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शनिवार, 28 जनवरी 2017

तजुर्बा 

मुँह बिचका दिया ध्या नहीं हमपे जरा सा,
         बस देख कर के रंग उजला मेरे बाल  का 
एक बार आजमा के अगर देख जो लेते,
          लग जाता पता ,भाव तुम्हे आटे  दाल का 
मेरी तुम्हारी उम्र में अंको का उलट फेर ,
         छत्तीस तुम ,मैं तिरेसठ ,अंतर  कमाल का 
इतने बरस तक ,खूब खाये खेले  हुए हम,
         हमको बहुत तजुर्बा है ,डीयर धमाल  का 

घोटू 
हो गयी ऐसी की तैसी मेरी खुमारी की 

गुजारा वक़्त मैने ,तेरा जाम ले लेकर 
जिया था लम्हा लम्हा ,तेरा नाम ले लेकर 
आपने हद ही करवा दी इंतजारी  की 
हो गयी ऐसी की तैसी मेरी खुमारी की 
बड़ा बेचैन ,बेकरार प्यार था  मेरा 
कई दिनों से कुछ ,तुम पर उधार था मेरा 
आज तारीख तय थी,चुकाने ,उधारी की 
हो गयी ऐसी की तैसी मेरी खुमारी की 
हमारे दिल को तरसा ,कब तलक यूं तोड़ोगे 
यूं ही तड़फाने का ,अंदाज कब ये छोड़ोगे 
क्या यही ,रस्म हुआ करती ,यार,यारी की 
हो गयी ,ऐसी की तैसी मेरी खुमारी की 
अब चले आओ कि तुम बिन नहीं जिया जाता 
अपने दीवाने पर, यूं ,जुल्म ना किया जाता  
आपसे दिल लगाया ,हमने भूल भारी की 
हो गयी,ऐसी की तैसी मेरी खुमारी की 

घोटू 
 जी का जंजाल 

इस जी का क्या ,जी तो क्या क्या सोचा करता है 
जी जी करके , जीता जाता,  जी जी  मरता  है 
कभी चाहता  वह ,परियों को,बाहों में ले लूं 
कभी मचलता जी,गुलाब की,कलियों संग खेलू
कभी ललकता ,पंख लगा कर ,अम्बर में घूमू  
कभी बावरा ,चाहा करता ,चन्दा को  चूमू 
पर क्या जी की ,हर एक इच्छा पूरी होती है 
हर जी की ,कुछ ना कुछ तो ,मजबूरी होती है 
हाथ निराशा ,जब लगती तो बहुत अखरता है 
इस जी का क्या,जी तो क्या क्या ,सोचा करता है 
इच्छाओ का क्या,इनका तो कोई अंत नहीं 
जिसको संतुष्टी मिल जाए ,जी वो संत नहीं 
एक इच्छा पूरी होती,दूजी जग जाती है 
यह अपूर्णता ,चिंता बन ,पीछे लग जाती है 
है प्रयास और लगन जरूरी ,इच्छा पाने को
और भाग्य भी आवश्यक है ,साथ निभाने को 
इसी चक्र में मानव,जीवन जीता ,मरता है 
इस जी का क्या,जी तो क्या क्या ,सोचा करता है 

मदनमोहन बाहेती'घोटू' 

बुढापा एन्जॉय करिये 

आपका चलता नहीं बस,कामना होती कई है 
कुछ न कुछ मजबूरियों बस ,पूर्ण हो पाती नहीं है 
आपका चलता नहीं बस ,व्यस्तता के कभी कारण 
कभी मन संकोच करता ,गृहस्थी की कभी उलझन 
भावना मन में अधूरी  दबा तुम  रहते   उदासे
पूर्ण करलो वो भड़ासें ,जब तलक चल रही साँसे 
अभी तक जो कर न पाये ,वो सभी कुछ ट्राय करिये 
,बुढापा एन्जॉय   करिये ,बुढापा  एन्जॉय  करिये 
जिंदगानी के सफर की ,सुहानी सबसे उमर ये 
तपा दिन भर,प्रखर था जो ,सूर्य का ढलता प्रहर ये 
सांझ की शीतल हवाएँ,दे रही तुमको निमंत्रण 
क्षितिज में सूरज धरा  को,कर रहा अपना समर्पण 
चहचहाते पंछियों के ,लौटते दल ,नीड में है 
यह मधुर सुख की घडी है,आप क्यों फिर पीड़ में है 
सुहानी यादों के अम्बर में,बने पंछी  बिचरिये 
बुढापा एन्जॉय करिये ,बुढापा एन्जॉय करिये 
अभी तक तो जिंदगी तुम ,औरों के खातिर जिये है
जो कमाया या बचाया ,छोड़ना किसके लिए है 
पूर्ण सुख उसका उठा लो ,स्वयं हित ,उपभोग करके 
हसरतें सब पूर्ण करलो ,रखा जिनको  रोक करके 
बचे जीवन का हरेक दिन ,समझ कर उत्सव मनायें  
मर गए यदि लिए मन में , कुछ अधूरी कामनाएं  
नहीं मुक्ति मिल सकेगी ,सोच कर ये जरा डरिये 
बुढापा एन्जॉय करिये ,बुढापा एन्जॉय  करिये 

मदनमोहन बाहेती'घोटू'
 

रविवार, 22 जनवरी 2017

खराब मौसम

जब कभी भी ये मौसम खराब होता है
अपने हाथों में तो जाम ए शराब होता है
क्योंकि कहते है उसे काटता नहीं जूता ,
जो कि पैरों में ,पहने  जुराब  होता है
ठिठुरती सर्दियों में नींद आती मुश्किल से ,
चैन से  सोता ,जो ओढ़े लिहाफ होता है
चांदनी रोज कहाँ,एक दिन अमावस को,
न जाने गुम कहाँ ,वो आफताब  होता है
हजारों हसरतें होती सभी की दुनिया में,
नहीं पूरा किसी का ,हरेक ख्वाब होता है
एक दो चार ही अम्बानी ,बिरला बनते है,
मेहरबां अल्ला न ,सब पर जनाब होता है
कभी इठलाता जो जुल्फों में हुस्न की सजकर ,
 कभी मैयत में वो बिखरा  गुलाब होता  है
आज तो जी लें,मरेंगे तो देखा जाएगा ,
कयामत को तो सभी का हिसाब होता है

मदनमोहन बाहेती'घोटू'          

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