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मंगलवार, 5 सितंबर 2017

बिमारी गरदन की 

बड़ी कम्बख्त है, बिमारी यार गरदन की,
जो कि 'स्पेडलाइटिस 'पुकारी जाती है 
इसमें  ना तो गरदन उठाई  जा  सकती,
इसमें  ना  गरदन  झुकाई जाती   है 
पहले वो गैलरी में जब खड़ी हो मुस्काती,
उठा के गरदन  हम दीदार किया करते थे 
दिल में तस्वीरें यार छुपा, जब भी जी करता ,
झुका के गरदन उनको देख लिया करते थे 
अब तो ना इस तरफ ही देख पाते ना ही उधर ,
दर्द जब होता है तो तड़फ तड़फ जाते है 
हुई है जब से निगोड़ी ये बिमारी हमको,
उनके दीदार को हम तरस तरस  जाते है 

घोटू 

सोमवार, 4 सितंबर 2017

तृण से मख्खन 

एक सूखा हुआ सा तृण 
भी निखर कर बने मख्खन 
किन्तु यह सम्भव तभी है,
पूर्णता से हो समर्पण 
घास खाती ,गाय भैंसे ,
और फिर करती जुगाली 
बदलती सम्पूर्ण काया ,
इस तरह से है निराली 
भावना मातृत्व की ,
उसमे मिलाती स्निघ्ता है,
चमत्कारी इस प्रक्रिया  
में बड़ी विशिष्टता  है 
और उमड़कर के थनो से ,
बहा करती दुग्धधारा 
जो है पोषक और जमकर ,
ले दधि का रूप प्यारा 
बिलो कर के जिसे मख्खन ,
तैर कर आता निकल है 
किस तरह हर बार उसका ,
रूप ये जाता बदल है 
कौनसा विज्ञान है ये ,
कौनसी है प्रकृति लीला 
शुष्क तृण का एक टुकड़ा ,
इस तरह बनता रसीला 
दूध हो या दही ,मख्खन ,
सभी देते हमें पोषण 
एक सूखा हुआ सा तृण 
किस तरह से बने मख्खन 

घोटू 
बुढ़ापे की दवा 

वो पागलपन ,वो दीवानगी ,वो जूनून अब हुआ हवा है 
मैं बूढा हो गया ,पुरानी यादें ,दिल में  मगर जवां  है 
जब सूनी सूनी रातों में,तन्हाई  मुझको डसती  है ,
याद पुराने सुखद पलों की,दुखते दिल की एक दवा है
 
घोटू 
तूने तो बस पूत जना था 

तूने तो बीएस पूत जना था ,लायक मैंने उसे बनाया 
तूने लाड़प्यार से   पाला ,नायक  मैने  उसे  बनाया 
संस्कार की पूँजी उसको ,कुछ तूने दी,कुछ मैंने दी,
इसीलिए करआज तरक्की,उसने इतना नाम कमाया 
उसमे आये कुछ गुण  तेरे,उसमे आये कुछ गुण  मेरे,
तुझसा कोमलऔर मुझसा दृढ़,आज निखरकर है वोआया
पर जब से की उसकी शादी प्रीत रह गयी उसकी आधी ,
मात पिता प्रति ममता आदर ,धीरे धीरे हुआ सफाया 
कुछ ना कुछ तो,कहीं ना कही, भूलचूक या कमी रह गयी ,
बहुत गर्व था जिसपर ,उसने ,संस्कार वो सब बिसराया 
भूल गया बस दो दिन में ही ,त्याग तपस्या ,लालनपालन ,
उनका ही दिल तोडा उसने ,जिनने दिल में उसे बसाया 
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कंस-एक चितन 

कल सुना आकाशवाणी पर 
जानलेवा होता है डेंगू का मच्छर 
इसके पहले कि वो आपको मारे,
आप उसे मार दें 
उसे पनपने न दें,
कर उसका संहार दें 
मैं घबराया 
पूरे घर में ,कछुवा छाप अगरबत्ती 
का धुवाँ फैलाया 
फिर भी कोई चांस न लिया 
घर के कोने कोने में ,
काला 'हिट' स्प्रे किया 
घर से जब भी निकलता था 
शरीर के खुले हिस्सों पर ,
'आडोमास' मलता था 
ये एक शाश्वत सत्य है कि ,
मौत से सब डरते है 
और अपनी मौत के संभावित कारणों का,
पहले अंत करते है 
ऐसी ही एक भविष्यवाणी सुनी थी कंस ने 
जब वो अपनी बहन देवकी को ,
शादी के बाद बिदा कर रहा था हर्ष में 
आकाशवाणी थी कि देवकी का 
आठवां पुत्र ,उसका काल होगा 
अब आप ही सोचिये ,यह सुन कर ,
उसका क्या हुआ हाल होगा 
अपनी मृत्यु के संभावित कारण का हनन 
एक सहज मानव  प्रवृत्ति है ,
इसमें कंस को क्यों दोष दे हम 
वह चाहता तो अपनी बहन 
और बहनोई को मार सकता था 
ना रहेगा बांस,ना बजेगी बांसुरी 
ऐसा विचार सकता था 
पर शायद उसमे मानवता शेष थी  ,
इसलिए उसने अपनी बहन और बहनोई को 
कारावास दिया 
और उनकी सन्तानो को ,
जन्म होते ही मार दिया 
पर जब उसे मालूम हुआ ,
कि उसका संभावित काल,
आठवीं संतान बच गयी 
तो उसके दिल में खलबली मच गयी 
उसके मन में इतना डर समाया 
कि उसने सभी नवजातों को मरवाया 
और जब उसे कृष्ण का पता लगा ,
तो भयाकुल हो कर काँपा उसका कलेजा 
और उसने कृष्ण को मारने ,
पूतना,वकासुर आदि कितने ही.
 राक्षसों  को भेजा 
पर जब अपने प्रयासों में सफल न हो पाया 
तो उसने कृष्ण को मथुरा बुलवाया 
पर अंत में उसका अहंकार सारा गया 
और वो कृष्ण के हाथों मारा गया 
हम कंस के ,कृष्ण के मारने के ,
सारे राक्षसी प्रयासों की,
कितनी ही करें आलोचना 
पर अपने मृत्यु के संभावित कारणों से 
बचने का प्रयत्न ,करता है हर जना 
पर यह भी एक शाश्वत सत्य है कि ,
किस्मत के आगे इंसान बौना है 
चाहे आकाशवाणी हो या न हो,
जो जन्मा है ,उसका अंत होना है 
नियति के आगे आदमी एक खिलौना है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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