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रविवार, 26 मार्च 2017

शिकायत -पत्नी की 

छोटा सा सौदा लेने में,कितना मोलभाव करते हो 
एक पेंट भी लेनी हो तो ,तुम दस पेंट ट्राय करते हो 
कभी डिजाइन पसन्द न आती ,कभी फिटिंगमे होता संशय 
बना कोई ना कोई बहाना,टाल दिया करते तुम निर्णय 
तो शादी के पहले जिस दिन,मुझे देखने तुम आये थे 
कुछ मिनिटों में ,कैसे शादी का निर्णय तुम ले पाए थे 
जब तुमने मुझको देखा था ,क्या देखा बस चेहरा ,मोहरा 
केवल  नाकनक्श देखे थे,या देखा था बदन  छरहरा 
या फिर मेरे बाल जाल में, अपनी नज़रें उलझाई थी 
या फिर मेरी मीठी बातें ,तुम्हारे  मन को भायी  थी 
देख आवरण ही बस मेरा क्या तुम मुझको आंक सके थे 
सच बतलाना रत्ती भर भी ,मेरे दिल में झाँक सके थे 
जबकि तुम्हे मालूम था तुमको ,जीवन भर है साथ निभाना 
बहुत मायना रखती उस दिन ,तुम्हारी छोटी  हाँ या ना 
कुछ मिनिटों में कितना मुश्किल,होता है ये निर्णय करना 
अपना जीवन साथी चुनना,जिस के संग है जीना ,मरना 
आपस में कितनी मिलती है ,सोच हमारी और तुम्हारी 
एक गलत निर्णय जीवन भर,दोनों पर पड़ सकता भारी 
तो फिर उस दिन क्या अंदर से,तुम्हारा दिल कुछ बोला था 
या फिर शायद मुझे देख कर ,तुम्हारा भी दिल डोला था 
टालमटोल नहीं कर पाए ,तुमने बस ,हामी भर दी  थी 
ये तुम्हारा निर्णय था या ,फिर ये ईश्वर  की मरजी   थी 
कहते है कि सभी जोड़ियां ,है ऊपर से बन कर आती 
यह नियति का निर्णय होता,किसका ,कौन बनेगा साथी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 21 मार्च 2017

बूढ़े भी कुछ कम नहीं 

क्या जवानों ने ही ठेका ले रखा ,
           आशिक़ी का,बूढ़े भी कुछ कम नहीं 
बूढ़े सीने में भी है दिल धड़कता ,
             बूढ़े तन में होता है क्या  दम  नहीं 
जवानी में बहुत मारी फ़ाक्ता ,
                अनुभव से काबलियत आ गयी ,
बात ये दीगर है ,पतझड़ आ गया ,
              रहा पहले जैसा अब मौसम नहीं 

घोटू 
परशादखोर 

तरह तरह के प्राणी रहते ,है इस दुनिया के जंगल में 
कुछ गिरगिट जैसे होते है ,रंग बदलते है पल पल में 
बचाखुचा शिकार शेर ,गीदड़ से खाते चुपके से ,
ये परशादखोर ऐसे है ,खुश हो जाते  तुलसीदल  में 
इनको बस मतलब खाने से ,वो भी अगर मिले फ़ोकट में,
वो बस खाते है भंडारा ,जाते नहीं कभी होटल में 
गैरों की शादी में घुस कर ,मज़ा लूटते है दावत का ,
इनसे जब चन्दा मांगो तो ,गायब हो जाते है पल में 

घोटू 
कथनी और करनी 

न जाने लोग कितनी ही ,अजब बातें किया करते ,
जिनकी कथनी और करनी में,न कोई मेल होता है 
प्यार में कहते सजनी से,सितारे मांग में भर दूं ,
सितारे तोड़ कर लाना ,न कोई खेल होता है 
कभी मिलती नहीं आँखें ,मगर कहते नज़र लड़ना,
होठ से होठ मिलने से ,सदा होती नहीं पप्पी 
मिले जब होठ ऊपर का ,तुम्हारे होठ निचले से ,
इसे सीधी  सी भाषा में ,कहा जाता रखो चुप्पी 
न जाने उनकी मुस्काहट,गिराती बिजलियाँ कैसे ,
हंसी उनकी कहाती है ,भला क्यों फूल सा खिलना 
हमारा दिल अलग धड़के ,तुम्हारा दिल अलग धड़के ,
मगर क्यों लोग उल्फत में ,कहा करते है दिल मिलना 
अलग से पकते है चांवल,अलग से दाल भी पकती ,
मगर जब मिल के पकते है ,खिचड़ी गल रही कहते 
जरा भी ना खिसकती है,उसी स्थान पर रहती ,
मगर जब हिलती डुलती तो ,जुबां ये चल रही कहते 
हाथ से हाथ मिलने पर ,दोस्ती होती ना हरदम ,
इस तरह होती क्रिया को ,बजाना ताली कहते है 
वो हरदम बॉस ना होता,डरा करते है हम जिससे,
नाचते जिसके ऑर्डर पर ,उसे घरवाली कहते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
फिर भी जल बिच मीन पियासी 

पाने को मैं प्यार तुम्हारा ,कितने दिन से था अभिलाषी 
मुझे मिला उपहार प्यार का,कहने को है बात जरा सी 
दिन भर चैन नहीं मिलता है ,और रात को नींद न आती 
ऐसी  तुमसे प्रीत लगाई,  हुई  मुसीबत अच्छी खासी 
दिल के बदले दिल देने की ,गयी न तुमसे  रीत निभाई ,
मैंने तुम्हे दिया था चुम्बन, तुमने मुझको दे दी  खांसी 
देखी  आँखे लाल तुम्हारी  ,समझा छाये गुलाबी डोरे ,
ऐसी तुमसे आँख मिलाई ,'आई फ्लू' में आँखे फांसी 
मैंने जबसे ऊँगली पकड़ी ,तुम ऊँगली पर नचा रही हो,
मेरी टांग खींचती रहती ,कह खुद को चरणों की दासी 
ऐसे तुमसे दिल उलझाया ,बस उलझन ही रही उमर भर ,
मैंने इतने पापड़ बेले ,फिर भी जल बिच मीन पियासी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

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