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बुधवार, 14 अगस्त 2019

इंसान और जानवर

हे भगवान !
आपने तो बनाकर भेजा था मुझे इंसान
पर ये संसार ,जो मेरा सगा है
मुझे बार बार जानवर बनाने में लगा है
जब मैं पैदा हुआ ,मुझे देखने लोग आते थे
अपनी गोदी में उठाते थे
और कहते कितना मासूम और अच्छा है
एकदम लगता 'खरगोश 'का बच्चा है
कोई कहता देखो मुंह खोलता है ऐसे
'चिड़िया' का बच्चा मुंह खोलता हो जैसे
वो जब मुझसे बातें करते तो मैं ,
गर्दन हिला कर करता था हूँ हूँ
तो लोग कहते कैसा कर रहा है ,
'कबूतर' सा गुटर गू
फिर मैं बड़ा हुआ ,स्कूल जाने लगा
पाठ वाठ याद नहीं रहता ,
तो गुरूजी को मुझमे 'गधा' नज़र आने लगा
बार मुझे गधा कहते थे
पर जब सजा देते थे तो 'मुर्गा 'बना देते थे
गणित की लंगड़ी भिन्न का हल ,
जब मेरी समझ में नहीं आता था
तो मुझे 'उल्लू' की उपाधि से नवाजा जाता था
और घर पर
मेरी दादी मुझे कहती थी नटखट' बंदर '
घर पर मेरी माँ भी मुझे थी समझाती
पर पढ़ाई की बात मेरी समझ में थी नहीं आती
माँ की खीज देख पिताजी कहते ,
क्यों हो 'भैंस' के आगे बीन बजाती
स्कूल के दोस्त
सब मिल मेरे साथ केन्टीन जाते थे
मस्ती से समोसे खाते  थे
और पेमेंट के समय मुझे 'बकरा ' बनाते थे
जवानी में आशिक़ हो फूल जैसी लड़कियों पर
काटता था जब उनके इर्दगिर्द चक्कर
दोस्त कहते क्यों 'भँवरे ' की तरह मंडराते रहते हो
लड़कियों के आगे पालतू 'कुत्ते 'की तरह ,
दुम हिलाते रहते हो
खैर जैसे तैसे 'कछुवे ' की चाल से ,
मैंने पूरी की अपनी पढाई
और किसी की रिकमंडेशन से ,
एक अच्छी नौकरी भी पाई
फिर शादी की ,गृहस्थी बसाई
और गृहस्थी चलाने को ,
कोल्हू के' बैल 'की तरह ,
दिनरात चक्कर काटता रहा
दफ्तर में 'शेर 'बन कर ,
अपने मातहतों को डाँटता रहा
पर घर जाकर हालत हो जाती थी पिलपिल्ली
बीबी के आगे बन जाता था भीगी 'बिल्ली'
रोज रोज की मुश्किलों से होता रहता था गुथ्थमगुथ्था
न घर का रहा न घाट का ,
बन गया धोबी का' कुत्ता '
अब  भी जब कभी कभी ,
गर्म जलेबी या पकोड़े खाता हूँ
तो बीबी की फटकार पाता हूँ
क्यों बहशी की तरह इतना खा रहे हो
जरा ध्यान दो, 'हाथी' की तरह फूलते  जा रहे हो
अब आप ही देखलो भगवान् ,
मेरे साथ कितनी ज्यादती हो रही है ,
जो मेरा दिल दुखाती है
बार बार मेरी तुलना जानवरों से क्यों की जाती है ?

मदन मोहन  बाहेती 'घोटू '


 

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