मैं और मेरी रजाई
मैं और मेरी रजाई
अक्सर ये बातें करते है ,
तुम ना होती तो क्या होता
मैं सरदी में कैसे सोता
बैठ धूप में दोपहरी तो
जैसे तैसे कट भी जाती
ठिठुरन भरी सर्द रातों में,
नींद मुझे पर कैसे आती
नरम ,मुलायम और रेशमी ,
ये कोमल आगोश तुम्हारा
जैसे चाहूँ ,तुम्हे दबा लूँ ,
पर रहना खामोश तुम्हारा
नहीं तकल्लुफ हममें तुममें ,
हुआ प्यार का है समझौता
मै और मेरी रजाई ,
अक्सर ये बातें करते है ,
तुम ना होती तो क्या होता
तभी रजाई ,हुई रुआंसी ,
करी शिकायत ,कसक कसक के
क्यों ये झूंठा प्यार दिखाते ,
तुम हो यार बड़े मतलब के
तुम्हारा ये प्यार मौसमी ,
मौसम बदला ,तुम बदलोगे
नहीं सुहाउंगी मै तुमको ,
दबा मुझे बक्से में दोगे
मैं बरसों तक साथ निभाती ,
लेकिन प्यार तुम्हारा थोथा
मैं और मेरी रजाई,
अक्सर ये बातें करते है ,
तुम ना होती तो क्या होता
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मैं और मेरी रजाई
अक्सर ये बातें करते है ,
तुम ना होती तो क्या होता
मैं सरदी में कैसे सोता
बैठ धूप में दोपहरी तो
जैसे तैसे कट भी जाती
ठिठुरन भरी सर्द रातों में,
नींद मुझे पर कैसे आती
नरम ,मुलायम और रेशमी ,
ये कोमल आगोश तुम्हारा
जैसे चाहूँ ,तुम्हे दबा लूँ ,
पर रहना खामोश तुम्हारा
नहीं तकल्लुफ हममें तुममें ,
हुआ प्यार का है समझौता
मै और मेरी रजाई ,
अक्सर ये बातें करते है ,
तुम ना होती तो क्या होता
तभी रजाई ,हुई रुआंसी ,
करी शिकायत ,कसक कसक के
क्यों ये झूंठा प्यार दिखाते ,
तुम हो यार बड़े मतलब के
तुम्हारा ये प्यार मौसमी ,
मौसम बदला ,तुम बदलोगे
नहीं सुहाउंगी मै तुमको ,
दबा मुझे बक्से में दोगे
मैं बरसों तक साथ निभाती ,
लेकिन प्यार तुम्हारा थोथा
मैं और मेरी रजाई,
अक्सर ये बातें करते है ,
तुम ना होती तो क्या होता
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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