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रविवार, 31 जनवरी 2021

कैसे जाता वक़्त गुजर है

मुझको खुद मालूम नहीं है ,कैसे जाता वक़्त गुजर है
सोना,जगना ,खाना,पीना ,क्या जीवन बस इतना भर है

कम्बल कभी रजाई चादर ,या फिर पंखा ,कूलर,ए सी
ठिठुरन ,सिहरन,तपन,बारिशें ,मौसम की गति बस है ऐसी
अलसाया तन ,मुरझाया मन ,बढ़ी उमर का हुआ असर है
मुझको खुद मालूम नहीं है ,कैसे जाता वक़्त गुजर है

सूरज उगता ,दिन भर तपता ,फिर ढल जाता अस्ताचल में
लेकिन वो बेबस होता जब ,बादल  ढक  लेते है पल में
कब ढक ले आ बादल कोई, पल पल लगता रहता डर है
मुझको खुद मालूम  नहीं है ,कैसे जाता वक़्त गुजर है

बीते दिन की यादों में मन, बस खोया ही रहता अक्सर
आते याद ख़यालों में वो,रख्खा जिनका ख्याल उमर भर  
नहीं मगर उनको अब रहता ,ख्याल हमारा ,रत्ती भर है
मुझको खुद मालूम नहीं है ,कैसे जाता वक़्त गुजर है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

मनौती

मन की कोई कामना पूरी होने पर ,
कुछ करने का संकल्प ,
होता है मनौती
पर गौर से देखा जाए  तो  ,
यह एक तरह की रिश्वत है होती
जो हम भगवान को देते है
और ये कहते है
कि प्रभु ,अगर आप
मेरा फलां फलां काम  दोगे साध
तो मैं आपको चढ़ाऊंगा इतना परशाद
या मैं आपको सोने या चांदी का छत्र चढ़ाऊंगा
आपके दर्शन के लिए ,परिवार संग आऊंगा
पर जब आप करते है कोई भी कामना
उसके पूरा होने की ,होती है ५०%सम्भावना
और इस तरह आधी मनोतियां पूर्ण हो जाती है
और उस देवता में ,आपकी श्रद्धा बढ़ जाती है
बचपन से ही हमारे संस्कार
ढल जाते है इस प्रकार
कि भगवान अगर परीक्षा में पास हो जाऊँगा
तो इतने रूपये का परशाद चढ़ाऊंगा
और पास होने पर आप प्रशाद चढ़ाएंगे
हालांकि आधी मिठाई खुद खाएंगे
ऐसे में माँ बाप भी मना नहीं करते
क्योंकि वो भी बचपन से ,
सत्यनारायण की कथा आये है सुनते  
और घबराते है कि मनौती पूरी नहीं करने पर
लीलावती कलावती का हश्र ,उन पर न जाए गुजर
हमारी ये ही अंध आस्था
खोल देती है रास्ता
कुछ ख़ास मंदिरों में भीड़ बढ़ाने का
मान्यता पूरी होने पर परशाद चढाने का
इस तरह फलां फलां मंदिर के चमत्कार
का करके प्रचार
हम भेड़धसान की तरह मंदिरो में भीड़ बढ़ा रहे है
परशाद चढ़ा रहे है
आप कितने भी बड़े बुद्धिजीवी हो या अज्ञानी
पर काम बन जाता है तो हो जाते दानी
क्योंकि अगर ५०%लोगों की ५०%मनोकामनाएं
अगर प्रोबेबिलिटी के सिंद्धांत से पूर्ण हो जाए
तो इसका श्रेय मिलता है उस भगवान को ,
और कहा जाता है मनौती का असर दिखा है
और अगर कामना पूरी नहीं होती ,
तो सोचते है भाग्य में नहीं  लिखा है
ये हमारी आस्था ही है ,जिस पर संसार टिका है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
इन्तजार

हर घड़ी  मैं घड़ी देखता ही रहा ,
तेरा दीदार हो ,आयी ना वो घड़ी
बेकरारी बढ़ी ,तू है प्यारी बड़ी ,
तेरी तस्वीर मैंने है दिल में मढ़ी
सपने बुनता रहा ,सर मैं धुनता रहा ,
थी निगाहें मेरी ,द्वार पर ही अड़ी
तू नहीं बेवफ़ा ,ना तू मुझसे खफ़ा ,
कौनसी बेबसी ,विपदा आ के पड़ी
मुश्किलें थी बड़ी ,सर उठाये खड़ी ,
कब कहाँ हो गयी है कोई गड़बड़ी
अश्क बहते रहे ,पीर सहते रहे ,
हर घडी लगता था ,सामने तू खड़ी

घोटू 
एक बेटी की फ़रियाद -माँ से

तेरी कोख में माँ ,पली और बढ़ी मैं
पकड़ तेरी ऊँगली,चली, हो खड़ी मैं
तेरे दिल का टुकड़ा हूँ ,मैं तेरी जायी
 नहीं होती बेटी ,कभी भी  परायी

तूने माँ मुझको ,पढ़ाया लिखाया  
सहीऔर गलत का है अंतर सिखाया  
नसीहत ने तेरी बनाया है  लायक
रही तू हमेशा ,मेरी मार्ग दर्शक
तूने संवारा है व्यक्तित्व मेरा    
तेरे ही कारण है अस्तित्व मेरा
तेरा रूप, तेरी छवि, प्यार हूँ मैं
जीवन सफ़र को अब तैयार हूँ मैं
मिले सुख हमेशा,यही करके आशा
मेरे लिए ,हमसफ़र है तलाशा
बड़े चाव से बाँध कर उससे बंधन
किया आज तूने ,विवाह का प्रयोजन
ख़ुशी से  करेगी ,तू मेरी बिदाई
नहीं होती बेटी ,कभी भी परायी

सभी रस्म मानूंगी ,जो है जरूरी
मगर दान कन्या की ,ना है मंजूरी
न सोना न चांदी ,इंसान मैं हूँ
नहीं चीज दी जाये ,जो दान में हूँ
मुझे दान दे तू ,नहीं मैं सहूंगी
तुम्हारी हूँ बेटी ,तुम्हारी रहूंगी
दे आशीष मुझको,सफल जिंदगी हो
किसी चीज की भी,कभी ना कमी हो
फलें और फूलें ,सदा खुश रहें हम
रहे मुस्कराते ,नहीं आये कोई ग़म
कटे जिंदगी का ,सफर ये सुहाना
मगर भूल कर भी ,मुझे ना भुलाना
रहे संग पति के ,हो माँ से जुदाई
नहीं होती बेटी ,कभी भी पराई

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
भूलने की बिमारी

बुढ़ापे में मुश्किल ये भारी हुई है
 मुझे भूलने की , बिमारी  हुई  है

रखूँ कुछ कहीं पर ,नहीं याद रहता
परेशां हो ढूँढूं ,किसी से न कहता
चश्मा कहीं पर भी रख भूल जाता
दवाई की गोली ,न टाइम से खाता
नहीं नाम लोगों के ,अब याद रहते
बिगड़े बहुत ही , है हालात रहते
बड़ी ही फ़जीयत  हमारी हुई है
मुझे भूलने की,  बिमारी हुई है  

नहीं याद रहती ,मुझे बात कल की
मगर याद ताज़ा ,कई बीते पल की
बचपन के दिन ,वो शरारत की बातें
जवानी के किस्से ,वो मस्ती की  रातें
वो भाई बहन संग ,लड़ना ,झगड़ना
वो माता की ममता ,पिताजी से डरना
वो जीवन्त ,सारी की सारी हुई है
मुझे भूलने की ,बिमारी  हुई   है  

अब जब सफ़र कट गया जिंदगी का  
संग याद आता है ,बिछड़े सभी का
हरेक दोस्त मुश्किल में जो काम आया  
 उन्हें  भूल कर भी ,भुला  मैं  न पाया  
नाम अब प्रभु का ,सुमरने  लगा हूँ
मोह माया से  अब  ,उबरने लगा  हूँ  
अंतिम सफर की ,तैयारी  हुई है
 मुझे भूलने की, बिमारी हुई है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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