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शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

मेहमान का सत्कार

मेरे एक मित्र ने बात चीत में यह बताया कि वह किसी रिश्तेदार  के घर ,रात्रि विश्राम के लिए गये थे।

शेष उनके अनुभव कुछ ऐसे थे। 


।।।।।मेहमान का सत्कार।।। 


बात चीत होगी जी भरकर। 

पहुंचा था मैं यही सोचकर। 

कुशल क्षेम जल पान हुआ। 

भोजन का निर्माण हुआ। 


बैठक कक्ष में खुल गया टी0वी0।

साथ-साथ बैठ गये तब हम भी।

सब के हाथ तब फोन आ गया। 

टी0वी0 का आभाष चला गया। 


सब टप-टप करने लगे फोन पर। 

किसकी किसको सुध वहां पर? 

व्यक्ति पांच पर सभी अकेले। 

थे गुरु को हाथ उठाये चेले।


सब दुनिया से बेखबर वे। 

भ्रांति लोक में पसर गये वे। 

मन ही मन वे कभी मुस्कराते। 

कभी मुख भाव कसैला लाते। 


फिर मैंने भी फोन उठाया। 

भ्रांति लोक में कदम बढाया। 

पल ,मिनट,घंटे बीत गये। 

यहां किसी को सुध नहीं रे। 


तभी किसी का फोन बज उठा। 

अनचाहे वह कान में पहुंचा। 

बात हुई कुछ झुंझलाहट में। 

नजर गयी दीवाल घडी़ में। 


रात्रि के दस बज गये थे। 

शीतल सब पकवान पेड़ थे।  

इतनी जल्दी दस बज गये। 

व्यन्जन सारे गर्म किये गये


खाना खाया फिर सो गये। 

सुबह समय से खडे हो गये। 

फिर मैं अपने घर आ गया। 

सत्कार मेरे ह्रदय छा गया। 




।।।विजय प्रकाश रतूडी़।।।

शनिवार, 4 जनवरी 2025

मेरे महबूब न मांग 

मुझसे पहले सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग 

बड़े जलते हुए अंगारे थे हम जवानी में 
लगा हम आग दिया करते ठंडे पानी में
 नहीं कुछ रखा हैअब बातें इन पुरानी में

 ऐसी जीवन में बुढ़ापे में अड़ा दी है टांग 
मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग 

गए वह दिन जब मियां फाख्ता मारा करते आती जाती हुई लड़कियों को ताड़ा करते 
अब तो जो पास में है उससे ही गुजारा करते

पड़े ढीले ,मगर मर्दानगी का करते स्वांग 
मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग

हर एक बॉल पर हम मार देते थे छक्का  
हमारा जीतना हर खेल में होता पक्का
मगर इस बुढापे ने हमे कहीं का ना रक्खा 

जरा सी दूरी तक भी अब न लगा सकते 
छलांग 
मुझसे पहले सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग 

हमारे साथ नहीं सबके साथ यह होता 
अपनी कमजोरियों से करना पड़ता समझौता 
आदमी अपनी सारी चुस्ती फुर्ती है खोता 

हरकतें करने लगता बुढ़ापे में ऊट पटांग 
मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग

मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 28 दिसंबर 2024

दिव्य प्रेम


दिव्यन और अनुष्का ,रहे प्रेम रस भीज 

दिव्य अणु है प्रेम का, इन दोनों के बीच 

इन दोनों के बीच , बंधा है बंधन ऐसा 

गहरा प्यार ,मिलन स्थल सागर के जैसा 

देते आशीर्वाद तुम्हें है घोटू दादा 

सदा करें ये प्यार, एक दूजे से ज्यादा 


इनका जीवन हमेशा, रहे सुखी संपन्न 

एक दूजे के साथ ये, हरदम रहे प्रसन्न 

हरदम रहे प्रसन्न , प्रार्थना यह ईश्वर से

इनके जीवन में खुशियां ही खुशियां बरसे

चहुमुखी करें विकास,हृदय से हम सब चाहे 

सोने की सीढ़ी, दादा घोटू चढ़ जायें 


मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 4 दिसंबर 2024

सपना

गांव भरा था लोगों से। 

लहलहा रहे थे खेत। 

हर आंगन में गाय बंधी थी। 

बैल बंधे थे धवल सफेद। 


कुछ घरों में मुर्रा भैंसें। 

खड़ी हुई थी खाती घास। 

बहुएं उनको नहलाती थी। 

अंदर चुल्हा करती सास। 

बच्चों की किलकारी रह रह। 

मिश्री घोले कान में। 


सबके अपने खेत हैं। 

आम के पेड़ अमरुद के बाग। 

अपनी क्यारी फुलवारी है। 

सब्जी घर की घर का साग। 


घर के अंदर हर बर्तन। 

भरा हुआ है दालों से। 

ठूंस ठूंस कर कुठार भरे हैं। 

नाज झंगोरा दानों से। 

कुछ और ड्रम रखे हैं। 

उनमें मंडवा भरा पडा। 

इस औषधीय सतनाजे से। 

कमरा कमरा भरा पड़ा। 


कुछ तोमडे रखे हुए हैं। 

भरे तिल भंगजीर से। 

कुछ कमोले भरे लवालव। 

घर के देशी घी से। 


बाहर आंगन में है सबके। 

एक एक चुल्हा बना हुआ। 

दाल का भड्डू सुबह से ही। 

उसके ऊपर चढा हुआ। 


खाने वाले हर चुल्हे पर। 

दस बारह से नहीं हैं कम। 

तीन पीढियां साथ में रहती। 

बडे प्यार से तो क्या गम? 


स्वर्ग सी अनुभूति हुई थी। 

प्रेम नहीं तो स्वर्ग नहीं। 

शायद अतीत की थी यादें। 

यादें थीं यह स्वप्न नहीं। 

नींद खूली तो कुछ विश्वे के। 

घर में था मैं पडा हुआ। 

मैं मेरी पत्नी दो बच्चे। 

बाहर पेपर वाला खड़ा हुआ। 


शब्दार्थ।। कुठार =काठ या लकडी के बडे संदूक।। तोमडे =बीज के लिए संभाली लौकी का खोल।। कमोले =लघु घडे। 


।। खोया पाया से।। विजय प्रकाश रतूडी।

सोमवार, 25 नवंबर 2024

वह बहन हमारी चली गयी

जो सबकी बड़ी दुलारी थी

हम भी बहन की प्यारी थी

धार्मिक थी ,पर उपकारी थी

           वह बहन हमारी चली गयी

थी समझदार,सुलझे विचार

सबके प्रति मन में भरा प्यार

पाये थे अच्छे संस्कार

           वह बहन हमारी चली गयी

जिसने पग पग संघर्ष किया

पूरा जीवन आदर्श जिया

ऊंचे पद पर उत्कर्ष किया

          वह बहन हमारी चली गयी 

जनसेवा का व्रत था मन में

थी भरी हुई ऊर्जा तन में 

थी सदा यशस्वी जीवन में

           वह बहन हमारी चली गयी

सामाजिक जीवन रहा सदा

चेहरा रहता मुस्कान लदा

हो गयी सदा के लिए बिदा

           वह बहन हमारी चली गयी

प्रभु यही प्रार्थना,यही आस 

निज चरणों में दे उसे वास

वो पाये मोक्ष का दिव्य प्रकाश

          वह बहन हमारी चली गयी


मदन मोहन बाहेती घोटू



गुरुवार, 29 अगस्त 2024

मेरी बीबी, मेरी बीबी


मेरी बीबी,मेरी बीबी,

बड़ी ही प्यारी बीबी है 

मैं उसका प्यारा शौहर हूं 

यह मेरी खुशनसीबी है 


बड़ा ही स्वीट है नेचर 

मिलती जुलती है मस्काकर 

सभी की सहायता करने ,

हमेशा रहती है तत्पर 

मुस्काती ,मृदु भाषी ,

बड़ी ही सादी ,सीधी है 

मेरी बीबी ,मेरी बीबी

बड़ी ही प्यारी बीबी है 


सवेरे जब मैं उठता हूं 

तो झट से चाय है हाजिर 

प्लेट में काट करके फल 

खिलाती है वह मुझको फिर 

नहा कर जब निकलता

 नाश्ता तैयार रखती है 

मेरी बीवी मेरी बीवी 

बड़ी ही प्यारी बीवी है 


कभी जब टूट मैं जाता 

मुझे ढाढस बंधाती है 

कभी जब रूठ मैं जाता 

प्यार से वह मनाती है 

मेरे हर दर्द पीड़ा में ,

वो मेरा मेरा ख्याल रखती है 

मेरी बीवी मेरी बीवी 

बड़ी ही प्यारी बीवी है 


मेरे सुख में खुश रहती 

मेरे दुख में वो शामिल है  

प्रार्थना करती है मुझ पर

आए ना कोई भी मुश्किल 

बड़ी कोमल हृदय वाली 

मेरी सबसे करीबी है 

मेरी बीवी मेरी बीवी 

बड़ी ही प्यारी बीवी है 


मदन मोहन बाहेती घोटू

बुढ़ापे का कम्युनिकेशन 


इस बढ़ती हुई उम्र में यूं ,

कम हुआ हमारा कम्युनिकेशन 

कुछ गला हमारा बैठ गया ,

कुछ तुम भी ऊंचा सुनने लगे 


पहले जब भी हम लड़ते थे 

तो बोलचाल बंद हो जाती 

पर अब तो ऐसा लगता है 

हम रोज-रोज ही लड़ने लगे 


इस तरह खत्म है भूख हुई 

एक रोटी में पेट भर जाता 

या तो तुम पकाना भूल गई 

या फिर हम भूल गए खाना 


पहले तुम करती थी  फॉलो

अब हम करते तुमको फॉलो 

तुम कहती इस रस्ते पर चलो 

उसे रास्ते पर पड़ता जाना 


जितना तुम से बन सकता है 

तुम सेवा हमारी करती हो,

बढ़ता जा रहा दिनों दिन है 

हमने और तुममें अपनापन 


 मैं जीता सहारे तुम्हारे 

तुम जीती मेरे सहारे हो

देखो वृद्धावस्था लाई ,

जीवन में कितने परिवर्तन 


एकदूजे का एकदूजे बिन,

अब बिलकुल काम नहीं चलता 

अब प्यार हमारा या झगड़ा 

थमता है इस स्टाइल में 


हम एक दूजे से मुंह फेरे,

इस तरह रूठते रहते हैं,

तुम खुश अपने मोबाइल में 

मैं खुश अपने मोबाइल मे


मदन मोहन बाहेती घोटू

सोमवार, 12 अगस्त 2024

बूढ़े बुढ़िया और बुढापा 


देखो बूढ़ा अपनी बुढ़िया ,

को किस तरह सताता है 

काम धाम कुछ भी ना करता,

केवल जुबां हिलाता है 


जब से हुआ रिटायर घर में 

रहता बैठा ठाला है 

दिन में सात आठ बार चाहिए ,

उसे चाय का प्याला है 


थोड़ा बरसाती मौसम हो 

पकौड़ियां तलवाता है 

या स्विग्गी से मंगा समोसे 

चुपके-चुपके खाता है 


कभी चाहिए दही पापड़ी ,

छोला और भटूरा है 

आलू टिक्की, पानी पूरी 

का भी आशिक पूरा है 


गाजर हलवा, गरम जलेबी,

 खाना बहुत सुहाता है 

स्वीट टूथ है देख मिठाई 

मुंह पानी भर लाता है 


हालांकि यह सब खाने की 

लगी हुई पाबंदी है 

फिर भी आंख चुरा खाने की 

उसकी आदत गंदी है 


 सुबह-सुबह अखबार चाटता 

देख सीरियल टीवी में 

दिनभर की मिल गई सेविका 

उसको अपनी बीवी में 


हाथों में हर दम मोबाइल 

व्हाट्सएप पर चैट करें 

देर रात तक रहे जागता 

सोने में भी लेट करें 


कभी बोलना सर दुखता है 

थोड़ा तेल लगा दो तुम 

कभी बोलना दर्द पांव में 

थोड़े पैर दबा दो तुम 


कभी बैठकर बीते किस्से 

दोनों याद किया करते 

हर फंक्शन में ,दोनों सज कर 

खुलकर भाग लिया करते 


बुढ़िया बूढ़े को सहती है 

बूढ़ा बुढ़िया को सहता 

पूरा दिन भर एक दूजे का 

ख्याल हमेशा पर रहता 


कभी रूठना ,कभी झगड़ना

 मान मनौव्वल कभी-कभी 

बहुत अधिक भावुक हो करके 

रोने के पल कभी कभी 


दोनों में से पहले कौन 

जाएगा यह चिंता करना 

कैसे गुजरेगा एकाकी 

जीवन सोच सोच डरना 


कहता  जितना जीवन जीना 

क्यों ना मस्ती मौज करें 

मौत आनी है ,आएगी ही

उससे क्यों हर रोज डरें 


इस जीवन के बचे कुचे दिन 

शान रहे और ठाठ रहे 

इसी तरह मिल बूढ़े बुढ़िया 

वृद्धावस्था काट रहे


मदन मोहन बाहेती घोटू 

 

शनिवार, 10 अगस्त 2024

बूढ़ों की लोरी 


बिस्तर पर लेटें हैं बूढ़ा और बुढ़िया

 इनको सुलाने को आ जा तू निंदिया 


कभी दौरा खांसी का बुढिया को आता  

तो बूढ़ा उठ कर के पानी पिलाता 

कभी दर्द बूढ़े के पैरों में आया

पेनबाम बुढिया ने झट से लगाया 

कभी याद करते पुरानी वो बातें 

लाख जतन करते, सो नहीं पाते 

कैसे भी इनको ,सुला जा तू निंदिया 

इनको सुलाने को आजा तू निंदिया 


बूढ़ा उठ के बार बार बाथरूम जाता 

तकिए को बाहों में अपनी दबाता 

करवट बदलते ही रहते हैं दोनों 

बस ऐसे जगते ही रहते हैं दोनों 

कभी  पाठ हनुमान चालीसा करते 

कभी राम का नाम रह रह के जपते 

इनको भी सपने दिखा जा तू निंदिया इनको सुलाने आ जा तू निंदिया 


मदन मोहन बाहेती घोटू

कैसे मानू


 कैसे बात तुम्हारी लूं मैं मान जी 

शिवजी के हैं अवतार हनुमान जी 


प्रभु प्रकटे जब बन कर राम 

शंकर आए बन हनुमान 

रहे पहाड़ों में शिव शंकर 

तरु शाखा पर रहते वानर 

वानर नग्न ,मगर वाघांबर

शिवजी का परिधान जी 

कैसे बात तुम्हारी लूं मैं मान जी 

शिवजी के है अवतार हनुमान जी 


भूत पिशाच  शिवा के संगी 

इन्हें भगाए पर बजरंगी 

भूत पिशाच निकट नहीं आवे 

महावीर जब नाम सुनावे 

मुंडमाला को धारण करते

हैं शंकर भगवान जी 

कैसे बात तुम्हारी लूं मैं मान जी 

शिवजी के हैं अवतार हनुमान जी 


रावण शिव का भक्त परम था 

शिव के कारण उसमें दम था 

किंतु राम का वह दुश्मन था 

सीता जी का किया हरण था 

और राम के सच्चे सेवक,

सदा रहे हनुमान जी 

कैसे बात तुम्हारी लूं मैं मान जी 

शिवजी के हैं अवतार हनुमान जी 


शिवजी ने दो ब्याह रचाये 

ब्रह्मचारी हनुमान कहाये 

शिवजी चलते हैं नंदी पर 

डाल डाल पर उछले वानर 

एक तपस्वी,एक उपद्रवी

 कुछ भी नहीं समान जी 

कैसे बात तुम्हारी मैं लूं मान जी 

शिव जी के हैं अवतार हनुमान जी 


मदन मोहन बाहेती घोटू

हम हैं भक्त शिव शंकर के 


तेजोमय शिव प्रचंड 

मस्तक पर है त्रिपुंड 

और पुत्र वक्रतुंड जानिए 


पहने हैं वाघांबर 

चंद्र सुशोभित है सर 

ऐसे हैं गंगाधर मानिए 


गले पड़ी सर्पमाल 

और भाल है विशाल 

नंदी पर हैं सवार पहचानिए 


डमरू स्वर डम डम डम 

संग त्रिशूल है हरदम 

भोले को बम बम पुकारिए 


प्रकटी है गंगा जिनके सर से 

हम तो भगत है शिव शंकर के 

हर कोई बोले ,बम बम भोले 

प्रेम से बोले,बम बम भोले 


शिव शंकर  अविनाशी 

काशी के भी वासी 

भव्य तेज राशि ,पर भोले हैं 


उनसे हर कोई डरे 

यह तांडव नृत्य करें 

नेत्र तीसरा जब भी खोले हैं 


हिल जाते भू अंबर 

बन जाते प्रलयंकर 

आंखों से बरसाते शोले हैं 


जब हो जाते प्रचंड 

कर देते खंड-खंड 

शांत हो के फिर बनते भोले है


जिसे सब रहते हैं डर-डर के 

हम है भगत शिव शंकर के

 हर कोई बोले , बम बम भोले 

 प्रेम से हर बोले,बम बम भोले 


मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 7 अगस्त 2024

व्यथा कथा


आओ तुम्हे सुनाएं यारों,

अपनी व्यथा कथा 

अब ये कथा व्यथा या सुख की,

 देना मुझे बता 


जिस लड़की पर भी दिल आया ,उसने हमको घास न डाली 

मुश्किल से मिल पाई बीवी, 

थोड़ी ठिगनी ,थोड़ी काली 

कामकाज में बड़ी निपुण थी ,

लेकिन थी तो काली कोयल 

उसे साथ में लेकर जाकर ,

कभी न हम हो पाए सोशल 


दोस्त पत्नियां सब थी सुंदर

मिलती जुलती रहती सज कर 

और पत्नी थी होशियार पर 

रहे किचन में घुसी सदा 

आओ तुम्हें सुनाए यारों 

अपनी व्यथा कथा 


पाक कला में वो प्रवीण थी

स्वाद भरे पकवान खिलाती  

सास ससुर की करती सेवा,

हम पर ढ़ेरों प्यार लुटाती 

साफ और सुथरा रखती घर को 

हरदम सुंदर और सजा कर 

मेहमानों का स्वागत करती 

हरदम खुश हो और मुस्काकर 


गुण उसमें कितने ही भरे थे 

सब उसकी तारीफ करे थे 

मैं मूरख काले रंग को ले ,

व्यंग मारता रहा सदा 

आओ तुम्हें सुनाए यारों 

अपनी व्यथा कथा 


गोरी पत्नी सदा सताती 

होती है फैशन की मारी 

उसके साज श्रृंगार को लेकर

खर्चे होते भारी-भारी 

सास ससुर आंखों में चुभते 

नहीं कोई  मेहमान सुहाते

नहीं पकाना आता अक्सर 

होटल से खाना मंगवाते 


उसके नखरे से सहते सहते 

पतिदेव टेंशन में रहते 

काली बीवी पाकर जीवन,

 सदा खुशी से  रहे लदा 

आओ तुम्हें सुनाये यारों 

अपनी व्यथा कथा


मदन मोहन बाहेती घोटू

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