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रविवार, 22 अप्रैल 2018

मेरे पास वक़्त ही वक़्त है 

हे मेरी प्यारी पत्नी डीयर 
जवानी के दिनों का ,हर पति परमेश्वर
बुढ़ापे में पूजने लगता है ,
पत्नी को परमेश्वरी  बना कर ,
और बन जाता उसका परम भक्त है 
मैं भी तुम्हारी भक्ति में लीन होना चाहता हूँ ,
क्योंकि मैं रिटायर हो गया हूँ और मेरे पास ,
तुम्हारे लिए वक़्त ही वक़्त है 
तब जब मैंने तुम्हारे साथ ,
बसाया था अपना घरसंसार 
तुम मुझसे और मैं तुमसे ,करता था बहुत प्यार 
पर उस उमर में मेरी महत्वकांक्षाएं ढेर सारी थी 
जिंदगी में  कुछ कर पाने की तैयारी थी 
मुझे बहुत कुछ करना था 
और बहुत आगे बढ़ना था 
और इसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु ,
मैं पागलों सा जूझता रहा 
मैंने दिन देखे न रात ,
बस भागता रहा ,यहाँ और वहां 
तुम्हारे लिए समय ही कब बचता था मेरे पास 
तुम कभी नाराज होती थी ,कभी उदास 
मैं देर रात थका हुआ घर आता था 
तुम उनींदी सी ,सोइ हुई मिलती थी ,
और मैं खर्राटे भरता हुआ सो जाता था 
मैं चाहते हुए भी तुम्हारे लिए ,
समय नहीं निकाल पाता था 
क्योकि स्ट्रगल के वो दिन ,होते बड़े सख्त है 
पर अब मैं रिटायर हो गया हूँ,
मेरे पास तुम्हारे लिए,वक़्त ही वक़्त है 
पर अब ये प्रॉब्लम बढ़  गयी है 
कि तुम्हे भी तन्हा रहने की आदत पड़ गयी है  
मुझमे भी ज्यादा दमखम नहीं बचा है ,
क्योंकि उमर चढ़ गयी है 
न वो जोश ही बचा है ,न वो जज्बा ही रहा है 
और अब तुम भी तो ढल गयी हो ,
तुम में वो पुरानी वाली कशिश ही कहाँ है 
बच्चों ने बसा लिया अपना अपना संसार है 
बेटी ससुराल है 
और बेटा  सात समंदर पार है 
अब इस घोसले में ,मैं हूँ ,तुम हो ,
बस हम दोनों ही प्राणी  फ़क़्त है 
पर अब मैं रिटायर  हो गया हूँ,
मेरे पास तुम्हारे लिए वक़्त ही वक़्त है 
अब मैं तुम्हारे मनमुताबिक ,
तुम्हारी उँगलियों पर नाच सकता हूँ 
अगर जरूरत पड़े तो तुम्हारे आदेश पर ,
घर के बर्तन भी मांज सकता हूँ 
बाज़ार से फल और सब्जी लाना ,
अब मेरी ड्यूटी में शामिल होगा 
अब मैं हर वो काम करूंगा ,
जो चाहता तुम्हारा दिल होगा 
अब हम दोनों ,फुर्सत  बैठेंगे ,
ढेर सारी बातें होगी 
तुम्हारी हर आज्ञा ,मेरे सर माथे होगी 
शुरू शुरू में कुछ गलतियां हो सकती है ,
जो तुम्हे झल्लाए 
और शायद मेरी कुछ बातें तुम्हे पसंद न आये 
पर मैं कोशिश कर ,खुद को ,
तुम्हारे सांचे में ढाल लूँगा 
बिगड़े हुए रिश्तों को फिर से संभाल लूँगा 
मन मसोस कर ,सब कुछ सह लूँगा,चुपचाप 
ये मेरी जवानी के दिनों में ,तुम्हारी ,
की हुई उपेक्षा का होगा पश्चाताप 
तुम कितने ही ताने मारो या नाराज हो,
तुम्हे बस प्यार ही प्यार मिलेगा ,
क्योंकि अब ये बंदा ,
पत्थर के बदले ,फल देने वाला दरख़्त है 
अब मै रिटायर हो गया हूँ ,मेरे पास ,
तुम्हारे लिए वक़्त ही वक़्त है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

बुधवार, 18 अप्रैल 2018

आधुनिक सुदामा चरित्र 
( ब तर्ज नरोत्तमलाल )

१ 
मैली और कुचैली ,ढीलीढाली और फैली ,
 कोई बनियान जैसी वो तो पहने हुए ड्रेस है 
जगह जगह फटी हुई ,तार तार कटी हुई ,
सलमसल्ला जीन्स जिसमे हुई नहीं प्रेस है 
बड़ी हुई दाढ़ी में वो दिखता अनाडी जैसा ,
लड़की की चोटियों से ,बंधे हुए  केश है 
नाम है सुदामा ,कहे दोस्त है पुराना ,
चाहे मिलना आपसे वो ,करे गेट क्रेश है 
२ 
ऑफिस के बॉस कृष्णा,नाम जो सुदामा सुना ,
याद आया ये तो मेरा ,कॉलेज का फ्रेंड था 
सभी यार दोस्तों से ,लेता था उधार पैसे ,
मुफ्त में ही मजा लेना ,ये तो उसका ट्रेंड था 
लोगों का टिफ़िन खोल ,चोरी चोरी खाना खाता ,
प्रॉक्सी दे मेरी करता ,क्लास वो अटेंड था 
पढ़ने में होशियार ,पढ़ाता था सबको यार ,
नकल कराने में भी ,एक्सपीरियंस हेंड था 
३ 
कृष्ण बोले चपरासी से ,जाओ अंदर लाओ उसे ,
और सुनो केंटीन से ,भिजवा देना ,चाय  दो 
सुदामा से कृष्ण कहे ,इतने दिन कहाँ रहे ,
व्हाट्सएप,फेसबुक पर,कभी ना दिखाय  दो 
फ्रेण्डों के फ्रेंड कृष्ण ,सुदामा से करे प्रश्न ,
थके हुए लगते हो, थोड़ा  सा सुस्ताय लो 
होकर के इमोशनल ,कृष्ण बोले माय डीयर,
भूखे हो ,पिज़ा हम,मंगवा दें,खाय  लो 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गाना और रोना 

गाना सबको ही आता  है ,कोई सुर में,कोई बेसुरा 
रोना सबको ही आता है ,कोई रोष में,कोई दुःख भरा 

मन में जब पीड़ा होती है ,आँखों में आ जाते आंसू 
अंतरतर की सभी वेदना , बह कर बतला जाते आंसू  
कभी कभी जब गुस्सा आता,तो भी आँखे छलका करती 
भावों का गुबार बह जाता ,आंसू बन मन हल्का  करती
कभी मिलन में या बिछोह में ,आँखे पानी भर भर लाती 
मोती जैसे प्यारे प्यारे ,आंसू गालों पर ढलकाती
बच्चों की आँखों में आंसू ,या उसका चीख चीख रोना 
सुन कर विचलित हो जाता है,माँ के मन का कोना कोना 
शायद भूख  लगी उसको , वह सारे काम छोड़ करआती 
उसको आँचल में भर कर के ,दुग्धामृत का पान कराती 
नीर भरे नैनों से विरहन ,प्रीतम का रस्ता तकती है 
अश्रु जनक आँखे भी आंसू ,अपने पास नहीं रखती है 
कुछ आंसू होते घड़ियाली ,कुछ बहते सहानुभूति पाने 
कुछ आंसू ,पत्नी आँखों से ,भाते ,निज जिद को मनवाने 
कोई बिलखता,कोई सिसकता ,कोई रुदन हिचकियों से भरा 
रोना सको ही आता है ,कोई रोष में,कोई दुःख भरा 

जब मन में होती प्रसन्नता ,देखा है लोगों को गाते 
सूनी राह ,रात में डर कर,कई बेसुरे,गा चिल्लाते 
कुछ गाते है बाथरूम में ,जब ठंडा लगता है पानी 
कुछ शोहदे ,गाना गा करते,लड़की के संग छेड़खानी 
गाना जब सुर में होता है ,तो वह छू लेता है मन को 
साज और संगीत हमेशा ,सुख देते है इस जीवन को 
मंगल गीत हमेशा गाये जाते है,हर आयोजन में  
शादी या त्यौहार,पर्व में ,या फिर ईश्वर के पूजन में 
भजन कीर्तन करना भी तो ,प्रभु की सेवा ,आराधन है 
राष्ट्रगान से यशोगान तक ,गाय करता है एक जन है 
कुछ दर्दीले ,कुछ भड़कीले ,कुछ पक्के कुछ फ़िल्मी गाने 
कुछ गाने होठों पर चढ़ते ,कुछ हो जाते है बेगाने 
या फिर डीजे वाले गाने ,जो पैरों को थिरकाते है 
कुछ कोरस गाने होते जो कई लोग मिल कर गाते है 
जान फूंक देता शब्दों में ,अगर कंठ हो ,कोई रसभरा 
गाना सबको ही आता है ,कोई सुर में ,कोई बेसुरा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बदलते फैशन 

पहले जब साड़ी चलती थी ,तो फैशन में था कटि दर्शन 
फिर उघड़ी पीठ प्रदर्शन का ,पॉपुलर बहुत हुआ फैशन 
फिर ब्लाउज हुए बहुत 'लौ कट 'कुछ बोट शेप के गले चले 
फिर 'ब्रा' पट्टी को दर्शाते ,फैशन पर लोग बहुत  फिसले 
अब बाहें ढकती बाजू को ,होता कंन्धों का  दर्शन  है 
दो गोरे उभरे कंधों को ,दिखलाने का अब फैशन  है 
ये तो ऊपर की बात हुई ,अब नीचे के फैशन देखो 
पहले ऊपर से नीचे तक ,साड़ी ढकती थी तन देखो 
फिर ऊंचा होकर साड़ी ने ,था 'मिनी साड़ी 'का रूप धरा 
पूरी पिंडली को दर्शाता ,स्कर्ट बहुत था चल निकला 
यह स्कर्ट भी फिर हुआ मिनी और 'हॉट पेन्ट 'का युग आया 
जांघें उघाड़ ,नारी ने कदली स्तम्भों को था दिखलाया 
पूरे साइड से कटे हुए ,कुछ लम्बे चोगे फिर आये 
जो चलने पर,इत  उत उड़ कर ,टांगों की झलकें दर्शाये  
वस्त्रों का बोझ घटाते है ,नित नित बदलाते  फैशन है 
तन का हर भाग दिखाने को ,देखो कैसा पागलपन है 

घोटू 
उँगलियाँ 

बहुत नाजुक,मुलायम और रसीली उँगलियाँ है 
हाथ मेंहंदी रची ,होती रंगीली उँगलियाँ है 
अगर सहलाये तुमको तो नशीली उँगलियाँ है
 बजाये  बांसुरी जब , तो  सुरीली उँगलियाँ है
मनुज के पूरे तन में , ग़ौर से जो देखे हम तो 
उँगलियाँ सोलह होती ,अन्य अंग बस एक या दो 
माँ की ऊँगली पकड़ कर ,सीखते चलना ही सब है 
लोग ऊँगली पकड़ कर,पहुँच जाते,पंहुचे तक है 
देख कर शान उनकी ,काटते सब उंगलिया है 
स्वाद खाना अगर हो  , चाटते  सब उँगलियाँ है  
अंगूठी सगाई की  पहनती  ये उंगलिया है 
जिंदगी भर का रिश्ता ,बांधती ये उंगलिया है 
पकड़ते हम कलम को ,अंगूठे और उँगलियों से 
बजाते ढोल,तबला ,हम थिरकती  उँगलियों से 
नृत्य की कई मुद्रा ,बनाती ये उंगलयां  है 
पति को उँगलियों पर ही नचाती बीबियां है  
जुल्फ को मेहबूबा की ,सहलाती है कोई ऊँगली 
घूमते प्रेमी जोड़े ,फंसा कर ऊँगली में ऊँगली 
उठाया कन्हैया ने ,ऊँगली पे पर्वत गोवर्धन 
चुरा कर ,उँगलियों से ,चाटते  थे कृष्ण माखन 
हथेली उँगलियों संग मिलती है तो हाथ बनती 
मांगती ये दुआयें ,सबका  आशीर्वाद बनती 
उँगलियों पर हर एक की ,है अलग निशान होते
कार्ड आधार बनता ,सबकी ये पहचान   होते 
उँगलियाँ  गुस्सा करती तो चपत ये मारती है 
मिलती जब हथेली के संग ,मुक्का तानती है 
सर में जब दर्द होता ,उँगलियाँ करती है चम्पी 
बड़ी नाज़ुक सी लगती ,उँगलियाँ जब होती लम्बी 
काम आती है कितनी ,उँगलियाँ ये ,गिनतियों में 
जोड़ती हाथों को है ,उँगलियाँ ये ,विनतियों में 
टेढ़ी ऊँगली किये बिन ,निकलता भी घी नहीं है 
किसी को छेड़ना हो ,उँगलियाँ फिर जाती की है 
दांत को छू के ,उंगली ,कट्टियाँ भी है कराती 
ऊँगली ऊँगली से मिलकर ,बट्टियाँ भी है कराती 
आजकल मोबाईल फोनो पे फिसले उंगलिया है 
व्हाट्सएप फेसबुक पर करती कितनी चुगलियां है 
किसी के आगे जब ऊँगली हमारी ,एक उठती 
हमारी और भी तब ,उंगलयां है तीन मुड़ती 
इशारा उँगलियों का ,है कभी दिल लूट लेता 
उठा कर एक ऊँगली ,अम्पायर है आउट देता 
उँगलियाँ नचाने से ,काम सब बनते  नहीं है 
 उंगलिया बताती है ,रास्ता कैसा ,सही है 
निवाला रोटियों का, उँगलियाँ  ही तोड़ती है 
मिला कर हाथ सबसे ,उंगलिया ही जोड़ती है 
 कोई भी उलझा मसला  सुलझाती ये उंगलिया है 
शुक्रिया खुदा तेरा ,हमको बक्शी उँगलियाँ है 

मदन मोहन बाहेती ' घोटू'

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