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मंगलवार, 22 जनवरी 2019

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सोमवार, 21 जनवरी 2019

क्यों ?


मुझे याद है वह दिन ,

जब तुमने ,

मेरी नाजुक सी पतली  ऊँगली में,

सगाई की अंगूठी पहनाई थी ,

और मेरे कोमल से हाथों को ,

धीरे से दबाया था

प्यार से दुलराया था

और फिर एक दिन ,

मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर ,

पवित्र अग्नि की साक्षी में ,

अपना जीवनसाथी बनाया था

सुख दुःख में साथ निभाने का वादा था किया

पर शादी के बाद ,घर बसाते ही,

मेरी उन नाजुक उँगलियों को,

आटा गूंथने में लगा दिया

रोटी बेलने के लिए ,बेलन थमा दिया

गरम गरम तवे पर ,

रोटियां सेकते सेकते ,

कितनी ही बार ,इन नाजुक उँगलियों ने ,

तवे की विभीषिका झेली है

तुम्हारे प्यार के परशाद से ,

मेरी कमसिन सी काया ,

देखलो कितनी फैली है

जिस तरह आजकल ,

मेरी मोटी हुई अँगुलियों में ,

सगाई की अंगूठी नहीं आती

उस तरह तुम्हारे प्यार में भी,

वो पुरानी ताजगी नहीं पायी जाती

हमारा प्यार ,

एक दैनिक प्रक्रिया बन कर ,रह गया है

कुछ भी नहीं नया है

क्या हमारा गठबंधन ,

कुछ इतना ढीला था ,

दो दिन में खुल गया

क्या हमारा प्यार ,

शादी  की मेंहदी सा था ,

चार दिन रचा ,फिर धुल  गया

तुम भी वही हो ,मै  भी वही हूँ ,

बताओ ना फिर क्या बदल गया है

हमे साथ साथ रहते हो गए है बरसों

फिर ऐसा हो रहा है क्यों ?


मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 16 जनवरी 2019

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रविवार, 6 जनवरी 2019

धूप 

कुछ गरम गरम सी धूप 
कुछ नरम नरम सी धूप 
कुछ बिखरी बिखरी धूप 
कुछ निखरी निखरी धूप 

कुछ तन सहलाती धूप 
कुछ मन बहलाती धूप 
कुछ छत पर छाती धूप 
कुछ आती जाती धूप 

कुछ जलती जलती धूप 
कुछ ढलती ढलती  धूप 
कुछ चलती चलती  धूप 
कुछ यूं ही मचलती धूप 

कुछ चुभती चुभती धूप 
कुछ बुझती बुझती धूप 
कुछ उगती उगती धूप 
कुछ मन को रुचती धूप 

कुछ सर पर चढ़ती धूप 
कुछ पाँवों पड़ती   धूप 
कुछ आँखों गढ़ती धूप 
कुछ रूकती ,बढ़ती धूप 

कुछ रूपहरी सी धूप 
कुछ सुनहरी सी धूप 
कुछ दोपहरी सी धूप 
तो कुछ ठहरी सी धूप 

कुछ सुबह जागती धूप 
कुछ द्वार लांघती  धूप 
खिड़की से झांकती धूप 
संध्या को भागती  धूप 

कुछ शरमाती सी धूप 
कुछ मदमाती सी धूप 
कुछ गरमाती सी धूप 
कुछ बदन तपाती धूप 

कुछ भोली भोली धूप 
कुछ रस में घोली धूप 
सब की हमजोली धूप
करे आंखमिचोली धूप 

कुछ केश सुखाती धूप 
मुँगफलिया खाती धूप 
कुछ मटर छिलाती धूप 
कुछ गप्प लड़ाती  धूप 

कुछ थकी थकी सी धूप 
कुछ पकी पकी सी धूप 
कुछ छनी छनी सी धूप 
कुछ लगे कुनकुनी धूप 

कुछ खिली खिली सी धूप  
मुश्किल से मिली सी धूप 
कुछ चमकीली  सी धूप 
सत रंगीली  धूप सी धूप 


मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

शनिवार, 5 जनवरी 2019

फोकटिये 

हम तो फोकटिये है यार,हमको माल मुफ्त का भाता 

धूप सूर्य की ,मुफ्त कुनकुनी ,खाते है सर्दी में 
और बरगद की शीतल छैयां ,पाते है गर्मी में 
बारिश में रिमझिम का शावर है हमको नहलाता 
हम तो फोकटिये है यार ,हमको माल मुफ्त का भाता 

जब वृक्षों पर कुदरत देती ,मीठे फल रस वाले 
पत्थर फेंक तोड़ते उनको ,खाते खूब मज़ा ले 
 माल मुफ्त का देख हमारे मुंह में पानी आता 
हम तो फोकटिये है यार ,हमको माल मुफ्त का भाता 

हम उस मंदिर में जाते ,परशाद जहाँ पर मिलता 
मुफ्त सेम्पल चखने वाला ,स्वाद जहाँ पर मिलता 
भंडारे और लंगर छखना ,हमको बहुत सुहाता 
हम तो फोकटिये है यार हमको माल मुफ्त का भाता 

श्राद्धपक्ष में पंडित बन कर ,मिले दक्षिणा ,खाना 
शादी में बाराती बन कर, मुफ्त में मौज उड़ाना 
उस रैली में जाते ,फ्री में जहाँ खाना मिल जाता    
हम तो फोकटिये है यार ,हमको माल मुफ्त का भाता 

घोटू 
धूप 

कुछ गरम गरम सी धूप 
कुछ नरम नरम सी धूप 
कुछ बिखरी बिखरी धूप 
कुछ निखरी निखरी धूप 

कुछ तन सहलाती धूप 
कुछ मन बहलाती धूप 
कुछ छत पर छाती धूप 
कुछ आती जाती धूप 

कुछ जलती जलती धूप 
कुछ ढलती ढलती  धूप 
कुछ चलती चलती  धूप 
कुछ यूं ही मचलती धूप 

कुछ चुभती चुभती धूप 
कुछ बुझती बुझती धूप 
कुछ उगती उगती धूप 
कुछ मन को रुचती धूप 

कुछ सर पर चढ़ती धूप 
कुछ पाँवों पड़ती   धूप 
कुछ आँखों गढ़ती धूप 
कुछ रूकती ,बढ़ती धूप 

कुछ रूपहरी सी धूप 
कुछ सुनहरी सी धूप 
कुछ दोपहरी सी धूप 
तो कुछ ठहरी सी धूप 

कुछ सुबह जागती धूप 
कुछ द्वार लांघती  धूप 
खिड़की से झांकती धूप 
संध्या को भागती  धूप 

कुछ शरमाती सी धूप 
कुछ मदमाती सी धूप 
कुछ गरमाती सी धूप 
कुछ बदन तपाती धूप 

कुछ भोली भोली धूप 
कुछ रस में घोली धूप 
सब की हमजोली धूप
करे आंखमिचोली धूप 

कुछ थकी थकी सी धूप 
कुछ पकी पकी सी धूप 
कुछ छनी छनी सी धूप 
कुछ लगे कुनकुनी धूप 

कुछ खिली खिली सी धूप  
मुश्किल से मिली सी धूप 
कुछ  रंगरंगीली  धूप 
है कई रूप की धूप 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '  
 

मंगलवार, 1 जनवरी 2019

बालिग़ उमर -प्यार रस डूबो 

बालिग़ हो गयी सदी बीसवीं ,लगा उसे उन्नीस बरस है 
निखरा रूप,जवानी छायी, हुई अदा ज्यादा दिलकश है  
बात बात पर किन्तु रूठना ,गुस्सा होना और झगड़ना ,
बच्चों सी हरकत ना बदली ,रहा बचपना जस का तस है 
तन के तो बदलाव आ गया ,किन्तु छिछोरापन कायम है ,
नहीं 'मेच्यूअर 'हो पाया मन ,बदल नहीं पाया, बेबस है 
बाली उमर गयी अब आयी ,उमर प्यार छलकाने वाली ,
कभी डूब कर इसमें देखो ,कितना मधुर प्यार का रस है 

घोटू 

रविवार, 30 दिसंबर 2018

नया बरस -पुरानी बातें 

इस नए बरस की बस ,इतनी सी कहानी है 
कैलेंडर नया लटका ,पर कील पुरानी  है 
महीने है वो ही बारह,हफ्ते के  कुछ वारों ने ,
कुछ तारीखों संग लेकिन  ,की छेड़ा खानी है 
सर्दी में ठिठुरना है,ट्रेफिक में भी फंसना है ,
होटल है बड़ी मंहगी ,बस जेब कटानी है 
 दो पेग चढ़ा कर के ,दो पल की मस्ती कर लो,
सर भारी सुबह होगा ,तो 'एनासिन'  खानी है 
बीबी से  बचा नजरें  ,खाया था गाजर हलवा 
बढ़ जायेगी 'शुगर 'तो ,अब डाट भी खानी है 
कितने ही 'रिसोल्यूशन 'नव वर्ष में तुम कर लो,
संकल्पो की सब बातें ,दो दिन में भुलानी है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
नव वर्ष
     नव वर्ष
नए वर्ष का जशन मनाओ
आज ख़ुशी आनंद उठाओ

गत की गति से आज आया है
लेकिन तुम यह भूल न जाओ
कल कल था तो आज आया है
कल के कारण  कल आएगा
आने वाले कल की सोचो
यही आज कल बन जायेगा
कल भंडार अनुभव का है
कल से सीखो, कल से जानो
कल ने ही कांटे छांटे  थे
किया सुगम पथ ,इतना मानो
आज तुम्हे कुछ करना होगा
तो ही कल के काम आओगे
कल की बात करेगी बेकल
जब तुम खुद कल बन जाओगे
यह तो जीवन की सरिता है
कल कल कर बहते जाओ
आने वाले कल की सोचो
बीते कल को मत बिसराओ

नए वर्ष का जशन मनाओ 
आज ख़ुशी  आनंद उठाओ 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
इमारत,दरख़्त और इंसान 

कुछ घरोंदे बन गए घर , कुछ घरोंदे ढह गये 
निशां कुछ के,खंडहर बन ,सिर्फ बाकी रह गये 

कल जहाँ पर महल थे ,रौनक बसी थी ,जिंदगी थी 
राज था रनवास था और हर तरफ बिखरी ख़ुशी थी 
वक़्त के तूफ़ान ने ,ऐसा झिंझोड़ा ,मिट गया सब 
काल के खग्रास बन कर ,हो गए वीरान है  अब 
उनके किस्से आज बस,इतिहास बन कर रह गए है 
कुछ घरोंदे बन गए घर ,कुछ घरोंदे  ढह गये  है 

भव्य हो कितनी इमारत, उसकी नियति है उजड़ना 
प्रकृति का यह चक्र चलता सदा बन बन कर बिगड़ना 
भवन भग्नावेश तो इतिहास की बन कर धरोहर 
पुनर्जीवित मान पाते ,जाते बन पर्यटन स्थल 
चित्र खंडित दीवारों के ,सब कहानी कह गये है
कुछ घरोंदे बन गये घर ,कुछ घरोंदे ढह गये है 

वृक्ष कितना भी घना हो ,मगर पतझड़ है सुनिश्चित 
टूटने पर काम आये ,काष्ठ ,नव निर्माण के हित 
वृक्ष हो या इमारत,हो ध्वंस छोड़े निज निशां पर 
मनुज का तन ,भले कंचन ,मिटे  तो बस राख केवल 
अस्थि के अवशेष जो भी  बचे ,गंगा बह गये है 
कुछ घरोंदे ,बन गये  घर,कुछ घरोंदे ढह गये है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '    

सोमवार, 24 दिसंबर 2018

महरियों की स्ट्राइक 

अगर महरियां चली जाय स्ट्राइक पर ,
तो क्या होगा घर की मेम साहबों का 
देर सुबह तक लेती दुबक रजाई में ,
क्या होगा उन प्यारे प्यारे ख्वाबों का 
घर में बिखरा कचरा मौज मनाएगा ,
सीकें झाड़ू की चुभ कर नहीं उठाएगी 
प्यासी फरश  बिचारी  यूं ही तरसेगी ,
चूड़ी खनका,पोंछा कौन लगाएगी 
जूंठे बरतन पड़े सिंक में सिसकेंगे ,
कौन उन्हें स्नान करा कर पोंछेंगा 
मैले कपडे पड़े रहेंगे कोने में ,
नहीं कोई धोने की उनको सोचेगा 
क्योंकि सुबह से ऑफ मूड हो मेडम का 
उनके सर में दर्द ,कमर दुखती होगी 
पतिजी सर सहला कर चाय पिलायेंगे  
नज़रद्वार पर जा जा कर रूकती होगी 
खुदा करे स्ट्राइक टूटे जल्दी से 
और मेहरी देवी के दरशन हो जायें 
दूर बिमारी मेडम की सब हो जाए ,
साफ़ और सुथरा घर और आंगन हो जाए 
वरना विपत्ति पहाड़ गिरेगा पतियों पर ,
सुबह शाम खाना आएगा ढाबों का 
अगर मेहरियां चली जाय स्ट्राइक पर ,
तो क्या होगा घर की मेम साहबों का 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शनिवार, 1 दिसंबर 2018

कम्बोडिया का अंगकोर वाट मंदिर देख कर 


सदियों पहले ,
दक्षिणी पूर्वी एशिया के कई देशो में ,
हिन्दू धर्म का विस्तार था 
आज का 'थाईलैंड 'तब 'स्याम 'देश था 
यहाँ भी हिंदुत्व का प्रचार प्रसार था 
बैंकॉक में कई मंदिर है व् पास ही ,
;अयुध्या 'नगर में ,कई मंदिर विध्यमान है 
वहां के हवाईअड्डे 'स्वर्णभूमि 'में ,
'अमृत मंथन 'का विशाल सुन्दर स्टेचू ,
उनके हिंदुत्व प्रेम की पहचान है 
यद्यपि अब वहां बौद्ध धर्म माना जाता है 
पर वहां के पुराने मंदिरों के टूर में ,
गणेशजी ,शिवजी आदि देवताओं की ,
पुरानी मूर्तियों का दर्शन हो जाता है  
आज का इंडोनेशिया ,
प्राचीन जावा ,सुमात्रा और बाली है 
वहां भी मंदिरों में हिन्दू देवताओं की प्रतिमाये सारी  है  
वहां अब भी रामायण और महाभारत के पात्र ,
मूर्तियों में नज़र आते है 
बाली में तो अब भी ,
कई हिन्दू धर्मावलम्बी पाए जाते है 
वहां के लगभग सभी घरों के आगे और दुकानों में ,
अब भी छोटे छोटे मंदिर पाए जाते है 
जिनमे देवताओ को लोग रोज 
फूल और प्रसाद चढ़ाते है 
तब का मलय देश अब मलेशिया है 
पर यहाँ से हिन्दू धर्म बिदा  हो गया है
तब का 'कम्बोज ' देश अब कम्बोडिया है और 
यह हिन्दू धर्म का पालक एक बड़ा राज्य था 
यहां राजा सूर्यवर्मन का साम्राज्य था 
बारहवीं सदी में राजा सूर्यवर्मन ७ ने 
तीस वर्षो में पांच सौ एकड़ क्षेत्र में फैला 
विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर बनवाया था 
जहाँ विष्णु और ब्रह्मा जी की मुर्तिया स्थापित है 
रामायण और महाभारत की कथाये दीवारों पर चित्रित है 
काल  के गाल में दबा यह विशाल मंदिर 
जब से फिर से खोजा गया है 
दुनिया भर के दर्शको के लिए 
एक आकर्षण का केंद्र बन गया है 
दुनिया भर के पर्यटकों की भीड़ ,
हमेशा ही लगी रहती है 
और इसे सराहते हुए कहती है 
कि जब खण्हर इतने बुलंद है तो इमारत जब बुलंद होगी 
तो इसकी सुंदरता कितनी प्रचंड होगी 
आज कम्बोडिया की अर्थव्यवस्था का 
पन्दरह प्रतिशत (!५ %)पर्यटन से आता है 
जहाँ विष्णु  पूजे जाते है वहां मेहरबान होती लक्ष्मी माता है 
इस मंदिर के दर्शन कर मेरे मन में एक बात आयी 
हमारे देश के कई मंदिरों में है ढेरों कमाई 
क्या वो कभी देश की अर्थव्यवस्था सुधारने के काम आयी 
जब दूसरे देश मंदिरों के भग्नावेश दिखा कर करोड़ों कमा सकते है 
तो क्या हम हमारे मंदिर कुछ समय के लिए,
 विदेशी पर्यटकों को दर्शन के  लिए छोड़ कर कितना कमा सकते है 
और मंदिरों की इतनी कमाई देश की अर्थ व्यवस्था 
सुधारने के काम में ला सकते है 
फिर मन बोला छोडो यार ,ये सब बातें है बेकार 
हिन्दू राष्ट्र के हिन्दू देवभक्तों ने ,हिंदुत्व की महिमा के कितने गीत गाये 
पर बाबरी मस्जिद के गिरने के छब्बीस वर्ष बाद भी, 
राम की जन्मभूमि पर राम का मंदिर नहीं बना पाए 
फिर भी हम हिंदुत्व का दावा करते है बार बार 
हमारी इस असफलता पर हमें है धिक्कार 
ये हमारी आज की ओछी राजनीती और सोच का परिणाम है 
वर्ना यहाँ तो जन जन के दिलों में बसते  राम है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
वक़्त गुजारा खुशहाली में 

जीवन की हर एक पाली में 
वक़्त गुजारा खुशहाली  में 

होती सुबह ,दोपहर ,शाम 
यूं ही कटती उमर  तमाम 
हर दिन की है यही कहानी 
सुबह सुनहरी,शाम सुहानी 
ज्यों दिन होता तीन प्रहर है
तीन भाग में  बँटी  उमर  है 
बचपन यौवन और बुढ़ापा 
सबके ही जीवन में आता 
मुश्किल से  मिलता यह जीवन  
इसका सुख लो हरपल हरक्षण 
 रिश्ता बंधा  चाँद संग  ऐसा 
सुख दुःख  घटे बढे इस जैसा 
हर मुश्किल से लड़ते जाओ 
शीतल  चन्द्रकिरण  बरसाओ 
इसी प्रेरणा से जीवन में ,
फला ,पला मैं  हरियाली में 
जीवन की हरेक पाली में 
सदा रहा मैं  खुशहाली में 
बचपन की पाली 
------------------
जब मैं था छोटा सा बच्चा 
सबके मन को लगता अच्छा 
सुन्दर सुन्दर सी  ललनाये 
गोदी रहती  मुझे  उठाये 
चूमा करती थी गालों को 
सहलाती मेरे बालो को 
ना चिंताएं और ना आशा 
आती थी बस दो ही भाषा 
एक रोना  एक हंसना प्यारा 
काम करा देती थी सारा 
हर लेती थी सारी  पीड़ा 
मोहक होती थी हर क्रीड़ा 
भरते हम,हंस हंस किलकारी 
सोते , माँ लोरी सुन ,प्यारी 
तब चंदा मामा होता था ,
खुश था देख बजा ताली मैं 
इस जूवन की हर पाली में 
सदा रहा मैं खुशहाली में 
जवानी की पाली 
------------------
बचपन बीता ,आई जवानी 
जीवन की यह उमर सुहानी 
खुशबू और बहार का मौसम 
मस्ती और प्यार का मौसम 
देख कली तन,मादक,संवरा 
मेरे मन का आशिक़ भंवरा 
उन पर था मँडराया  करता
अपना प्यार लुटाया  करता 
जुल्फें सहला ललनाओं की 
चाह रखी  ,बंधने बाहों की 
साथ किसी के  बसा गृहस्थी 
थोड़े दिन तक मारी मस्ती 
फिर प्यारे बच्चों का पालन 
वो ममत्व और वो अपनापन 
अब हम करवाचौथ चाँद थे ,
पत्नी की पूजा थाली में 
जीवन की हरेक पाली में
वक़्त गुजारा खुशहाली में 
बुढ़ापे की पाली
------------------ 
साठ  साल का रास्ता नापा 
गयी  जवानी,आया बुढ़ापा 
कहने को हम हुए सयाने
पर तन पुष्प, लगा कुम्हलाने 
बची सिर्फ अनुभव की केसर 
बच्चे उड़े ,बसा अपने  घर 
अब न पारिवारिक चितायें 
मस्ती में बस  वक़्त  बितायें 
समय ही समय खुद के खातिर 
पर अब ना  उतना चंचल दिल 
धुंधली नज़रों से  अब  यार
कर न पाए उनका दीदार 
ललना बूढ़ा बैल ना  पाले 
अंकल कहे ,घास ना डाले 
रिश्ता चाँद संग नजदीकी,
सर पर चाँद,जगह खाली में 
इस जीवन की हर पाली में 
सदा रहा मैं  खुशहाली में 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 
   

शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

मेरा जीवन भर का दोस्त -चाँद 

चाँद से मेरा रिश्ता है पुराना 
बचपन में उसे कहता था चंदामामा 
मेरी जिद पर ,मम्मी के बुलावे पर ,
वो मुझ संग खेलने ,पानी के थाली में आता था 
मेरे इशारों पर ,हिलता डुलता था ,
नाचता था ,हाथ मिलाता था 
और जब जवानी आयी तो बिना मम्मी को बताये 
हमने कितनी ही चन्द्रमुखियों से नयन मिलाये 
और फिर एक कुड़ी फंस  गयी 
'तू मेरा चाँद ,मैं तेरी चांदनी कहने वाली ,
मेरे दिल में बस गयी 
वक़्त के साथ उस चंद्रमुखी ने 
हमें एक चाँद सा बेटा दिया ,
फिर एक चन्द्रमुख बेटी आयी 
और मेरे घरआंगन में ,चांदनी मुस्करायी 
चांदनी की राह में ,कई रोड़े ,बादलों से अड़े 
सुख और दुःख ,
कभी कृष्णपक्ष के चाँद की तरह घटे ,
कभी शुक्लपक्ष के चाँद की तरह बढ़े 
जिंदगी के आकाश में कई चंद्रग्रहण आये ,
कई मुश्किलों में फँसा 
कभी राहु ने डसा ,कभी केतु ने डसा 
और फिर शुद्ध हुआ 
समय के साथ वृद्ध हुआ 
और चाँद के साथ ,मेरी करीबियत और बढ़ गयी है ,
बुढ़ापे की इस उमर में 
बचपन में थाली में बुलाता था और अब,
चाँद खुद आकर बैठ गया है मेरे सर में 
बचे खुचे उजले बालों की बादलों सी ,चारदीवारी बीच ,
जब मेरी चमचमाती चंदिया चमकती है 
बीबी सहला कर मज़े लेती है ,
पर आप क्या जाने मेरे दिल पर क्या गुजरती है 
जब चंद्रमुखिया ,'हाई अंकल  कह कर पास से  निकलती है 

घोटू 

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