

बत्तीसी दिखलाय के, पच्चीस कमवाय के

आयोग आगे आय के, खूब हलफाते हैं |

दवा दारु नेचर से, कपडे  फटीचर  से

मुफ्तखोर टीचर से,  बच्चा पढवाते  हैं |

सेहत शिक्षा मिलगै , कपडा लत्ता सिलगै

तनिक छत हिलगै,  काहे घबराते हैं ?

गरीबी हटाओ बोल, इंदिरा भी गईं डोल,

सरकारी झाल-झोल, गरीब  घटाते हैं ||

बुधवार, 21 सितंबर 2011

बीबी को खुश रख्खो

बीबी को खुश रख्खो
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जीवन में सुखी रहना है,
तो बीबी को खुश रख्खो
और जीवन का अमृत चख्खो
अगर वो थोड़ी काली है,
तो भी उसके रूप की तारीफ़ करते रहो
उसे चाँद का टुकड़ा कहो
पत्नी के प्यार पाने का ये सबसे अच्छा तरीका है
उसे क्या पता कि तुम उसे चाँद के ,
उस भाग का टुकड़ा कह रहे हो,
जहां काला धब्बा है
अगर वो खाना बनाती है
और रोटियां जल जाती है
तुम उससे बोलो कि देखो,
तुम्हारा रूप देख कर के,
रोटियां भी जल भुन जाती है
और यदि वो बहुत ज्यादा बक बक करती हो
तो कहो कि तुम्हारे प्यारे प्यारे होंठ,
जब पास पास रहते है तो,
तुम कितनी प्यारी लगती हो
भले छरहरी काय वाली महिलाओं को देख,
आपका मन फिसलता है
और आपकी पत्नी थोड़ी मोटी है
तो कहो भरा भरा मांसल बदन ,
कितना प्यारा लगता है
तुम कितनी सुढोल हो,कितनी सुहाती हो
भले ही सुढोल से आपका मतलब ,
'सु'याने कि अच्छा 'ढोल'
और सुहाती से,
'सु' याने कि अच्छा 'हाथी' हो
अपने मन कि भावनाएं भी खोलो
पर कुछ एसा मीठा  मीठा बोलो
कि विवाहित जीवन में अमृत घोलो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पूर्णतः सच्ची घटना से प्ररित कुछ पंक्तियाँ कविता

संभवतः वर्ष 1999 के जून माह का अवसर रहा होगा। मेरी तैनाती ऋषिकेश से 15 किलोमीटर दूर पर्वतीय जनपद टिहरी गढवाल की एकमात्र अर्द्धमैदानी तहसील नरेन्द्रनगर में थी। उत्तराखंड राज्य की घोषणा हो चुकी थी बस उसे अवतरित होना बाकी था। तत्कालीन भारत सरकार के प्रधानमंत्री महोदय का उत्तराखंड आना प्रस्तावित था जिसके लिये आसपास के सभी जनपदों से प्रशासनिक अधिकारियों को शान्ति व्यवस्था हेतु जिम्मेदारी सौंपी गयी थीं । मुझे भी एक ऐसी ही मीटिंग में भाग लेने हेतु देहरादून कलक्ट्रेट पहुंचना था।
प्रातः जल्दी उठा और सरकारी कारिन्दों के साथ सरकारी जीप से देहरादून के लिये चल पड़ा। ऋषिकेश से कुछ किलोमीटर आगे बढ़ने पर थोड़ा सा रास्ता जंगल से होकर गुजरता था । इसी जगह पहँच कर देखा आगे रास्ते पर भारी भीड खडी है। सरकारी जीप को आते देखकर भीड़ इस आशय से किनारे हो गयी कि शायद पुलिस आ गयी है। कैातूहलवश जीप रोकवा कर मैं भी उतर पडा और भीड को लगभग चीरता हुआ आगे बढ आया। देखा सड़क से पचास मीटर दूर जंगल की अंदर एक युवती की अर्द्वनग्न लाश पड़ी थी।
आसपास एकत्रित भीड किसी मदारी के सामने खड़े तमाशबीनों की तरह उस लाश को देख रही थी। मैने आगे बढकर देखा युवती लगभग इक्कीस वर्ष की थी उसके शरीर पर छींटदार सूट और गले में रंगीन दुपट्टा था। गौरतलब बात यह थी उसके दाँये हाथ की कलाई पर ड्रिप के माध्मम से दवा, ग्लूकोस आदि चढ़ाये जाने वाली नली लगी थी। पास ही ऐक अधचढ़ी ड्रिप और नली भी पड़ी थी। युवती के शरीर केे निचले हिस्से केा देखने से स्पष्ठ प्रतीत होता था कि वहा गर्भवती थी। यह स्पष्ट था कि अनचाहे गर्भ से निजात पाने के दौरान किसी गंभीर काप्लिकेशन के कारण ही उसेकी मृत्यु हुयी थी और उसका तीमारदार अपनी जान छुड़ाकर उसे इस तरह छोड़कर भाग गया होगा। मैने आगामी कार्यवाही के लिये स्थानीय पुलिस को फोन किया और अपनी जीप से आगामी कार्यक्रम के लिये चल पड़ा।
परन्तु उस युवती की यह दशा देखकर मैं व्यथित हो गया था । वह युवती मेरे मष्तिश्क से जाने का नाम ही नहीं लेती थी , मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रही थी , वह जैसे मेरी जीप में आकर ही बैठ गयी थी । परन्तु उस युवती की यह दशा देखकर मैं व्यथित हो गया था ।
वह युवती मेरे मष्तिश्क से जाने का नाम ही नहीं लेती थी , मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रही थी , वह जैसे मेरी जीप में आकर ही बैठ गयी थी । मै सोचने लगा कि आखिर किसी की प्रेमिका रही होगी वह ? प्रेम के वशीभूत अपने प्रेमी के आलिंगन में बंधने को कैसी आतुर रही होगी वह ?
और उस सम्मोहक आलिंगन की परिणति इस रूप में होगी, क्या कभी उसने सोचा होगा ? नहीं ना! बस इसी पृष्ठभूमि में उस नवयौवना को श्रंद्धांजलि स्वरूप कुछ पंक्तियाँ लिखीं थी जो समर्पित थीं उस प्रारंभिक निश्छल आलिंगन को, और उस इक्कीसवें बसंत को जो चाहकर भी अगली बहार या पतझड़ नहीं देख सकी थी।
वह श्रंद्धांजलि पूर्व में ‘साहित्य शिल्पी’ के संस्करण में कविता ‘इक्कीसवाँ बसंत’ के नाम से जारी हुयी है जिसे आज यहाँ पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ।
इक्कीसवॉ बसन्त
तपते रेगिस्तान में
पानी की कामना जैसी
धुप्प अंधेरे में
रोषनी की किरण फूटने जैसी
मॉ से बिछडे हुए
किसी अबोध का मिलने पर
मॉ की छाती से चिपककर रोने जैसी
मंझधार में डूबते हुए को
किनारा पाकर मिलने वाली संतुश्टि जैसी
कुछ ऐसी ही तो थी
उस इक्कीसवें बसंत की कल्पना
लेकिन यथार्थ की कठोरता
जब तमाचा बनकर
मेरे गालों पर पडीं
तब मैने जाना कि
चॉदनी रात कैसे आग उगलती है?
चंदन का आलिंगन
कितना जहरीला हो सकता है?
दिये की लौ
कैसे झुलसा सकती है?
प्रेम की आसक्ति
कितना लाचार कर सकती है?
चहचहाती चिडिया
एक पल में सहम कर
मौन हो सकती है
निरीह मेमना
मिमियाकर तुरंत निस्तेज हो सकता है
अगर वह भी
मेरी तरह किसी
कसाई के साथ हो
‘साहित्य शिल्पी’ पर पूरी कविता पढ़ने के लिए आगामी लिंक पर क्लिक करे ......... पूर्णतः सच्ची घटना से प्ररित कुछ पंक्तियाँ कविता

भूकंप


भूकंप 


कब  क्या  हो  जाए कुछ पता नहीं 
यहाँ इंसान की जिंदगी की कीमत कुछ नहीं |
 आम इंसान बम विस्फोट से,दुर्घटना से, नहीं तो भूकंप के झटकों से मर जाता है 
चार दिन हल्ला मचता है .और फिर सब शांत हो जाता है | 
ना कोई बाद में उसके बारे में सोचता है,ना रोकने का उपाय करता है 
जिसके घर का कोई प्रभावित होता है वो ही परिवार रोता रह जाता है |
हम सदभावना रैली के नाम पर, कॉमनवेअल्थगेम के नाम पर करोडो खर्च कर देतें हैं |
परन्तु ऐसी दुर्घटनाएं रोकने के लिए कोई उपाय नहीं करतें है | 
आम आदमी मरे तो मरे, कुछ रुपये देने की घोषणा कर देते हैं 
और अपने कर्त्तव्य से इतिश्री कर लेते हैं  |
अगर जापान जैसी तीव्रता लिए कोई भूकंप आ गया 
तो हमारा देश की आधे से ज्यादा छेत्रों को प्रभाबित कर जाएगा |
और पता नहीं कितनी जनसंख्या और सम्पति को नष्ट कर जाएगा 
जान माल की हानि के साथ राष्ट्रीय सम्पति का भी नाश होगा |
परन्तु इसके बारे मैं कोई नहीं सोच रहा ,ना ही भूकंप निरोधी इमारतें बना रहा 
सडकों के हाल ,ट्रेफिक का हाल ,रेलों के हाल बद से बदतर हो रहा |
इसी कारण दुर्घटनाओं से कितने ही जान माल का नुक्सान हो रहा 
आम आदमी इन सब त्रासदी से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा या मर रहा| 
इनके सुधार पर हर साल करोडो रुपया  सरकार दे रही 
.परन्तु ये आधे से ज्यादा सुधार की जगह लोगों की जेबें भर रही |
भ्रष्टाचार ने इस देश का सत्यानाश कर दिया 
वोट की राजनीति ने नेताओं कोअपनी अपनी पार्टियों तक सीमित कर दिया |
इस देश की है बस यही है  विडम्बना ,की यहाँ है "प्रजातंत्र" 
इसलिए अब नहीं इस देश में बचा है कोई "तंत्र"| 
देश की नहीं हर नेता को बस अपनी कुर्सी की पड़ी है 
जनता बेवकूफ बनी देश का नाश इन नेताओं द्वारा होते देखती खड़ी है |
एक हो गयें हैं चोर -सिपाही, देश की हो रही तबाही |  
काश कोई ऐसा भूकंप आये जो इस भ्रष्टाचार रुपी इमारत को ही गिरा जाए 
देश में भीतर तक फैली इसकी जड़ों को पूरी तरह हिला जाए |
मिट जाए इसका नामो -निशान,देश हमारा बन जाए महान |
फिर तो चारों तरफ होगा खुशियों का साम्राज्य 
लोट आयेगा रामराज्य  |
        

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