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गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

नोटबंदी या अनुशासनपर्व


नोटबंदी  या अनुशासनपर्व

जब से आयी है ये नोटबन्दी
फिजूल खर्चों पर ,लग गयी है पाबन्दी
हम सबकी होती ,ऐसी ही आदत है
कि हमारे पास होती ,पैसों की जितनी भी सहूलियत है
हम उतना ही खर्च करते है खुले हाथ से
कभी मुफलिसी से,कभी शाही अंदाज से
पर जब से हुई है नोटबन्दी
पड़ने लगी है नए नोटों की तंगी
बैंकों के आगे ,लगने लगी है कतारें लम्बी
थोड़ा सा ही पैसा ,मुश्किल से हाथ आता है
जिसको जितना मिलता है,वो उसी से काम चलाता है
पैसों की तंगी ने एक काम बड़ा ठीक किया है
हमने सीमित साधनो से,घर चलाना सीख लिया है
अब हमें मालूम पड़ने लगा है ,भाव दाल और आटे का
डोमिनो का पिज़ा भूल ,स्वाद लेते है मूली के परांठे का
मजबूरी में ही सही ,लोगो की  समझदारी बढ़ गयी है
शादी की दावतों में,पकवानों की फेहरिश्त सिकुड़ गयी है
दिखावे और लोकलाज के बन्धन हट गए है
कई शादियों में तो बराती ,चाय और लड्डू  से ही निपट गए है
पत्नी की साड़ियों में   छुपा हुआ धन हो गया है उजागर
घर की आर्थिक स्थिति गयी है सुधर
भले ही बैंकों की कतारों में खड़े रहने का सितम हुआ है
पर हिसाब लगा कर देखो ,
पिछले माह घर का खर्च कितना कम हुआ है
भले ही हम हुए है थोड़े से परेशान
पर हमारे खर्चों पर लग गयी है लगाम
हालांकि मन को थोड़ी खली है
पर हमने मितव्ययिता सीख ली है
मोदीजी ,हमें आपके इस कठिन फैसले पर गर्व है
ये नोटबन्दी नहीं,   हमारे देश  और घर घर की ,
अर्थव्यवस्था का,अनुशासन पर्व है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 30 नवंबर 2016

असमंजस

 
असमंजस 

प्रेमिका ने प्रेमी से फोन पर कहा 
प्रियतम ,तुम्हारे बिन न जाता रहा 
मै तुम्हे बहुत प्यार करती हूँ,
 तुम्हे दिलोजान से चाहती हूँ 
तुम्हारे हर कृत्य  में ,तुम्हारी ,
सहभागिनी होना चाहती हूँ 
इसलिए मेरे सनम 
मेरे साथ बाँट लो अपनी ख़ुशी और गम 
अगर तुम हंस रहे हो ,
तो अपनी थोड़ी सी मुस्कराहट देदो 
अगर उदास हो तो गमो की आहट दे दो 
अपने कुछ आंसू,मेरे गालों पर भी बहने दो
मुझे हमेशा अपना सहभागी रहने दो  
अगर कुछ खा रहे तो ,
उसका स्वाद ,मुझे भी चखादो 
अगर कुछ पी रहे तो थोड़ी ,
मुझे भी पिला दो 
हम दो जिस्म है मगर रहे एक दिल 
अपने हर काम में करलो मुझे शामिल 
प्रेमिका की बात सुन प्रेमी सकपकाया 
उसकी समझ में कुछ नहीं आया 
बोला यार ,मैं क्या बताऊँ,
बड़े असमंजस में पड़ा हूँ 
बताओ क्या करू,
इस समय मैं टॉयलेट में खड़ा हूँ 

घोटू 

रिश्तों में अदाकारी कभी अच्छी नहीं होती...


हम भूल गये

                
                हम भूल गये  
                         
हो गए आधुनिक हम इतने,संस्कृती पुरानी भूल गए 
मिनरल वाटर के चक्कर में,गंगा का पानी  भूल  गए 
पिज़ा बर्गर पर दिल आया ,ठुकराया पुवे ,पकोड़ी को,
यूं पोपकोर्न से प्यार हुआ ,कि हम  गुड़धानी  भूल गए 
एकल बच्चे के  फैशन में, हम भूल गए  रक्षाबन्धन ,
वो भाई बहन का मधुर प्यार ,और छेड़ाखानी भूल गए 
वो रिश्ते चाचा ,भुआ के, हर एक को आज नसीब नहीं,
परिवारनियोजन के मारे , मौसी  और मामी भूल गए 
मोबाइल में उलझे  रहते,मिलते है तो बस 'हाय 'हेल्लो',
रिश्ते  नाते ,भाईचारा ,वो प्रीत  निभानी  भूल गए 
हुंटा ,अद्धा, ढईया ,पोना ,ये सभी पहाड़े ,पहाड़ हुए,
केल्क्युलेटर के चक्कर में ,वो गणित पुरानी भूल गए 
जीवन की क्रिया बदल गयी,बदलाव हुआ दिनचर्या में,
रातों जगते,दिन में सोते वो सुबह सुहानी भूल गए 
कोड़ी कोड़ी जोड़ी माया ,ना कभी किसी के साथ गयी ,
बस चार दिनों की होती है, जीवन की कहानी भूल गए 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

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