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बुधवार, 31 जनवरी 2018

दूर की सोचो 

भले तितलियाँ आये ,फुदके हजारों ,
भले सैकड़ों ही भ्रमर  गुनगुनाये 
मधुमख्खियों को न दो पर इजाजत ,
कभी भूल कर भी ,चमन में वो आये 
ये आकर के चूसेगी पुष्पों के रस को ,
दरख्तों की डालों  पर छत्ते बनेगें 
मज़ा हम महक का उठा ना सकेगें,
अगर शहद का हम जो लालच करेंगे 
इन्ही छत्तों से मोम तुमको मिलेगा ,
इसी मोम से बन शमा जब जलेगी 
कितने ही परवाने ,जल जल मरेंगे ,
बरबादियों  का सबब ये बनेगी  
इसी वास्ते आज बेहतर यही है ,
कोई मधुमख्खी यहाँ घुस न पाये 
हमेशा महकता रहे ये गुलिश्तां ,
सभी  की बुरी हम नज़र से बचाये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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