जवानी पर चढ़ गयी है सर्दियां
रात की ठिठुरन से बचने, भूल सब शिकवे ,गिले
शाम ,डर कर,उलटे पैरों,दोपहर से जा मिले
ओढ़ ले कोहरे की चादर ,धूप ,तज अपनी अकड़
छटपटाये चमकने को ,सूर्य पीला जाये पड़
हवायें जब कंपकंपाये ,निकलना मुश्किल करे
चूमने को चाय प्याला ,बारहां जब दिल करे
जेब से ना हाथ निकले ,दिखाये कन्जूसियाँ
पास में बैठे रहे बस ,लगे मन भाने पिया
लिपट तन से जब रजाई ,दिखाये हमदर्दियाँ
तो समझ लो ,जवानी पर,चढ़ गयी है सर्दियाँ
घोटू
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सोमवार, 31 दिसंबर 2012
बुधवार, 26 दिसंबर 2012
ख्वाब क्या अपनाओगे ?
प्रत्यक्ष को अपना न सके, ख्वाब क्या अपनाओगे;
हक खुद का लेने के लिए भी, हाथ बस फैलाओगे,
भीख मांगने के ही जैसा, हाथ जोड़ गिड़गिड़ाओगे |
बने कपड़े भी पहन न पाये, नए कहाँ सिलवाओगे |
दुनिया उटपटांगों की है, सहज कहाँ रह पावोगे,
हर हफ्ते तुम एक नई सी, चोट को ही सहलाओगे |
सारे घुन को कूट सके, वो ओखल कैसे लावोगे,
जीवन का हर एक समय, नारेबाजी में बिताओगे |
जीवन भर खुद से ही लड़े, औरों को कैसे हराओगे,
मौके दर मौके गुजरे हैं, अंत समय पछताओगे |
गमों को हंसी से है छुपाया, आँसू कैसे बहाओगे,
झूठ का ही हो चादर ओढ़े, सत्य किसे बतलाओगे |
सीख न पाये खुद ही जब, क्या औरों को सिखलाओगी,
बने हो अंधे आँखों वाले, राह किसे दिखलाओगे |
व्यवस्था यहाँ की लंगड़ी है, क्या लाठी से दौड़ाओगे,
बोल रहे बहरे के आगे, दिल की कैसे सुनाओगे |
हक खुद का लेने के लिए भी, हाथ बस फैलाओगे,
भीख मांगने के ही जैसा, हाथ जोड़ गिड़गिड़ाओगे |
लोकतन्त्र के राजा तुम हो, प्रजा ही रह जाओगे,
कृतघ्न हो जो वो प्रतिनिधि, खुद ही चुनते जाओगे |
मंगलवार, 25 दिसंबर 2012
कृष्ण हूँ मै
कृष्ण हूँ मै
बालपन में गोद जिसकी खूब खेला
छोड़ कर उस माँ यशोदा को अकेला
नन्द बाबा ,जिन्होंने गोदी खिलाया
और गोपी गोप ,जिनका प्यार पाया
फोड़ कर हांडी,किसी का दधि लूटा
बना माखन चोर मै ,प्यारा अनूठा
स्नान करती गोपियों के वस्त्र चोरे
राधिका संग ,प्रीत करके ,नैन जोड़े
रास करके,गोपियों से दिल लगाके
गया मथुरा ,मै सभी का ,दिल दुखाके
मल्ल युद्ध में,हनन करके ,कंस का मै
बना था ,नेता बड़ा ,यदुवंश का मै
और इतना मुझे मथुरा ने लुभाया
लौट कर गोकुल ,कभी ना लौट पाया
बन सभी से ,गयी इतनी दूरियां थी
क्या हुआ ,ये कौनसी मजबूरियां थी
रहा उन संग,अनुचित व्यवहार मेरा
अचानक क्यों,खो गया था प्यार मेरा
जो भी है ,ये कसक मन में आज भी है,
सुलझ ना पाया ,कभी वो प्रश्न हूँ मै
कृष्ण हूँ मै
और मथुरा भी नहीं ज्यादा टिका मै
जरासंध से हार भागा द्वारका मै
रुकमणी का हरण करके कभी लाया
सत्यभामा से कभी नेहा लगाया
कभी मै लड़ कर किसी से युद्ध जीता
उसकी बेटी ,बनी मेरी परिणीता
आठ पट रानी बनी और कई रानी
हर एक शादी की निराली थी कहानी
महाभारत का हुआ संग्राम था जब
साथ मैंने पांडवों का दिया था तब
युद्ध कौशल में बड़ा ही महारथी था
पार्थ रथ का बना केवल ,सारथी था
देख रण में,सामने ,सारे परिचित
युद्ध पथ से ,हुआ अर्जुन,जरा विचलित
उसे गीता ज्ञान की देकर नसीहत
युद्ध करने के लिए फिर किया उद्यत
और रणनीति बता कर पांडवों को
महाभारत में हराया कौरवों को
अंत,अंतर्कलह से ,लेकिन रुका ना,
था कभी उत्कर्ष पर यदुवंश हूँ मै
कृष्ण हूँ मै
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
बालपन में गोद जिसकी खूब खेला
छोड़ कर उस माँ यशोदा को अकेला
नन्द बाबा ,जिन्होंने गोदी खिलाया
और गोपी गोप ,जिनका प्यार पाया
फोड़ कर हांडी,किसी का दधि लूटा
बना माखन चोर मै ,प्यारा अनूठा
स्नान करती गोपियों के वस्त्र चोरे
राधिका संग ,प्रीत करके ,नैन जोड़े
रास करके,गोपियों से दिल लगाके
गया मथुरा ,मै सभी का ,दिल दुखाके
मल्ल युद्ध में,हनन करके ,कंस का मै
बना था ,नेता बड़ा ,यदुवंश का मै
और इतना मुझे मथुरा ने लुभाया
लौट कर गोकुल ,कभी ना लौट पाया
बन सभी से ,गयी इतनी दूरियां थी
क्या हुआ ,ये कौनसी मजबूरियां थी
रहा उन संग,अनुचित व्यवहार मेरा
अचानक क्यों,खो गया था प्यार मेरा
जो भी है ,ये कसक मन में आज भी है,
सुलझ ना पाया ,कभी वो प्रश्न हूँ मै
कृष्ण हूँ मै
और मथुरा भी नहीं ज्यादा टिका मै
जरासंध से हार भागा द्वारका मै
रुकमणी का हरण करके कभी लाया
सत्यभामा से कभी नेहा लगाया
कभी मै लड़ कर किसी से युद्ध जीता
उसकी बेटी ,बनी मेरी परिणीता
आठ पट रानी बनी और कई रानी
हर एक शादी की निराली थी कहानी
महाभारत का हुआ संग्राम था जब
साथ मैंने पांडवों का दिया था तब
युद्ध कौशल में बड़ा ही महारथी था
पार्थ रथ का बना केवल ,सारथी था
देख रण में,सामने ,सारे परिचित
युद्ध पथ से ,हुआ अर्जुन,जरा विचलित
उसे गीता ज्ञान की देकर नसीहत
युद्ध करने के लिए फिर किया उद्यत
और रणनीति बता कर पांडवों को
महाभारत में हराया कौरवों को
अंत,अंतर्कलह से ,लेकिन रुका ना,
था कभी उत्कर्ष पर यदुवंश हूँ मै
कृष्ण हूँ मै
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
कुछ तो ख्याल किया होता
कुछ तो ख्याल किया होता
जिनने जीवन भर प्यार किया ,
उन्हें कुछ तो प्यार दिया होता
मेरा ना मेरी बुजुर्गियत ,
का कुछ तो ख्याल किया होता
छोटे थे थाम मेरी उंगली ,
तुम पग पग चलना सीखे थे,
मै डगमग डगमग गिरता था,
तब मुझको थाम लिया होता
जब तुम पर मुश्किल आई तो ,
मैंने आगे बढ़ ,मदद करी,
जब मुझ पर मुश्किल आई तो,
मेरा भी साथ दिया होता
मैंने तुमसे कुछ ना माँगा ,
ना मांगू ,ये ही कोशिश है,
अहसानों के बदले मुझ पर,
कुछ तो अहसान किया होता
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जिनने जीवन भर प्यार किया ,
उन्हें कुछ तो प्यार दिया होता
मेरा ना मेरी बुजुर्गियत ,
का कुछ तो ख्याल किया होता
छोटे थे थाम मेरी उंगली ,
तुम पग पग चलना सीखे थे,
मै डगमग डगमग गिरता था,
तब मुझको थाम लिया होता
जब तुम पर मुश्किल आई तो ,
मैंने आगे बढ़ ,मदद करी,
जब मुझ पर मुश्किल आई तो,
मेरा भी साथ दिया होता
मैंने तुमसे कुछ ना माँगा ,
ना मांगू ,ये ही कोशिश है,
अहसानों के बदले मुझ पर,
कुछ तो अहसान किया होता
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आप आये
आप आये
सर्द मौसम,आप आये
अकेलापन ,आप आये
दुखी था बमन,आप आये
बड़ी तडफन ,आप आये
खिल उठा मन,आप आये
हुई सिहरन,आप आये
मिट गया तम,आप आये
रौशनी बन ,आप आये
खनका आँगन,आप आये
बंधे बंधन,आप आये
बहका ये तन,आप आये
महका जीवन आप आये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सर्द मौसम,आप आये
अकेलापन ,आप आये
दुखी था बमन,आप आये
बड़ी तडफन ,आप आये
खिल उठा मन,आप आये
हुई सिहरन,आप आये
मिट गया तम,आप आये
रौशनी बन ,आप आये
खनका आँगन,आप आये
बंधे बंधन,आप आये
बहका ये तन,आप आये
महका जीवन आप आये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
ये मन बृन्दावन हो जाता
ये मन बृन्दावन हो जाता
तेरी गंगा, मेरी यमुना ,
मिल जाते,संगम हो जाता
तन का ,मन का ,जनम जनम का,
प्यार भरा बंधन हो जाता
जगमग दीप प्यार के जलते ,
ज्योतिर्मय जीवन हो जाता
रिमझिम रिमझिम प्यार बरसता ,
हर मौसन सावन हो जाता
प्यार नीर में घिस घिस ये तन,
महक भरा चन्दन हो जाता
इतने पुष्प प्यार के खिलते ,
जग नंदनकानन हो जाता
श्वास श्वास के मधुर स्वरों से,
बंसी का वादन हो जाता
रचता रास ,कालिंदी तीरे ,
ये मन वृन्दावन हो जाता
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
तेरी गंगा, मेरी यमुना ,
मिल जाते,संगम हो जाता
तन का ,मन का ,जनम जनम का,
प्यार भरा बंधन हो जाता
जगमग दीप प्यार के जलते ,
ज्योतिर्मय जीवन हो जाता
रिमझिम रिमझिम प्यार बरसता ,
हर मौसन सावन हो जाता
प्यार नीर में घिस घिस ये तन,
महक भरा चन्दन हो जाता
इतने पुष्प प्यार के खिलते ,
जग नंदनकानन हो जाता
श्वास श्वास के मधुर स्वरों से,
बंसी का वादन हो जाता
रचता रास ,कालिंदी तीरे ,
ये मन वृन्दावन हो जाता
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
ये प्यारा इन्कार तुम्हारा
ये प्यारा इन्कार तुम्हारा
पहले तो ये सजना धजना ,
मुझे लुभाना और रिझाना
बाँहों में लूं ,छोडो छोडो ,
कह कर मुझसे लिपटे जाना
ये प्यारा इन्कार तुम्हारा ,
रूठ रूठ कर के मन जाना
वो प्यारी सी मान मनोवल ,
आकर पास ,छिटक फिर जाना
इन्ही अदाओं का जादू तो,
मन की तड़फ ,आग भड़काता
अगर ना नुकर तुम ना करती ,
कैसे मज़ा प्यार का आता
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
पहले तो ये सजना धजना ,
मुझे लुभाना और रिझाना
बाँहों में लूं ,छोडो छोडो ,
कह कर मुझसे लिपटे जाना
ये प्यारा इन्कार तुम्हारा ,
रूठ रूठ कर के मन जाना
वो प्यारी सी मान मनोवल ,
आकर पास ,छिटक फिर जाना
इन्ही अदाओं का जादू तो,
मन की तड़फ ,आग भड़काता
अगर ना नुकर तुम ना करती ,
कैसे मज़ा प्यार का आता
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
रविवार, 23 दिसंबर 2012
बलात्कार
बलात्कार
एक बलात्कार ,ka
पांच छह उद्दंड दरिंदों ने ,
एक बस में,
एक निरीह कन्या के साथ किया
और जब इसके विरोध में,
देश की जनता और युवाओ ने ,
इण्डिया गेट पर शांति पूर्ण प्रदर्शन किया ,
तो दूसरा बलात्कार ,
दिल्ली पुलिस के सेकड़ों जवानो ने ,
हजारों प्रदर्शनकारियों के साथ किया ,
जब आंसू गेस से आंसू निकाले ,
लाठियों से पीटा,
और सर्दी में पानी की बौछारों से गीला किया
कौनसा बलात्कार ज्यादा वीभत्स था?
क्या एक अबला लड़की के साथ ,
हुए अन्याय के विरुद्ध ,
न्याय मांगना ,एक आम आदमी का ,
अधिकार नहीं है या जुर्म है ?
ये कैसा प्रजातंत्र है?
ये कैसी व्यवस्था है?
हम शर्मशार है कि ऐसी घटनाओं पर ,
एक तरफ तो नेता लोग ,
मौखिक सहानुभूति दिखलाते है ,
और दूसरी और ,प्रदर्शनकारियों को,
लाठी से पिटवाते है
घोटू
एक बलात्कार ,ka
पांच छह उद्दंड दरिंदों ने ,
एक बस में,
एक निरीह कन्या के साथ किया
और जब इसके विरोध में,
देश की जनता और युवाओ ने ,
इण्डिया गेट पर शांति पूर्ण प्रदर्शन किया ,
तो दूसरा बलात्कार ,
दिल्ली पुलिस के सेकड़ों जवानो ने ,
हजारों प्रदर्शनकारियों के साथ किया ,
जब आंसू गेस से आंसू निकाले ,
लाठियों से पीटा,
और सर्दी में पानी की बौछारों से गीला किया
कौनसा बलात्कार ज्यादा वीभत्स था?
क्या एक अबला लड़की के साथ ,
हुए अन्याय के विरुद्ध ,
न्याय मांगना ,एक आम आदमी का ,
अधिकार नहीं है या जुर्म है ?
ये कैसा प्रजातंत्र है?
ये कैसी व्यवस्था है?
हम शर्मशार है कि ऐसी घटनाओं पर ,
एक तरफ तो नेता लोग ,
मौखिक सहानुभूति दिखलाते है ,
और दूसरी और ,प्रदर्शनकारियों को,
लाठी से पिटवाते है
घोटू
हाँ, मुद्दा यही है
हाँ,
मुद्दा यही है,
पर क्या ये सही है,
वास्तविकता का कोई अंश है,
या सब ढपोरशंख है,
एक तरफ चीर हरण है,
फिर अनशन आमरण है,
क्या वाकई हृदय का जागरण है ?
हाँ, तावा वस्तुतः गरम है,
कई सेंक रहे रोटी नरम है,
चाह सबकी एक नई दिशा है,
पर दिखती दूर-दूर तक निशा है |
ओज है, साहस है,
पर मिलता सिर्फ ढाढ़स है |
चोर ही चौकीदार है,
कौन वफादार है ?
शनिवार, 22 दिसंबर 2012
जीवन पथ
जीवन पथ
जीवन की इतनी परिभाषा
कभी धूप है,कभी कुहासा
आते मौसम यहाँ सभी है
पतझड़ कभी ,बसंत कभी है
कभी शीत से होती सिहरन
लू से गरम ,कभी तपता तन
देता पावस कभी दिलासा
जीवन की इतनी परिभाषा
जीवन में संघर्ष बहुत है
पीड़ा भी है,हर्ष बहुत है
सुख दुःख दोनों का ही संगम
होता है जीवन का व्यापन
कभी खिलखिला ,कभी रुआंसा
जीवन की इतनी परिभाषा
फूल खिलेंगे ,कुम्हलाएँगे
भले बुरे सब दिन आयेंगे
पथ है दुर्गम,कितनी मुश्किल
चलते रहो ,मिलेंगी मंजिल
बुझने मत दो ,मन की आशा
जीवन की इतनी परिभाषा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जीवन की इतनी परिभाषा
कभी धूप है,कभी कुहासा
आते मौसम यहाँ सभी है
पतझड़ कभी ,बसंत कभी है
कभी शीत से होती सिहरन
लू से गरम ,कभी तपता तन
देता पावस कभी दिलासा
जीवन की इतनी परिभाषा
जीवन में संघर्ष बहुत है
पीड़ा भी है,हर्ष बहुत है
सुख दुःख दोनों का ही संगम
होता है जीवन का व्यापन
कभी खिलखिला ,कभी रुआंसा
जीवन की इतनी परिभाषा
फूल खिलेंगे ,कुम्हलाएँगे
भले बुरे सब दिन आयेंगे
पथ है दुर्गम,कितनी मुश्किल
चलते रहो ,मिलेंगी मंजिल
बुझने मत दो ,मन की आशा
जीवन की इतनी परिभाषा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012
जूताचोर
जूताचोर
यूरोप के चर्चों में देखा ,सब जूते पहने जाते है
तुर्की की मस्जिद में जूते ,संग थैली में ले जाते है
हम तो मंदिर के बाहर ही,है जूते खोल दिया करते
एसा लगता उन देशों में ,हैं जूते चोर बहुत बसते
घोटू
यूरोप के चर्चों में देखा ,सब जूते पहने जाते है
तुर्की की मस्जिद में जूते ,संग थैली में ले जाते है
हम तो मंदिर के बाहर ही,है जूते खोल दिया करते
एसा लगता उन देशों में ,हैं जूते चोर बहुत बसते
घोटू
आत्मज्ञान
आत्मज्ञान
फोन से अपना ही नंबर ,मिला कर देखो कभी
टोन तुमको सुनाई देगी सदा इंगेज की
दूसरों बात करने में तो सब ही मस्त है
खुद से बातें करने की पर सभी लाईन व्यस्त है
घोटू
फोन से अपना ही नंबर ,मिला कर देखो कभी
टोन तुमको सुनाई देगी सदा इंगेज की
दूसरों बात करने में तो सब ही मस्त है
खुद से बातें करने की पर सभी लाईन व्यस्त है
घोटू
कर्म और धर्म
कर्म और धर्म
लक्ष्मी पूजन कभी भी ,ना किया बिल गेट्स ने,
फिर भी वो संसार का सबसे धनी इंसान है
सरस्वती पूजन किया ना,कभी आइन्स्टीन ने,
मगर उसके ज्ञान से ,उपकृत हुआ विज्ञान है
देख कर इनकी सफलता ,यही लगता मर्म है
धर्म अपनी जगह पर है,सबसे बढ़ कर कर्म है
घोटू
लक्ष्मी पूजन कभी भी ,ना किया बिल गेट्स ने,
फिर भी वो संसार का सबसे धनी इंसान है
सरस्वती पूजन किया ना,कभी आइन्स्टीन ने,
मगर उसके ज्ञान से ,उपकृत हुआ विज्ञान है
देख कर इनकी सफलता ,यही लगता मर्म है
धर्म अपनी जगह पर है,सबसे बढ़ कर कर्म है
घोटू
बुधवार, 19 दिसंबर 2012
परिधान-पर दो ध्यान
परिधान-पर दो ध्यान
आदमी का पहनावा ,आदमी के जीवन में,
काफी महत्त्व रखता है
कसी जींस या सूट पहन कर,आदमी जवान ,
और फुर्तीला दिखता है
ढीले ढाले से वस्त्र पहनने से ,ढीलापन और,
सुस्ती सी छा जाती है
जैसे नाईट सूट पहनने पर सोने को मन करता
और नींद सी आजाती है
,सजधज कर रहने वाले,न सिर्फ जवान दिखते है,
ज्यादा दिन टिकते है
अच्छी तरह पेक किये गए सामान,कैसे भी हों,
पर मंहगे बिकते है
इसीलिये,लम्बा सुखी जीवन जीना है तो श्रीमान,
अपने परिधान पर दो ध्यान
सजेधजे रहोगे तभी खींच पाओगे सबका ध्यान ,
और पाओगे सन्मान
घोटू
आदमी का पहनावा ,आदमी के जीवन में,
काफी महत्त्व रखता है
कसी जींस या सूट पहन कर,आदमी जवान ,
और फुर्तीला दिखता है
ढीले ढाले से वस्त्र पहनने से ,ढीलापन और,
सुस्ती सी छा जाती है
जैसे नाईट सूट पहनने पर सोने को मन करता
और नींद सी आजाती है
,सजधज कर रहने वाले,न सिर्फ जवान दिखते है,
ज्यादा दिन टिकते है
अच्छी तरह पेक किये गए सामान,कैसे भी हों,
पर मंहगे बिकते है
इसीलिये,लम्बा सुखी जीवन जीना है तो श्रीमान,
अपने परिधान पर दो ध्यान
सजेधजे रहोगे तभी खींच पाओगे सबका ध्यान ,
और पाओगे सन्मान
घोटू
चाँद और अमावास
चाँद और अमावास
भोलाभाला ,शांत,शीतल, और बन्दा नेक मै
करते सब बदनाम मुझको ,कि बड़ा दिलफेंक मै
पर बड़ा ही शर्मीला हूँ,और घबराता बहुत,
बादलों में जाता हूँ छुप, हसीनो को देख मै
चमचमाती तारिकाओं से घिरा मै रात भर ,
सभी मेरा साथ चाहें,और बन्दा एक मै
अमावस को थके हारे ,चंद्रमा ने ये कहा ,
महीने भर में ,एक दिन का,चाहता हूँ ,ब्रेक मै
घोटू
भोलाभाला ,शांत,शीतल, और बन्दा नेक मै
करते सब बदनाम मुझको ,कि बड़ा दिलफेंक मै
पर बड़ा ही शर्मीला हूँ,और घबराता बहुत,
बादलों में जाता हूँ छुप, हसीनो को देख मै
चमचमाती तारिकाओं से घिरा मै रात भर ,
सभी मेरा साथ चाहें,और बन्दा एक मै
अमावस को थके हारे ,चंद्रमा ने ये कहा ,
महीने भर में ,एक दिन का,चाहता हूँ ,ब्रेक मै
घोटू
चुनौती वक़्त के साथ चलने की
देखो बू आ रही है ये दुनिया जलने की,
आज राह देखता सूरज शाम ढलने की,
जिंदगी हर एक की यहाँ पशोपेश में "दीप",
आज एक चुनौती है वक़्त के साथ चलने की |
बिखर रही मानवता माला से टूटे मोती जैसी,
रंग दिखा रही हैवानियत जाने कैसी-कैसी,
तार-तार होती अस्मिता आज सरेआम ऐ "दीप",
नैतिकता और सभ्यता की हो रही ऐसी-तैसी |
दो पल का शोक मनाने को हर कोई है खड़ा,
सच्चाई और सहानुभूति की बात करने को अड़ा,
हैवान तो है बैठा हम सबके ही बीच ऐ "दीप",
पूरा का पूरा समाज ही आज है हासिये में पड़ा |
कीमत जिंदगी और इज्ज़त की दो पैसे भी नहीं,
मौत का ही मंजर तो दिखता है अब हर कहीं,
एक-दूसरे को लूटने में ही लगे हैं सभी ऐ "दीप",
कौफजदा-सा होकर सब जी रहे हैं वहीं के वहीं |
बिखर रही मानवता माला से टूटे मोती जैसी,
रंग दिखा रही हैवानियत जाने कैसी-कैसी,
तार-तार होती अस्मिता आज सरेआम ऐ "दीप",
नैतिकता और सभ्यता की हो रही ऐसी-तैसी |
दो पल का शोक मनाने को हर कोई है खड़ा,
सच्चाई और सहानुभूति की बात करने को अड़ा,
हैवान तो है बैठा हम सबके ही बीच ऐ "दीप",
पूरा का पूरा समाज ही आज है हासिये में पड़ा |
कीमत जिंदगी और इज्ज़त की दो पैसे भी नहीं,
मौत का ही मंजर तो दिखता है अब हर कहीं,
एक-दूसरे को लूटने में ही लगे हैं सभी ऐ "दीप",
कौफजदा-सा होकर सब जी रहे हैं वहीं के वहीं |
मंगलवार, 18 दिसंबर 2012
माचिस की तिली
माचिस की तिली
पेड़ की लकड़ी से बनती,कई माचिस की तिली ,
सर पे जब लगता है रोगन,मुंह में बसती आग है
जरा सा ही रगड़ने पर ,जलती है तिलमिला कर,
और कितने दरख्तों को ,पल में करती खाक है
घोटू
पेड़ की लकड़ी से बनती,कई माचिस की तिली ,
सर पे जब लगता है रोगन,मुंह में बसती आग है
जरा सा ही रगड़ने पर ,जलती है तिलमिला कर,
और कितने दरख्तों को ,पल में करती खाक है
घोटू
सम्बन्ध
सम्बन्ध
हमारे संबंध क्या हैं ?पारदर्शी कांच है
खरोंचे उस पार की भी,नज़र आती साफ़ है
जरा सा झटका लगे तो,टूट कर जाते बिखर ,
सावधानी से बरतना ,ही अकल की बात है
घोटू
हमारे संबंध क्या हैं ?पारदर्शी कांच है
खरोंचे उस पार की भी,नज़र आती साफ़ है
जरा सा झटका लगे तो,टूट कर जाते बिखर ,
सावधानी से बरतना ,ही अकल की बात है
घोटू
अजब बात
अजब बात
देख सकते आप जिसको ,आपके जो साथ है
प्यार उसको कर न पाते,पर अजब ये बात है
नहीं देखा कभी जिसको ,उस प्रभू के नाम का,
जाप करते रोज है और पूजते दिन रात है
घोटू
देख सकते आप जिसको ,आपके जो साथ है
प्यार उसको कर न पाते,पर अजब ये बात है
नहीं देखा कभी जिसको ,उस प्रभू के नाम का,
जाप करते रोज है और पूजते दिन रात है
घोटू
आगर की माटी
आगर की माटी
मालव प्रदेश की भरी मांग ,
इसमें सिन्दूरी लाली है
है सदा सुहागन यह धरती ,
मस्तानी है,मतवाली है
जोड़ा है लाल,सुहागन सा,
महकाता इसका कण कण है
माथे पर इसे लगाओ तुम,
आगर की माटी चन्दन है
है ताल तले भैरव बाबा ,
जिसकी रक्षा करने तत्पर
और तुलजा मात भवानी का,
है वरद हस्त जिसके सर पर
बन बैजनाथ ,कर रहे वास ,
उस महादेव का वंदन है
माथे पर इसे लगाओ तुम,
आगर की माटी चन्दन है
मैने जब आँखें खोली थी ,
और ली पहली अंगडाई थी
नंदबाबा से बाबूजी थे ,
और मात यशोदा बाई थी
ये ही गोकुल है ,नंदगाँव ,
ये ही मेरा वृन्दावन है
माथे पर इसे लगाओ तुम ,
आगर की माटी चन्दन है
है मुझे गर्व ,इस धरती पर,
इस माटी पर,इस आगर पर
मै इस माटी का बेटा हूँ,
करता प्रणाम इस को सादर
इसमें है कितना वात्सल्य ,
कितनी ममता अपनापन है
माथे पर इसे लगाओ तुम,
आगर की माटी चन्दन है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मालव प्रदेश की भरी मांग ,
इसमें सिन्दूरी लाली है
है सदा सुहागन यह धरती ,
मस्तानी है,मतवाली है
जोड़ा है लाल,सुहागन सा,
महकाता इसका कण कण है
माथे पर इसे लगाओ तुम,
आगर की माटी चन्दन है
है ताल तले भैरव बाबा ,
जिसकी रक्षा करने तत्पर
और तुलजा मात भवानी का,
है वरद हस्त जिसके सर पर
बन बैजनाथ ,कर रहे वास ,
उस महादेव का वंदन है
माथे पर इसे लगाओ तुम,
आगर की माटी चन्दन है
मैने जब आँखें खोली थी ,
और ली पहली अंगडाई थी
नंदबाबा से बाबूजी थे ,
और मात यशोदा बाई थी
ये ही गोकुल है ,नंदगाँव ,
ये ही मेरा वृन्दावन है
माथे पर इसे लगाओ तुम ,
आगर की माटी चन्दन है
है मुझे गर्व ,इस धरती पर,
इस माटी पर,इस आगर पर
मै इस माटी का बेटा हूँ,
करता प्रणाम इस को सादर
इसमें है कितना वात्सल्य ,
कितनी ममता अपनापन है
माथे पर इसे लगाओ तुम,
आगर की माटी चन्दन है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
रविवार, 16 दिसंबर 2012
गम लिया करते हैं
दाव में रखकर अपनी जिंदगी को हर वक़्त हर घड़ी,
सहम-सहम के लोग आज ये जिंदगी जिया करते हैं |
सौ ग्राम दिमाग के साथ दस ग्राम दिल भी नहीं रखते लोग,
विरले हैं जो आज भी हर फैसला दिल से किया करते हैं |
बच्चे को आया के हवाले कर, पिल्ले को रखते हैं गोद में,
कहते हैं आज के बच्चे माँ-बाप का साथ नहीं दिया करते हैं |
एक दिन फेंकी थी तुमने जो चिंगारी मेरे घर की ओर,
आग बना कर उसे हम आज भी हवा दिया करते हैं |
अपनी अपनी कर के जी लेते हैं जिंदगी किसी तरह,
स्वार्थ की बनी चाय ही सब हर वक़्त पिया करते हैं |
अब तो ये चाँद भी आता है लेकर सिर्फ आग ही आग,
फिर क्यों सूरज से शीतलता की उम्मीद किया करते हैं |
सब हैं खड़े यहाँ कतार में जख्म देने के लिए ऐ "दीप",
कोई भरता नहीं हम खुद ही जख्मों को सिया करते हैं |
अपना तो जिंदगी जीने का फंडा ही अलग है ऐ "दीप",
कोशिश रहती खुशियाँ देने की और गम लिया करते हैं |
ढलती उमर का प्रणय निवेदन
ढलती उमर का प्रणय निवेदन
मै जो भी हूँ ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर ,तुम मुझको ठुकरा मत देना
माना तन थोडा जर्जर है ,लेकिन मन में जोश भरा है
इन धुंधली आँखों में देखो,कितना सुख संतोष भरा है
माना काले केश घनेरे,छिछले और सफ़ेद हो रहे,
लेकिन मेरे मन का तरुवर,अब तक ताज़ा ,हराभरा है
तेरे उलझे बाल जाल में,मेरे नयना उलझ गए है,
इसीलिये शृंगार समय तुम,उलझी लट सुलझा मत लेना
मै जो भी हूँ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर,तुम मुझको ठुकरा मत देना
चन्दन जितना बूढा होता ,उतना ज्यादा महकाता है
और पुराने चांवल पकते ,दाना दाना खिल जाता है
जितना होता शहद पुराना ,उतने उसके गुण बढ़ते है,
'एंटीक 'है चीज पुरानी,उसका दाम सदा ज्यादा है
साथ उमर के,अनुभव पाकर ,अब जाकर परिपक्व हुआ हूँ,
अगर शिथिलता आई तन में,उस पर ध्यान जरा मत देना
मै जो भी हूँ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर ,तुम मुझको ठुकरा मत देना
साथ उमर के ,तुममे भी तो,है कितना बदलाव आ गया
जोश,जवानी और उमंग में ,अब कितना उतराव आ गया
लेकिन मेरी नज़रों में तुम,वही षोडसी सी रूपवती हो,
तुम्हे देख कर मेरी बूढी,नस नस में उत्साह आ गया
बासी रोटी ,बासी कढ़ी के,साथ,स्वाद ,ज्यादा लगती है ,
सच्चा प्यार उमर ना देखे,तुम इतना बिसरा मत देना
मै जो भी हूँ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर,तुम मुझको ठुकरा मत देना
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
चुम्बक
चुम्बक
तुझे देख पागल हो जाता
तेरी ओर खिंचा मै आता
तुझसे मिलता लपक लपक मै
तुझसे जाता चिपक चिपक मै
नहीं अगाथा मै तुमको तक
पर मै समझ न पाया अबतक
मै लोहा हूँ और तुम चुम्बक
या तुम लोहा और मै चुम्बक
घोटू
तुझे देख पागल हो जाता
तेरी ओर खिंचा मै आता
तुझसे मिलता लपक लपक मै
तुझसे जाता चिपक चिपक मै
नहीं अगाथा मै तुमको तक
पर मै समझ न पाया अबतक
मै लोहा हूँ और तुम चुम्बक
या तुम लोहा और मै चुम्बक
घोटू
शनिवार, 15 दिसंबर 2012
कटु सत्य
कटु सत्य
वैज्ञानिक बताते है
कि औसतन हम अपने जीवन के ,
पांच साल खाने में बिताते है
और अपने वजन का ,
सात हज़ार गुना खाना खाते है
जब ये बात मैंने एक नेताजी को बतलाई
तो बोले,सच कह रहे हो मेरे भाई
एक बार जब हमें ,आप चुनाव जितलाये थे
पूरे पांच साल ,हमने खाने में बिताये थे
आपसे क्या छुपायें,कितना ,क्या कमाया था ,
अपनी औकात से ,सात हज़ार गुना खाया था
घोटू
वैज्ञानिक बताते है
कि औसतन हम अपने जीवन के ,
पांच साल खाने में बिताते है
और अपने वजन का ,
सात हज़ार गुना खाना खाते है
जब ये बात मैंने एक नेताजी को बतलाई
तो बोले,सच कह रहे हो मेरे भाई
एक बार जब हमें ,आप चुनाव जितलाये थे
पूरे पांच साल ,हमने खाने में बिताये थे
आपसे क्या छुपायें,कितना ,क्या कमाया था ,
अपनी औकात से ,सात हज़ार गुना खाया था
घोटू
सपनो को क्या चाटेंगे
तुम भी मुफलिस ,हम भी मुफलिस,आपस में क्या बाटेंगे
बची खुची जो भी मिल जाए , बस वो खुरचन चाटेंगे
एक कम्बल है ,वो भी छोटा,और सोने वाले दो हैं,
यूं ही सिकुड़ कर,सिमटे ,लिपटे, सारा जीवन काटेंगे
लाले पड़े हुये खाने के, जो भी दे ऊपरवाला ,
पीस,पका कर ,सब खा लेंगे ,क्या बीनें,क्या छाटेंगे
झोंपड़ पट्टी और बंगलों के बीच खाई एक ,गहरी है,
झूंठे आश्वासन ,वादों से ,कैसे इसको पाटेंगे
क्या धोवेगी और निचोडेगी ,ये किस्मत नंगी है,
यूं ही फांकामस्ती में क्या ,बची जिन्दगी काटेंगे
पेट नहीं भरता बातों से ,तुम जानो,हम भी जाने,
मीठे सपने,मत पुरसो तुम,सपनो को क्या चाटेंगे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
तुम भी मुफलिस ,हम भी मुफलिस,आपस में क्या बाटेंगे
बची खुची जो भी मिल जाए , बस वो खुरचन चाटेंगे
एक कम्बल है ,वो भी छोटा,और सोने वाले दो हैं,
यूं ही सिकुड़ कर,सिमटे ,लिपटे, सारा जीवन काटेंगे
लाले पड़े हुये खाने के, जो भी दे ऊपरवाला ,
पीस,पका कर ,सब खा लेंगे ,क्या बीनें,क्या छाटेंगे
झोंपड़ पट्टी और बंगलों के बीच खाई एक ,गहरी है,
झूंठे आश्वासन ,वादों से ,कैसे इसको पाटेंगे
क्या धोवेगी और निचोडेगी ,ये किस्मत नंगी है,
यूं ही फांकामस्ती में क्या ,बची जिन्दगी काटेंगे
पेट नहीं भरता बातों से ,तुम जानो,हम भी जाने,
मीठे सपने,मत पुरसो तुम,सपनो को क्या चाटेंगे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
गुरुवार, 13 दिसंबर 2012
जम्बू फल प्रियं
जम्बू फल प्रियं
( गजाननं भूतगणादी सेवकं ,
कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणं ....)
लम्बोदर है श्री विनायक
आगे भरे थाल में मोदक
मोदकप्रिय ,स्थूल देह है
शायद इनको मधुमेह है
इसीलिए प्रिय फल है जामुन
जो करता है मधुमेह कम
मधुमेह उपचार कहाता
जामुन उनके मन को भाता
घोटू
( गजाननं भूतगणादी सेवकं ,
कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणं ....)
लम्बोदर है श्री विनायक
आगे भरे थाल में मोदक
मोदकप्रिय ,स्थूल देह है
शायद इनको मधुमेह है
इसीलिए प्रिय फल है जामुन
जो करता है मधुमेह कम
मधुमेह उपचार कहाता
जामुन उनके मन को भाता
घोटू
वकील या श्री कृष्ण
वकील या श्री कृष्ण
झगडा जोरू ,जमीन और ज़र का
ये किस्सा तो है हर घर का
भाई भाई के परिवार
जब हो आपस में लड़ने को तैयार
और किसी के मन में ये ख्याल आ जाय
भाई और रिश्तेदारों से क्यों लड़ा जाय
ऐसे में जो लडाई करने को उकसाता है
वो या तो वकील होता है,
या श्री कृष्ण कहलाता है
घोटू
झगडा जोरू ,जमीन और ज़र का
ये किस्सा तो है हर घर का
भाई भाई के परिवार
जब हो आपस में लड़ने को तैयार
और किसी के मन में ये ख्याल आ जाय
भाई और रिश्तेदारों से क्यों लड़ा जाय
ऐसे में जो लडाई करने को उकसाता है
वो या तो वकील होता है,
या श्री कृष्ण कहलाता है
घोटू
पक्षपात
पक्षपात
जब होता है समुद्र मंथन
तो दानव और देवता गण
करते है बराबर की मेहनत
पर जब निकलता है अमृत
तो विष्णु भगवान,मोहिनी रूप धर
सिर्फ देवताओं को अमृत बाँट कर
स्पष्ट ,करते पक्षपात है
बरसों से चली आ रही ये बात है
जो सत्ता में है,राज्य करते है
अपने अपनों का घर भरते है
अपनों को ही ठेका और प्रमोशन
टू जी ,या कोल ब्लोक का आबंटन
देकर परंपरा निभा रहे है
तो लोग क्यों हल्ला मचा रहे है ?
घोटू
जब होता है समुद्र मंथन
तो दानव और देवता गण
करते है बराबर की मेहनत
पर जब निकलता है अमृत
तो विष्णु भगवान,मोहिनी रूप धर
सिर्फ देवताओं को अमृत बाँट कर
स्पष्ट ,करते पक्षपात है
बरसों से चली आ रही ये बात है
जो सत्ता में है,राज्य करते है
अपने अपनों का घर भरते है
अपनों को ही ठेका और प्रमोशन
टू जी ,या कोल ब्लोक का आबंटन
देकर परंपरा निभा रहे है
तो लोग क्यों हल्ला मचा रहे है ?
घोटू
मधुर मिलन की पहली रात
मधुर मिलन की पहली रात
मेंहदी से तेरे हाथ रचे ,और प्यार रचा मेरे मन में
मुझको पागल सा कर डाला ,तेरी शर्मीली चितवन में
तेरे कंगन की खन खन सुन ,
है खनक उठी मेरी नस नस
तेरी मादक,मदभरी महक,
है खींच रही मुझको बरबस
नाज़ुक से हाथों को सहला ,
मन बहला नहीं,बदन दहला
हूँ विकल ,करू किस तरह पहल,
यह मिलन हमारा है पहला
मन हुआ ,बावला सा अधीर,है ऐसी अगन लगी तन में
मेंहदी से तेरे हाथ रचे, और प्यार रचा मेरे मन में
मन का मयूर है नाच रहा,
हो कर दीवाना मस्ती में
तुमने निहाल कर दिया मुझे,
बस कर इस दिल की बस्ती में
चन्दा सा मुखड़ा दिखला दो,
क्यों ढका हुआ घूंघट पट से
मतवाली ,रूप माधुरी का,
रसपान करूं ,अमृत घट से
सब लाज,शर्म को छोड़ छाड़ ,आओ बंध जाये बंधन में
मेंहदी से तेरे हाथ रचे ,और प्यार रचा मेरे मन में
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मेंहदी से तेरे हाथ रचे ,और प्यार रचा मेरे मन में
मुझको पागल सा कर डाला ,तेरी शर्मीली चितवन में
तेरे कंगन की खन खन सुन ,
है खनक उठी मेरी नस नस
तेरी मादक,मदभरी महक,
है खींच रही मुझको बरबस
नाज़ुक से हाथों को सहला ,
मन बहला नहीं,बदन दहला
हूँ विकल ,करू किस तरह पहल,
यह मिलन हमारा है पहला
मन हुआ ,बावला सा अधीर,है ऐसी अगन लगी तन में
मेंहदी से तेरे हाथ रचे, और प्यार रचा मेरे मन में
मन का मयूर है नाच रहा,
हो कर दीवाना मस्ती में
तुमने निहाल कर दिया मुझे,
बस कर इस दिल की बस्ती में
चन्दा सा मुखड़ा दिखला दो,
क्यों ढका हुआ घूंघट पट से
मतवाली ,रूप माधुरी का,
रसपान करूं ,अमृत घट से
सब लाज,शर्म को छोड़ छाड़ ,आओ बंध जाये बंधन में
मेंहदी से तेरे हाथ रचे ,और प्यार रचा मेरे मन में
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012
हवायें
हवायें
हमारी हर सांस में बसती हवायें
सांस ही तो सभी का जीवन चलाये
देह सबकी ,पंचतत्वों से बनी है
तत्व उन में ,एक होती, हवा भी है
कभी शीतल मंद बहती है सुहाती
कभी लू बन ,गर्मियों में तन जलाती
है बड़ी बलवान ,जब होती खफा है
विनाशक तूफ़ान लाती हर दफा है
पेट ना भरता हवा से ,सभी जाने
घूमने ,सब मगर जाते,हवा खाने
चार पैसे ,जब किसी के पास ,जुड़ते
बात करते है हवा में, लोग उड़ते
मगर जब तकदीर अपना रंग दिखाती
हवा ,अच्छे अच्छों की है खिसक जाती
चली फेशन की हवा तो घटे कपडे
लगी पश्चिम की हवा तो लोग बिगड़े
नहीं दिखती ,हर जगह ,मौजूद है पर
चल रहा जीवन सभी का ,हवा के बल
घोटू
हमारी हर सांस में बसती हवायें
सांस ही तो सभी का जीवन चलाये
देह सबकी ,पंचतत्वों से बनी है
तत्व उन में ,एक होती, हवा भी है
कभी शीतल मंद बहती है सुहाती
कभी लू बन ,गर्मियों में तन जलाती
है बड़ी बलवान ,जब होती खफा है
विनाशक तूफ़ान लाती हर दफा है
पेट ना भरता हवा से ,सभी जाने
घूमने ,सब मगर जाते,हवा खाने
चार पैसे ,जब किसी के पास ,जुड़ते
बात करते है हवा में, लोग उड़ते
मगर जब तकदीर अपना रंग दिखाती
हवा ,अच्छे अच्छों की है खिसक जाती
चली फेशन की हवा तो घटे कपडे
लगी पश्चिम की हवा तो लोग बिगड़े
नहीं दिखती ,हर जगह ,मौजूद है पर
चल रहा जीवन सभी का ,हवा के बल
घोटू
गुरुवार, 6 दिसंबर 2012
सब कुछ गुम हो गया
पते की बात
सब कुछ गुम हो गया
रात की नीरवता ,ट्रक और बसों की ,
चिन्धाड़ों में गुम हो गयी
दादी नानी की कहानियां,टी वी के,
सीरियलों में गुम हो गयी
बच्चों के चंचलता ,स्कूल के ,
होमवर्क के बोझ से गुम हो गयी
परिवार की हंसीखुशी ,बढती हुई ,
मंहगाई के बोझ से गुम हो गयी
आदमी की भावनाएं और प्यार ,
भौतिकता के भार तले गुम हो गया
घर के देशी खाने का स्वाद ,
पीज़ा और बर्गर के क्रेज़ में गुम हो गया
अब तो बस,मशीनवत ,जीवन सब जीते है
भरे हुए दिखते है ,अन्दर से रीते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सब कुछ गुम हो गया
रात की नीरवता ,ट्रक और बसों की ,
चिन्धाड़ों में गुम हो गयी
दादी नानी की कहानियां,टी वी के,
सीरियलों में गुम हो गयी
बच्चों के चंचलता ,स्कूल के ,
होमवर्क के बोझ से गुम हो गयी
परिवार की हंसीखुशी ,बढती हुई ,
मंहगाई के बोझ से गुम हो गयी
आदमी की भावनाएं और प्यार ,
भौतिकता के भार तले गुम हो गया
घर के देशी खाने का स्वाद ,
पीज़ा और बर्गर के क्रेज़ में गुम हो गया
अब तो बस,मशीनवत ,जीवन सब जीते है
भरे हुए दिखते है ,अन्दर से रीते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बुधवार, 5 दिसंबर 2012
गिरावट
गिरावट
मंहगाई गिरती है,लोग खुश होते है
संसेक्स गिरता है कई लोग रोते है
पारा जब गिरता है,हवा सर्द होती है
पाला जब गिरता है ,फसल नष्ट होती है
सरकार गिरती है तो एसा होता है
कोई तो हँसता है तो कोई रोता है
आंसू जब गिरते है,आँखों से औरत की
शुरुवात होती है ,किसी महाभारत की
लहराते वो आते ,पल्लू गिराते है
बिजली सी गिरती जब वो मुस्कराते है
शालीनता गिरती है,वस्त्र घटा करते है
आदर्श गिरते जब वस्त्र हटा करते है
लालच और लिप्सा से ,मानव जब घिरता है
पतन के गड्डे में,अँधा हो गिरता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मंहगाई गिरती है,लोग खुश होते है
संसेक्स गिरता है कई लोग रोते है
पारा जब गिरता है,हवा सर्द होती है
पाला जब गिरता है ,फसल नष्ट होती है
सरकार गिरती है तो एसा होता है
कोई तो हँसता है तो कोई रोता है
आंसू जब गिरते है,आँखों से औरत की
शुरुवात होती है ,किसी महाभारत की
लहराते वो आते ,पल्लू गिराते है
बिजली सी गिरती जब वो मुस्कराते है
शालीनता गिरती है,वस्त्र घटा करते है
आदर्श गिरते जब वस्त्र हटा करते है
लालच और लिप्सा से ,मानव जब घिरता है
पतन के गड्डे में,अँधा हो गिरता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पेन्सिल मै
पेन्सिल मै
प्रवृत्ति उपकार की है,भले सीसा भरा दिल में
पेन्सिल मै
मै कनक की छड़ी जैसी हूँ कटीली
किन्तु काया ,काष्ठ सी ,कोमल ,गठीली
छीलते जब मुझे ,चाकू या कटर से
एक काली नोक आती है निकल के
जो कि कोरे कागजों पर हर्फ़ लिखती
भावनाएं,पहन जामा, शब्द दिखती
प्रेम पत्रों में उभरता ,प्यार मेरा
नुकीलापन ही बना श्रृगार मेरा
मोतियों से शब्द लिखती,काम आती बहुत,छिल, मै
पेन्सिल मै
शब्द लिखना ,सभी को मैंने सिखाया
साक्षर कितने निरक्षर को बनाया
कविता बन,कल्पनाओं को संवारा
ज्ञान का सागर ,किताबों में उतारा
कलाकृतियाँ ,कई ,कागज़ पर बनायी
आपके हित,स्वयं की हस्ती मिटाई
बांटने को ज्ञान, मै , घिसती रही हूँ
छिली,छिलती रही पर लिखती रही हूँ
कर दिया उत्सर्ग जीवन,नहीं कोई कसक दिल में
पेन्सिल मै
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
प्रवृत्ति उपकार की है,भले सीसा भरा दिल में
पेन्सिल मै
मै कनक की छड़ी जैसी हूँ कटीली
किन्तु काया ,काष्ठ सी ,कोमल ,गठीली
छीलते जब मुझे ,चाकू या कटर से
एक काली नोक आती है निकल के
जो कि कोरे कागजों पर हर्फ़ लिखती
भावनाएं,पहन जामा, शब्द दिखती
प्रेम पत्रों में उभरता ,प्यार मेरा
नुकीलापन ही बना श्रृगार मेरा
मोतियों से शब्द लिखती,काम आती बहुत,छिल, मै
पेन्सिल मै
शब्द लिखना ,सभी को मैंने सिखाया
साक्षर कितने निरक्षर को बनाया
कविता बन,कल्पनाओं को संवारा
ज्ञान का सागर ,किताबों में उतारा
कलाकृतियाँ ,कई ,कागज़ पर बनायी
आपके हित,स्वयं की हस्ती मिटाई
बांटने को ज्ञान, मै , घिसती रही हूँ
छिली,छिलती रही पर लिखती रही हूँ
कर दिया उत्सर्ग जीवन,नहीं कोई कसक दिल में
पेन्सिल मै
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
भगवान और गूगल अर्थ
भगवान और गूगल अर्थ
'फेसबुक 'की तरह होता खुदा का दीदार है,
मंदिरों में हमें दिखता ,देव का दरबार है
बजा कर मंदिर में घंटी,फोन करते है उसे ,
बात सबके दिल की सुनता ,वो बड़ा दिलदार है
मन्त्र से और श्लोक से हम ,'ट्विट ' करते है उसे ,
आरती 'यू ट्यूब 'से करता सदा स्वीकार है
भले 'गूगल अर्थ'बोलो या कि तुम 'याहू'कहो,
'अर्थ'ये उसने रची है, उसी का संसार है
घोटू
'फेसबुक 'की तरह होता खुदा का दीदार है,
मंदिरों में हमें दिखता ,देव का दरबार है
बजा कर मंदिर में घंटी,फोन करते है उसे ,
बात सबके दिल की सुनता ,वो बड़ा दिलदार है
मन्त्र से और श्लोक से हम ,'ट्विट ' करते है उसे ,
आरती 'यू ट्यूब 'से करता सदा स्वीकार है
भले 'गूगल अर्थ'बोलो या कि तुम 'याहू'कहो,
'अर्थ'ये उसने रची है, उसी का संसार है
घोटू
परछाई
परछाई
सुबह हुई जब उगा सूरज ,मै निकला ,मैंने देखा ,
चली आ रही ,पीछे पीछे ,वो मेरी परछाईं थी
सांझ हुई और सूरज डूबा ,जब छाया अंधियारा तो,
मैंने पाया ,साथ छोड़ कर ,चली गयी परछाईं थी
रात पड़े ,जब हुई रौशनी ,सभी दिशा में बल्ब जले,
मैंने देखा ,एक नहीं,अब चार चार परछाईं थी
मै तो एक निमित्त मात्र था,सारा खेल रौशनी का,
जब तक जितनी रही रौशनी ,तब उतनी परछाईं थी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
सुबह हुई जब उगा सूरज ,मै निकला ,मैंने देखा ,
चली आ रही ,पीछे पीछे ,वो मेरी परछाईं थी
सांझ हुई और सूरज डूबा ,जब छाया अंधियारा तो,
मैंने पाया ,साथ छोड़ कर ,चली गयी परछाईं थी
रात पड़े ,जब हुई रौशनी ,सभी दिशा में बल्ब जले,
मैंने देखा ,एक नहीं,अब चार चार परछाईं थी
मै तो एक निमित्त मात्र था,सारा खेल रौशनी का,
जब तक जितनी रही रौशनी ,तब उतनी परछाईं थी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
मंगलवार, 4 दिसंबर 2012
जब से जागो तभी से सबेरा.....
होता है कभी - कभी यूँ भी कि
इंसान बिना जाने - समझे
मान बैठता है दिल की बात,
पकड़ लेता है एक ऐसी राह जो
नहीं होती उसके लिए उपयुक्त
नहीं पहुँचती किसी मंजिल तक,
लेकिन चूंकि होता है एक जूनून
होते हैं ख्वाब जिनका पीछा करते
निकल जाता है बहुत दूर - बहुत आगे,
तब अचानक लगती है एक ठोकर,
बहुत तेज़ - बहुत ज़ोरदार कि
खुल जाती है जैसे उसकी आँख
हो जाता है अपनी गलती का एहसास,
लेकिन अब ?......क्या करे - क्या न करे
पीछे लौटे - आगे जाए - ठहर जाए
या फिर कोई नयी राह ली जाए......
अब टूट चुके होते हैं सारे ख्वाब
पूरी तरह से बुझ चुका होता है दिल
और हो चुका होता है एकदम निराश....
तभी एकाएक याद आती है उसे
बुजुर्गों से अक्सर ही सुनी हुई ये बात
कि जो होता है अच्छे के लिए होता है,
कुछ छूट जाने - कुछ खो जाने से
सब कुछ ख़त्म नहीं होता है.....
नहीं थी वो राह तुम्हारे लिए ठीक
अच्छा हुआ जो अभी लग गयी ठोकर
वर्ना आगे होती और ज्यादा तकलीफ,
उठो - खड़े होओ - और पकड़ो एक नयी राह,
अभी कुछ भी नहीं है बिगड़ा मत होओ निराश
क्योंकि जब से जागो तभी से सबेरा होता है......
- VISHAAL CHARCHCHIT
सोमवार, 3 दिसंबर 2012
मानसिकता
पते की बात
मानसिकता
तुम्हे नीचे खींचने की ,कोई गर कोशिश करे ,
करो खुद पर गर्व मन में ,बिना कोई से डरे
उनसे तुम ऊपर बहुत है ,बात ये तय मानलो
और उनकी मानसिकता ,गिरी है ये जान लो
घोटू
मानसिकता
तुम्हे नीचे खींचने की ,कोई गर कोशिश करे ,
करो खुद पर गर्व मन में ,बिना कोई से डरे
उनसे तुम ऊपर बहुत है ,बात ये तय मानलो
और उनकी मानसिकता ,गिरी है ये जान लो
घोटू
मुश्किलें
पते की बात
मुश्किलें
जब भी हो मुश्किल में तुम या परेशां,अवसाद में
खड़े तुम हो जाओ जाकर आईने के सामने
आईने में आपको एक नज़र चेहरा आएगा
कैसे मुश्किल से निकलना ,आपको बतलायेगा
घोटू
मुश्किलें
जब भी हो मुश्किल में तुम या परेशां,अवसाद में
खड़े तुम हो जाओ जाकर आईने के सामने
आईने में आपको एक नज़र चेहरा आएगा
कैसे मुश्किल से निकलना ,आपको बतलायेगा
घोटू
जिंदगी और मज़ा
पते की बात
जिंदगी और मज़ा
मैंने माँगा खुदा से ऐ खुदा दे सब कुछ मुझे,
जिंदगी का मज़ा पूरा उठा मै जिससे सकूं
खुदा बोला 'बन्दे मैंने दी है तुझको जिंदगी ,
सभी कुछ का मज़ा ले ले ,जितना मन में आये तू
घोटू
जिंदगी और मज़ा
मैंने माँगा खुदा से ऐ खुदा दे सब कुछ मुझे,
जिंदगी का मज़ा पूरा उठा मै जिससे सकूं
खुदा बोला 'बन्दे मैंने दी है तुझको जिंदगी ,
सभी कुछ का मज़ा ले ले ,जितना मन में आये तू
घोटू
हथियार
पते की बात
हथियार
दो हथियार है ,बड़े खतरनाक और धाँसू
एक लड़की की मुस्कराहट,दूसरा उसके आंसू
घोटू
हथियार
दो हथियार है ,बड़े खतरनाक और धाँसू
एक लड़की की मुस्कराहट,दूसरा उसके आंसू
घोटू
भगवत उचाव
पते की बात
भगवत उचाव
तू वही करता है जो तू चाहता
मगर होता वही जो मै चाहता
तू वही कर ,जो की मै हूँ चाहता
फिर वही होगा जो है तू चाहता
घोटू
भगवत उचाव
तू वही करता है जो तू चाहता
मगर होता वही जो मै चाहता
तू वही कर ,जो की मै हूँ चाहता
फिर वही होगा जो है तू चाहता
घोटू
डस्ट बिन
पते की बात
डस्ट बिन
नोट दस रूपये का मुझको ,मिला,मैंने ये कहा ,
इस तरह इतराओ मत ,कागज़ का एक टुकड़ा हो तुम
मुस्कराया नोट बोला ,दोस्त सच कहते हो तुम ,
मगर अब तक नहीं देखी ,मैंने कोई 'डस्ट बिन '
घोटू
डस्ट बिन
नोट दस रूपये का मुझको ,मिला,मैंने ये कहा ,
इस तरह इतराओ मत ,कागज़ का एक टुकड़ा हो तुम
मुस्कराया नोट बोला ,दोस्त सच कहते हो तुम ,
मगर अब तक नहीं देखी ,मैंने कोई 'डस्ट बिन '
घोटू
प्यार और मौत
पते की बात
प्यार और मौत
प्यार और मौत ,है ऐसे मेहमान,जो आ जाते ,बुलाये बिन
एक दिल ले जाता है और एक दिल की धड़कन
घोटू
प्यार और मौत
प्यार और मौत ,है ऐसे मेहमान,जो आ जाते ,बुलाये बिन
एक दिल ले जाता है और एक दिल की धड़कन
घोटू
मुश्किलें
पते की बात
मुश्किलें
जिंदगी में ,आधी मुश्किल ,आती है इस वास्ते ,
बिना सोचे और समझे ,काम कुछ करते है हम
और बाकी आधी मुश्किल ,आती है इस वास्ते ,
सोचते ही रहते है और कुछ नहीं करते है हम
घोटू
मुश्किलें
जिंदगी में ,आधी मुश्किल ,आती है इस वास्ते ,
बिना सोचे और समझे ,काम कुछ करते है हम
और बाकी आधी मुश्किल ,आती है इस वास्ते ,
सोचते ही रहते है और कुछ नहीं करते है हम
घोटू
जेब
पते की बात
जेब
है अजब ये जिंदगानी ,जब थे हम पैदा हुए ,
पहले ,पहनी ,लंगोटी,उसमे न कोई जेब था
जिंदगी भर जेब भरने की कवायद में लगे,
मरे तो ओढा कफ़न, उसमे न कोई जेब था
घोटू
जेब
है अजब ये जिंदगानी ,जब थे हम पैदा हुए ,
पहले ,पहनी ,लंगोटी,उसमे न कोई जेब था
जिंदगी भर जेब भरने की कवायद में लगे,
मरे तो ओढा कफ़न, उसमे न कोई जेब था
घोटू
रिश्ते
पते की बात
रिश्ते
कभी रिश्ते निभाने में,रास्ते हो जाते गुम
कभी रस्ते चलते चलते ,नए रिश्ते जाते बन
घोटू
गलतियां
पते की बात
गलतियां
गलतियाँ कर सुधारो ,मत करो इतनी गलतियाँ
पेंसिल से पहले ही तो ये रबर घिस जाए ना
घोटू
गलतियां
गलतियाँ कर सुधारो ,मत करो इतनी गलतियाँ
पेंसिल से पहले ही तो ये रबर घिस जाए ना
घोटू
मील का पत्थर
पते की बात
मील का पत्थर
जिंदगानी के सफ़र में,कितने ही पत्थर मिले,
बिना उनकी किये परवाह ,आगे हम बढ़ते गए
मील के पत्थर बने वो,रास्ते के चिन्ह है,
बाद में पहचान रस्ते की वो पत्थर बन गए
घोटू
मील का पत्थर
जिंदगानी के सफ़र में,कितने ही पत्थर मिले,
बिना उनकी किये परवाह ,आगे हम बढ़ते गए
मील के पत्थर बने वो,रास्ते के चिन्ह है,
बाद में पहचान रस्ते की वो पत्थर बन गए
घोटू
हम अब भी दीवाने है
हम अब भी दीवाने है
बात प्यार की जब भी निकले ,हम तो इतना जाने है
हम पहले भी दीवाने थे ,हम अब भी दीवाने है
प्यार ,दोस्ती से यारी है ,नफरत है गद्दारी से ,
डूबे रहते है मस्ती मे ,हम तो वो दीवाने है
ना तो कोई लाग लगावट,नहीं बनावट बातों में,
ये सच है ,दुनियादारी से,हम थोड़े अनजाने है
कल की चिंता में है खोया ,हमने मन का चैन नहीं,
नींद चैन की लेते है हम ,सोते खूँटी ताने है
सीधा सादा सा स्वभाव है ,छल प्रपंच का नाम नहीं ,
पंचतंत्र और तोता मैना के बिसरे अफ़साने है
खाने और पकाने में भी ,काम सभी के आये थे ,
मोच पड़ गयी,भरे हुए पर,बर्तन भले पुराने है
जिनके प्यारे स्वर उर अंतर ,को छू छू कर जाते है,
राग रागिनी रस से रंजित,हम वो पक्के गाने है
दाना दाना खिल खिल कर के ,महकेगा,खुशबू देगा ,
कभी पका कर तो देखो ,चावल बड़े पुराने है
काफी कुछ तो बीत गयी है ,बीत जायेगी बाकी भी ,
हँसते गाते ,मस्ती में ही ,बाकी दिवस बिताने है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
बात प्यार की जब भी निकले ,हम तो इतना जाने है
हम पहले भी दीवाने थे ,हम अब भी दीवाने है
प्यार ,दोस्ती से यारी है ,नफरत है गद्दारी से ,
डूबे रहते है मस्ती मे ,हम तो वो दीवाने है
ना तो कोई लाग लगावट,नहीं बनावट बातों में,
ये सच है ,दुनियादारी से,हम थोड़े अनजाने है
कल की चिंता में है खोया ,हमने मन का चैन नहीं,
नींद चैन की लेते है हम ,सोते खूँटी ताने है
सीधा सादा सा स्वभाव है ,छल प्रपंच का नाम नहीं ,
पंचतंत्र और तोता मैना के बिसरे अफ़साने है
खाने और पकाने में भी ,काम सभी के आये थे ,
मोच पड़ गयी,भरे हुए पर,बर्तन भले पुराने है
जिनके प्यारे स्वर उर अंतर ,को छू छू कर जाते है,
राग रागिनी रस से रंजित,हम वो पक्के गाने है
दाना दाना खिल खिल कर के ,महकेगा,खुशबू देगा ,
कभी पका कर तो देखो ,चावल बड़े पुराने है
काफी कुछ तो बीत गयी है ,बीत जायेगी बाकी भी ,
हँसते गाते ,मस्ती में ही ,बाकी दिवस बिताने है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
शनिवार, 1 दिसंबर 2012
तेरे ईश्क़ में जालिम बदनाम हो गए
तेरे ईश्क़ में जालिम बदनाम हो गए |
सम्मोहन विद्या तूने ऐसी चलाई,
दो पल में हम तेरे गुलाम हो गए |
छोड़ दिया खाना जब याद में तेरे,
दो हफ्तों में ही चूसे हुए आम हो गए |
चुराया था तूने जबसे चैन को मेरे,
रात सजा और दिन मेरे हराम हो गए |
जुदाई तेरी मुझसे जब सही न गई,
खाली कितने जाम के जाम हो गए |
गम में तेरे कुछ इस कदर रोया,
हृदय के भीतर कोहराम हो गए |
सोचता रहा मैं दिन-रात ही तुझे,
खो दिया सबकुछ, बेकाम हो गए |
समझा था मैंने, तुझे सारे तीरथ,
सोचा था तुम ही मेरे धाम हो गए |
पता नहीं क्या-क्या सपने सँजो लिए,
फोकट में ही इतने ताम-झाम हो गए |
चक्कर में तेरे जिस दिन से पड़ा,
उल्टे-पुल्टे मेरे सारे काम हो गए |
फेसबुक में देखा तो हूर थी लगी,
मिला तो अरमाँ मेरे धड़ाम हो गए |
कस जो लिया तूने बाहों में अपने,
लगने लगा जैसे राम नाम हो गए |
एक बार तो मुझको ऐसा भी लगा,
चाहतों के मेरे क्या अंजाम हो गए |
टॉप-अप जो तेरा बार-बार करवाया,
कपड़े तक भी मेरे नीलाम हो गए |
चाहकर तुझको शायद पाप कर लिया,
नरक में जाने के इंतजाम हो गए |
चबाया है तूने ऐसे प्यार को मेरे,
प्यार न हुआ, काजू-बादाम हो गए |
आंसुओं से तूने कुछ ऐसे भिगाया,
बार बार मुझको जुकाम हो गए |
घेरे से छुटकर अब लगता है ऐसे,
आम के आम, गुठलियों के दाम हो गए |
बेपर्दा तो अब हम सरेआम हो गए,
तेरे ईश्क़ में जालिम बदनाम हो गए |
माँ का त्याग
पते की बात
माँ का त्याग
घर में पांच लोग होते थे,,
पर जब चार सेव आते
तब माँ ही होती जो कहती ,
मुझे सेव फल ना भाते
घोटू
माँ का त्याग
घर में पांच लोग होते थे,,
पर जब चार सेव आते
तब माँ ही होती जो कहती ,
मुझे सेव फल ना भाते
घोटू
सिक्के और नोट
पते की बात
सिक्के और नोट
सिक्के जो छोटे होते ,आवाज हमेशा करते है ,
वैसे ही छोटे लोगों में, बड़ा छिछोरापन होता
नोट बड़े होते है पर ,खामोश हमेशा रहते है,
इसी तरह से बड़े लोग में ,बड़ा ,बड़प्पन है होता
घोटू
सिक्के और नोट
सिक्के जो छोटे होते ,आवाज हमेशा करते है ,
वैसे ही छोटे लोगों में, बड़ा छिछोरापन होता
नोट बड़े होते है पर ,खामोश हमेशा रहते है,
इसी तरह से बड़े लोग में ,बड़ा ,बड़प्पन है होता
घोटू
भगवान और मंदिर
पते की बात
भगवान और मंदिर
उनने बोला 'हर जगह भगवान है मौजूद तो,
मंदिरों की क्या जरूरत है ,हमें बतलाईये
हमने बोला 'हर जगह मौजूद कमरे में हवा ,
फिर क्यों पंखे चलाते हो ,हमको ये समझाईये
घोटू
भगवान और मंदिर
उनने बोला 'हर जगह भगवान है मौजूद तो,
मंदिरों की क्या जरूरत है ,हमें बतलाईये
हमने बोला 'हर जगह मौजूद कमरे में हवा ,
फिर क्यों पंखे चलाते हो ,हमको ये समझाईये
घोटू
शुक्रवार, 30 नवंबर 2012
।। ॐ रजनीकांताय नमः ।।
कोई भी हो प्रॉब्लम रजनीकांत - रजनीकांत
कैसी भी हो टेंशन रजनीकांत - रजनीकांत
याद करो हाजिर जो रजनीकांत - रजनीकांत
हर कला में माहिर जो रजनीकांत - रजनीकांत
भाई हो या डॉन हो रजनीकांत - रजनीकांत
धरती आसमान हो रजनीकांत - रजनीकांत
गन हो या बुलेट हो रजनीकांत - रजनीकांत
एफ 50 जेट हो रजनीकांत - रजनीकांत
एसपी हो डीएम हो रजनीकांत - रजनीकांत
सीएम हो पीएम हो रजनीकांत - रजनीकांत
ओबामा - ओसामा हो रजनीकांत - रजनीकांत
कोई भी गामा हो रजनीकांत - रजनीकांत
मेरा भी सपना है रजनीकांत - रजनीकांत
तुमको पूरा करना है रजनीकांत - रजनीकांत
देश में खुशहाली हो रजनीकांत - रजनीकांत
हर दिन दीवाली हो रजनीकांत - रजनीकांत
भ्रष्टाचार रोकना है रजनीकांत - रजनीकांत
दुश्मनों को ठोंकना है रजनीकांत - रजनीकांत
ना दुखी - ना गरीब रजनीकांत - रजनीकांत
सब के सब हों खुशनसीब रजनीकांत - रजनीकांत
पावर दो - पावर दो रजनीकांत - रजनीकांत
तुम तो सुपर पावर हो रजनीकांत - रजनीकांत
धगड़ - धगड़ - तगड - तगड रजनीकांत - रजनीकांत
यगण - मगण - जगण - तगण रजनीकांत - रजनीकांत
:::::::::::।। ॐ रजनीकांताय नमः ।। :::::::::::::
- VISHAAL CHARCHCHIT
सम्बन्ध
पते की बात
सम्बन्ध
आपस के सम्बन्ध हैं,जैसे 'कार्डियोग्राम '
ऊँचे नीचे यदि रहें ,तो समझो है जान
लाइन अगर सपाट है ,तो फिर लो ये मान
हुए सभी सम्बन्ध मृत ,रही न उनमे जान
घोटू
सम्बन्ध
आपस के सम्बन्ध हैं,जैसे 'कार्डियोग्राम '
ऊँचे नीचे यदि रहें ,तो समझो है जान
लाइन अगर सपाट है ,तो फिर लो ये मान
हुए सभी सम्बन्ध मृत ,रही न उनमे जान
घोटू
नजरिया
पते की बात
नजरिया
आंधी से बचने की करते ,कोशिशें हैं ,कई ,सारे
खिड़की करता बंद कोई,खींचता कोई दीवारें
'विंडमिल 'लगवा कर कोई ,उससे ऊर्जा पाता है
इंसानों की सोच सोच में,अंतर ये दिखलाता है
घोटू
नजरिया
आंधी से बचने की करते ,कोशिशें हैं ,कई ,सारे
खिड़की करता बंद कोई,खींचता कोई दीवारें
'विंडमिल 'लगवा कर कोई ,उससे ऊर्जा पाता है
इंसानों की सोच सोच में,अंतर ये दिखलाता है
घोटू
रिश्ते-नाते
पते की बात
रिश्ते-नाते
ऐसे होते है कुछ नाते
जैसे किसी घडी के कांटे
एक धुरी से बंध कर भी वो ,
बड़ी देर तक ,ना मिल पाते
जुड़े रहते जिंदगी भर
मगर मिलते सिर्फ पलभर
घोटू
रिश्ते-नाते
ऐसे होते है कुछ नाते
जैसे किसी घडी के कांटे
एक धुरी से बंध कर भी वो ,
बड़ी देर तक ,ना मिल पाते
जुड़े रहते जिंदगी भर
मगर मिलते सिर्फ पलभर
घोटू
व्यक्तित्व
पते की बात
व्यक्तित्व
एक व्यक्ति बन के जन्में ,काम कुछ एसा करो
याद तुम को सब रखें,व्यक्तित्व बन,एसा मरो
घोटू
व्यक्तित्व
एक व्यक्ति बन के जन्में ,काम कुछ एसा करो
याद तुम को सब रखें,व्यक्तित्व बन,एसा मरो
घोटू
विध्वंस और निर्माण
पते की बात
विध्वंस और निर्माण
बीज उगता तो नहीं,करता वो कुछ आवाज है
मगर गिरता पेड़ ,लगता ,गिरी कोई गाज है
शोरगुल विध्वंस करता ,शांति है निर्माण में
बस यही तो फर्क है ,विध्वंस और निर्माण में
घोटू
विध्वंस और निर्माण
बीज उगता तो नहीं,करता वो कुछ आवाज है
मगर गिरता पेड़ ,लगता ,गिरी कोई गाज है
शोरगुल विध्वंस करता ,शांति है निर्माण में
बस यही तो फर्क है ,विध्वंस और निर्माण में
घोटू
भरोसा
पते की बात
भरोसा
डाल टूटे,हिले ,बैठा ,पंछी ना घबराएगा
उसको अपने पंखों पर है भरोसा,उड़ जाएगा
घोटू
भरोसा
डाल टूटे,हिले ,बैठा ,पंछी ना घबराएगा
उसको अपने पंखों पर है भरोसा,उड़ जाएगा
घोटू
तरक्की
पते की बात
तरक्की
कोई भी हो उपकरण ,मधुमख्खियों सा ,
फूलों से ला शहद दे सकता नहीं
कोई भी हो यंत्र कोरी घांस खाकर ,
गाय जैसा दूध दे सकता नहीं
भले कितनी ही तरक्की कर रहा ,
आजकल ये दिनबदिन विज्ञान है
मगर अब तक किसी मुर्दा जिस्म में ,
डाल वो पाया न फिर से जान है
घोटू
तरक्की
कोई भी हो उपकरण ,मधुमख्खियों सा ,
फूलों से ला शहद दे सकता नहीं
कोई भी हो यंत्र कोरी घांस खाकर ,
गाय जैसा दूध दे सकता नहीं
भले कितनी ही तरक्की कर रहा ,
आजकल ये दिनबदिन विज्ञान है
मगर अब तक किसी मुर्दा जिस्म में ,
डाल वो पाया न फिर से जान है
घोटू
धीरज
पते की बात
धीरज
बारिश आई और आपने छतरी तानी
आप न भीगे ,रहे बरसता ,कितना पानी
तंग आपदाएं करती ,जीवन में आकर
धीरज की छतरी रखती है तुम्हे बचाकर
घोटू
धीरज
बारिश आई और आपने छतरी तानी
आप न भीगे ,रहे बरसता ,कितना पानी
तंग आपदाएं करती ,जीवन में आकर
धीरज की छतरी रखती है तुम्हे बचाकर
घोटू
जिव्हा
पते की बात
जिव्हा
नहीं होती कोई हड्डी जीभ में ,
पर हिल कितने ही दिल तोड़ दिया करती है
वही जीभ जब तलुवे से मिल कहती 'सोरी',
टूटे हुए दिलों को जोड़ दिया करती है
घोटू
जिव्हा
नहीं होती कोई हड्डी जीभ में ,
पर हिल कितने ही दिल तोड़ दिया करती है
वही जीभ जब तलुवे से मिल कहती 'सोरी',
टूटे हुए दिलों को जोड़ दिया करती है
घोटू
खुश रखो
पते की बात
खुश रखो
कम से कम दो आदमी को ,
करो कोशिश ,खुश रखो तुम
दूसरा कोई भी हो पर,
मगर उनमे एक हो तुम
घोटू
खुश रखो
कम से कम दो आदमी को ,
करो कोशिश ,खुश रखो तुम
दूसरा कोई भी हो पर,
मगर उनमे एक हो तुम
घोटू
पत्थर
पते की बात
पत्थर
जिंदगी में फूल थोड़े ही खिलेंगे
लोग अक्सर फेंकते पत्थर मिलेंगे
आप पर है ,किस तरस से काम लाओ
बनाओ दीवार या फिर पुल बनाओ
घोटू
पत्थर
जिंदगी में फूल थोड़े ही खिलेंगे
लोग अक्सर फेंकते पत्थर मिलेंगे
आप पर है ,किस तरस से काम लाओ
बनाओ दीवार या फिर पुल बनाओ
घोटू
शतरंज
पते की बात
शतरंज
अपने पद और ओहदे पर ,कभी इतराओ नहीं,
बिछी है सारी बिसातें,जिंदगी शतरंज है
कौन राजा,कौन प्यादा ,खेल जब होता ख़तम ,
सभी मोहरे ,एक ही डब्बे में होते बंद है
घोटू
शतरंज
अपने पद और ओहदे पर ,कभी इतराओ नहीं,
बिछी है सारी बिसातें,जिंदगी शतरंज है
कौन राजा,कौन प्यादा ,खेल जब होता ख़तम ,
सभी मोहरे ,एक ही डब्बे में होते बंद है
घोटू
माँ की महत्ता
पते की बात
माँ की महत्ता
भीग कर बारिश में लौटा,एक दिन मै रात में
भाई बोला 'छाता क्यों ना ,ले गये साथ में '
बहन बोली'रूकती जब बरसात तुम आते तभी '
पिता बोले 'पड़ोगे बीमार ,सुधरोगे तभी '
तभी मेरे सर को पोंछा ,माँ ने लाकर तौलिया
गरम प्याला चाय का ,एक बना कर मुझको दिया
'बेटे ,कपडे बदल ले,सर्दी न लग जाए तुझे '
महत्ता माँ की समझ में,आ गयी उस दिन मुझे
घोटू
माँ की महत्ता
भीग कर बारिश में लौटा,एक दिन मै रात में
भाई बोला 'छाता क्यों ना ,ले गये साथ में '
बहन बोली'रूकती जब बरसात तुम आते तभी '
पिता बोले 'पड़ोगे बीमार ,सुधरोगे तभी '
तभी मेरे सर को पोंछा ,माँ ने लाकर तौलिया
गरम प्याला चाय का ,एक बना कर मुझको दिया
'बेटे ,कपडे बदल ले,सर्दी न लग जाए तुझे '
महत्ता माँ की समझ में,आ गयी उस दिन मुझे
घोटू
गुरुवार, 29 नवंबर 2012
अचरज
पते की बात
अचरज
नहीं खबर है अगले पल की
पर डूबे , चिंता में,कल की
भाग दौड़ कर ,कमा रहे है
यूं ही जीवन ,गमा रहे है
जब कि पता ना,कल क्या होगा
इससे बढ़,अचरज क्या होगा
घोटू
अचरज
नहीं खबर है अगले पल की
पर डूबे , चिंता में,कल की
भाग दौड़ कर ,कमा रहे है
यूं ही जीवन ,गमा रहे है
जब कि पता ना,कल क्या होगा
इससे बढ़,अचरज क्या होगा
घोटू
बुधवार, 28 नवंबर 2012
विश्वास
विश्वास
एक गाँव में सूखा था,थी हुई नहीं बरसात
वरुण देव की पूजा करने ,आये मिल सब साथ
एक बालक आया पूजन को ,रख कर छतरी पास
होगा पूजन सफल ,उसी को था मन में विश्वास
'घोटू '
एक गाँव में सूखा था,थी हुई नहीं बरसात
वरुण देव की पूजा करने ,आये मिल सब साथ
एक बालक आया पूजन को ,रख कर छतरी पास
होगा पूजन सफल ,उसी को था मन में विश्वास
'घोटू '
मंगलवार, 27 नवंबर 2012
झपकियाँ
झपकियाँ
आँख जब खुलती सवेरे
मन ये कहता ,भाई मेरे
एक झपकी और लेले ,एक झपकी और लेले
आँख से लिपटी रहे निंदिया दीवानी
सवेरे की झपकियाँ ,लगती सुहानी
और उस पर ,यदि कहे पत्नी लिपट कर
यूं ही थोड़ी देर ,लेटे रहो डियर
बांधते उन्माद के वो क्षण सुनहरे
मन ये कहता ,भाई मेरे ,एक झपकी और लेले
नींद का आगोश सबको मोहता है
मगर ये भी बात हम सबको पता है
झपकियों ने खेल कुछ एसा दिखाया
द्रुतगति खरगोश ,कछुवे ने हराया
नींद में आलस्य के रहते बसेरे
मन ये कहता भाई मेरे ,एक झपकी और लेले
झपकियाँ ये लुभाती है बहुत मन को
भले ही आराम मिलता ,चंद क्षण को
बाद में दुःख बहुत देती ,ये सताती
छूटती है ट्रेन ,फ्लाईट छूट जाती
लेट दफ्तर पहुँचने पर साहब घेरे
इसलिए ऐ भाई मेरे ,झपकियाँ तू नहीं ले रे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आँख जब खुलती सवेरे
मन ये कहता ,भाई मेरे
एक झपकी और लेले ,एक झपकी और लेले
आँख से लिपटी रहे निंदिया दीवानी
सवेरे की झपकियाँ ,लगती सुहानी
और उस पर ,यदि कहे पत्नी लिपट कर
यूं ही थोड़ी देर ,लेटे रहो डियर
बांधते उन्माद के वो क्षण सुनहरे
मन ये कहता ,भाई मेरे ,एक झपकी और लेले
नींद का आगोश सबको मोहता है
मगर ये भी बात हम सबको पता है
झपकियों ने खेल कुछ एसा दिखाया
द्रुतगति खरगोश ,कछुवे ने हराया
नींद में आलस्य के रहते बसेरे
मन ये कहता भाई मेरे ,एक झपकी और लेले
झपकियाँ ये लुभाती है बहुत मन को
भले ही आराम मिलता ,चंद क्षण को
बाद में दुःख बहुत देती ,ये सताती
छूटती है ट्रेन ,फ्लाईट छूट जाती
लेट दफ्तर पहुँचने पर साहब घेरे
इसलिए ऐ भाई मेरे ,झपकियाँ तू नहीं ले रे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सोमवार, 26 नवंबर 2012
शादी
शादी
जैसे पतझड़ के बाद ,बसंत ऋतू में ,फूलों का महकना
जैसे प्रात की बेला में,पंछियों का कलरव, चहकना
जैसे सर्दी की गुनगुनी धूप में,छत पर बैठ मुंगफलियाँ खाना
जैसे गर्मी में ट्रेन के सफ़र के बाद ,ठन्डे पानी से नहाना
जैसे तपती हुई धरती पर ,बारिश की पहली फुहार का पडना
जैसे बगीचे में,पेड़ पर चढ़ कर,पके हुए फलों को चखना
जैसे पूनम के चाँद को,थाली में भरे हुए जल में उतारना
जैसे बौराई अमराई में,कोकिल का पियू पियू पुकारना
जैसे सलवटदारवस्त्रों को प्रेस करवा कर के पहन लेना
जैसे सवेरे उठ कर ,गरम गरम चाय की चुस्कियां लेना
जैसे दीपावली की अँधेरी रात मे, दीपक जलाना
जैसे चरपरा खाने के बाद मीठे गुलाब जामुन खाना
जैसे सूखे से चेहरे पर अबीर और गुलाल का खिलना
जैसे वीणा और तबले की ताल से ताल का मिलना
जैसे जीवन के कोरे कागज़ पर कोई आकर लिख दे प्रणय गीत
जैसे वीराने में बहार बन कर आ जाए ,कोई मनमीत
जैसे जीवन की बगिया में ,फूलों की तरह ,खिलता हो प्यार
जैसे सोलह संस्कारों में सबसे प्यारा मनभावन संस्कार
जैसे जीवन की राह में ,मिल जाए ,खूबसूरत हमसफ़र का साथ
इश्वर द्वारा मानव को दी गयी ,सबसे अच्छी सौगात
शादी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जैसे पतझड़ के बाद ,बसंत ऋतू में ,फूलों का महकना
जैसे प्रात की बेला में,पंछियों का कलरव, चहकना
जैसे सर्दी की गुनगुनी धूप में,छत पर बैठ मुंगफलियाँ खाना
जैसे गर्मी में ट्रेन के सफ़र के बाद ,ठन्डे पानी से नहाना
जैसे तपती हुई धरती पर ,बारिश की पहली फुहार का पडना
जैसे बगीचे में,पेड़ पर चढ़ कर,पके हुए फलों को चखना
जैसे पूनम के चाँद को,थाली में भरे हुए जल में उतारना
जैसे बौराई अमराई में,कोकिल का पियू पियू पुकारना
जैसे सलवटदारवस्त्रों को प्रेस करवा कर के पहन लेना
जैसे सवेरे उठ कर ,गरम गरम चाय की चुस्कियां लेना
जैसे दीपावली की अँधेरी रात मे, दीपक जलाना
जैसे चरपरा खाने के बाद मीठे गुलाब जामुन खाना
जैसे सूखे से चेहरे पर अबीर और गुलाल का खिलना
जैसे वीणा और तबले की ताल से ताल का मिलना
जैसे जीवन के कोरे कागज़ पर कोई आकर लिख दे प्रणय गीत
जैसे वीराने में बहार बन कर आ जाए ,कोई मनमीत
जैसे जीवन की बगिया में ,फूलों की तरह ,खिलता हो प्यार
जैसे सोलह संस्कारों में सबसे प्यारा मनभावन संस्कार
जैसे जीवन की राह में ,मिल जाए ,खूबसूरत हमसफ़र का साथ
इश्वर द्वारा मानव को दी गयी ,सबसे अच्छी सौगात
शादी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मंथरा
मंथरा
जो लोग अपना भला बुरा नहीं समझते
आँख मूँद कर, दूसरों की सलाह पर है चलते
उन पर मुसीबत आती ही आती है
बुद्धि भ्रष्ट करने के लिए ,हर केकैयी को ,
कोई ना कोई मंथरा मिल ही जाती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जो लोग अपना भला बुरा नहीं समझते
आँख मूँद कर, दूसरों की सलाह पर है चलते
उन पर मुसीबत आती ही आती है
बुद्धि भ्रष्ट करने के लिए ,हर केकैयी को ,
कोई ना कोई मंथरा मिल ही जाती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
चन्दन सा बदन
चन्दन सा बदन
पत्नी जी हो नाराज,तो उन्हें मनाना
जैसे हो लोहे के चने चबाना
सीधी सच्ची बात भी उलटी लगती है
एसा लगता है,सब हमारी ही गलती है
एक बार पत्नी जी थी नाराज़,हमें था मनाना
हमने गा दिया ये गाना
'चन्दन सा बदन ,चंचल चितवन ,
धीरे से तेरा ये मुस्काना'
अधूरा था गाना और पत्नी ने मारा ताना
'अच्छा ,तो अब तुम्हे मेरा बदन ,
लगता है चन्दन की लकड़ी '
हमने सर पीटा ,हो गयी कुछ गड़बड़ी
हमने कहा नहीं ,हमारा मतलब था ,
तुम्हारा बदन चन्दन सा महकाता है
वो बोली'चन्दन तो तब खुशबू देता है ,
जब वो पुराना होकर सूख जाता है
तो क्या तुम्हे हमारा बदन पुराना और,
सूखी लकड़ी सा नज़र आता है?
तो फिर क्यों लिपटे रहते हो मेरे संग
चन्दन पर तो लिपटते है भुजंग
हमने कहा गलती हो गयी रानी
अब करो मेहरबानी
देवीजी ,तुम चन्दन हम पानी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पत्नी जी हो नाराज,तो उन्हें मनाना
जैसे हो लोहे के चने चबाना
सीधी सच्ची बात भी उलटी लगती है
एसा लगता है,सब हमारी ही गलती है
एक बार पत्नी जी थी नाराज़,हमें था मनाना
हमने गा दिया ये गाना
'चन्दन सा बदन ,चंचल चितवन ,
धीरे से तेरा ये मुस्काना'
अधूरा था गाना और पत्नी ने मारा ताना
'अच्छा ,तो अब तुम्हे मेरा बदन ,
लगता है चन्दन की लकड़ी '
हमने सर पीटा ,हो गयी कुछ गड़बड़ी
हमने कहा नहीं ,हमारा मतलब था ,
तुम्हारा बदन चन्दन सा महकाता है
वो बोली'चन्दन तो तब खुशबू देता है ,
जब वो पुराना होकर सूख जाता है
तो क्या तुम्हे हमारा बदन पुराना और,
सूखी लकड़ी सा नज़र आता है?
तो फिर क्यों लिपटे रहते हो मेरे संग
चन्दन पर तो लिपटते है भुजंग
हमने कहा गलती हो गयी रानी
अब करो मेहरबानी
देवीजी ,तुम चन्दन हम पानी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
--आत्मशक्ति पर विश्वास;
जीवन एक ऐसी पहेली है जिसके बारे में बात करना वे लोग ज्यादा पसंद करते हैं जिन्होंने कदम-कदम पर सफलता पाई हो.उनके पास बताने लायक काफी कुछ होता है. सामान्य व्यक्ति को तो असफलता का ही सामना करना पड़ता है.हम जैसे साधारण मनुष्यों की अनेक आकांक्षाय होती हैं. हम चाहते हैं क़ि गगन छू लें; पर हमारा भाग्य इसकी इजाजत नहीं देता.हम चाहकर भी अपने हर सपने को पूरा नहीं कर पाते .यदि मन की हर अभिलाषा पूरी हो जाया करती तो अभिलाषा भी साधारण हो जाती .हम चाहते है क़ि हमें कभी शोक ;दुःख ; भय का सामना न करना पड़े.हमारी इच्छाएं हमारे अनुसार पूरी होती जाएँ किन्तु ऐसा नहीं होता और हमारी आँख में आंसू छलक आते है. हम अपने भाग्य को कोसने लगते है.ठीक इसी समय निराशा हमे अपनी गिरफ्त में ले लेती है.इससे बाहर आने का केवल एक रास्ता है ---आत्मशक्ति पर विश्वास;------
राह कितनी भी कुटिल हो ;
हमें चलना है .
हार भी हो जाये तो भी
मुस्कुराना है;
ये जो जीवन मिला है
प्रभु की कृपा से;
इसे अब यूँ ही तो बिताना है.
रोक लेने है आंसू
दबा देना है दिल का दर्द;
हादसों के बीच से
इस तरह निकल आना है;
न मांगना कुछ
और न कुछ खोना है;
निराशा की चादर को
आशा -जल से भिगोना है;
रात कितनी भी बड़ी हो
'सवेरा तो होना है'.
शिखा कौशिक 'नूतन'
बस ! अब और नहीं ___
कब
तक
मुट्ठी
में बँधे
चंद
गीले सिक्ता कणों की नमी में
मैं
समंदर के वजूद को तलाशती रहूँ
जो
बालारूण की पहली किरण के साथ ही
वाष्प
में परिवर्तित हो
हवा
में विलीन हो जाती है !
कब
तक
मन
की दीवारों पर
उभरती
परछाइयों की उँगली पकड़े
मैं
एक स्थाई अवलम्ब पा लेने के
अहसास
से अपने मन को बहलाती रहूँ
जो
भोर की पहली दस्तक पर
भुवन
भास्कर के मृदुल आलोक के
विस्तीर्ण
होते ही जाने कहाँ
तिरोहित
हो जाती हैं !
कब
तक
शुष्क
अधरों पर टपकी
ओस
की एक नन्ही सी बूँद में
समूचे
अमृत घट के
जीवनदायी
आसव को पी लेने की
छलना
से अपने मन को छलती रहूँ
जो
कंठ तक पहुँचने से पहले
अधरों
की दरारों में जाने कहाँ
समाहित हो जाती है !
कब
तक
हर
रंग, हर आकार के
कंकरों
से भरे जीवन के इस थाल से
अपनी
थकी आँखों पर
नीति
नियमों की सीख का चश्मा लगा
सुख
के गिने चुने दानों को बीन
सहेजती
सँवारती रहूँ
जबकि
मैं जानती हूँ कि इस
प्राप्य
की औकात कितनी बौनी है !
कब
तक
थकन
से शिथिल अपने
जर्जर
तन मन को इसी तरह
जीवन
के जूए में जोतना होगा ?
कब
तक
अनगिनत
खण्डित सपनों के बोझ से झुकी
अपनी
क्लांत पलकों के तले
फिर
से बिखर जाने को नियत
नये-नये
सपनों को सेना होगा ?
कब
तक
हवन
की इस अग्नि में
अपने
स्वत्व को होम करना होगा ?
कितना
थक गयी हूँ मैं !
बस
अब और नहीं _______!
साधना
वैद
रविवार, 25 नवंबर 2012
बेचारी मधुमख्खी
बेचारी मधुमख्खी
निखारना हो अपना रूप
या दिल को करना हो मजबूत
मोटापा घटाना हो
खांसी से निजात पाना हो
चेहरा हो बहुत सुन्दर ,इसलिए
नहीं हो ,हाई ब्लड प्रेशर ,इसलिए
हम शहद काम में लाते है
पर कृषि वैज्ञानिक बताते है
शहद का बनाना नहीं है सहज
और एक मधुमख्खी ,अपने जीवनकाल में,
पैदा करती ही कुल आधा चम्मच शहद
मधुमाख्खियाँ,फूलों के ,
करीब दो करोड़ चक्कर लगाती है
तब कहीं ,आधा किलो शहद बन पाती है
मधुमख्खियों के ,पांच आँख होती है
वो,कभी भी नहीं सोती है
मधुमाख्खियों को लाल रंग,
काला दिखता है
इसलिए लाल फूलों का ,
शहद नहीं बनता है
फिर भी ,लगी रहती है दिन रात ,
पूरी लगन के साथ
कभी भी ना थकी
बेचारी मधुमख्खी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
निखारना हो अपना रूप
या दिल को करना हो मजबूत
मोटापा घटाना हो
खांसी से निजात पाना हो
चेहरा हो बहुत सुन्दर ,इसलिए
नहीं हो ,हाई ब्लड प्रेशर ,इसलिए
हम शहद काम में लाते है
पर कृषि वैज्ञानिक बताते है
शहद का बनाना नहीं है सहज
और एक मधुमख्खी ,अपने जीवनकाल में,
पैदा करती ही कुल आधा चम्मच शहद
मधुमाख्खियाँ,फूलों के ,
करीब दो करोड़ चक्कर लगाती है
तब कहीं ,आधा किलो शहद बन पाती है
मधुमख्खियों के ,पांच आँख होती है
वो,कभी भी नहीं सोती है
मधुमाख्खियों को लाल रंग,
काला दिखता है
इसलिए लाल फूलों का ,
शहद नहीं बनता है
फिर भी ,लगी रहती है दिन रात ,
पूरी लगन के साथ
कभी भी ना थकी
बेचारी मधुमख्खी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शहद सी पत्नी और 'हनीमून'
शहद सी पत्नी और 'हनीमून'
मधुर है,मीठी है,प्यारी है
शहद जैसी पत्नी हमारी है
भले ही इस उम्र में ,वो थोड़ी बुढ़िया लगती है
पर मुझे वो ,दिनों दिन और भी बढ़िया लगती है
क्योंकि शहद भी जितना पुराना होता जाता है,
उसकी गुणवत्ता बढती है
सोने के पहले ,दूध के साथ शहद खाने से
अच्छी नींद के साथ आते है ,सपने सुहाने से
सोने के पहले ,जब पत्नी होती है मेरे साथ
तो लागू होती है ,मुझ पर भी ये बात
दिल की मजबूती के लिए ,
शहद बड़ा उपयोगी है
मेरी पत्नी मेरे दिल की दवा है ,
क्योंकि ये बंदा ,दिल का रोगी है
शहद सौन्दर्य वर्धक है,
उसको लगाने से चेहरे पर चमक आती है
और जब पत्नी पास हो तो,
मेरे चेहरे पर भी रौनक छाती है
मेरी नज़रें ,मधुमख्खी की तरह ,
इधर उधर खिलते हुए ,
कितने ही पुष्पों का रसपान करती है
और मधु संचित कर ,
पत्नी जी के ह्रदय के छत्ते में भरती है
और मै ,मधु का शौक़ीन ,
रात और दिन
करता रहता हूँ मधु का रसपान
और साथ ही साथ ,पत्नी जी का गुणगान
क्योंकि शहद एक संतुलित आहार है
और मुझे अपनी पत्नी से बहुत प्यार है
अब तो आप भी जान गए होंगे कि ,
लोग अपनी पत्नी को'हनी 'कह कर क्यों बुलाते है
और शादी के बाद ,'हनीमून 'क्यों मनाते है
क्योंकि पत्नी का चेहरा चाँद सा दिखाता है
और उसमे 'हनी',याने शहद का स्वाद आता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
हमेशा सोचते रहने की आदत .....
किसी को बचपन से ही
जब नहीं मिला हो
आसानी से सब कुछ,
जब करनी पडी हो
एक - एक चीज़ को
पाने के लिए मशक्कत....
आसानी से सब कुछ,
जब करनी पडी हो
एक - एक चीज़ को
पाने के लिए मशक्कत....
जब रखना पडा हो
एक - एक कदम
हमेशा फूंक - फूंक कर,
जब सोचना पडा हो
कई - कई बार किसी से
कुछ कहने से पहले,
जब जिन्दगी दिखाती रहो
एक पल को रोशनी
दूसरे पल गहरा अन्धकार....
जब चलना पड रहा हो
हमेशा ऊबड़ - खाबड़ रास्तों से,
और पता नहीं हो कि
अभी और कितना चलने के बाद
मिलेगी मनचाही मंजिल,
तो हो ही जाती है अक्सर
कुछ न कुछ सोचते रहने की आदत....
कई - कई बार किसी से
कुछ कहने से पहले,
जब जिन्दगी दिखाती रहो
एक पल को रोशनी
दूसरे पल गहरा अन्धकार....
जब चलना पड रहा हो
हमेशा ऊबड़ - खाबड़ रास्तों से,
और पता नहीं हो कि
अभी और कितना चलने के बाद
मिलेगी मनचाही मंजिल,
तो हो ही जाती है अक्सर
कुछ न कुछ सोचते रहने की आदत....
क्योंकि ये सोच - ये विचार
ये सपने - ये खयाली पुलाव ही तो हैं
देते रहते है अक्सर आगे बढ़ते रहने
सतत चलते रहने का हौसला,
जो अक्सर बहलाते रहते है दिल,
और दिल ?
दिल ही तो है जो किसी इंजन की तरह
खींचता रहता है ज़िंदगी की गाडी को,
इसलिए बहुत जरूरी है दिल का
तमाम विचारों - तमाम सपनों के
पेट्रोल से लबालब भरा रहना .....
- VISHAAL CHARCHCHIT
शनिवार, 24 नवंबर 2012
मिलन
मिलन
मिलन मिलन में अक्सर काफी अंतर होता
जल जल ही रहता है ,टुकड़े पत्थर होता
दूर क्षितिज में मिलते दिखते ,अवनी ,अम्बर
किन्तु मिलन यह होता एक छलावा केवल
क्योंकि धरा आकाश ,कभी भी ना मिलते है
चारों तरफ भले ही वो मिलते ,दिखते है
मिलन नज़र से नज़रों का है प्यार जगाता
लब से लब का मिलन दिलों में आग लगाता
तन से तन का मिलन ,प्रेम की प्रतिक्रिया है
पति ,पत्नी का मिलन रोज की दिनचर्या है
छुप छुप मिलन प्रेमियों का होता उन्मादी
दो ह्र्दयों का मिलन पर्व ,कहलाता शादी
माटी और बीज का जल से होता संगम
विकसित होती पौध ,पनपती बड़ा वृक्ष बन
सिर्फ मिलन से ही जगती क्रम चलता है
अन्न ,पुष्प,फल,संतति को जीवन मिलता है
हर सरिता,अंततः ,मिलती है ,सागर से
मीठे जल का मिलन सदा है खारे जल से
मिलन कोई होता है सुखकर ,कोई दुखकर
एक मिलन मृदु होता और दूसरा टक्कर
मधुर मिलन तो होता सदा प्रेम का पोषक
पर टक्कर का मिलन अधिकतर है विध्वंशक
टकराते चकमक पत्थर,निकले चिगारी
मिले हाथ से हाथ ,दोस्ती होती प्यारी
हवा मिले तरु से तो हिलते ,टहनी ,पत्ते
मिले पुष्प,मधुमख्खी ,भरते मधु से छत्ते
शीत ग्रीष्म के मिलन बीच आता बसंत है
मिलन मौत से,जीवन का बस यही अंत है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
मिलन मिलन में अक्सर काफी अंतर होता
जल जल ही रहता है ,टुकड़े पत्थर होता
दूर क्षितिज में मिलते दिखते ,अवनी ,अम्बर
किन्तु मिलन यह होता एक छलावा केवल
क्योंकि धरा आकाश ,कभी भी ना मिलते है
चारों तरफ भले ही वो मिलते ,दिखते है
मिलन नज़र से नज़रों का है प्यार जगाता
लब से लब का मिलन दिलों में आग लगाता
तन से तन का मिलन ,प्रेम की प्रतिक्रिया है
पति ,पत्नी का मिलन रोज की दिनचर्या है
छुप छुप मिलन प्रेमियों का होता उन्मादी
दो ह्र्दयों का मिलन पर्व ,कहलाता शादी
माटी और बीज का जल से होता संगम
विकसित होती पौध ,पनपती बड़ा वृक्ष बन
सिर्फ मिलन से ही जगती क्रम चलता है
अन्न ,पुष्प,फल,संतति को जीवन मिलता है
हर सरिता,अंततः ,मिलती है ,सागर से
मीठे जल का मिलन सदा है खारे जल से
मिलन कोई होता है सुखकर ,कोई दुखकर
एक मिलन मृदु होता और दूसरा टक्कर
मधुर मिलन तो होता सदा प्रेम का पोषक
पर टक्कर का मिलन अधिकतर है विध्वंशक
टकराते चकमक पत्थर,निकले चिगारी
मिले हाथ से हाथ ,दोस्ती होती प्यारी
हवा मिले तरु से तो हिलते ,टहनी ,पत्ते
मिले पुष्प,मधुमख्खी ,भरते मधु से छत्ते
शीत ग्रीष्म के मिलन बीच आता बसंत है
मिलन मौत से,जीवन का बस यही अंत है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
लक्ष्मी जी की कृपा
लक्ष्मी जी की कृपा
लक्ष्मी जी का आकर्षण ही एसा है कि ,
सब उसके प्रभाव से बंध जाते है
चिघाड़ने वाले ,बलवान हाथी भी ,
उनको देख ,उमके सेवक बन जाते है
और लक्ष्मी जी आस पास ,
अपनी सूंड उठा कर ,
पानी की बौछार करते हुए नज़र आते है
कमलासन पर विराजमान,लक्ष्मी जी की,
कृपा जब आपके साथ होती है
तो दोनों हाथों से ,
पैसों की बरसात होती है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
लक्ष्मी जी का आकर्षण ही एसा है कि ,
सब उसके प्रभाव से बंध जाते है
चिघाड़ने वाले ,बलवान हाथी भी ,
उनको देख ,उमके सेवक बन जाते है
और लक्ष्मी जी आस पास ,
अपनी सूंड उठा कर ,
पानी की बौछार करते हुए नज़र आते है
कमलासन पर विराजमान,लक्ष्मी जी की,
कृपा जब आपके साथ होती है
तो दोनों हाथों से ,
पैसों की बरसात होती है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
कार्तिक के पर्व
कार्तिक के पर्व
धन तेरस ,धन्वन्तरी पूजा,उत्तम स्वास्थ्य ,भली हो सेहत
और रूप चौदस अगले दिन,रूप निखारो ,अपना फरसक
दीपावली को,धन की देवी,लक्ष्मी जी का ,करते पूजन
सुन्दर स्वास्थ्य,रूप और धन का ,होता तीन दिनों आराधन
पडवा को गोवर्धन पूजा,परिचायक है गो वर्धन की
गौ से दूध,दही,घी,माखन,अच्छी सेहत की और धन की
होती भाईदूज अगले दिन,बहन भाई को करती टीका
भाई बहन में प्यार बढाने का है ये उत्कृष्ट तरीका
पांडव पंचमी ,भाई भाई का,प्यार ,संगठन है दिखलाते
ये दो पर्व,प्यार के द्योतक ,परिवार में,प्रेम बढाते
सूरज जो अपनी ऊर्जा से,देता सारे जग को जीवन
सूर्य छटी पर ,अर्घ्य चढ़ा कर,करते हम उसका आराधन
गोपाष्टमी को ,गौ का पूजन ,और गौ पालक का अभिनन्दन
गौ माता है ,सबकी पालक,उसमे करते वास देवगण
और आँवला नवमी आती,तरु का,फल का,होता पूजन
स्वास्थ्य प्रदायक,आयु वर्धक,इस फल में संचित है सब गुण
एकादशी को ,शालिग्राम और तुलसी का ,ब्याह अनोखा
शालिग्राम,प्रतीक पहाड़ के,तुलसी है प्रतीक वृक्षों का
वनस्पति और वृक्ष अगर जो जाएँ उगाये,हर पर्वत पर
पर्यावरण स्वच्छ होगा और धन की वर्षा ,होगी,सब पर
इन्ही तरीकों को अपनाकर ,स्वास्थ्य ,रूप और धन पायेंगे
शयन कर रहे थे जो अब तक,भाग्य देव भी,जग जायेंगे
देवउठनी एकादशी व्रत कर,पुण्य बहुत हो जाते संचित
फिर आती बैकुंठ चतुर्दशी,हो जाता बैकुंठ सुनिश्चित
और फिर कार्तिक की पूनम पर,आप गंगा स्नान कीजिये
कार्तिक पर्व,स्वास्थ्य ,धनदायक,इनकी महिमा जान लीजिये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
धन तेरस ,धन्वन्तरी पूजा,उत्तम स्वास्थ्य ,भली हो सेहत
और रूप चौदस अगले दिन,रूप निखारो ,अपना फरसक
दीपावली को,धन की देवी,लक्ष्मी जी का ,करते पूजन
सुन्दर स्वास्थ्य,रूप और धन का ,होता तीन दिनों आराधन
पडवा को गोवर्धन पूजा,परिचायक है गो वर्धन की
गौ से दूध,दही,घी,माखन,अच्छी सेहत की और धन की
होती भाईदूज अगले दिन,बहन भाई को करती टीका
भाई बहन में प्यार बढाने का है ये उत्कृष्ट तरीका
पांडव पंचमी ,भाई भाई का,प्यार ,संगठन है दिखलाते
ये दो पर्व,प्यार के द्योतक ,परिवार में,प्रेम बढाते
सूरज जो अपनी ऊर्जा से,देता सारे जग को जीवन
सूर्य छटी पर ,अर्घ्य चढ़ा कर,करते हम उसका आराधन
गोपाष्टमी को ,गौ का पूजन ,और गौ पालक का अभिनन्दन
गौ माता है ,सबकी पालक,उसमे करते वास देवगण
और आँवला नवमी आती,तरु का,फल का,होता पूजन
स्वास्थ्य प्रदायक,आयु वर्धक,इस फल में संचित है सब गुण
एकादशी को ,शालिग्राम और तुलसी का ,ब्याह अनोखा
शालिग्राम,प्रतीक पहाड़ के,तुलसी है प्रतीक वृक्षों का
वनस्पति और वृक्ष अगर जो जाएँ उगाये,हर पर्वत पर
पर्यावरण स्वच्छ होगा और धन की वर्षा ,होगी,सब पर
इन्ही तरीकों को अपनाकर ,स्वास्थ्य ,रूप और धन पायेंगे
शयन कर रहे थे जो अब तक,भाग्य देव भी,जग जायेंगे
देवउठनी एकादशी व्रत कर,पुण्य बहुत हो जाते संचित
फिर आती बैकुंठ चतुर्दशी,हो जाता बैकुंठ सुनिश्चित
और फिर कार्तिक की पूनम पर,आप गंगा स्नान कीजिये
कार्तिक पर्व,स्वास्थ्य ,धनदायक,इनकी महिमा जान लीजिये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बुधवार, 21 नवंबर 2012
जो दिखता है-वो बिकता है
जो दिखता है-वो बिकता है
जो दिखता है -वो बिकता है
बिका हुआ रेपिंग पेपर में ,
छुप प्रेजेंट कहाता है
पर जब रेपिंग पेपर फटता ,
तो फिर से दिखलाता है
बन जाता प्रेजेंट ,पास्ट,
ज्यादा दिन तक ना टिकता है
जो दिखता है -वो फिंकता है
लाख करोडो रिश्वत खाते ,
नेताजी ,कर घोटाले
पोल खुले तो फंसते अफसर ,
मारे जाते बेचारे
छुपे छुपे नेताजी रहते ,
दोषी अफसर दिखता है
जो दिखता है-वो पिसता है
गौरी का रंग गोरा लेकिन,
खुला खुला जो अंग रहे
धीरे धीरे पड़ता काला ,
जब वो तीखी धुप सहे
छुपे अंग रहते गोरे ,
और खुल्ला ,काला दिखता है
जो दिखता है -वो सिकता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जो दिखता है -वो बिकता है
बिका हुआ रेपिंग पेपर में ,
छुप प्रेजेंट कहाता है
पर जब रेपिंग पेपर फटता ,
तो फिर से दिखलाता है
बन जाता प्रेजेंट ,पास्ट,
ज्यादा दिन तक ना टिकता है
जो दिखता है -वो फिंकता है
लाख करोडो रिश्वत खाते ,
नेताजी ,कर घोटाले
पोल खुले तो फंसते अफसर ,
मारे जाते बेचारे
छुपे छुपे नेताजी रहते ,
दोषी अफसर दिखता है
जो दिखता है-वो पिसता है
गौरी का रंग गोरा लेकिन,
खुला खुला जो अंग रहे
धीरे धीरे पड़ता काला ,
जब वो तीखी धुप सहे
छुपे अंग रहते गोरे ,
और खुल्ला ,काला दिखता है
जो दिखता है -वो सिकता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गुमशुदा
रहता है सबके आस-पास ही
फिर भी न जाने कैसे
हो ही जाता है सबका
कभी न कभी कुछ न कुछ-
गुमशुदा |
इस भेड़ चाल के दौर में,
सब कुछ है गुमशुदा;
इसका भी कुछ गुमशुदा,
उसका भी कुछ गुमशुदा |
किसी का ईमान गुमशुदा,
किसी का जहान गुमशुदा;
गुमशुदा है अपने ही अंदर की अंतरात्मा,
जीवित होके भी जान गुमशुदा |
जीवन से बहार गुमशुदा,
किसी का संस्कार गुमशुदा;
गुमशुदा है हृदय के अंदर का बैठा वो भगवान,
तलवार तो है पर धार गुमशुदा |
मतिष्क से एहसास गुमशुदा,
हृदय से जज़्बात गुमशुदा;
गुमशुदा है मानव के अंदर की मानवता,
जुबान तो है ही पर मिठास गुमशुदा |
रिश्तों से विश्वास गुमशुदा,
अपनों पर से आस गुमशुदा;
गुमशुदा है पहले जो होता था परोपकार भाव,
एक दूजे के हृदय में आवास गुमशुदा |
नहीं है किसी को फिकर,
नहीं है किसी को खोज;
जो गुम हो गया वो गुम ही रहे,
जो एक बार गया वो सदैव के लिए-
गुमशुदा |
सोमवार, 19 नवंबर 2012
दक्षिणा के साथ साथ
दक्षिणा के साथ साथ
अबकी बार ,जब आया था श्राध्द पक्ष
तो एक आधुनिक पंडित जी ,
जो है कर्म काण्ड में काफी दक्ष
हमने उन्हें निमंत्रण दिया कि ,
परसों हमारे दादाजी का श्राध्द है,
आप भोजन करने हमारे घर आइये
तो वो तपाक से बोले ,
कृपया भोजन का 'मेनू 'बतलाइये
हमने कहा पंडित जी,तर माल खिलवायेगे
खीर,पूरी,जलेबी,गुलाब जामुन ,कचोडी ,
पुआ,पकोड़ी सब बनवायेगे
पंडित जी बोले 'ये सारे पदार्थ ,
तले हुए है,और इनमे भरपूर शर्करा है '
ये सारा भोजन गरिष्ठ है ,
और 'हाई केलोरी 'से भरा है '
श्राध्द का प्रसाद है ,सो हमको खाना होगा
पर इतनी सारी केलोरी को जलाने को,
बाद में 'जिम' जाना होगा
इसलिए भोजन के बाद आप जो भी दक्षिणा देंगे
उसके साथ 'जिम'जाने के चार्जेस अलग से लगेंगे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
अबकी बार ,जब आया था श्राध्द पक्ष
तो एक आधुनिक पंडित जी ,
जो है कर्म काण्ड में काफी दक्ष
हमने उन्हें निमंत्रण दिया कि ,
परसों हमारे दादाजी का श्राध्द है,
आप भोजन करने हमारे घर आइये
तो वो तपाक से बोले ,
कृपया भोजन का 'मेनू 'बतलाइये
हमने कहा पंडित जी,तर माल खिलवायेगे
खीर,पूरी,जलेबी,गुलाब जामुन ,कचोडी ,
पुआ,पकोड़ी सब बनवायेगे
पंडित जी बोले 'ये सारे पदार्थ ,
तले हुए है,और इनमे भरपूर शर्करा है '
ये सारा भोजन गरिष्ठ है ,
और 'हाई केलोरी 'से भरा है '
श्राध्द का प्रसाद है ,सो हमको खाना होगा
पर इतनी सारी केलोरी को जलाने को,
बाद में 'जिम' जाना होगा
इसलिए भोजन के बाद आप जो भी दक्षिणा देंगे
उसके साथ 'जिम'जाने के चार्जेस अलग से लगेंगे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
दिवाली मन जाती है
दिवाली मन जाती है
जब भी आती है दिवाली ,हर बार
एक जगह ,एकत्रित हो जाता है,
हम सब भाइयों का पूरा परिवार
मनाने को खुशियों का त्योंहार
साथ साथ मिलकर के ,दिवाली मनाना
हंसी ख़ुशी ,चहल पहल,खाना,खिलाना
लक्ष्मी जी का पूजन,पटाखे चलाना
प्रेम भाव,मस्ती,वो हँसना ,हँसाना
भले ही चार दिन ,पर जब सब मिल जाते है
मेरी माँ के झुर्राए चेहरे पर ,
फूल खिल जाते है
सब को एक साथ देख कर ,
उनकी धुंधली सी आँखों में ,
खुशियों के दीपक जल जाते है
प्यार ,ममता और संतोष की,
ऐसी चमक आती है
कि दीपावली,अपने आप मन जाती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जब भी आती है दिवाली ,हर बार
एक जगह ,एकत्रित हो जाता है,
हम सब भाइयों का पूरा परिवार
मनाने को खुशियों का त्योंहार
साथ साथ मिलकर के ,दिवाली मनाना
हंसी ख़ुशी ,चहल पहल,खाना,खिलाना
लक्ष्मी जी का पूजन,पटाखे चलाना
प्रेम भाव,मस्ती,वो हँसना ,हँसाना
भले ही चार दिन ,पर जब सब मिल जाते है
मेरी माँ के झुर्राए चेहरे पर ,
फूल खिल जाते है
सब को एक साथ देख कर ,
उनकी धुंधली सी आँखों में ,
खुशियों के दीपक जल जाते है
प्यार ,ममता और संतोष की,
ऐसी चमक आती है
कि दीपावली,अपने आप मन जाती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गृह लक्ष्मी
गृह लक्ष्मी
नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृहलक्ष्मी है
जीवन को करती ज्योतिर्मय
उससे ही है घर का वैभव
जगमग जगमग घर करता है
खुशियों से आँगन भरता है
दीवाली की सभी मिठाई
उसके अन्दर रहे समाई
गुझिये जैसा भरा हुआ तन
रसगुल्ले सा रसमय यौवन
और जलेबी जैसी सीधी
चाट चटपटी ,दहीबड़े सी
फूलझड़ी सी वो मुस्काती
और अनार सा फूल खिलाती
कभी कभी बम बन फटती है
आतिशबाजी सी लगती है
आभूषण से रहे सजी है
प्रतिभा उसकी ,चतुर्भुजी है
दो हाथों में कमल सजाती
खुले हाथ पैसे बरसाती
मै उलूक सा ,उनका वाहन
जाऊं उधर,जिधर उनका मन
इधर उधर आती जाती है
तभी चंचला कहलाती है
मेरे मन में मगर रमी है
नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृह लक्ष्मी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृहलक्ष्मी है
जीवन को करती ज्योतिर्मय
उससे ही है घर का वैभव
जगमग जगमग घर करता है
खुशियों से आँगन भरता है
दीवाली की सभी मिठाई
उसके अन्दर रहे समाई
गुझिये जैसा भरा हुआ तन
रसगुल्ले सा रसमय यौवन
और जलेबी जैसी सीधी
चाट चटपटी ,दहीबड़े सी
फूलझड़ी सी वो मुस्काती
और अनार सा फूल खिलाती
कभी कभी बम बन फटती है
आतिशबाजी सी लगती है
आभूषण से रहे सजी है
प्रतिभा उसकी ,चतुर्भुजी है
दो हाथों में कमल सजाती
खुले हाथ पैसे बरसाती
मै उलूक सा ,उनका वाहन
जाऊं उधर,जिधर उनका मन
इधर उधर आती जाती है
तभी चंचला कहलाती है
मेरे मन में मगर रमी है
नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृह लक्ष्मी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
रविवार, 18 नवंबर 2012
पत्नी-पीड़ित -पति
पत्नी-पीड़ित -पति
सारी दुनिया में ले चिराग ,
यदि निकल ढूँढने जाए आप
मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
ये बात नहीं है अनजानी
चेहरे पर चिंतायें होगी ,
माथे पर शिकन पड़ी होगी
मुरझाया सा मुखड़ा होगा ,
सूरत कुछ झड़ी झड़ी होगी
सर पर यदि होंगे बाल अगर ,
तो अस्त व्यस्त ही पाओगे ,
वर्ना अक्सर ही उस गरीब ,
की चंदिया उडी उडी होगी
रूखी रूखी बातें करता ,
सूखा सूखा आनन होगा
निचुड़ा निचुड़ा ,सुकड़ा सुकड़ा ,
ढीला ढीला सा तन होगा
आँखों में चमक नहीं होगी ,
कुछ कुछ मुरझायापन होगा
यदि बाहर से हँसता भी हो,
अन्दर से रोता मन होगा
बिचके जो बातचीत में भी,
कुछ कहने में शरमाता हो
पत्नी की आहट पाते ही ,
झट घबरा घबरा जाता हो
चौकन्ना श्वान सरीखा हो,
गैया सा सीधा सीधा हो
पर अपने घर में घुसते ही ,
भीगी बिल्ली बन जाता हो
दिखने में भोला भोला हो
जिसके होंठो पर ताला हो
बोली हो जिसकी दबी दबी ,
और हंसी हँसे जो खिसियानी
मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
उस दुखी जीव को देख अगर ,
जो ह्रदय दया से भर जाए
उसकी हालत पर तरस आये,
मन में सहानुभूति छाये
शायद तुम उससे पूछोगे ,
क्यों बना रखी है ये हालत ,
हो सकता है वो घबराये ,
उत्तर देने में कतराये
तुम शायद पूछो क्या ऐसा ,
जीवन लगता है जेल नहीं
चेहरे पर चिंताएं क्यों है,
क्यों है बालों में तेल नहीं
सूखी सी एक हंसी हंस कर ,
शायद वह यह उत्तर देगा ,
पत्नी पीड़ित ,होकर जीवित ,
रह लेना कोई खेल नहीं
मै खोया खोया रहता हूँ,
मुझको जीवन से मोह नहीं
सब कुछ सह सकता ,पत्नी से ,
सह सकता मगर बिछोह नहीं
शायद मेरी कमजोरी है ,
कायरता भी कह सकते हो,
लेकिन अपनी पत्नीजी से ,
कर सकता मै विद्रोह नहीं
कैसे साहस कर सकता हूँ
उनके बेलन से डरता हूँ
पत्नी सेवा है धर्म मेरा ,
पत्नीजी है घर की रानी
मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
ऐसे पत्नी पीड़ित पति की भी,
काफी किस्मे होती है
कितने ही आफत के मारों ,
की गिनती इसमें होती है
कोई के पल्ले बंध जाती,
जब बड़े बाप की बेटी है,
तो छोटी छोटी बातों में ,
भी तू तू मै मै होती है
कोई की पत्नी कमा रही,
तो पति पर रौब चलाती है
कोई सुन्दर आँखों वाली है ,
पति को आँख दिखाती है
कोई का पति दीवाना है ,
कोई के पति जी दुर्बल है ,
पति की कोई भी कमजोरी का ,
पत्नी लाभ उठाती है
कुछ ख़ास किसम के पतियों संग ,
एसा भी चक्कर होता है
पति विरही ,तडफे ,पत्नी को ,
पर प्यारा पीहर होता है
कोई की पत्नी सुन्दर है,
सब लोग घूर कर तकते है
कुछ शकी किस्म के पतियों को,
अक्सर ये भी डर होता है
कोई की पत्नी रोगी है
कोई की पत्नी ढोंगी है
कोई की पत्नी करती है ,
अक्सर अपनी ही मन मानी
मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
ये बात नहीं है अनजानी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सारी दुनिया में ले चिराग ,
यदि निकल ढूँढने जाए आप
मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
ये बात नहीं है अनजानी
चेहरे पर चिंतायें होगी ,
माथे पर शिकन पड़ी होगी
मुरझाया सा मुखड़ा होगा ,
सूरत कुछ झड़ी झड़ी होगी
सर पर यदि होंगे बाल अगर ,
तो अस्त व्यस्त ही पाओगे ,
वर्ना अक्सर ही उस गरीब ,
की चंदिया उडी उडी होगी
रूखी रूखी बातें करता ,
सूखा सूखा आनन होगा
निचुड़ा निचुड़ा ,सुकड़ा सुकड़ा ,
ढीला ढीला सा तन होगा
आँखों में चमक नहीं होगी ,
कुछ कुछ मुरझायापन होगा
यदि बाहर से हँसता भी हो,
अन्दर से रोता मन होगा
बिचके जो बातचीत में भी,
कुछ कहने में शरमाता हो
पत्नी की आहट पाते ही ,
झट घबरा घबरा जाता हो
चौकन्ना श्वान सरीखा हो,
गैया सा सीधा सीधा हो
पर अपने घर में घुसते ही ,
भीगी बिल्ली बन जाता हो
दिखने में भोला भोला हो
जिसके होंठो पर ताला हो
बोली हो जिसकी दबी दबी ,
और हंसी हँसे जो खिसियानी
मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
उस दुखी जीव को देख अगर ,
जो ह्रदय दया से भर जाए
उसकी हालत पर तरस आये,
मन में सहानुभूति छाये
शायद तुम उससे पूछोगे ,
क्यों बना रखी है ये हालत ,
हो सकता है वो घबराये ,
उत्तर देने में कतराये
तुम शायद पूछो क्या ऐसा ,
जीवन लगता है जेल नहीं
चेहरे पर चिंताएं क्यों है,
क्यों है बालों में तेल नहीं
सूखी सी एक हंसी हंस कर ,
शायद वह यह उत्तर देगा ,
पत्नी पीड़ित ,होकर जीवित ,
रह लेना कोई खेल नहीं
मै खोया खोया रहता हूँ,
मुझको जीवन से मोह नहीं
सब कुछ सह सकता ,पत्नी से ,
सह सकता मगर बिछोह नहीं
शायद मेरी कमजोरी है ,
कायरता भी कह सकते हो,
लेकिन अपनी पत्नीजी से ,
कर सकता मै विद्रोह नहीं
कैसे साहस कर सकता हूँ
उनके बेलन से डरता हूँ
पत्नी सेवा है धर्म मेरा ,
पत्नीजी है घर की रानी
मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
ऐसे पत्नी पीड़ित पति की भी,
काफी किस्मे होती है
कितने ही आफत के मारों ,
की गिनती इसमें होती है
कोई के पल्ले बंध जाती,
जब बड़े बाप की बेटी है,
तो छोटी छोटी बातों में ,
भी तू तू मै मै होती है
कोई की पत्नी कमा रही,
तो पति पर रौब चलाती है
कोई सुन्दर आँखों वाली है ,
पति को आँख दिखाती है
कोई का पति दीवाना है ,
कोई के पति जी दुर्बल है ,
पति की कोई भी कमजोरी का ,
पत्नी लाभ उठाती है
कुछ ख़ास किसम के पतियों संग ,
एसा भी चक्कर होता है
पति विरही ,तडफे ,पत्नी को ,
पर प्यारा पीहर होता है
कोई की पत्नी सुन्दर है,
सब लोग घूर कर तकते है
कुछ शकी किस्म के पतियों को,
अक्सर ये भी डर होता है
कोई की पत्नी रोगी है
कोई की पत्नी ढोंगी है
कोई की पत्नी करती है ,
अक्सर अपनी ही मन मानी
मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
ये बात नहीं है अनजानी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
नुक्सान
नुक्सान
मेरी शादी नयी नयी थी
मेरी बीबी छुई मुई थी
सीधी सादी भोली भाली
एक गाँव की रहने वाली
ससुर साहब ने पाली भैंसे
बेचा दूध,कमाए पैसे
अरारोट ,पानी की माया
बचा दूध तो दही बनाया
मख्खन,छाछ ,कड़ी बनवायी
घर पर सब्जी कभी न आयी
तो भोली बीबी को लेकर
मैंने बसा लिया अपना घर
तरह तरह की बात बताता
ताज़ी ताज़ी सब्जी लाता
एक दिवस ऑफिस से लौटा
आते ही बीबी ने टोका
तुम्हे ठगा सब्जी वाले ने
धोखा खूब दिया साले ने
सब्जी तुम लाये थे जो भी
हाँ हाँ क्या थी,पत्ता गोभी
छिलके ही छिलके निकले जी
गूदे का ना पता चले जी
मैंने छिलके फेंक दिये है
सारे पैसे व्यर्थ गये है
सुन कर बहुत हंसी सी आई
पत्नीजी ने कभी न खायी
थी सब्जी पत्ता गोभी की
वह ना उसकी माँ दोषी थी
कंजूसी से काम हो गया
पर मेरा नुक्सान हो गया
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मेरी शादी नयी नयी थी
मेरी बीबी छुई मुई थी
सीधी सादी भोली भाली
एक गाँव की रहने वाली
ससुर साहब ने पाली भैंसे
बेचा दूध,कमाए पैसे
अरारोट ,पानी की माया
बचा दूध तो दही बनाया
मख्खन,छाछ ,कड़ी बनवायी
घर पर सब्जी कभी न आयी
तो भोली बीबी को लेकर
मैंने बसा लिया अपना घर
तरह तरह की बात बताता
ताज़ी ताज़ी सब्जी लाता
एक दिवस ऑफिस से लौटा
आते ही बीबी ने टोका
तुम्हे ठगा सब्जी वाले ने
धोखा खूब दिया साले ने
सब्जी तुम लाये थे जो भी
हाँ हाँ क्या थी,पत्ता गोभी
छिलके ही छिलके निकले जी
गूदे का ना पता चले जी
मैंने छिलके फेंक दिये है
सारे पैसे व्यर्थ गये है
सुन कर बहुत हंसी सी आई
पत्नीजी ने कभी न खायी
थी सब्जी पत्ता गोभी की
वह ना उसकी माँ दोषी थी
कंजूसी से काम हो गया
पर मेरा नुक्सान हो गया
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शनिवार, 17 नवंबर 2012
मात शारदे!
मात शारदे!
मात शारदे !
मुझे प्यार दे
वीणावादिनी !
नव बहार दे
मन वीणा को ,
झंकृत कर दे
हंस वाहिनी ,
एसा वर दे
सत -पथ -अमृत ,
मन में भर दे
बुद्धिदायिनी ,
नव विचार दे
मात शारदे!
ज्ञानसुधा की,
घूँट पिला दे
सुप्त भाव का ,
जलज खिला दे
गयी चेतना ,
फिर से ला दे
डगमग नैया ,
लगा पार दे
मात शारदे !
भटक रहा मै ,
दर दर ओ माँ
नव प्रकाश दे,
तम हर ओ माँ
नव लय दे तू,
नव स्वर ओ माँ
ज्ञान सुरसरी ,
प्रीत धार दे
मात शारदे !
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मात शारदे !
मुझे प्यार दे
वीणावादिनी !
नव बहार दे
मन वीणा को ,
झंकृत कर दे
हंस वाहिनी ,
एसा वर दे
सत -पथ -अमृत ,
मन में भर दे
बुद्धिदायिनी ,
नव विचार दे
मात शारदे!
ज्ञानसुधा की,
घूँट पिला दे
सुप्त भाव का ,
जलज खिला दे
गयी चेतना ,
फिर से ला दे
डगमग नैया ,
लगा पार दे
मात शारदे !
भटक रहा मै ,
दर दर ओ माँ
नव प्रकाश दे,
तम हर ओ माँ
नव लय दे तू,
नव स्वर ओ माँ
ज्ञान सुरसरी ,
प्रीत धार दे
मात शारदे !
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
दुनियादारी
दुनियादारी
दोस्ती के नाम पर ,जाम पीनेवाले भी,
दोस्ती के दामन में ,दाग लगा देते है
धुवें से डरते है,लेकिन खुदगर्जी में,
खुद आगे रह कर के आग लगा देते है
रोज की बातें है ,जो अक्सर होती है
खुदगर्जी झगडे का ,बीज सदा बोती है
कभी कभी लेकिन कुछ ,एसा भी होता है,
दुश्मन तो साथ मगर ,दोस्त दगा देते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
दोस्ती के नाम पर ,जाम पीनेवाले भी,
दोस्ती के दामन में ,दाग लगा देते है
धुवें से डरते है,लेकिन खुदगर्जी में,
खुद आगे रह कर के आग लगा देते है
रोज की बातें है ,जो अक्सर होती है
खुदगर्जी झगडे का ,बीज सदा बोती है
कभी कभी लेकिन कुछ ,एसा भी होता है,
दुश्मन तो साथ मगर ,दोस्त दगा देते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जग में चार तरह के दानी
जग में चार तरह के दानी
प्रथम श्रेणी के दानी वो जो पापकर्म करते रहते है
पर ऊपरवाले से डर कर ,दान धर्म करते रहते है
बेईमानी की पूँजी का ,थोडा प्रतिशत दान फंड में
गर्मी में लस्सी पिलवाते,कम्बल बँटवा रहे ठण्ड में
जनम जनम के पाप धो रहे ,गंगाजी की एक डुबकी में
पूजा ,हवन सभी करवाते ,लेकिन खोट भरा है जी में
लेकिन डर कर ,'धरमराज 'से ,धर्मराज बनने वाले ये,
छिपे भेड़ियों की खालों में ,इस कलयुग के सच्चे ज्ञानी
जग में चार तरह के दानी
निज में रखता कलम ,पेन्सिल ,कलमदान यह कहलाता है
कुछ पैसे गंगा में डालो , गुप्तदान यह कहलाता है
और तीसरे ढंग की दानी, कहलाती है चूहे दानी
कैद किया करती चूहों को , नाम मगर है फिर भी दानी
शायद दान किया करती है,आजादी का,स्वतंत्रता का
चौथी दानी,मच्छरदानी ,फहराती है ,विजय पताका
मच्छरदानी ,पर मच्छर को,ना देती है पास फटकने
रक्तदान से हमें बचाती ,रात चैन से देती कटने
चूहेदानी में चूहे पर,मच्छरदानी बिन मच्छर के ,
फिर भी दानी कहलाती है,यह सचमुच ही है हैरानी
जग में चार तरह के दानी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
प्रथम श्रेणी के दानी वो जो पापकर्म करते रहते है
पर ऊपरवाले से डर कर ,दान धर्म करते रहते है
बेईमानी की पूँजी का ,थोडा प्रतिशत दान फंड में
गर्मी में लस्सी पिलवाते,कम्बल बँटवा रहे ठण्ड में
जनम जनम के पाप धो रहे ,गंगाजी की एक डुबकी में
पूजा ,हवन सभी करवाते ,लेकिन खोट भरा है जी में
लेकिन डर कर ,'धरमराज 'से ,धर्मराज बनने वाले ये,
छिपे भेड़ियों की खालों में ,इस कलयुग के सच्चे ज्ञानी
जग में चार तरह के दानी
निज में रखता कलम ,पेन्सिल ,कलमदान यह कहलाता है
कुछ पैसे गंगा में डालो , गुप्तदान यह कहलाता है
और तीसरे ढंग की दानी, कहलाती है चूहे दानी
कैद किया करती चूहों को , नाम मगर है फिर भी दानी
शायद दान किया करती है,आजादी का,स्वतंत्रता का
चौथी दानी,मच्छरदानी ,फहराती है ,विजय पताका
मच्छरदानी ,पर मच्छर को,ना देती है पास फटकने
रक्तदान से हमें बचाती ,रात चैन से देती कटने
चूहेदानी में चूहे पर,मच्छरदानी बिन मच्छर के ,
फिर भी दानी कहलाती है,यह सचमुच ही है हैरानी
जग में चार तरह के दानी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
तुमने अचार बना डाला
तुमने अचार बना डाला
वैभव के सपने देखे थे,मैंने जीवन के शैशव में
इच्छाओं का बहुत शोर ,करता था मै किशोर वय में
यौवन के वन में आ जाना,यह तो थी मृगतृष्णा कोरी
लेकिन अब मै हूँ समझ सका,जीवन भाषा ,थोड़ी थोड़ी
मै बनने वाला था कलाकार,तुमने बेकार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
मेरी सारी आशाओं पर, उस रोज तुषारापात हुआ
जिस दिन से था इस जीवन में,मेरा तुम्हारा साथ हुआ
मैंने सोचा था पढ़ी लिखी ,तुम मेरा काव्य सराहोगी
तुम स्वयं धन्य हो जाओगी,जो मुझ सा कवि पति पाओगी
थी मधुर यामिनी की बेला,मै था तुम पर दीवाना सा
तुम्हारी रूप प्रशंसा में,मैंने कुछ गाया गाना सा
मै भाव विभोर हो गया था,सोचा था तुम शरमाओगी
या तो पलके झुक जायेगी ,या बाँहों में आ जाओगी
पर पलकें झुकी न शरमाई,तुम झल्ला बोली ,मत बोर करो
बाहर मेहमान जागते है,अब चुप भी रहो,न शोर करो
फिर यह सुन कर अभिलाषाओं ने, था बाँध सब्र का फांद दिया
जब तुम बोली हे राम मुझे,किस कवि के पल्ले बाँध दिया
फिर दिया लेक्चर लम्बा सा ,तुमने घर ,जिम्मेदारी का
मुझको अहसास दिलाया था,तुमने मेरी बेकारी का
उस मधुर यामिनी में तुमने,फीका अभिसार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
फिर मुझे प्यार से सहला कर ,ऐसी कुछ मीठी बात करी
रह गयी छुपी ,दिल ही दिल में,मेरी कविताई ,डरी डरी
मै प्रेम डोर से बंधा हुआ ,जो भी तुम बोली ,सच समझा
फिर वही हुआ जो होना था,मै नमक ,तेल में ,जा उलझा
तुम्हारा कहना मान लिया,हो गया किसी का नौकर ,मै
बेचारी काव्य पौध सूखी ,जो पछताता हूँ ,बोकर ,मै
बाहर कोई का नौकर पर ,घर में नौकर तुम्हारा था
तुम्हारी रूप अदाओं ने ,एक कलाकार को मारा था
अच्छा होता यदि उसी रात ,जो प्यार मुझे तुम ना देती
मीठी बातों के बदले में ,फटकार मुझे जो तुम देती
तो हिंदी जग में आज नया,एक तुलसीदास नज़र आता
पत्नी ताड़ित यदि बन जाता,पत्नी पीड़ित ना कहलाता
कितने ही काव्य रचे होते,मै कालिदास बना होता
मुरझाती यदि ना काव्य पौध ,तो अब वह वृक्ष घना होता
पर बकरी बन,उस पौधे को,तुमने आहार बना डाला
केरी पक कर ना आम बनी,तुमने अचार बना डाला
मै कई बार पछताता हूँ,यदि तुमसे प्यार नहीं होता
मै कुछ का कुछ ही बन जाता,मेरा ये हाल नहीं होता
लेकिन मुझसे भी ज्यादा तो,अब कलाकार हो अच्छी तुम
हर साल प्रकाशित कर देती ,कोई बच्चा या बच्ची तुम
ना जाने क्यों,मेरे मन को ,रह रह यह बात कचोट रही
तुम सौत समझती कविता को,क्यों गला ,कला का घोट रही
मै जब भी कुछ लिखने लगता ,सब काम याद क्यों आते है
अब तुम्ही बताओ उसी समय,बच्चे क्यों शोर मचाते है
मै भली तरह से समझ गया,यह तुम्ही उन्हें हो सिखलाती
क्या लिखूं रात में खाक तुम्हे ,लाइट में नींद नहीं आती
घंटो तक बोर नहीं करती ,सखियों की बातचीत तुमको
तो बतलाओ क्यों चुभते है,मेरे ये मधुर गीत तुमको
मै अलंकार की बात करूं ,तुम आ जाती हो गहनों पर
मेरे कविता के टोपिक को,तुम ले आती निज बहनों पर
कहती हो रचना को चरना,कवि को कपिकार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
मै बात काव्य रस की करता,जाने क्यों मुंह बिचकाती हो
जब गन्ने और आम का रस ,दो दो गिलास पी जाती हो
मै जब भी समझाने लगता,कविता का भाव कभी तुमको
आ जाता याद बाज़ार भाव,लगता है मंहगा घी तुमको
जब मेरी काव्य साधना की ,दो बात नहीं सुन सकती हो
उस मुई सिनेमे वाली के,घंटों तक चर्चे करती हो
क्यों गज भर दूर ग़ज़ल से तुम,क्यों है रुबाई से रुसवाई
क्यों डरती हो तुम शेरो से,क्यों नज़म तुम्हे ना जम पायी
क्यों है नफरत,क्या इन सबसे ,है पूर्व जन्म का बैर तुम्हे
या मै ही सीधासादा हूँ,ना मिला कोई दो सेर तुम्हे
मत समझो यह सीधा प्राणी ,केवल घर का बासिन्दा है
मै भले गृहस्थी में उलझा,मेरा कवि अब भी जिन्दा है
पर तुम जब घर पर रहती हो ,तो कहाँ काव्य लिख सकता हूँ
दो,चार माह ,मइके रहलो,तो महाकाव्य लिख सकता हूँ
हे राम फंसा किस झंझट में,मेरे सर भार बना डाला
तुमने मुझको जाने क्या क्या ,मेरी सरकार बना डाला
मै बनने वाला था कलाकार ,तुमने बेकार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
वैभव के सपने देखे थे,मैंने जीवन के शैशव में
इच्छाओं का बहुत शोर ,करता था मै किशोर वय में
यौवन के वन में आ जाना,यह तो थी मृगतृष्णा कोरी
लेकिन अब मै हूँ समझ सका,जीवन भाषा ,थोड़ी थोड़ी
मै बनने वाला था कलाकार,तुमने बेकार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
मेरी सारी आशाओं पर, उस रोज तुषारापात हुआ
जिस दिन से था इस जीवन में,मेरा तुम्हारा साथ हुआ
मैंने सोचा था पढ़ी लिखी ,तुम मेरा काव्य सराहोगी
तुम स्वयं धन्य हो जाओगी,जो मुझ सा कवि पति पाओगी
थी मधुर यामिनी की बेला,मै था तुम पर दीवाना सा
तुम्हारी रूप प्रशंसा में,मैंने कुछ गाया गाना सा
मै भाव विभोर हो गया था,सोचा था तुम शरमाओगी
या तो पलके झुक जायेगी ,या बाँहों में आ जाओगी
पर पलकें झुकी न शरमाई,तुम झल्ला बोली ,मत बोर करो
बाहर मेहमान जागते है,अब चुप भी रहो,न शोर करो
फिर यह सुन कर अभिलाषाओं ने, था बाँध सब्र का फांद दिया
जब तुम बोली हे राम मुझे,किस कवि के पल्ले बाँध दिया
फिर दिया लेक्चर लम्बा सा ,तुमने घर ,जिम्मेदारी का
मुझको अहसास दिलाया था,तुमने मेरी बेकारी का
उस मधुर यामिनी में तुमने,फीका अभिसार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
फिर मुझे प्यार से सहला कर ,ऐसी कुछ मीठी बात करी
रह गयी छुपी ,दिल ही दिल में,मेरी कविताई ,डरी डरी
मै प्रेम डोर से बंधा हुआ ,जो भी तुम बोली ,सच समझा
फिर वही हुआ जो होना था,मै नमक ,तेल में ,जा उलझा
तुम्हारा कहना मान लिया,हो गया किसी का नौकर ,मै
बेचारी काव्य पौध सूखी ,जो पछताता हूँ ,बोकर ,मै
बाहर कोई का नौकर पर ,घर में नौकर तुम्हारा था
तुम्हारी रूप अदाओं ने ,एक कलाकार को मारा था
अच्छा होता यदि उसी रात ,जो प्यार मुझे तुम ना देती
मीठी बातों के बदले में ,फटकार मुझे जो तुम देती
तो हिंदी जग में आज नया,एक तुलसीदास नज़र आता
पत्नी ताड़ित यदि बन जाता,पत्नी पीड़ित ना कहलाता
कितने ही काव्य रचे होते,मै कालिदास बना होता
मुरझाती यदि ना काव्य पौध ,तो अब वह वृक्ष घना होता
पर बकरी बन,उस पौधे को,तुमने आहार बना डाला
केरी पक कर ना आम बनी,तुमने अचार बना डाला
मै कई बार पछताता हूँ,यदि तुमसे प्यार नहीं होता
मै कुछ का कुछ ही बन जाता,मेरा ये हाल नहीं होता
लेकिन मुझसे भी ज्यादा तो,अब कलाकार हो अच्छी तुम
हर साल प्रकाशित कर देती ,कोई बच्चा या बच्ची तुम
ना जाने क्यों,मेरे मन को ,रह रह यह बात कचोट रही
तुम सौत समझती कविता को,क्यों गला ,कला का घोट रही
मै जब भी कुछ लिखने लगता ,सब काम याद क्यों आते है
अब तुम्ही बताओ उसी समय,बच्चे क्यों शोर मचाते है
मै भली तरह से समझ गया,यह तुम्ही उन्हें हो सिखलाती
क्या लिखूं रात में खाक तुम्हे ,लाइट में नींद नहीं आती
घंटो तक बोर नहीं करती ,सखियों की बातचीत तुमको
तो बतलाओ क्यों चुभते है,मेरे ये मधुर गीत तुमको
मै अलंकार की बात करूं ,तुम आ जाती हो गहनों पर
मेरे कविता के टोपिक को,तुम ले आती निज बहनों पर
कहती हो रचना को चरना,कवि को कपिकार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
मै बात काव्य रस की करता,जाने क्यों मुंह बिचकाती हो
जब गन्ने और आम का रस ,दो दो गिलास पी जाती हो
मै जब भी समझाने लगता,कविता का भाव कभी तुमको
आ जाता याद बाज़ार भाव,लगता है मंहगा घी तुमको
जब मेरी काव्य साधना की ,दो बात नहीं सुन सकती हो
उस मुई सिनेमे वाली के,घंटों तक चर्चे करती हो
क्यों गज भर दूर ग़ज़ल से तुम,क्यों है रुबाई से रुसवाई
क्यों डरती हो तुम शेरो से,क्यों नज़म तुम्हे ना जम पायी
क्यों है नफरत,क्या इन सबसे ,है पूर्व जन्म का बैर तुम्हे
या मै ही सीधासादा हूँ,ना मिला कोई दो सेर तुम्हे
मत समझो यह सीधा प्राणी ,केवल घर का बासिन्दा है
मै भले गृहस्थी में उलझा,मेरा कवि अब भी जिन्दा है
पर तुम जब घर पर रहती हो ,तो कहाँ काव्य लिख सकता हूँ
दो,चार माह ,मइके रहलो,तो महाकाव्य लिख सकता हूँ
हे राम फंसा किस झंझट में,मेरे सर भार बना डाला
तुमने मुझको जाने क्या क्या ,मेरी सरकार बना डाला
मै बनने वाला था कलाकार ,तुमने बेकार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
बुधवार, 14 नवंबर 2012
सोनू - मोनू - पिंकू - गुड्डू, आओ मनाएं बाल दिवस....
बाल दिवस है बाल दिवस
हम सबका है बाल दिवस,
सोनू - मोनू - पिंकू - गुड्डू
आओ मनाएं बाल दिवस....
कागज़ की एक नाव बनाएं
तितली रानी को बैठाएं,
नदी किनारे संग संग उसके
आओ हम सब चलते जाएँ....
तितली उड़े आकाश में
भगवान जी के पास में,
भगवान जी से लाये मिठाई
खा करके चलो करें पढ़ाई....
पढ़ना है जी जान से
ताकि हिन्दुस्तान में,
खूब बड़ा हो अपना नाम
खूब अच्छा हो अपना काम....
काम से पापा मम्मी खुश
काम से सारे टीचर खुश,
सारे खुश हो खुशी मनाएं
बड़े भी सब बच्चे हो जाएँ.....
बच्चों का हो ये संसार
बचपन की हो जय जयकार,
ना चालाकी - ना मक्कारी
ना ही कोई दुनियादारी.......
दुनिया पूरी हो बच्चों की
केवल हो सीधे - सच्चों की,
सच्चे दिल की ये आवाज
आओ धूम मचाएं आज.....
- VISHAAL CHARCHCHIT