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रविवार, 30 जून 2019

जीना मरना

कोई कहता रूप तुम्हारा है कातिल
तुम जालिम हो ,तुमने लूट लिया है दिल
कोई कहता अदा तेरी  मतवाली है
चुरा लिया दिल,तूने नींद  चुराली है
कोई कहता ,तेरा हुस्न निराला है
जादूगरनी हो,जादू कर डाला है
बहेलिया हो ,रूपजाल में फंसा लिया
मुझे कैद कर ,अपने दिल में बसा लिया
तू है तीरंदाज ,तेरे नयना चंचल
चला चला कर तीर किया मुझको घायल
कोई कहता तू है पूरी मधुशाला
बूँद बूँद में नशा रूप तेरा हाला
रात रात भर ,सपनो में है तू आती
रूप,अदा से मेरे दिल को तड़फ़ाती  
सच्चे दिल से तुझे प्यार मैं करता हूँ
तेरी याद में ठंडी आहें भरता हूँ
तू कातिल है ,जालिम और लुटेरी है
जादूगरनी ,चोर बड़ी अलबेली है
तीर चला नैनों से घायल कर देती
रूपजाल में फंसा ,कैद दिल कर लेती
तेरे संग जीने की चाहत करता हूँ
फिर भी कहता हूँ मैं तुझ पर मरता हूँ

घोटू 
इच्छाओं का अंत नहीं है

महत्वकांक्षाये मत पालो ,हर दिन बढ़ती ही जाती है
बहुत हृदय को दुःख देती है ,पूर्ण नहीं जब हो पाती है
सुख दुःख आते ऋतुओं जैसे  ,हर ऋतू सदा बसंत नहीं है
इच्छाओं का अंत नहीं है
कभी किसी से करो न आशा ,चाहे अपने हो कि पराये
निकले पंख ,सीख कर उड़ना ,नीड छोड़ ,बच्चे उड़ जाये
कोई किसी का साथ निभाता ,है जीवन पर्यन्त  नहीं है
इच्छाओं का अंत नहीं है
तुम चाहे कितना भी धो लो,किन्तु सफ़ेद न होता काजल
श्वान पूंछ सीधी  ना होती ,रखो नली में लाख दबाकर
सुन्दर पुष्प दिखे  कागज के ,आती मगर सुगन्ध नहीं है
इच्छाओं का अंत नहीं है
कभी एक को ,दो को दस को ,तो तुम मुर्ख बना सकते हो
ऊंचे ऊंचे  सपन दिखा कर ,तुम बहला फुसला  सकते हो
किन्तु तुम्हारा बड़बोलापन ,करता कोई पसंद नहीं है
इच्छाओं का अंत नहीं है
बात बात पर पंगा मत लो ,कहीं कोई दंगा ना करदे
पोल तुम्हारी हाथ आगयी ,तो  तुमको  नंगा ना करदे
मिलजुल रहो ,प्रेम से बढ़ कर ,कहीं कोई आनंद नहीं है
इच्छाओं का अंत नहीं है
तुम्हारी एक एक हरकत को ,नज़र हरेक की देख रही है
समझे ना तुम्हारी मंशा ,दुनिया इतनी   मुर्ख नहीं है
जो भी बोलो ,तौल मोल कर,गप्पों पर  प्रतिबंध नहीं है
इच्छाओं का अंत नहीं है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '          
आज गरीबी फैशन में है

तेल विहीन केश है सूखे ,  दाढ़ी बढ़ी ,नहीं कटवाते
फटी हुई और तार तार सी ,जीन्स पहन कर है इतराते
कंगालों सा बना हुलिया ,जाने क्या इनके मन में है
                                  आज गरीबी फैशन में है  
खाली जेब ,पास ना पैसा ,बात बात में करें उधारी
 क्रेडिट कार्ड ,बैंक का कर्जा ,लोन चुकाओ ,मारामारी
घर और कार ,फ्रिज ,फर्नीचर ,सभी बैंक के बंधन में है
                                       आज गरीबी फैशन में है
पूरा दिन भर ,पति और पत्नी ,ड्यूटी पर जाते रोजाना
जंक  फ़ूड से पेट भर  रहे, ना नसीब में ताज़ा  खाना
,अस्त व्यस्त और पस्त जिंदगी नहीं कोई सुख जीवन में है
                                         आज गरीबी फैशन में है

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

गुरुवार, 27 जून 2019

गर्मी की छुट्टियां -तब और अब

एक जमाना था जब
जैसे ही बच्चों की परीक्षायें निपटती थी
और गर्मी की छुट्टी लगती थी
हमारी पत्नीजी ,बच्चों के साथ ,
सीधे अपने मायके भगती थी
वैसा ही प्रोग्राम उनकी बहनो का भी होता था
जो देर सबेर अपने बच्चों के साथ ,
मायके आ धमकती थी
और जब सब बहने इकट्ठी हो जाती थी
तो ससुराल की व्यस्त जिंदगी से दूर ,
बच्चों की छुट्टियों के साथ साथ ,
खुद भी छुट्टियां मनाती थी
बस दिन भर खाना पीना और  गप्पे मारना
इनका शगल होता था
बच्चे मिलजुल कर ,धमाल चौकड़ी मचाते थे ,
घर में खूब कोलाहल होता था
जब पूरा कुनबा जुड़ता था
तो उनकी माँ का भी पूरा प्यार उमड़ता था
रोज बनाये जाते थे तरह तरह के पकवान
और मंगाये जाते थे टोकरे भर आम
जिन्हे सब रात को छत पर बैठ कर खाया करते थे
देर तक गप्पे मारते और
रात को वहीँ सो जाया करते थे
मायके में बीबियां मनाती थी टोटल छुट्टी
भाई बहन से मेलमिलाप और पतिदेव से कुट्टी
बेचारे पतिदेव ,अकेले ,रूखी सूखी
या जैसी भी बन पड़ती ,खाया करते थे
और छुट्टियों के दिन गिनते हुए ,
कैसे भी तन्हाई में अपना काम चलाया करते थे
तब की छुट्टियां और आजकल की छुट्टिया ,
इनमे होता था बड़ा फर्क
तब आजकल की तरह नहीं होता था
छुटियों के लिए कोई होमवर्क या प्रोजेक्ट वर्क
वर्ना आजकल की छुट्टियों में तो बच्चों का
हो जाता है बेड़ा गर्क
बस कहीं कहीं ,आठ दस दिन के लिए ,
'समरकेम्प 'लगाए जाते है
जहाँ थोड़े खेलकूद और कुछ हुनर सिखाये जाते है
निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ,
अनुशासन में रहने को कहा जाता है
और इसमें भी बड़ा खर्चा आता है
पर उन दिनों  छुटियों में बेफिक्र ,
दादा दादी या नाना नानी के घर जाना
परिवार के अन्य बच्चों के साथ मिल कर
मस्तियाँ  करना और मजे उठाना
दरअसल ये भी एक तरह के 'समरकेम्प 'होते थे
जहाँ चचेरे ,ममेरे और फुफेरे भाई बहन ,
साथ साथ रह कर ,भाईचारे के बीज बोते थे
एक दुसरे से अच्छी पहचान और प्यार बढ़ाया जाता  था
ये वो समरकेम्प होते थे जहाँ ,
संयुक्त परिवार के सुख और
रिश्तेदारी निभाने का पाठ पढ़ाया जाता था
इनमे बच्चे ,खेल खेल में  या स्पर्धा में
या नानी  दादी से शाबाशी पाने
बहुत कुछ सीख जाया करते थे
रिश्तों की अहमियत पहचान जाया करते थे
मौसियों,भुआओ  और मामियो से प्यार बढ़ता था
इस मेलजोल से उनका व्यक्तित्व निखरता था
बचपन में हर वर्ष ,कुछ दिन ,
साथ साथ रहने से ,रिश्ते इतने पनपते थे
कि वो ताउम्र अच्छी तरह निभते थे
वरना आज के कई बच्चे अपने ,
चचरे ,ममेरे और फुफेरे भाई बहनो को ,
जिन्हे आजकल 'कजिन ' कहते है ,
अच्छी तरह जानते तक नहीं है  
पहचानते तक नहीं है
इसका कारण हम आजकल पहले जैसी ,
गर्मी की छुट्टियां नहीं मना रहे है
इसलिए भाईचारे के पौधे सूखते जारहे है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 26 जून 2019

मन तो करता है
 
कहीं कोई सुन्दर सी लड़की ,जो दिख जाती है ,
कैसे भी हम उसे पटायें ,मन तो करता  है
वस्त्र चीर कर ,रूप रश्मि जब ,झलक दिखाती है ,
बार बार हम दर्शन पायें ,मन तो करता है
नीला अम्बर ,मस्त पवन और दूप सुनहरी है ,
बन विहंग ,हम भी उड़ जायें ,मन तो  करता है
सिकते हो भुट्टे और सौंधी खुशबू आती हो  ,
चबा न पायें ,लेकिन खाएं ,मन तो करता है
शुगर बढ़ी ,मिष्ठान मना पर गरम जलेबी है ,
जी ललचाये ,खा ना पाएं ,मन तो करता है
उम्र बढ़ गयी ,शिथिल हुआ तन ,हिम्मत नहीं रही ,
पर यौवन सुख ,फिर से पाएं ,मन तो करता है
चार कदम चल लेने पर भी ,सांस फूलती है ,
कभी कभी हम दौड़ लगाएं ,मन तो करता है
दीवाना ,मतवाला लोभी मचला करता है ,
कैसे, कौन इसे समझाए मन तो करता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 

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